Unwanted Behavior of Agartala Collector: Vijay Shankar Singh कल से त्रिपुरा के अगरतला जिले के कलेक्टर शैलेश यादव का एक वीडियो वायरल है और वह वायरल वीडियो (Video of DM, West Tripura Shailesh Kumar Yadav raiding a wedding, thrashing guests, slapping priest and grabbing groom by collar has been circulating since y’day) हमारे प्रशासनिक सिस्टम में व्याप्त अहंकार, जिद, बदतमीजी …
Read More »हस्तक्षेप
सरकती जाए है रुख से फासिस्ट नकाब आहिस्ता-आहिस्ता, यही है कार्पोरेटी हिन्दुत्व का असली चेहरा
The second wave of corona in the country is becoming frightening देश में कोरोना की दूसरी लहर (Second wave of corona) भयावह होती जा रही है। जांच कम होने के बावजूद पिछले तीन दिन से हर रोज तीन लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं। देशभर में मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है। ऑक्सीजन गायब है। दवाइयां …
Read More »क्यूबा के समाजवादी ढांचे को बचाने की आवश्यकता
Need to save Cuba’s socialist structure: Dr Girish It has become necessary to save Cuba’s socialist structure in the same way that mankind from the COVID crisis. भारत की आजादी के 12 साल बाद 1959 में वहां के तानाशाह बतिस्ता को उखाड़ कर वहां के क्रांतिकारी हीरोद्वय फिदेल कास्त्रो और चेग्वेरा ने जिस समाजवाद की नींव डाली थी आज वह …
Read More »महामारी को अवसर और उत्सव बनाने वालों से आपको कौन बचाएगा?
Who will protect you from making the epidemic an occasion and celebration? मशहूर साहित्यकार मित्र रूप सिंह चंदेल ने लिखा है- जिला प्रशासन ने कल मेरी सोसायटी (विपुल गार्डेन, धारूहेड़ा) को कंटेनमेंट ज़ोन घोषित किया। 70 से अधिक मरीज। यह सब था पर लोग मस्त थे। अब चारों ओर सन्नाटा है। चंदेल जी के लिखे से फिर साफ हो गया …
Read More »जी हाँ! सिस्टम बिगड़ा तो है, पर उसे सुधारेगा कौन ?
The system is spoiled, but who will repair it? : Vijay Shankar Singh उदारीकरण के दौर में जब सब कुछ निजी क्षेत्रों में सौंप दिए जाने का दौर शुरू हुआ तो उसकी शुरुआत मुक्त बाजार और लाइसेंस परमिट मुक्त उद्योगों से हुई। जो सिस्टम, धीरे-धीरे ही सही, लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा के आधार पर विकसित हो रहा था, वह उदारीकरण …
Read More »तुम कुंभ और चुनावों का, यह मृत्यु-तांडव चलने देना/ सौगंध तुम्हें सत्ता मद की, लॉकडाउन नहीं लगने देना
यथार्थ देकर के आश्वासन, एक उच्चकोटि अभिशासन का। शंखनाद था किया गया, अच्छे दिन के आमंत्रण का।। दिवास्वप्न दृष्टा बनकर, इस भोली भाली जनता ने। स्वप्न संजोया रामराज्य का, तुमको चुनकर सत्ता में।। सात वर्ष से घूम रहा है, अभिनव अभिनय का चक्का। जाति, धर्म और पंथ के राक्षस देते सत्ता को धक्का।। पद के मद में चूर हुए, क्या …
Read More »ऑक्सीजन के अभाव में मौतें, यह खून किसके हाथों पर है ?
Deaths due to lack of oxygen, on whose hands is this blood? अगर कोविड-19 महामारी (COVID-19 Epidemic) के बेकाबू होने में अब भी किसी को संदेह हो, तो राजधानी दिल्ली में, 25 अप्रैल को लगातार पांचवें दिन, अस्पतालों में ऑक्सीजन का प्राणघातक संकट बने रहने से दूर हो जाना चाहिए। और तो और, कोविड-19 पर ही प्रधानमंत्री के द्वारा बुलाई …
Read More »एक बड़ा वर्ग महामारी की राजनीति कर रहा है और व्यापार भी
A large section is doing pandemic politics and also business इतनी बुरी खबरें चारों दिशाओं से आ रही हैं कि हिम्मत टूट रही है। इसी बीच कुछ बेहतर खबरें भी आ रही हैं। हमारे अग्रज सहयोद्धा कौशल किशोर जी और महेंद्र नेह जी, दोनों कोरोना को हराकर सकुशल घर लौटे हैं और पहले की तरह सक्रिय हो गए हैं। प्रेरणा …
Read More »हिन्दुओं का जनशत्रु है मोदी, आरएसएस भारत का विध्वंसक है
Modi is the demon of Hindus, RSS is the destroyer of India. मुसलमानों को हिन्दुओं का शुत्र बताकर बहुमत हासिल करने वाले मोदी असल में हिन्दुओं के तारणहार नहीं जनशत्रु हैं. मनमोहन सिंह काल में आई वैश्विक आर्थिक मंदी (Global economic downturn) ने जब दुनिया की आर्थिक महासत्ताओं की कमर थोड़ दी तब मनमोहन ने भारत को दिवालिया होने से …
Read More »आम लोगों के अंदर यह जानने की जबरदस्त उत्सुकता है कि आखिर माओवाद क्या है : इंछामो
विशद कुमार आज जहां सारा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है, सोशल मीडिया और अखबार ऑक्सीजन व वेंटिलेटर के अभाव में मर रहे लोगों की खबरों से भरे पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर तेलंगाना की राज्य सरकार व केंद्र सरकार इस आपदा को जनवादी संगठनों व लोकतांत्रिक आवाजों के दमन के अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रही है। …
Read More »साथी रमेश उपाध्याय! क्षमा करना मैं आपकी हत्या का मूक-दर्शक बना रहा!
मेरे हमज़ुल्फ़ (साढ़ू) और प्यारे साथी रमेश उपाध्याय! क्षमा करना कि मैं आपकी हत्या का मूक-दर्शक बना रहा! डॉ. रमेश उपाध्याय, महानतम जनवादी लेखकों में से एक, विचारक, हरदिल-अज़ीज उस्ताद, संपादक, जनसंघर्षों में पहली पंक्ति में शामिल होने वाले बुद्धिजीवी, सुधा उपाध्याय के 52 साल से हमसफ़र, प्रज्ञा, संज्ञा, अंकित के वालिद-दोस्त और राकेश कुमार के ससुर-दोस्त का 23-24 अप्रैल …
Read More »‘अच्छे दिन’ के हकदार : महामारी के आईने में कॉरपोरेट इंडिया की नंगी सच्चाई
‘अच्छे दिन’ के हकदार पहले भी कॉरपोरेट इंडिया के दावेदार थे, आज भी वे ही हैं, और कल भी वे ही रहेंगे। इस सच्चाई की लंबी-चौड़ी व्याख्या की जरूरत नहीं नंगी सच्चाई | Bare truth: Corporate India is loaded on the back of the toiling masses पिछले साल 24-25 मार्च की रात से जब प्रधानमंत्री ने देश पर लॉकडाउन थोपा …
Read More »एक बड़ा झूठ है कोरोना से मौत… क्योंकि सरकार को कोरोना की जरूरत है ?
A big lie is a death by corona … because the government needs corona? यह शीर्षक किसी सनसनी या चौंकाऊ हेडलाइन के जरिए आपकी उत्सुकता बढ़ाने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। यह एक हकीकत है। ऐसी हकीकत जिसे हमसे, आपसे, इस देश की जनता से छुपाया ही नहीं जा रहा है, बल्कि इस हकीकत तक कोई न पहुंचे …
Read More »एक कोरोना मरीज की डायरी
एक अंजानी बीमारी। जनवरी 2020 से क्वारंटाइन, सैनिटाइजर (Quarantine, sanitizer), लॉकडाउन (Lockdown) जैसे कुछ शब्द हमारी आम बोलचाल की भाषा में शामिल हो गए। शायद इनको अपनी जिंदगी में कोई भी नहीं घोलना चाहता था। विदेशी बीमारी पर पहले हम भारतीयों ने बहुत से मीम्स बनाए। इसे अमीरों की बीमारी का दर्जा दिया गया। धीरे-धीरे यह महामारी भारत में पैर …
Read More »मर रही है पृथ्वी, आखिर तक बचे रहेंगे गांव?
मर रही है पृथ्वी, बचे रहेंगे गांव। गांव को ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत नहीं है इस पृथ्वी को हमने गैस चैंबर बना दिया है। प्रकृति पर अत्याचार, प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन, अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन (Uncontrolled carbon emissions), खेती किसानी का सत्यानाश, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों की हत्या, जलस्रोतों और समुंदर से लेकर अंतरिक्ष तक का सैन्यीकरण- सर्वोपरि हरियाली …
Read More »पब्लिक अपना देख ले, सरकार आपदा में अवसर देखने में व्यस्त है
The public should see their own, the government is busy in seeing opportunity in disaster कोविड-19 की दूसरी लहर इतनी ऊंची होगी इसका ठीक-ठीक अनुमान भारत सरकार को नहीं रहा होगा और इसलिए, इस लहर के धक्के से जांच से लेकर उपचार तथा टीकाकरण तक, सारी की सारी व्यवस्थाओं के पिछले एक पखवाड़े में चरमरा जाने की बात, फिर भी …
Read More »क्या यह सुनियोजित जनसंहार नहीं है?
लगातार घनिष्ठ मित्रों, साथियों और प्रियजनों के कोरोना संक्रमित होने की खबरें मिल रही हैं। उत्तराखंड में आज से शाम सात बजे से रात्रि कर्फ्यू है। दोपहर दो बजे से सब कुछ बन्द। सिर्फ लॉकडाउन कहा नहीं जा रहा। कालाबाज़ारी की धूम मची है। जरूरी चीजें अनाज, दालों, खाद्य तेल से लेकर जीवनरक्षक दवाओं तक की कीमतें आसमान छू रही …
Read More »भारत के प्रधानमंत्री का मतलब केवल थूथयाना नहीं होता ….!
The Prime Minister of India does not just mean snout ….! भारत विविध है. विविधता भारत की आत्मा है. भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विविधता से बनता है भारत. इस विविधता को चकनाचूर करने वाला स्वयं ध्वस्त हो जाता है. भारत मूलतः एकाधिकारवाद के विरुद खड़ा एक कालजयी कालखंड है. समय-समय पर अल्पकालिक विकारी राज करने में सफ़ल हुए पर …
Read More »एक दिन अनाज के लिये भी मचेगी यही अफरातफरी, यह पूंजीवाद का निकृष्टतम रूप है
One day the same chaos will go on for food grains, this is the worst form of capitalism. जैसे आज अस्पताल में बेड, दवाइयों, ऑक्सीजन आदि स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये मारामारी मची है, वैसे ही यदि सरकार की कृषि नीति नहीं बदली और नए तीनों कृषि कानून रद्द कर किसान हित में नये कानून नहीं बने तो, इन्हीं सड़कों पर …
Read More »नक्षत्र साहित्य और नक्षत्र साहित्यकार
हिंदी में ऐसे लेखक-आलोचक रहे हैं, और आज भी हैं, जो कभी सत्ता की जनविरोधी नीतियों और जुल्म के खिलाफ नहीं बोलते हैं और नही लिखते हैं। इनमें से अधिकतर पुरस्कार पाते रहे हैं। इनको हिंदी लेखकों की दुनिया में सबसे बड़े ओहदे पर रखा जाता है। इस तरह के लेखकों की देश में पूरी पीढ़ी तैयार हुई है। इस …
Read More »चंद्रशेखर : जो गैर-कांग्रेसी होने के बावजूद संघ द्वारा इस्तेमाल नहीं हो पाए और जिन्होंने पहचान लिया था लोहिया का व्यक्तिवाद
एक बलियाटिक की चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री बने तब हम 10 साल के थे. यानी चीज़ों को दृश्य के स्तर पर समझने की उम्र में दाख़िल हो ही रहे थे. अगले डेढ़ दशक तक हमारी तरह बलिया के बहुत सारे लोगों के चेतन-अवचेतन को प्रभावित-परिभाषित उन्होंने ही किया. उस दौर की स्मृतियों में सबसे ज़्यादा जो तस्वीर …
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