On the Indo-US agreements, Bhim Singh has told Modi that India does not need guns to protect its culture.
भारत-अमेरिका के बीच तीन समझौतों पर भारत की शांति, गुटनिरपेक्ष प्रतिबद्धता की पृष्ठभूमि पर गम्भीर बहस की जरूरत-भीम सिंह
नई दिल्ली, 25 फरवरी 2020. नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक एवं एक जाने माने कानूनविद प्रो. भीम सिंह ने, जो 1967 से 1973 में शांति मिशन के तहत मोटरसाइकिल पर पूरी दुनिया का दौरा कर चुके हैं, कहा कि अमेरिका और भारत के बीच आज हैदराबाद हाऊस में आज हुए 3 बिलियन डालर के रक्षा सहयोग से सम्बंधित तीन समझौतों ने पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया है।
उन्होंने कहा कि भारत का नेतृत्व आज विश्व शांति के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन व पूर्ण निरस्त्रीकरण में अपना अद्वितीय योगदान को भूल गया है, जिससे दुनिया एकजुट होकर गरीबी, निरक्षरता और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ सके और एशिया, लेटिन अमेरिका, अफ्रीकी महाद्वीप में खासतौर पर तीसरी दुनिया के हर घर तक शिक्षा पहुंच सके।
प्रो. भीम सिंह ने कहा कि आज भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौतों से दुनिया के सभी शांति पसंद को आश्चर्य हुआ है, जिन्हें 1947 में भारत की आजादी के समय से ही भारत और उसके नेतृत्व से बड़ी आशाएं हैं।
पैंथर्स सुप्रीमो ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प के बीच तथाकथित तीन समझौतों पर हस्ताक्षर से खासतौर पर तीसरी दुनिया नई पीढ़ी आदि को निराशा हुई है। भारत के प्रधानमंत्री को भारत को जवाब देना होगा कि उनकी सरकार का 64 प्रतिशत निरक्षरता को खत्म करके सभी लोगों, खासतौर पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को समानता, न्याय और आर्थिक सुरक्षा देने के सम्बंध में क्या योजना या मिशन है। उन्होंने कहा कि गरीबी हटाओ, सभी को न्याय और समानता के नारों का क्या हुआ? लाखों लोग जो अस्पतालों में खुले आसमान के नीचे पड़े हैं, इनकी चिकित्सा सुविधा क्या होगा?
प्रो. भीम सिंह ने कहा कि क्या अमेरिका और भारत के बीच 3 बिलियन के रक्षा सहयोग का विस्तार से सम्बंधित समझौतों से भारत की निरक्षरता और सामाजिक जरूरतें पूरी हो सकेंगी। क्या हमें अमेरिकी फौजी हथियारों की जरूरत है, जबकि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय शांति, पूर्ण निरस्त्रीकरण और शत प्रतिशत साक्षरता की जरूरत है। भारत को अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए बंदूकों की आवश्यकता नहीं है। हमें अपने सदियों पुराने मानवता की प्रतिबद्धता पर कायम रहने की जरूरत है, न कि अमेरिकी हथियारों की।
प्रो. भीम सिंह ने सवाल किया कि क्या आप उग्रवाद को किसी विशेष धर्म या देश से जोड़ सकते हैं? क्या दुनिया में उग्रवाद सिर्फ एक धर्म या देश के द्वारा चल रहा है। उग्रवाद को एक ही धर्म के साथ जोड़कर अमेरिकी राष्ट्रपति क्या संदेश देना चाहते हैं।
Trump, who did not desist from anti-India activities, once again offered mediation on Kashmir. Government said things are moving in the right direction
नई दिल्ली, 25 फरवरी . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी भारत विरोधी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। उन्होंने मंगलवार को फिर से कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश की।
भारत के दो दिवसीय दौरे पर आए ट्रंप ने कहा,
“मैं मध्यस्थता या मदद के लिए जो कुछ भी कर सकता हूं, करूंगा।”
पाकिस्तान के संदर्भ में उन्होंने कहा,
“वे (पाकिस्तान) कश्मीर पर काम कर रहे हैं। कश्मीर लंबे समय से बहुत से लोगों के लिए एक कांटा बना हुआ है। हर कहानी के दो पहलू हैं। हमने आज आतंकवाद के बारे में चर्चा की।”
इससे पहले विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा,
“चर्चा जम्मू एवं कश्मीर में सकारात्मक विकास पर केंद्रित रही। चीजें सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं।”
इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि एनपीआर 2010 के प्रारूपों के अनुसार ही होना चाहिए, इसके लिए सरकार ने केंद्र सरकार को एक पत्र भी लिखा है।
नीतीश कुमार ने विधानसभा में कहा कि ग्रामीण इलाकों के लोगों को जन्मदिन का पता नहीं है। इन सबको देखते हुए केंद्र सरकार को पत्र भेजा गया है। बिहार सरकार द्वारा 15 फरवरी 2020 को भेजे गए पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि एनपीआर पुराने फॉर्मेट में कराने की बात कही गई है।
मुख्यमंत्री ने विपक्षी दलों को संशय में नहीं रहने की अपील करते हुए कहा कि पत्र में लिंग के कॉलम में ट्रांसजेंडर को जोड़ने का भी अनुरोध किया गया है।
उन्होंने कहा कि एनआरसी को लेकर कोई बात ही नहीं हुई है। इसके बारे में विस्तार से चर्चा किए बिना सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का जिक्र किया जा सकता है, जिसमें प्रधानमंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि एनआरसी पर अभी तक कोई विचार नहीं किया गया है।
नीतीश ने सदन में कहा कि बिहार में एनआरसी, एनपीआर को लेकर माहौल बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा,
“सीएए के सभी दस्तावेज देखे हैं। सीएए तीन देशों के अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिए है और यह केंद्र का कानून है। ये सही है या गलत, इसे अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा।”
नीतीश कुमार ने कहा कि किसी भी तरह की भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए। जहां तक सीएए का सवाल है सीएए तो कांग्रेस लेकर आई थी।
इससे पहले विधानसभा में सत्ता और विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। सदन की कार्यवाही मंगलवार को प्रारंभ होते ही सदन में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने एनपीआर को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बरगलाने का आरोप लगाया।
तेजस्वी ने सदन में एनआरसी और एनपीआर को देश तोड़ने वाला काला कानून बताया। उनके बयान पर सत्ता पक्ष के विधायकों ने भी हंगामा किया।
सत्ता पक्ष के विधायकों ने कहा कि विपक्ष देश के संविधान को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सत्ता पक्ष व विपक्ष के बीच बढ़ते हंगामे को देखते हुए सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई।
नई दिल्ली, 25 फरवरी: दुनिया की 90% आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है, ऐसे में अब वायु प्रदूषण नियंत्रण केवल पर्यावरण का मसला नहीं रहा बल्कि ये मानवाधिकार का गंभीर मुद्दा बन गया है.
दुनिया भर के एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशनों से एक्यूएयर द्वारा आंकड़े इकट्ठा कर तैयार की गई वैश्विक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट, 2019 में दुनिया के तमाम शहरों में साल 2019 में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की स्थिति में बदलाव का खुलासा हुआ है.
दक्षिणी एशिया के संदर्भ में देखें, तो पीएम 2.5 के मामले में भारतीय शहर इस बार भी फ़ेहरिस्त में शीर्ष पायदान पर बने हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 21 शहर शामिल हैं. ग़ाज़ियाबाद दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है. छठे नंबर पर नोएडा, सातवें नंबर पर गुरुग्राम और नौवें नंबर पर ग्रेटर नोएडा है. वहीं देश की राजधानी दिल्ली पांचवें पायदान पर है.
दुनिया के प्रदूषित देशों की सूची में भारत पांचवें स्थान पर है. यहां के वायुमंडल में प्रति क्यूबिक मीटर 58.1 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 मौजूद है. सबसे प्रदूषित मुल्क बांग्लादेश है. दूसरे पायदान पर पाकिस्तान, तीसरे नंबर पर मंगोलिया और चौथे स्थान पर अफग़ानिस्तान है.
हालांकि, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के शहरों में पिछले साल की तुलना में प्रदूषण में सुधार हुआ है. लेकिन, ये सुधार पीएम 2.5 कम करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के सालाना लक्ष्य से बहुत कम है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर साल पीएम 2.5 में 500% की कमी लाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन भारत में वायु प्रदूषण में महज 20 प्रतिशत कमी आई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 98% शहरों में वायु प्रदूषण में सुधार हो रहा है.
एक्यूएयर के सीईओ फ्रैंक हमेस ने कहा,
“कोरोना वायरस तो अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है, लेकिन एक खामोश हत्यारा, यानी वायु प्रदूषण हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की जान ले रहा है. दुनिया के एक बड़े हिस्से से एयर क्वालिटी डाटा नहीं मिलने से गंभीर समस्या हो रही है क्योंकि जिसके खतरे का अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है, उसका प्रबंधन भी नहीं हो सकता. जिन क्षेत्रों का वायु गुणवत्ता आंकड़ा उपलब्ध नहीं होता है, उन्हें वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा ग्रस्त क्षेत्र माना जाता है. इस तरह देखें तो एक बड़ी आबादी खतरे में है. वैश्विक स्तर पर पब्लिक मॉनीटरिंग डाटा मिलने से सरकार और आम जनता को सशक्त करने का अवसर मिलता है ताकि हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए बेहतर नीति लागू की जा सके.”
साल 2019 के वायु गुणवत्ता के आंकड़े साफ तौर पर बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन सीधे तौर पर वायु प्रदूषण बढ़ा सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते दावानल व धूल और बालू भरे तूफान ज्यादा आते हैं और उनकी तीव्रता भी अधिक होती है. इसी तरह बहुत सारे क्षेत्रों में पीएम2.5 से प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, मसलन कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल.
वैश्विक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2019 पर प्रतिक्रिया देते हुए ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर कैम्पेनर अविनाश चंचल ने कहा,
“दिल्ली में बाईपास रोड, बदरपुर पावर प्लांट्स बंद करने और कल-कारख़ानों में पीएनजी और बीएस VI तकनीक अपनाने से सालाना औसत के स्तर पर प्रदूषण में गिरावट आई है. साल 2019 में मौसम अनुकूल रहा. इससे भी मदद मिली और बाजार में आर्थिक सुस्ती की भी एक भूमिका रही. लेकिन, वायु गुणवत्ता की ताज़ा रिपोर्ट से ये संकेत भी मिलता है कि जो भी कदम उठाए गए हैं, वे अपर्याप्त हैं.”
“एयरपोकैलिप्स-IV या वैश्विक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट जैसी रपटों से पता चलता है कि घरेलू ईंधन व कृषि अवशेषों को जलाने का चलन घट रहा है, लेकिन जीवाश्म ईंधन से उत्पादित ऊर्जा का इस्तेमाल बहुत ज्यादा हो रहा है. पावर प्लांट्स नियमों की अनदेखी कर रहे हैं और तय समय-सीमा खत्म होने के बाद भी प्रदूषण नियंत्रण के लिए फ़्लू गैस डिसल्फराइजेशन स्थापित नहीं किया है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा ऐसी नहीं हो पाई है कि लोगों की निर्भरता निजी वाहनों पर कम हो जाए. ये तथ्य सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध हैं. मीडिया में इस पर ख़बरें बन रही हैं और लोगों को भी मालूम है. अब ज़िम्मेदारी सरकार पर है कि वह प्रदूषण फैलाने वालों की जवाबदेही तय करे,” अविनाश चंचल ने कहा.
Come, let us all together demonstrate India’s message of harmony, peace and love.
नई दिल्ली, 24 फरवरी, 2020. नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक, विश्व शांति परिषद के चेयरमैन एवं वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो. भीम सिंह ने भारतीय संमाज के सभी वर्गों और राजनीतिक दलों से भारत के शांति से प्रेम, अहिंसा और सद्भाव का, जिसका भारत सदियों से पालन कर रहा है, प्रदर्शन करने की अपील की है।
उन्होंने कुछ तत्वों राजनीतिक या आदि के द्वारा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़कों पर शोर मचाने पर गहरा दुख प्रकट किया।
उन्होंने समाज के सभी वर्गों और राजनीतिक दलों से हर तरह की हिंसा, जिसके परिणास्वरूप एक पुलिसकर्मी की मौत हो गयी है, के खिलाफ एकजुट होने की अपील की, खासतौर पर ऐसे समय में जब आज पूरा देश अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के दौरे पर स्वागत में व्यस्त है। ऐसे समय में राजधानी की सड़कों पर प्रदर्शन या हिंसक गतिविधियां और शांति व्यवस्था बनाए रखने में व्यस्त पुलिस के साथ झड़प अस्वीकार्य है।
प्रो. भीम सिंह ने देश के पूरे नेतृत्व से, उनकी राजनीतिक जुड़ाव के बिना, अपील की कि हम सब देशवासियों, खासतौर पर वे लोग जो लगभग एक महीने ज्यादा से कुछ मुद्दों पर दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, भारत के प्रेम, भाईचारे या एकजुटता के प्रदर्शन करने की अपील की।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में, जो आज शाम को अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत करेगी, आज की झड़प से भारत के दुनिया में दोस्तों और शुभचिंतकों को नकारात्मक संदेश जाएगा।
उन्होंने देश के पूरे नेतृत्व से लोगों से हिंसा और हिंसक गतिविधियों से दूर रहने की अपील की, खासतौर पर ऐसे समय में जब दुनिया की बड़ी शक्ति हमारी मेहमान है।
भारत एक विकासशील राष्ट्र है एवं किसी भी देश के लिए लोकशक्ति व समानता का विशेष महत्व रहता है, इसमें स्त्री एवं पुरुष दोनों सम्मिलित हैं क्योंकि ये दोनों समाज के अपरिहार्य अंग हैं। यदि किसी भी देश को विकसित करना है तो सबसे पहले महिलाओं का विकास करना होगा, क्योंकि महिला ही समाज की जननी होती है। भारतीय संविधान में बिना लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों की व्यवस्था की गयी है। आधुनिक युग में विश्व में महिलाएँ राजनीति, प्रशासन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिक, खेल हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।
बात विशेष रूप से खेल की हो तो इसकी प्रकृति ही सार्वभौमिक है। यह जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। इस्लाम अच्छे स्वास्थ्य एवं क्रियाशीलता को प्रोत्साहित करता है तथा स्त्री व पुरुष दोनों को ही स्वस्थ जीवन जीने के लिए शारीरिक क्रियाकलापों व व्यायाम अपनाने को बढ़ावा देता है। हालांकि धर्म के कुछ पहलू हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि खेलों को कैसे खेला जाए। उदाहरण के लिए इस्लाम का पालन करते हुए स्त्री व पुरुष के एक साथ खेलने पर पाबन्दी है तथा उन्हें वातावरण व पहनावे का भी ध्यान में रखना होता है।
इस्लाम कहता है कि ऐसे लिबास न पहनो जिससे शरीर का कोई भाग नज़र आए। अर्थात पहनावे से अश्लीलता नहीं टपकनी चाहिए।
कई मुस्लिम देश ऐसे हैं, जहां महिलाएं हर क्षेत्र में सक्रिय हैं, लेकिन विश्व की दूसरी सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले, धर्म निरपेक्ष तथा गणतन्त्र भारत में उनकी स्थिति पिंजड़े में बन्द परिन्दे की क्यों?
देश भर में मुस्लिम महिलाओं को बेहद गहराई तक जड़ें जमाए बैठी असमानता और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इससे न केवल महिलाओं के अधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है, बल्कि इस्लाम धर्म के बुनियादी सिद्धान्त और मूल्य भी इसमें दफन हो रहे हैं। सच्चाई यह है कि किसी दूर-दराज़ मुल्क में एक आदमी की तकलीफ़ या बेइज़्ज़ती क़ौम के दिल को हिला देती है, मगर अपने ही देश में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर ज़रा भी दिल नहीं पसीजता? एक-दो ज़ख़्म हों तो दिखाया जाए, यहां तो सारा वजूद ही छलनी है।
विश्व भर में स्त्रियों की खेलों में भागीदारी को लेकर विरोधी दृष्टिकोण तथा असहमति का सामना करना पड़ता है।
पवित्र कुरान में, सूरा-अन-नूर में कहा गया है कि एक औरत को उन पुरुष सम्बन्धियों के साथ बातचीत करने, साथ रहने की अनुमति है जिन्हें उससे विवाह करने की अनुमति न हा। निःसन्देह, इस्लाम में पुरुषों व स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त हैं। खेल वैज्ञानिकों ने यह जोर दिया है कि स्वास्थ्य व क्रियाशीलता स्त्रियों एवं पुरुषों दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है और इसे खेल-गतिविधियों के द्वारा ही प्रोत्साहित किया जा सकता है।
Main reasons for disappointing Muslim women’s participation in sports
खेलों में सक्रिय भागीदारी के लिए, मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक व सांस्कृतिक प्रतिबन्धों के कारण कई कठिनाइयों व बाधाओं का सामना करना पड़ता है और व्यापक रूप से देखा जाए तो इन प्रतिबन्धों का न केवल मुस्लिम महिलाओं बल्कि अन्य सम्प्रदायों व वर्गों की महिलाओं को भी सामना करना पड़ता है। मुस्लिम महिलाओं के सम्बन्ध में स्थिति अधिक गम्भीर है।
खेलों में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी निराशाजनक होने के मुख्य कारण हैं -खेलों के लिए टीमों तथा क्लबों के द्वारा मर्यादित वेशभूषा की कोई व्यवस्था नहीं होती। महिलाओं के परिवार के सदस्य उनकी सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं। समाज भी महिलाओं के खेल-कूद में प्रतिभाग केा महत्व नहीं देता। परम्परागत सोच अभी भी व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क पर हावी हैं। आर्थिक पाबन्दियाँ भी इस उद्देश्य में बाधा उत्पन्न करती हैं। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण भी बालिकाओं के खेल को एक कैरियर विकल्प के रूप में चुनने में सन्देह बना रहता है व खेलों में प्रतिभाग को लेकर बालिकाओं के मन में एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बना रहता है। आत्म विश्वास की कमी, अत्यधिक चिन्ता, प्रोत्साहन की कमी आदि ऐसे कारण हैं जो उनके सफल खिलाड़ी बनने के मार्ग को बाधित करते हैं।
आवश्यकता इस बात की है कि खेल व शारीरिक शिक्षादाताओं को धार्मिक विभिन्नता का आदर करना चाहिए। यह एक चिन्ताजनक बात है कि मुस्लिम महिलाओं को प्रशिक्षकों तथा चयनकर्ताओं द्वारा प्रायः नजरन्दाज किया जाता है तथा भेदभाव किया जाता है।
धार्मिक व सांस्कृतिक बन्धन मुस्लिम महिलाओं के खेलों में प्रतिभाग को और भी कठिन बना देता है। इस स्थिति के लिए मुस्लिम धार्मिक विश्वास को दोष नहीं दिया जा सकता। इस्लाम स्वास्थ्य को पुरुष व स्त्री दोनों के लिए प्रोत्साहित करता है। आवश्यकता है लोगों की मानसिकता को बदला जाए।
Dr. Mohammad Sharique Assistant Professor Deptt. of Physical Education Khwaja Moinuddin Chishti Urdu Arabi- Farsi University, Lucknow.
मुस्लिम महिलाओं के लिए खेल के लिए मर्यादित वेशभूषा, सुरक्षा की भावना तथा आर्थिक सहयोग कुछ ऐसे कदम हैं जो उनके खेलों में प्रतिभाग को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। सानिया मिर्जा, लैला अली, हसीबा बुलमर्का, रानिया-अल-वानी आदि अनेक मुस्लिम महिला खिलाड़ी हैं जो अन्य मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। स्त्री-पुरूष के आधार पर भेदभाव किया जाना कुदरती नियमों के विरूद्ध है। तभी तो शायर राम मेश्राम कहते हैं कि –
एक समय था जब लोग रोजगार के लिए परेशान हुआ करते थे। लेकिन आज का दौर है कि यहां पर रोजगार तो है लेकिन उस रोजगार के लिए जरूरी योग्यता वाले लोग नहीं हैं। इस वजह से गुणवत्ता के साथ प्रोडक्टिविटी भी प्रभावित हो रही है। आइए आपको इस आलेख में एक ऐसे प्रोफेशनल कोर्स से अवगत कराते हैं जिसे करके आप एक योग्यता के साथ उस रोजगार को हासिल करने के प्रबल दावेदार बन जाएंगे जिसे सिर्फ आपकी जरूरत है।
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हम बात कर रहे हैं पैरामेडिकल फील्ड से जुड़े ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन कोर्स की। ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन (नेत्र सहायक) वह व्यक्ति होता है जो एक आप्थैलमोलाजिस्ट यानी कि आंखों के डॉक्टर के साथ काम करता है। देश में कई सारे सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों से आप यह कोर्स कर सकते हैं। इस कोर्स की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे करने के बाद कोई बेरोजगार नहीं रह सकता। इसकी वजह ये है कि पैरामेडिकल फील्ड के तहत आने वाले इस तरह के टेक्निशियन की भरपूर मांग है। अवसर इस क्षेत्र में तेजी के साथ बढ़ रहे हैं।
Approved course from National Skill Development Council
खास बात यह कि ये कोर्स नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल से अप्रूव्डब हैं तो ऐसे में अगर आपका सपना कभी डॉक्टर बनने का था और वह पूरा नहीं हुआ है तो यह एक अवसर है जिसके जरिए आप अपने सपने को आधा तो पूरा ही कर सकते हैं।
कैसे बनें ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन : How to become an Ophthalmic Technician
ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन बनने के लिए आपको डिग्री या डिप्लोमा कोर्स करना जरूरी है। डिप्लोमा कोर्स दो साल का होता है। एक ऑप्थैल्मिक असिस्टेंट का काम (Ophthalmic Assistant’s work) आंखों की डायग्नोसिस के साथ साथ ट्रीटमेंट व बचाव का प्रशिक्षण दिया जाता है।
इसके अलावा क्लिनिकल डाटा इकट्ठा करना, रोगी के रिकॉर्ड को व्यवस्थित करने का जिम्मा होता है। ऑप्थैल्मिक के तहत कई तरह के आंखों से संबंधित क्लींनिकल फंक्शन किए जाते हैं। ऑप्थैल्मिक असिस्टेंट आई डॉक्टर को रोगी के इतिहास, विभिन्न तरह के तकनीकी और जांच में मदद करता है। आंख की किसी भी समस्या से जूझ रहे व्यक्ति के लिए ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन, डॉक्टर के साथ एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन क्या योग्यता होनी चाहिए : What qualification should the Ophthalmic Technician
डीपीएमआई की प्रिंसिपल अरूणा सिंह के मुताबिक इस कोर्स को करने के लिए अभ्यर्थी को कम से कम 12वीं पास होना चाहिए जिसमें उसने फिजिक्स, केमिस्ट्री्, बायोलॉजी जैसे विषयों को पढ़ा हो। इसके लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है जिसमें फिजिक्स, केमिस्ट्री्, बायोलॉजी और अंग्रेजी में पास होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा रेटिनोस्कोपी, आंखों से संबंधित बीमारी का पता होना, लेंस की जानकारी, फ्रेम कैसेट तैयार करना है, आई कैंप के आयोजन की जानकारी होनी जरूरी है।
ऑप्थैल्मिक टेक्नीशियन कोर्स के दौरान क्या पढ़ें : What to read during Ophthalmic Technician Course
कांट्रैक्टौ और रिफ्रैक्टिव सर्जरी, ग्लूरकोमा ट्रीटमेंट, पीडियाट्रिक आप्थैमोलाजी, मेडिकल रेटिना आप्थैमोलाजी (Contractou and refractive surgery, glaucoma treatment, pediatric ophthalmology, medical retinal ophthalmology) और न्यूरो आप्थैमोलाजी जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
इस कोर्स के तहत लेंसोमेटरी, ऑक्यूलर फार्माकोलॉजी, केराटोमेटरी, आई मसल्स, रेफ्राक्टोमेटरी, विजुअल एक्युमेट्री वगैरह पढ़ाया जाता है, डिप्लोमा इन ऑप्थैलमॉजी(Diploma in ophthalmology) दो वर्ष का कोर्स है। पहले सेमेस्टर में एक वर्ष तक थ्योरी एवं प्रैक्टिकल कराया जाता है, फिर 6 महीने तक मोबाईल यूनिट के जरिए प्रशिक्षण दिया जाता है, और अगले 6 महीने प्राइमरी हेल्थ क्लिनिक में प्रशिक्षण दिया जाता है। डिप्लोमा इन ऑप्थैलमॉजी कोर्स में 17 से 35 वर्ष तक की उम्र के अभ्याकर्थी एडमिशन ले सकते हैं।
डिप्लोमा इन ऑप्थैलमॉजी कोर्स करने के बाद क्या हैं रोजगार के अवसर : What are the employment opportunities after doing Diploma in Ophthalmology course
डिप्लोमा इन ऑप्थैलमॉजी कोर्स करने के बाद सरकारी व गैर सरकारी आई सेंटर्स, हास्पिटल, हेल्थ केयर सेंटर्स, इंस्टीट्यूट, मेडिकल कॉलेज, ऑप्रेरशन थियेटर, लेजर आई सर्जरी क्लिक आदि में रोजगार पा सकते हैं, तजुर्बे के बाद आप खुद का आई सेंटर या खुद का क्लिनिक भी खोल सकते हैं।
डिप्लोमा इन ऑप्थैलमॉजी कोर्स करानेवाले प्रमुख संस्थान – Major institutes offering diploma in Ophthalmology courses
दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली
www.dpmiindia.com
शिवालिक इंस्टीट्यूट, ऑफ पैरामेडिकल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़
पैरामेडिकल कॉलेज, दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल
www.paramedicalcollege.org
भारती विद्यापीठ डीम्ड यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, पुणे (Bharathi Vidyapeeth Deemed University Medical College, Pune)
विजयनगर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, बेल्लारी, बेंगलुरु (Vijayanagar Institute of Medical Sciences, Bellary, Bangalore)
सेन्टर फॉर एप्लाइड जियोसाइंस यूनिवर्सिटी ऑफ टयूबिनजेन के पर्यावरण विशेषज्ञों {Environmental experts from the Center for Applied Geoscience University of Tubingen (The Center for Applied Geoscience (ZAG) at Eberhard Karls Universität Tübingen)} के मुताबिक कि पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन(Greenhouse gases emissions) को पर्याप्त मात्रा में कम किया जा सकता है। खेत की मिट्टी में काफी मात्रा में बयोचर और उसका मिश्रण बनाया जा सकता है।
what is biochar used for? बायोचार किसके लिए प्रयोग किया जाता है?
सूखे पेड़-पौधों को खेतों में सड़ाकर जोतने से बड़ी मात्रा में कार्बन निकलता है जिसे बायोचर कहते हैं। यह ग्रीनहाउस गैसों को मिट्टी में ही सोखकर मिट्टी की क्षमता को बढ़ा देता है।
बायोचर का उत्पादन आर्गेनिक सामग्रियों के थर्मोकेमिकल अपघटन द्वारा होता है। बायोचर मिट्टी के पोषक तत्वों को बचाता है।
उन पौधों के लिए जिन्हें उच्च पोटाश और ऊंचे पीएच की आवश्यकता होती है, उपज में सुधार के लिए बायोचार का उपयोग मिट्टी के संशोधन के रूप में किया जा सकता है। बायोचार पानी की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, ग्रीनहाउस गैसों के मिट्टी उत्सर्जन को कम कर सकते हैं, पोषक तत्वों की लीचिंग को कम कर सकते हैं, मिट्टी की अम्लता को कम कर सकते हैं और सिंचाई और उर्वरक आवश्यकताओं को कम कर सकते हैं।
दक्षिण अमरीका और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वहां के निवासी बायोचर के इन्हीं गुणों के कारण पेड़-पौधों से हजारों वर्षों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करते आ रहे हैं।
जाति-धर्म की राजनीति से परेशान हो चुकी जनता से आम आदमी पार्टी ने किया राष्ट्र निर्माण से जुड़ने का आव्हान किया – पंकज सिंह
भोपाल, 23 फरवरी 2020. आम आदमी पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष पंकज सिंह ने कहा है कि मध्य प्रदेश से राष्ट्र निर्माण अभियान के अंतर्गत 88,000 लोग आम आदमी पार्टी से जुड़ चुके हैं और यह अभियान मध्यप्रदेश में 23 फरवरी से 23 मार्च तक जोर-शोर से मध्य प्रदेश मैं चलाया जाएगा।
आज यहां एक प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद आम आदमी पार्टी राष्ट्र निर्माण कैंपेन के तहत काम की राजनीति को देश के हर घर तक लेकर जाएगी। मध्य प्रदेश में इस अभियान की शुरूआत 23 फरवरी से हुई और यह अभियान 23 मार्च तक चलेगा।
केजरीवाल के विकास माँडल को मध्य प्रदेश के घर-घर पहुंचाएगी आप
श्री सिंह ने कहा कि लोगों से काम की राजनीति से जुड़ने का आह्वान किया जाएगा जिससे दिल्ली की तरह पूरे मध्य प्रदेश में आम जनता के सरोकार से जुड़े मसलों पर राजनीति हो सके। इस अभियान के तहत लोगों के सामने दिल्ली के मॉडल और मध्य प्रदेश के मॉडल की तुलना को रखा जाएगा, जिससे उन्हें पता चल सकेगा कि दिल्ली में काम की राजनीति ने जनता के जीवन में किस तरह का बदलाव किया है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा – आम आदमी पार्टी ने 11 फरवरी को दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार की जबर्दस्त वापसी के बाद राष्ट्र निर्माण अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर लांच किया था। जिसके तहत मोबाइल नंबर 9871010101 जारी किया गया। आम आदमी पार्टी की ओर से दिल्ली मे किए गए काम की राजनीति को लोगों ने हाथों-हाथ लिया। आलम यह रहा कि 24 घंटे में ही इस नंबर पर 11 लाख लोग मिस्ड काँल कर राष्ट्र निर्माण अभियान से जुड़ गए। इसके पीछे दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार की ओर से स्कूल, अस्पताल, पानी, बिजली, महिला सुरक्षा व जन सरोकार से जुड़े मसलों समेत सभी क्षेत्रों में किया गया बदलाव बड़ी वजह रही। आज देश के कई राज्यों में दिल्ली सरकार के विकास माँडल को अपनाया जा रहा है। कई राज्यों में दिल्ली का शिक्षा माँडल और मोहल्ला क्लिनिक अपनाया जा रहा है। कुछ राज्य दिल्ली की तरह मुफ्त बिजली देने लगे हैं। इसका असर देश भर की जनता पर भी पड़ा है। वह भी अब जाति-धर्म की राजनीति से परेशान हो गई है। वह भी अब काम की राजनीति चाहती है। वह दिल्ली के विकास माँडल को जानना चाहती है। इसी का नतीजा है कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्र निर्माण अभियान से लोग तेजी से जुड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि दिल्ली के अंदर जो आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीता है और जो अरविंद केजरीवाल जी की सरकार बनी है, इसका संदेश पूरे देश के अंदर है। इस समय काम की राजनीति को लेकर लोगों में उत्साह है। इसी के तहत आम आदमी पार्टी आज से घर-घर जाएगी। लोगों को केजरीवाल के विकास माँडल को बताएगी। साथ ही काम की राजनीति से जुड़ने के लिए मिस्ड काँल करने की गुजारिश करेगी।
रायपुर, 23 फरवरी 2020. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने विधानसभा के आगामी सत्र में नागरिकता संशोधन कानून और एक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनसीआर) बनाने के मोदी सरकार के मंसूबे के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की मांग की है।
माकपा ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने हेतु राज्य सरकार द्वारा अक्टूबर में जारी अधिसूचना को भी वापस लेने की मांग की है।
आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि एनआरसी की पहली सीढ़ी एनपीआर ही है। अतः जो लोग और सरकारें नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हैं, उन्हें एनपीआर रोकने के लिए कदम उठाना होगा, जैसा कि केरल में वाम मोर्चा सरकार ने किया है। इसीलिए माकपा ने जनगणना में एनपीआर से संबंधित सवालों का जवाब न देने की अपील के साथ देशव्यापी अभियान चलाने का फैसला किया है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि भले हो मोदी सरकार ने केंद्र में अपने बहुमत के बल पर संविधानविरोधी नागरिकता कानून पारित कर दिया हो, लेकिन इसे एनपीआर के जरिये लागू करने का रास्ता राज्यों से होकर ही जाता है। राज्य सरकार को चाहिए कि विधानसभा में इस संबंध में प्रस्ताव पारित कराएं।
उन्होंने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि एनपीआर न होने देने की मुख्यमंत्री के बार-बार के वादे के बावजूद इस संबंध में अक्टूबर में ही अधिसूचना जारी होने के प्रमाण सामने आ गए हैं। इससे सरकार की असली मंशा पर ही सवाल उठ गए हैं। इस पर सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए और सरकार को अंधेरे में रखकर उसकी नीतियों के खिलाफ अधिसूचना जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करना चाहिए।
पराते ने कहा कि कांग्रेस सरकार को इस अधिसूचना को तुरंत वापस लेना चाहिए और एनपीआर न होने देने के लिए एक नई अधिसूचना जारी करनी चाहिए, ताकि भ्रम और संदेह का वातावरण दूर हो।
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Jyotiraditya Scindia will no longer hit the road but go to Rajya Sabha
नई दिल्ली 23 फरवरी 2020. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अब सड़क पर नहीं उतरेंगे बल्कि राज्यसभा जाएंगे।
जी हां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले दिनों कहा था कि यदि मध्य प्रदेश में सरकार पार्टी के घोषणापत्र को पूरा लागू नहीं करती है तो वह सड़कों पर उतरेंगे। उन्होंने दिल्ली चुनाव में पार्टी की हार के बाद सोच बदलने की भी जरूरत बताई थी। इसके बाद सिंधिया और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ में टकराव बढ़ गया था। संवाददाताओं के सिंधिया के सड़क पर उतरने के बयान पर कमलनाथ भड़क गए थे और उन्होंने गुस्से में जवाब दिया था, ‘तो उतर जाएं’।
इसके बाद दोनों गुटों में संघर्ष के आसार बन गए थे।
अहम बात यह है कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के पिता स्व. माधवराव सिंधिया, दोनों ही स्व. संजय गांधी के अभिन्न मित्र थे और जब कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो लोगों को लगा था कि मध्य प्रदेश में संजय गांधी की वापसी हुई है। जबकि माधवराव सिंधिया ने अपने परिवार से बगावत करके ताउम्र गांधी परिवार से अपने रिश्ते निभाए।
दुर्भाग्य से ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार की उस परंपरागत सीट से 2019 में लोकसभा चुनाव हार गए जहां माधवराव सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी को बुरी तरह हराया था और जिस सीट पर अब तक हुए उपचुनाव सहित 20 चुनाव में सिंधिया राजघराने के प्रतिनिधियों को 14 बार जीत मिली थी। जबकि कमलनाथ अपनी परंपरागत सीट पर अपने पुत्र को स्थापित करने में सफल रहे।
सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनते समय ज्योतिरादित्य को भी राजस्थान में सचिन पायलट की तरह उपमुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया था, पर उस समय उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। अब सिंधिया की मजबूरी है कि उन्हें दिल्ली के लुटियन जोन में बंगला चाहिए, इसी के लिए वह कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बना रहे थे।
सूत्रों का यह भी कहना है कि प्रियंका गांधी को मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजे जाने की अफवाह जानबूझकर सिंधिया विरोधी खेमे की तरफ से उड़ाई गई थी, जिस पर कांग्रेस आलाकमान नाराज था।
सूत्रों का कहना है कि सिंधिया-कमलनाथ विवाद में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दखल दिया और सीएम कमलनाथ को हिदायत दी कि सिंधिया की चिंता दूर करें, उसके बाद कमलनाथ ने सिंधिया को आश्वासन दिया है कि वे उनके पिता के मित्र हैं और उनका राजनीतिक अहित नहीं होने देंगे।
सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ ने आश्वासन दिया है कि सिंधिया राज्यसभा जाएंगे।
अगर सूत्रों की खबर सही साबित होती है तो आप कुछ ही दिनों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश की सड़कों पर उतरते नहीं नहीं राज्यसभा में उतरते पाएंगे।
The government of the Sangh-BJP is a broker of the United States and has nothing to do with the sovereignty and honor of the nation.
ओबरा, सोनभद्र, 22 फरवरी, 2020, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगातार भारत के विरूद्ध अपमानजनक बयान देने के बावजूद उनके दौरे में देश के टैक्स पेयर के पैसे की जिस तरह की बर्बादी की जा रही है, उसने यह दिखा दिया है कि संघ-भाजपा की सरकार अमेरिका की दलाल है और इसका राष्ट्र की सम्प्रभुता व सम्मान से कोई लेना देना नहीं है।
यह बातें आज ओबरा कार्यालय पर आयोजित बैठक में स्वराज अभियान नेता दिनकर कपूर ने कार्यकर्ताओं के बीच कहीं।
उन्होंने कहा कि महज अमेरिका में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव में वहां बसे भारतीयों का वोट लेने के स्वार्थ में अमेरिकी राष्ट्रपति दौरा कर रहे है। लेकिन संघ-भाजपा के लोगों द्वारा माहौल ऐसा बनाया जा रहा है जैसे इस दौरे से भारत को बड़ा लाभ मिलने जा रहा हो। जबकि खुद ट्रम्प साफ कर चुके है कि वह कोई डील भारत से नहीं करने जा रहे है। यहीं नहीं संघ-भाजपा सरकार द्वारा अमेरिका की गुलामी करनी की नीतियों के कारण पहले ही तेल, दुग्ध व्यवसाय, कृषि और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में देश को नुकसान पहुंच चुका है।
उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन में आरएसएस के लोग अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे और आज वह अमेरिकी भक्ति में लगे हैं, ऐसे लोग राष्ट्रवादी नहीं हो सकते। सच्चा राष्ट्रवाद तो अमेरिका और कारपोरेट की जन विरोधी, देश विरोधी नीतियों के विरूद्ध खडा होकर ही पैदा होगा। जिसके बारे में जनता को जागृत करना होगा।
लोकतंत्र बचाओ अभियान के तहत लखनऊ में 29 फरवरी को आयोजित सम्मेलन के बारे में उन्होंने कहा कि योगी राज में पूरा प्रदेश पुलिस राज में तब्दील हो गया है। वैचारिक-राजनीतिक विरोध पर रासुका, गुण्डा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट जैसे काले कानून लगाए जा रहे है। लगातार धारा 144 लगाकर सामान्य लोकतांत्रिक गतिविधियों पर रोक लगायी जा रही है। राजनीतिक बदले की भावना से कार्यवाही कर लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, शांतिपूर्ण घरनों पर बर्बर जुल्म हो रहा है, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को थानों में थर्ड डिग्री का टार्चर किया जा रहा है। इसलिए प्रदेश में लोकतंत्र की रक्षा और लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति की बहाली आम नागरिकों की जीवन रक्षा के लिए बेहद जरूरी है। लोकतंत्र को बचाने के इस सम्मेलन में कई पूर्व सासंद, विधायक, बडे ओहदों पर रहे कई पूर्व अधिकारी, राजनीतिक, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि हिस्सा लेगें।
बैठक में स्वराज अभियान जिला प्रवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह, ठेका मजदूर यूनियन के जिला संयुक्त मंत्री मोहन प्रसाद, उपाध्यक्ष तीरथराज यादव, मजदूर किसान मंच के जिला सचिव रमेश सिंह खरवार, इंद्रदेव खरवार, पटरी दुकानदार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमल मिश्रा, जगनारायन गुप्ता, शिव धाकर गुप्ता, राजू यादव, सफाई मजदूर नेता सुनील, चंद्रशेखर पाठक, कमलेश कुमार केवट, रणजीत भरती, बीडीसी भगवान दास गोंड़, बलवंत खरवार आदि ने अपने विचार रखे।
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पीलीभीत में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज सहित 33 लोगों पर एफआईआर के मामले ने तूल पकड़ा
रिटायर्ड जज की शिकायत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने पीलीभीत जिला जज को दिया न्यायिक जांच का आदेश, जिला प्रशासन में मची खलबली,
नामजदों की गिरफ्तारी को पुलिस ने दबिशें डालना बंद किया, जांच में प्रशासन के झूठ का हो जाएगा भंडाफोड़ –अजीत यादव
बदायूँ/ पीलीभीत/ लखनऊ 22 फरवरी 2020. विगत 13 फरवरी को पीलीभीत शहर के जुगनू की पाखड़ तिराहे पर नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी व एनपीआर के विरोध में शांतिपूर्ण धरना और सभा(Peaceful Dharna and assembly in protest of Citizenship Amendment Act, NRC and NPR) के बाद अगले दिन पुलिस प्रशासन द्वारा इलाहबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज समेत 33 लोगों पर की गई नामजद एफआईआर का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
एफआईआर में नामजद रिटायर्ड जज जस्टिस मुशफ्फे अहमद की शिकायत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने पीलीभीत के जिला जज को मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। इससे जिला प्रशासन में खलबली मच गई है और नामजदों की गिरफ्तारी को पुलिस ने दबिशें डालना बंद कर दिया है।
उक्त जानकारी यूपी कोआर्डिनेशन कमेटी अंगेस्टसीएए, एनआरसी व एनपीआर व स्वराज अभियान की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अजीत सिंह यादव ने आज रिटायर्ड जस्टिस मुशफ्फे अहमद से बात करने के बाद दी।
उन्होंने कहा कि जस्टिस अहमद ने बताया है कि मामले की न्यायिक जांच के लिए मुख्य न्यायाधीश का पत्र पीलीभीत के जिला जज को मिल चुका है। उम्मीद है कि सोमवार को वे किसी को जांच अधिकारी नामित कर देंगे।
श्री यादव ने कहा कि न्यायिक जांच में प्रशासन के झूठ का भंडाफोड़ हो जाएगा। 14 फरवरी को एफआईआर दर्ज कर 33 नामजद व 100 अज्ञात आंदोलनकारियों पर पुलिस के सिपाही दुष्यंत कुमार द्वारा धरनास्थल के पीछे मोहम्मद सागवान के मकान में बंधक बनाकर रखने और मारपीट करने के लगाए आरोप बेबुनियाद साबित होंगे।
श्री यादव ने कहा कि यूपी कोआर्डिनेशन कमेटी और संविधान रक्षक सभा की हमारे जंचदल ने 21 फरवरी को पीलीभीत का दौरा किया था और पीड़ितों के बयान दर्ज किए थे। हम मोहम्मद सागवान के घर पर भी गए थे जहां सिपाही ने बंधक बनाकर रखने का दावा किया था। उस घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं और सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की जांच में सिपाही के इस झूठ का पर्दाफाश हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि पीलीभीत के पुलिस अधीक्षक यह कह कर कि एफआईआर में दर्ज व्यक्ति रिटायर्ड जस्टिस नहीं कोई और है, अपना बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जांच में जब यह साबित हो जाएगा कि दर्ज एफआईआर फर्जी है तो पुलिस अधीक्षक भी बच नहीं पाएंगे।
श्री यादव ने कहा कि उन्हें न्यायिक जांच पर पूरा भरोसा है। हमें उम्मीद है कि सच सामने आएगा और एफआईआर फर्जी साबित होगी। दोषी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज होगा।
उन्होंने कहा कि भय व आतंक का माहौल बनाने के लिए पूरे सूबे में योगी सरकार द्वारा पुलिस दमन किया जा रहा है। धारा 144 का दुरुपयोग कर सरकार नए नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ जनता की आवाज को दबा रही है। इसीलिए पीलीभीत में भी फर्जी एफआईआर दर्ज की गई है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिमत दिया है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करना, प्रदर्शन करना न तो गैरक़ानूनी है और न ही गैर संवैधानिक है। फिर भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी नागरिकता कानून का विरोध करने वालों के साथ आतंकवादी जैसा व्यवहार कर रहे हैं। और पूरे सूबे को खुली जेल में बदल कर अघोषित आपातकाल लगा दिया है।
उन्होंने कहा कि तानाशाही को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लोकतंत्र और संविधान बचाने को अंतिम दम तक संघर्ष किया जाएगा। प्रदेश में आंदोलन को संयोजित करने के लिए ही यूपी कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई है। जिसमें पूरे सूबे के हर जिले से लोग शामिल हैं। जल्द ही आंदोलन की योजनाओं की घोषणा की जाएगी।
[box type=”note” align=”” class=”” width=””]आप हस्तक्षेप के पुराने पाठक हैं। हम जानते हैं आप जैसे लोगों की वजह से दूसरी दुनिया संभव है। बहुत सी लड़ाइयाँ जीती जानी हैं, लेकिन हम उन्हें एक साथ लड़ेंगे — हम सब।Hastakshep.com आपका सामान्य समाचार आउटलेट नहीं है।हम क्लिक पर जीवित नहीं रहते हैं। हम विज्ञापन में डॉलर नहीं चाहते हैं। हम चाहते हैं कि दुनिया एक बेहतर जगह बने। लेकिन हम इसे अकेले नहीं कर सकते। हमें आपकी आवश्यकता है।यदि आप आज मदद कर सकते हैं – क्योंकि हर आकार का हर उपहार मायने रखता है – कृपया।आपके समर्थन के बिना हम अस्तित्व में नहीं होंगे। Paytm – 9312873760 Donate online –https://www.payumoney.com/paybypayumoney/#/6EBED60B33ADC3D2BC1E1EB42C223F29[/box]
अपने ही देश और समाज में सैनिक का अपमान बेहद शर्मनाक।Insulting the soldier in his own country and society is extremely shameful.
देश की रक्षा और स्वभिमान के लिए देश का सैनिक अपने प्राणों की बाजी लगा देता है, लेकिन जब किसी सैनिक का अपमान अपने ही देश और समाज में किया जाता है तो सर शर्म से झुक जाता है। ऐसी ही शर्मनाक घटना गुजरात के बनासकंठा में 17 फरवरी 2020 को घटित हुई।
दलित दूल्हा चढ़ा घोड़ी …
सांदीपाडा गांव के एक युवक आकाश कोटडिया की शादी (wedding procession of Akash Kotdia) के दौरान ऊंची जाति के लोगों ने घोड़ी पर चढ़ने से रोका और पथराव किया। ये युवक सेना का जवान है और जम्मू कश्मीर में तैनात है।देश के लिए मर मिटने को तैयार जवान का दोष यही था कि वह दलित जाति का था। सैनिक का अपमान वो भी गाँधी और पटेल की जन्म भूमि पर ! ये कैसा गुजरात मॉडल पेश किया है।
गंगा जल और गोमूत्र की चिंता !दलितों की क्यों नहीं !
ये कैसा गुजरात मॉडल?What kind of Gujarat model is this?
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में देश को गुजरात मॉडल की तर्ज पर विकसित झरने का जोर-सोर से प्रचार किया गया। ऐसा लग रहा था गुजरात टोकियो या अमरीका के कोई स्मार्ट सिटी हो। गुजरात मॉडल की हकीकत तब सामने आई जब 11 जुलाई 2016 को गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के ऊना शहर में गोरक्षा के नाम पर दलित समुदाय के 7 युवाओं को ऊंची जाति के हिन्दू गोरक्षकों ने बुरी तरह रॉड से पीटा और उनके कपड़े फाड़कर बस्ती में लोगों के सामने घुमाया गया। इस घटना से देश के दलित समुदाय में गहरा आक्रोश पनपा था। उस घटना से व्यथित होकर पीड़ित परिवार के पीयूष सरवैया सहित सैकड़ों लोगों ने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
शहीद का अपमान अपने ही गाँव में नहीं मिली दो गज जमीन।
27 जून 2016 को पंजाब केसरी में उपरोक्त हेडलाइन छपी थी। समाचार को पढ़कर हैरानी हुई आखिर किस ओर जा रहा है 21वीं सदी का हिन्दू समाज? जम्मू कश्मीर के पम्पोर में सीआरपीएफ पर हुए हमले में शहीद हुए जवान वीर सिंह के अंतिम संस्कार के लिए दबंग और ऊँची जाति के लोगों ने जमीन देने से मना कर दिया। गुजरात मॉडल की तर्ज पर ये घटना उत्तरप्रदेश के शिकोहाबाद की है। मातृभूमि के लिए शहीद हुए सैनिक के लिए अपनी ही मातृभूमि में अंतिम संस्कार को दो गज जमीन नसीब नहीं हुई और हम ढोल पीट-पीट कर विश्व गुरू और हिन्दू राष्ट्र की बात कर रहे हैं।
क्यों होता है दलितों के साथ काफिरों सा व्यवहार?
अथर्वेद में लिखा है-समानी प्रपा सह वो नभाग:
समाने योक्त्रे सह वो युनजिम्म।
स्मयनचो अग्नि सपर्यतारा नाभिमिवादभीत:।।
अर्थात-हे मनुष्यों, तुम लोगों की पानी पीने और भोजन करने की जगह एक ही है। समान धुरा में मैंने तुम सबको समानता से जोत दिया है। जिस प्रकार चक्र के बीच अरे जमे रहते हैं, उसी प्रकार तुम भी एक जगह एकत्र होकर अग्नि में हवन करो।
एक धर्म, एक राष्ट्र, एक संविधान और एक ही ब्रह्मा की संतानें होते हुए भी भारत में दलित समयदाय के साथ काफिरों जैसा बर्ताव किया जाता है आखिर क्यों? चुनावों में हिन्दू मुस्लिम का ध्रुवीकरण कर चुनाव जीते जाते हैं, मगर चुनावों के बाद ऐसा लगता है दलित वर्ग हिन्दू न होकर अलग सम्प्रदाय और विधर्मी लोग हैं। ये किस तरह की मानसिकता और धारणाएं हिंदुत्व के अंदर व्याप्त हैं कि इंसान -इंसान के बीच भेदभाव और नफरत व्याप्त है।
देश की सर्वोच्च संस्था संसद में दलित बैठ सकता है। सर्वोच्च पद राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ सकता है। मगर ऊँची जाति के लोगों के सामने कुर्सी पर बैठकर खाना नहीं खा सकता है और घोड़ी पर नहीं चढ़ सकता है।कैसा न्यू इंडिया बनाने जा रहे हैं हम?
सामाजिक एकता के बिना राष्ट्रीय एकता मुश्किल।
राष्ट्रीय एकता के लिए सामाजिक एकता जरूरी है। स्वाभिमानी मनुष्य को दरिद्रता उतनी नहीं दुःख देती जितना कि पग-पग पर होने वाला उसका सामाजिक तिरस्कार। यही कारण है कि राष्ट्रीय एकता, भावनात्मक एकता और देशभक्ति का तुमुल नाद करते हुए भी वास्तविक एकता नहीं हो पाई।आज कोई भी नेता और दल हो अपने वोट के लिए जाति पर ही निर्भर रहता है। चीन और पाकिस्तान का हवा दिखाकर लोगों में जो अस्थायी जोश उतपन्न कर दिया जाता है उसे देखकर यह समझ लेना भूल है कि राष्ट्र संगठित हो गया। समाज रूपी शरीर में जात-पांत मूलक ऊंच-नीच की दरारें इस जोश को कभी स्थायी बनने नहीं देती। इस जात-पात के रहते राष्ट्रीय एकता संभव नहीं दिखती।
Caste is the most serious disease of India.
इतिहास से सबक लेने की जरूरत।
इतिहास बताता है कि संसार की 21 सभ्यताओं में से 19 का नाश बाहरी आक्रमणों से नहीं वरन् उनकी अपनी ही भीतरी फूट के कारण हुआ है, जो राष्ट्र भीतर से जर्जर दुर्बल और कटा हुआ है जिसकी निवासियों में समता बंधुता और स्वतंत्रता नहीं उनकी रक्षा परमाणु शस्त्रों से भी नहीं हो सकती। इस समय भारत की भीतरी फूट का प्रधान कारण इसकी जात-पाँत की भावना है। किसी हिंदू का राष्ट्र उसकी अपनी ही छोटी सी बिरादरी है। जात-पाँत भारत का महा भयंकर रोग है यह हिंदुओं की हड्डियों में बुरी तरह समा गया है इसे दूर करने के लिए जनता और सरकार दोनों को तन- मन- धन -से प्रयत्न करना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि जो संगठन या व्यक्ति जात-पाँत के उन्मूलन के लिए समतामूलक समाज की स्थापना के लिए कार्य कर रहे हैं उनको प्रोत्साहन देकर पुरस्कृत करें और जात-पाँत के बंधन को तोड़ कर हिंदू समाज को एक सूत्र में बांधने का काम करें.तभी असली राष्ट्रवाद और विश्व बंधुत्व की भावना का प्रसार हो पायेगा।
सरदार पटेल की गगन चुम्बी मूर्ति से क्या सीख मिली गुजरात मॉडल और देश को?
चीन स्थित स्प्रिंग टेंपल की 153 मीटर ऊंची बुद्ध प्रतिमा के नाम अब तक सबसे ऊंची मूर्ति होने का रिकॉर्ड था. मगर सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा ने अब चीन में स्थापित इस मूर्ति को दूसरे स्थान पर छोड़ दिया है. 182 मीटर ऊंचे ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी‘ का आकार न्यूयॉर्क के 93 मीटर ऊंचे ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ से दोगुना है.
कितनी विडम्बना है कि “यूनिटी के प्रतीक सरदार पटेल की मूर्ति तो विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति है मगर उनकी धरती पर कितनी यूनिटी आयी है ये बखान करने की जरूरत नहीं। जितनी ऊंची मूर्ति उतनी ही ज्यादा धूर्त का व्यवहार जाति के नाम पर कुछ तो सबक लेने की जरूरत है। क्या सरदार पटेल एक सौनिक का अपने ही राज्य में ऐसा अपमान सहन कर पाते?
वर्तमान में सबसे प्रचंड बहुमत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी गुजरात जन्म भूमि और कर्म भूमि रही है। ऐसे में दलितों के साथ अमानवीय और अपमानजनक घटनाएं घटित हो रही हैं तो कहीं न कहीं दाल में काला जरूर नजर आता है। तभी तो ये कहने का मौका मिला है कि-सैनिक का अपमान : ये कैसा गुजरात मॉडल?
आई. पी. ह्यूमन
PGD JMC स्वतंत्र स्तम्भकार।
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Gujarat : Stones Thrown At Dalit Groom For Riding Horse In Wedding
The incident happened when the wedding procession of Akash Kotdia, 27, an Army jawan posted in Jammu and Kashmir, was underway amid objections from some upper caste community members.
Vandana Rag’s new novelon the history of China and India ‘Bissat Par Jugnu’ released
चीन और भारत के इतिहास वंदना राग की किताब ‘बिसात पर जुगनू’ का लोकार्पण
भारत और चीन के इतिहास को जोड़ता ऐतिहासिक उपन्यास। ‘बिसात पर जुगनू’ में गहरे शोध और ऐतिहासिक अन्तर्दृष्टि के साथ-साथ इतिहास के कई विलुप्त अध्याय और उनके वाहक चरित्र जीवन्त हुए हैं।
नई दिल्ली, 22 फरवरी। चर्चित लेखिका वंदना राग के नए उपन्यास ‘बिसात पर जुगनू’ का लोकार्पण शुक्रवार की शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ। पूर्व एमएलए संदीप दिक्षित, पंकज राग, मंगलेश डबराल, विनोद भारद्वाज, अपूर्वानंद के साथ साहित्य, राजनीति, मीडिया और कला जगत के चर्चित चेहरे ने कार्यक्रम में शामिल हुए।
लोकार्पण के बाद लेखिका वंदना राग से, आलोचक संजीव कुमार और लेखक ब्लॉगर प्रभात रंजन ने बातचीत की।
बिसात पर जुगनू, उपन्यास की कहानी हिन्दुस्तान की पहली जंगे-आज़ादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर, 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। उपन्यास, भारत और चीन, इन दो देशों से जुड़ी कहानी साथ-साथ लेकर चलती है जिसके इर्द-गिर्द आज पूरी दुनिया का अर्थतन्त्र, राजनीति, युद्ध की आशंकाएं और कृत्रिम बीमारियां; सब कुछ छितराया हुआ है।
किताब पर बातचीत करते हुए वंदना राग ने कहा,
“इस किताब के लिए मैंने चीन की लंबी यात्राएं कीं और जाना की दोनों ही देशों के आम लोगों का संघर्ष एक जैसा है। इतिहास में ऐसी कई महिलाएं गुमनामी में रहीं जिन्होंने स्वतंत्रा संघर्ष में योगदान दिया। यह उपन्यास इन महिलाओं की भी कहानी है।“
आलोचक संजीव ने भी वंदना की बात से सहमति जताते हुए कहा कि,
“यहाँ फ़िरंगियों के अत्याचार से लड़ते दोनों मुल्कों के दुःखों की दास्तान एक-सी है और दोनों ज़मीनों पर संघर्ष में कूद पड़नेवाली स्त्रियों की गुमनामी भी एक-सी है। ऐसी कई गुमनाम स्त्रियाँ इस उपन्यास का मेरुदंड हैं।“
कथाकार प्रभात रंजन ने अपनी बात रखते हुए कहा,
“बहुत दिनों बार एक बड़े कैनवास का ऐतिहासिक उपन्यास है बिसात पर जुगनू।“
उन्होंने यह भी कहा,
“19 वीं शताब्दी के इतिहास के द्वंद्व, भारत-चीन व्यापार, कम्पनी का राज, जन जागरण, विद्रोह। पटना कलम के कलाकारों का बिखराव। इस उपन्यास में इतिहास, कला के बहुत से सवाल आते हैं और बेचैन कर देते हैं। बहुत से किरदार डराते भी हैं, मन के भीतर रह जाते हैं।“
किताब के लोकार्पण पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा,
“इस उपन्यास को पढ़ते हुए हम कुछ तो इस बारे में सोचने के लिए विवश होंगे। किताब भाषा की बात करती है। चीन में आज भी बहुत कम लोग अंग्रेज़ी समझने वाले हैं। वे अपना सारा काम अपनी भाषा में करते हैं, विज्ञान की खोजें भी, यहां तक कि कम्प्यूटर पर काम भी। उन्होंने अपने बच्चों पर एक अतिरिक्त गैरजरूरी बोझ नहीं डाला। मुझे लगता है चीन, जापान आदि देशों के विकसित होने का बड़ा कारण अपनी भाषा में सोचना और काम करना है।“
उपन्यास बिसात पर जुगनू के बारे में
बिसात पर जुगनू सदियों और सरहदों के आर-पार की कहानी है। हिन्दुस्तान की पहली जंगे-आज़ादी के लगभग डेढ़ दशक पहले के पटना से शुरू होकर यह 2001 की दिल्ली में ख़त्म होती है। बीच में उत्तर बिहार की एक छोटी रियासत से लेकर कलकत्ता और चीन के केंटन प्रान्त तक का विस्तार समाया हुआ है। यहाँ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की त्रासदी है तो पहले और दूसरे अफ़ीम युद्ध के बाद के चीनी जनजीवन का कठिन संघर्ष भी।
वन्दना राग कौन हैं Who is vandana rag
वन्दना राग मूलतः बिहार के सिवान ज़िले से हैं। जन्म इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ और पिता की स्थानान्तरण वाली नौकरी की वजह से भारत के विभिन्न शहरों में स्कूली शिक्षा पाई। 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। पहली कहानी हंस में 1999 में छपी और फिर निरन्तर लिखने और छपने का सिलसिला चल पड़ा। तब से कहानियों की चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं—यूटोपिया, हिजरत से पहले, ख़्यालनामा और मैं और मेरी कहानियाँ।
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स्वामी सहजानंद सरस्वती के जन्मदिन पर विशेष- Special on Swami Sahajanand Saraswati’s birthday
We have never critically reviewed the psychology of the farmer.
मध्य वर्ग के लोग आमतौर पर किसानों के प्रति रौमैंटिक भाव से सोचते हैं अथवा अनालोचनात्मक ढंग से सोचते हुए किसान का महिमा मंडन करते रहते हैं। किसान के मनोविज्ञान की कभी हमने आलोचनात्मक समीक्षा ही नहीं की है। दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जिसका किसान के साथ दर्शकीय संबंध है। हम नहीं जानते कि किसान कैसे रहता है ? किस मनोदशा में रहता है ? कैसे खाता-पीता है ? किसान के बीच में चेतना पैदा करने वाले भी कम हैं और किसान को भ्रमित करने वाले ज्यादा हैं। पिछले एक दशक में हजारों किसानों की आत्महत्या पर तरह-तरह के लेख लिखे गए, अनेक लेखकों और पत्रकारों ने तो किसानों की आत्महत्या पर लिखते-लिखते देश-विदेश में खूब नाम कमा लिया। किसान को इस प्रक्रिया में हमने जाना कम और सनसनीखेज ज्यादा बनाया। ब्लॉगिंग, सोशल मीडिया आदि एक ऐसा मीडियम है जिसके जरिए हम किसानों के बारे में अपने इलाकों के अनुभवों और समस्याओं को उठा सकते हैं। किसान समस्या उठाते समय हमें क्रांति के मनोभाव से भी लड़ना होगा। हमारे माओवादी किसानों की दुर्दशा देखकर यह निष्कर्ष निकाल बैठे हैं कि किसानों में क्रांति का बिगुल बजाया जा सकता है।
Revolution is not the central problem of India’s farmer today
भारत के किसान की आज केन्द्रीय समस्या क्रांति नहीं है। किसान की प्रधान समस्या कर्जा भी नहीं है। किसान की प्रधान समस्या है भूख और हमें भूख पर बातें करनी चाहिए। किसान के खान-पान पर बातें करनी चाहिए। उसकी जीवनशैली के सवालों को उठाना चाहिए।
अखिल भारतीय किसान सभा के प्रथम अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती से हमारे किसान नेताओं को भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। किसान नेताओं का किसानों के साथ अनालोचनात्मक संबंध भी एक बड़ी समस्या है।
Many of our farmer leaders are deprived of a deep hold of the psyche of the farmer.
हमारे अनेक किसान नेता किसान के मनोविज्ञान की गहरी पकड़ से वंचित हैं। यह बात उनके लेखन और कर्म में आसानी से देखी जा सकती है। जो लोग किसानों में क्रांति का बिगुल बजाते रहते हैं वे कृपया किसानों में कुछ समय उनके मनोविज्ञान की मीमांसा पर भी खर्च करें तो बेहतर होगा। क्रांति और कर्ज की महत्ता पर लिखने की बजाय किसान खाएं-पीएं इस सवाल पर ध्यान दें तो बेहतर होगा। इस प्रसंग में स्वामी सहजानंद सरस्वती का प्रसिद्ध निबंध है “खाना-पीना सीखें”। इस निबंध का बड़ा महत्व है।
स्वामी सहजानंद सरस्वती ने लिखा है
“हमने देखा है कि किसानों को दिन-रात इस बात की फिक्र रहती है कि मालिक (जमींदार) का हक नहीं दिया गया, दिया जाना चाहिए, साहू-महाजन का पावना पड़ा हुआ है उसे किसी प्रकार चुकाना होगा, चौकीदारी टैक्स बाकी ही है, उसे चुकता करना है, बनिये का बकिऔता अदा करना है आदि-आदि। उन्हें यह भी चिन्ता बनी रहती है कि तीर्थ-व्रत नहीं किया, गंगा स्नान न हो सका, कथा वार्ता न करवा सके, पितरों का श्राद्ध तर्पण पड़ा ही है, साधु-फकीरों को कुछ देना ही होगा, देवताओं और भगवान को पत्र-पुष्प यथाशक्ति समर्पण करना ही पड़ेगा। वे मन्दिर-मस्जिद बनाने और अनेक प्रकार के धर्म दिखाने में भी कुछ न कुछ देना जरूरी समझते हैं। यहाँ तक कि ओझा-सोखा और डीह-डाबर की पूजा में भी उनके पैसे खामख्वाह खर्च हो ही जाते हैं। चूहे, पंछी, पशु, चोर बदमाश और राह चलते लोग भी उनकी कमाई का कुछ न कुछ अंश खा जाते हैं। सो भी प्रायः: अच्छी चीजें ही। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बहुत ही हिफाजत से रखने पर भी बिल्ली उनका दूध-दही उड़ा जाती है। कौवों का दाँव भी लग ही जाता है। कीड़े-मकोड़े और घुन भी नहीं चूकते वे भी कुछ ले जाते हैं।
सारांश यह कि संसार के सभी अच्छे-बुरे जीव उनकी कमाई की चीजों के हिस्सेदार बनते हैं। किसान भी खुद यही मानते हैं कि उन सबों का भी हक उनकी कमाई में है।
लेकिन क्या वे कभी यह भी सोचते हैं कि हमें और हमारे बाल-बच्चों को भी खाने का हक है? जरा इस प्रश्न की तह में जाकर देखना चाहिए।”
स्वामी जी ने एक और बड़ी समस्या को उठाया है और वह है क्या किसान सब कुछ पेट की खातिर कर रहा है ? इसका उत्तर खोजते हुए लिखा है
“यह माना जाता है कि पेट के लिए ही सब कुछ किया जाता है। लेकिन क्या सचमुच यही बात है ? यदि हाँ तो फिर किसान अपनी गाय-भैंस का दूध दुह के स्वयं पी क्यों नहीं लेता और बाल-बच्चों को पिला क्यों नहीं देता। उसे रोकता कौन है, यदि पेट के ही लिए सभी काम सचमुच करता है? पीने से जो बचे उसका दही बना के क्यों खा-खिला नहीं डालता? दही के बाद भी बच जाए तो घी निकाल के खाने में क्या रुकावटें हैं? दुहने के बाद फौरन खा-पी जाने में तो खैरियत है। घर जाने पर तो न जाने कौन-कौन से दावेदार खड़े हो जाएँ।
मगर क्यों यह बात नहीं की जाती यही तो विचारणीय है। यदि कहा जाए कि सरकारी कर, जमींदारी लगान और साहूकार के पावने का खयाल और भय उसे ऐसा नहीं करने देता तो फिर पेट के ही लिए सब कुछ करते हैं यह कहाँ रहा? दिमाग में तो दूसरा भूत बैठा है। पेट की बात तो यों ही बकी जाती है। पुरानी पोथियों में मिलता है कि भूखे होने से विश्वामित्र ने कुत्तों का जंघा खा डाला। अजीगर्त वगैरह ने भी ऐसा ही निन्दित और धर्म वर्जित मांस खा लिया हालाँकि वे लोग पक्के ऋषि और धर्मभीरु थे। मगर पेट के सामने धर्म की भावना कुछ न कर सकी तो क्या सरकारी और जमींदारी पावने की भावना और धारणा धर्म भावना से भी ज्यादा बलवती है? जो लोग ऐसा समझते हैं वह भूलते हैं। हो सकता है, समाज का रूप बदले और भविष्य में इस धार्मिक भावना का स्थान भौतिक भावना ले ले। मगर आज तो धर्म भावना सौभाग्य या दुर्भाग्य से सर्वोपरि है। धर्म के नाम पर किसान सब कुछ गवाँ देने को तैयार हो जाते हैं।”
स्वामी जी ने आगे लिखा है कि
“जरा और सोचें। कल्पना करें कि एक आदमी बहुत ही ज्यादा भगवान का भक्त है। भगवान का उसे दर्शन भी हो जाता है। वह नरसी मेहता या सूरदास के टक्कर का है। उसने भोजन बनाया और कई दिनों का भूखा होने के कारण जल्द खाना भी चाहता है। पेट में आग जो लगी है। मगर भगवान का भोग तो लगाएगा ही। भक्त जो ठहरा। अब अगर उसके साक्षात भगवान या गुरु महाराज उसकी परोसी- परोसाई समूची थाली उठा ले जाएँ, तो क्या होगा। दोबारा बनाने की कोशिश करेगा। लेकिन यदि थाल छीनने की यही प्रतिक्रिया बराबर जारी रही, तो क्या यों ही बर्दाश्त करता जाएगा? खुद छेड़खानी न करेगा? वह तो असम्भव है। दो-चार बार शायद बर्दाश्त करे। मगर अन्त में तो अपने भगवान या गुरु महाराज से भी उठा-पटक कुश्तम-कुश्ती करेगा ही। पकड़ के थाल भी छीन लेगा जरूर। आखिर कचहरियों में वेद, कुरान, बाइबिल और शाल ग्राम की झूठी कसमें खाने का मतलब क्या है? क्या वह जर और जमीन के लिए ही भगवान का पछाड़ा जाना नहीं है? क्या कचहरियों में ऐसे ही मौकों पर बराबर यह भगवान इस प्रकार प्रत्यक्ष पछाड़ पर पछाड़ नहीं खाते हैं? “
“शायद कहा जाए कि जमींदार लूट लेंगे, सरकार छीन लेगी और उसे खाने न देगी। नहीं तो वह जरूर खा जाता। तो इसका सीधा उत्तर यही है कि जब छीना जाएगा तब देखा जाएगा। मगर जब तक छीनने वाले नहीं हैं तभी तक क्यों नहीं खा लेता? यदि छीनने का भय खाने नहीं देता तो क्या नर्क का भी ऐसा ही भय खाने से और चोरी-बदमाशी से रोक देता है? सभी जानते हैं, चोरी करने पर पकड़े जाएँगे और दुराचार-व्यभिचार करने पर थू-थू होगी। मगर क्या छोड़ देते हैं? और अगर सिर्फ खयाली और दिमागी भय ही उनके हाथ और मुँह को रोक देता है। तब तो मानना ही होगा कि असली चीज खाना नहीं। किन्तु पावना चुकाना ही है।”
“एक बात और कंजूसी के मारे जो न खाता और खिलाता है उसका क्या मतलब है? अगर वह मानता रहता कि असली काम खाना ही है और सबसे पहला है, तो ऐसा काम वह कभी नहीं करता। मगर उसके माथे में असली काम कुछ और ही है। फिर क्यों खाये-पीये? आखिर लक्ष्य से क्यों हटे?”
“यह भी तो पक्का है कि जो चीजें खा-पी ली जाएँगी उन्हें कोई छीन नहीं सकता, ले नहीं सकता। पेट से तो निकालेगा नहीं। हाँ जो बचा रखी जाती हैं उन्हीं के दावेदार होते हैं, हो सकते हैं। ऐसी हालत में किसान अगर पैदा की हुई चीजें खाता-पीता जाए तो कोई क्या करेगा? आखिर पागल आदमी भी तो आदमी ही होता है। वह पशु या पत्थर तो हो जाता नहीं। मगर उसके ऊपर कोई कानून लागू क्यों नहीं होता? यही न, कि लोग ऐसा करना बेकार समझते हैं और मानते हैं कि नतीजा कुछ नहीं होगा? ठीक उसी प्रकार यदि कानूनों और कानूनी माँगों की परवाह न करके किसान भी अच्छी-अच्छी चीजें खा-पी जाया करे, तो क्या होगा? आखिर पागल को भी तो कानून की फिक्र नहीं होती। इसीलिए कानून भी उसकी फिक्र नहीं करता। फिर वही काम किसान क्यों न करे और कानून भी उसी प्रकार उसका पिण्ड क्यों न छोड़ देगा?
स्मरण रहे कि कानून सदा बनते-बिगड़ते रहते हैं। बहुमत ही उनके बदलने का कारण भी है। ऐसी दशा में तो किसान का यह काम अस्सी प्रतिशत का काम होगा। यह तो ‘कह सुनाऊँ या कर दिखाऊँ’ वाली बात होगी। वह तो कहने के बजाय कर डालेगा और उसका यह मत बड़ा ही पक्का होगा भी। इसे टालने की हिम्मत कोई भी सरकार या शक्ति कर नहीं सकती। फिर तो कानून खामख्वाह ऐसा ही बनेगा कि सबसे पहले किसान को ही खाना-पीना चाहिए। कानून का काम तो सिर्फ यही है कि जिसे हम सामूहिक रूप से करने लगें उसी पर मुहर लगा दे। कानून हमारे लिए हैं, न कि हमीं कानून के लिए हैं। यही सबसे पक्की बात है।
Jagadishwar Chaturvedi जगदीश्वर चतुर्वेदी। लेखक कोलकाता विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर व जवाहर लाल नेहरूविश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।
किसान के पास बैल होता है, गाय, भैंसें होती हैं। उनकी क्या हालत है। बैल का पेट जब खाली होता है, खूब भरा नहीं होता, तो न तो ‘भूखे हैं, रोटी दो’ के नारे लगाता, न क्रान्ति और रेवोल्यूशन की बात ही करता और न भीख ही माँगता है। वह तो सत्याग्रह करता, हल और गाड़ी खींचने से साफ इनकार करता और चारों पाँव बैठ जाता है। वह तो अपने अमल से बता देता है कि हमारी जो खुराक है वही, न कि ऊलजलूल रद्दी चीजें, लाओ और पहले हमारा पेट भरो। उसके बाद ही हम हल या गाड़ी में जुतेंगे। वह तो दलील भी नहीं करता और वोट भी नहीं देता। मगर ऐसा करता है कि उसकी माँग उसकी इच्छा पूर्ण करनी ही होती है। तो क्या किसान अपने बैल से भी गया गुजरा है? जिसे अक्ल नहीं होती उसे बैल कहते हैं। मगर वह बैल तो अक्ल वाले किसान से सौ दर्जे अच्छा है। यदि किसान को और कहीं अक्ल नहीं मिलती, तो अपने बैल से ही क्यों नहीं सीखता? बैल तो एक ही कानून जानता है और वह है पेट भरने का कानून। क्योंकि उसके बिना हल या गाड़ी खींचना गैर-मुमकिन है। यदि किसान भी वही एक कानून सीख ले तो क्या हो? आखिर उसे भी तो देह से कठिन श्रम करके खून को पानी करके ठीक बैल ही की तरह खटना तथा सभी पदार्थ पैदा करना पड़ता है जो अमीर और कानून बनाने वाले ही खाते-पीते हैं। कानून बनाने वालों को तो उस तरह खटना पड़ता नहीं। फिर वे क्या जानने गए कि पेट भरने पर काम हो सकता है या उसके बिना भी? और जब वे देखते हैं कि किसान तो काम किए चला जाता है, खेत जोतता, बोता और गेहूँ, बासमती, घी, दूध पैदा किये जा रहा है, तो फिर उसके पेट भरने की फिक्र क्यों करने लगे? उन्हें क्या गर्ज? यदि बैल बिना खाये-पीये ही गाड़ी और हल खींचे, खींचता रहे तो कौन किसान ऐसा बेवकूफ है कि उसे खिलाने की फिक्र करेगा ? “
Know when and why to talk to children on sex education
नई दिल्ली, 22 फरवरी 2020. हम भले ही 21वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन ‘सेक्स’ जैसे किसी शब्द को सुनते ही आज भी हम खुद को असहज महसूस करने लगते हैं। ऐसे में उस पर बात करना हमारे लिए और भी मुश्किल हो जाता है, जब बच्चे इसे लेकर हमसे कोई सवाल पूछने लगते हैं।
How and when to start a conversation with parents about sex?
बच्चों के लिए टीवी पर ‘कंडोम‘ के विज्ञापन में अंकल-आंटी को कुछ अजीब सी स्थिति में देखना उनमें इस बात की उत्सुकता पैदा कर देता है कि आखिर दोनों कर क्या रहे हैं? और अगर यह सवाल उन्होंने हमसे पूछ लिया तो हम चाहते हैं कि किसी तरह से बस वहां से गायब हो जाए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सेक्स को लेकर अभिभावक बच्चों के साथ बातचीत कैसे और कब शुरू करें?
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात हमारा यह समझना है क्या हमारा बच्चा इस बारे में जानने व समझने के लिए सक्षम है? इसके लिए बच्चों की कोई निश्चित उम्र तय नहीं की जा सकती, लेकिन जब बच्चों में इस विषय को लेकर उत्सुकता दिखने लगे या बार-बार वे आपसे इसी बारे में सवाल पूछने लगे, तब समझ जाए कि अब आप अपने बच्चे से इस बारे में संबंधित जानकारी साझा कर सकते हैं। शुरुआत आप शारीरिक अंगों को उनके सही नामों से बुलाकर कर सकते हैं, अब आप कोर्ड वर्ड का इस्तेमाल करना बंद कर दें।
निजी अंगों को स्पर्श करने का बारे में बच्चों को बताएं
Tell children about touching private parts
बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, उनसे इस बारे में चर्चा करें कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं या उनके शब्दों में बच्चे कहां से आते हैं। इसके साथ ही उन्हें यह भी बताएं कि कोई समस्या होने पर माता-पिता व चिकित्सक ही उनके निजी अंगों को स्पर्श कर सकते हैं और किसी को ऐसा करने की इजाजत नहीं है। बच्चों को आजकल इस बारे में जागरूक करना बेहद आवश्यक है।
Sex or sexual intercourse has nothing to do with innocence
सेक्स या यौन संबंध का मासूमियत से कोई लेना-देना नहीं है। बच्चे मासूम हैं इसलिए उनसे इस बारे में बात करना उचित नहीं, यह सोचना छोड़ दें। एक जागरूक बच्चे का तात्पर्य(conscious child) ‘शैतान’ बच्चे से नहीं है।
बच्चों से बात कैसे करें?How to talk to children?
हम खुशकिस्मत हैं कि आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां इस बारे में चर्चा शुरू करने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं। रॉबी एच हैरिस की किताबों (Robie H. Harris Books) से इसकी शुरुआत की जा सकती है। मैंने खुद इन्हें कई बार पढ़ा है, इसके बाद आईने के सामने खड़े होकर इसे जोर-जोर से पढ़ें और आखिर में बच्चों के सामने इन्हें पढ़ना शुरू करें।
अगर बच्चों के किसी सवाल का जवाब आप उसी वक्त देने में असमर्थ हैं, तो उन्हें बताए कि आप फिर कभी इस बारे में बात करेंगे, बाद में ही सही लेकिन बात जरूर करें।
सेक्स के बारे में बात करना एक निरंतर प्रक्रिया है। इसके बाद गर्भधारण, हस्तमैथुन, प्यार, आकर्षण, शारीरिक आकर्षण, सेक्स जैसे कई मुद्दों पर धीरे-धीरे चर्चा करें। कई बार ऐसा होता है कि किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों को उनके वर्जिन होने के चलते कई उपहासों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में आपका उनसे खुलकर बात करना बेहद महत्वपूर्ण है।
Anxiety or sexual urge in children is common.
माता-पिता होने के नाते हमारे लिए यह समझना आवश्यक है कि बच्चों में उत्सुकता या यौन आग्रह का होना एक सामान्य सी बात है। इसका प्रभाव उनकी नैतिकता और बड़े होने पर नहीं पड़ेगा। दोस्तों या पॉर्न साइट से इस बारे में गलत जानकारी पाने से बेहतर है कि माता-पिता उन्हें सही और सुरक्षित ज्ञान उपलब्ध कराए।
डॉ. तनुश्री सिंह
Notes –
Robie H. Harris is an American author, specializing in books for children. She was born in Buffalo, New York.
हम मांग करते हैं कि देश के प्रथम नागरिक द्वारा एनपीआर में उपलब्ध कराए गए दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जाएं। उसके साथ यह विवरण भी शामिल हो कि दस्तावेज़ कब और कहां से जारी किए गए और उनके जारी किए जाने का आधार क्या था।
यही आदर्श देश के प्रधानमंत्री, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, न्यायाधीशों और तमाम जनपदों के डीएम और एसपी व अन्य अधिकारियों को पूरी पारदर्शिता के साथ पेश करना चाहिए।
यह एक स्वस्थ शुरूआत होगी और देश के आम नागरिक भी इन्हीं उदाहरणों का अनुसरण करते हुए अपने कागज़ात आसानी से बनवा सकेंगे और पेश कर सकेंगे।
मसीहुद्दीन संजरी
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एनपीआर, NPR and NCR, NPR-NRC process, NRC and NPR,
An increase in cholesterol also increases the risk of heart diseases
नई दिल्ली – दिल का मामला ऐसा है जो तमाम उम्र इंसान के लिए परेशानी का कारण बन जाता है. जवानी की आहट सुनाई देते ही दिल के लेने-देने, टूटने-जुडने का सिलसिला तक जारी रहता है. लेकिन अधेड़ावस्था आयी नहीं कि दिल को लेकर एक नई समस्या सामने आ जाती है. जवानी में गुजारे गये अनियमित जीवन और तमाम दूसरे कारणों से रक्त दबाव बढ़ता है, कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि (Increase cholesterol) होती है जिसकी वजह से दिल की बीमारियों का खतरा(Risk of heart diseases) बढ़ जाता है. दिल की बीमारियों तथा पक्षाघात का आतंक तो रक्त दबाव को अपने आप बढ़ा देता है. जैसे-जैसे हमारे आस पास प्रदूषण तथा तनाव बढ़ा है वैसे-वैसे दिल की बीमारियों में भी इजाफा होता चला गया है.
सिबिया मेडिकल सेंटर के निदेशक डॉ. एस.एस. सिबिया का कहना है कि कई वर्षों से आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में इस बात को लेकर अनुसंधान हो रहे थे कि दिल की इलाज करने के लिए ऐसा कुछ उपाय खोजा जाये जिसमें चीड़-फाड़ यानी सर्जरी की जरूरत न पड़े. आखिरकार इस मुहिम में सफलता मिली और दिल की रक्त नलिकाओं को फैलाने का एक सर्जरी रहित तथा बिना किसी तरह के खतरे वाले इलाज की खोज कर ही ली गयी ताकि वे समानान्तर रूप से कार्य कर सकें.
Heart bypass without surgery
डॉ. एस.एस. सिबिया ने एक विज्ञप्ति में बताया कि जल्दी विश्वास नहीं होता लेकिन आज ऐसा संभव है जब बिना सर्जरी के ही हृदय का बाईपास हो जाये और इस दौरान नियमित रूप से जीवन की सामान्य गतिविधियों को जारी रखा जायें, सामाजिक जीवन में किसी तरह का खलल न पड़े और काई भी काम प्रभावित नहीं होने पाये.
Method to eliminate the blockage in the arteries without surgery
उन्होंने बताया कि सभी दिल के मरीजों के इलाज के लिए सर्जरी की जरूरत नहीं होती है. उनके लिए भी नहीं जिन्हें दिल का दौरा पड़ चुका हो. वास्तव में बाई पास सर्जरी उस स्थिति में कामयाब नहीं हो सकती अगर पर्याप्त मात्रा में समानान्तर प्रवाह नहीं है. लेकिन अब डॉक्टरों के पास एक्सटर्नल काउंटर पल्सेशन (ईसीपी) –External counter pulsation (ecp) के रूप में इलाज की एक ऐसी विधि आ गई है जो बिना सर्जरी के धमनियों में आ गयी रूकावट को खत्म करते हुए रक्त के संचार को चालू कर सकती है. यह ईसीपी इलाज समानान्तर संचार को पुनर्स्थापित कर सकता है. मजे के साथ अचरज की बात यह है कि मरीज काम पर जाने से पहले, भोजनावकाश के दौरान, ऑफिस खत्म होने के बाद या फिर रात के वक्त भी अपना इलाज करवा सकता है. ईसीपी इलाज के तहत मरीज के बांहों, जांघों तथा नितंबों पर बड़े आकार के कफों का जोड़ा जाता है जिनमें मशीन की क्षमता बढ़ाने के लिए आठ प्रेशर प्वाइंट होते हैं.
डॉ. एस.एस. सिबिया के अनुसार आज के लिए ईसीपी ह्रदय रोग से पीडित उन करोड़ों हिन्दुस्तानियों के सामने एकमात्र विकल्प है जो कि या तो आर्थिक कारणों से या सर्जरी से जुड़े हुए खतरे की वजह से या फिर मधुमेह, अस्थमा, गुर्दे की बीमारी या पक्षाघात से पीड़ित होने के कारण बाई पास सर्जरी नहीं करवा पा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि निश्चित रूप से ईसीपी दिल की बीमारियों को किसी विवशता की वजह से ढो रहे मरीजों के लिए एक वरदान बन कर ही आया है. दरअसल ईसीपी के जरिए ह्रदय के अंदर छुपी हुई उन निष्क्रिय धमनियों को भी साफ किया जा सकेगा, जिसकी वजह से अब तक मरीजों की मौत होती रही है. चिकित्सा पद्धति कम खर्च पर मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार कर रही है और भारत जैसे देश में इस का सफलता पूर्वक कार्य करना निश्चित रूप से एक अच्छे भविष्य का संकेत दे सकता है.
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Comrade Govind Pansare memorial meetings in Indore
कॉमरेड गोविंद पानसरे की स्मृति में परिचर्चा”Discussion in memory of Comrade Govind Pansare “
There is a similarity in the killing from Gandhi to Gauri Lankesh
इंदौर, 21 फरवरी 2020. गांधी से लेकर गौरी लंकेश तक की हत्या में एक समानता है, इन चारों के हत्यारे संकीर्ण विचारधारा के वाहक थे। महात्मा गांधी, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी(Mahatma Gandhi, Narendra Dabholkar, Govind Pansare, MM Kalburgi) चारों वरिष्ठ नागरिक से जिन्हें अपनी सोच के कारण मार डाला गया। कॉमरेड गोविंद पानसरे कि 5 वर्ष पूर्व आज ही के दिन हत्या हुई थी।
ये विचार वरिष्ठ कवि सुरेश उपाध्याय ने व्यक्त किए वे प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा ) इकाई एवं भारतीय महिला फेडरेशन इंदौर द्वारा कॉमरेड गोविंद पानसरे की शहादत पर आयोजित कार्यक्रम “विवेक पर हमला” में कल बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि कॉमरेड पानसरे जिस स्कूल में पढ़े उसी में नौकरी की तथा उसी स्कूल में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर भी बने। उनकी हत्या उनके निडर और तार्किक विचारों और कार्यों की वजह से की गई थी जो उनसे वैचारिक रूप से सहमत नहीं थे। उसी कुंठा में गांधी की हत्या के 71 वर्ष बाद भी उनके पोस्टर पर गोली मारी जा रही है। अब देशवासी उठ खड़े हुए हैं देश का संविधान बचाने के लिए। कॉमरेड पानसरे की 21 पुस्तकें प्रकाशित हुई थी, वे सदैव अपने साथियों को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए प्रेरित करते थे। कॉमरेड उपाध्याय ने अपने वक्तव्य का समापन अपनी ही एक कविता से किया
“तर्क, विवेक, विचार”
“आधुनिक व वैज्ञानिक दृष्टि”
“भेदे न जा सकेंगे”
“भय आतंक व हत्याओं से”
“हजारों – हजार दाभोलकर”
“पानसरे व कलबुर्गी उठेंगे”
“आगे बढ़ेंगे व प्रतिगामी”
“विचारों को ध्वस्त करेंगे”
कार्यक्रम का संचालन करते हुए सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि कॉमरेड पानसरे की हत्या उनके विचारों के अलावा पुस्तक “शिवाजी कौन” के कारण हुई, जिसमें कॉमरेड पानसरे ने प्रमाणित किया था कि शिवाजी मुस्लिम विरोधी नहीं उदार शासक थे। वे एक मुस्लिम सूफी संत के अनुयाई थे। सारिका ने पानसरे की हत्या के बाद उनके परिजनों से मिलने व उनकी कर्मभूमि की यात्रा का उल्लेख करते हुए उनके विचारों को विस्तारित करने का आह्वान किया।
हरनाम सिंह ने अपने वक्तव्य में प्रगतिशील लेखक संघ के 11 सदस्य दल द्वारा वर्ष 2016 में की गई उस यात्रा का उल्लेख किया, जिसमें शहीद लेखकों विचारकों डॉ दाभोलकर, कॉमरेड पानसरे एवं प्रोफेसर कलबुर्गी के गृह नगर में एकजुटता व्यक्त करने के लिए पहुंची थी। कोल्हापुर में कॉमरेड पानसरे की पत्नी उमा पानसरे और बहू मेघा पानसरे से हुई आत्मीय मुलाकात तथा 20 फरवरी 2016 को पानसरे के सहकर्मियों, मॉर्निंग वॉक के साथियों द्वारा निकली “निर्भय मॉर्निंग वॉक” में शामिल होने की जानकारी दी।
एसयूसीआई के प्रमोद नामदेव ने कहा कि संघ द्वारा इतिहास से छेड़छाड़ कर शिवाजी के चरित्र को बदलने का प्रयास किया गया है। कॉमरेड पानसरे की पुस्तक शिवाजी कौन पढ़ने के बाद ही ज्ञात हुआ कि शिवाजी धर्मांध नहीं थे। कॉमरेड पानसरे ने अंधविश्वास और कुरीतियों के विरुद्ध जंग सी छेड़ दी थी, उन्हें धमकियां दी जा रही थी। कॉमरेड पानसरे के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समाज में फैलाने तथा सही इतिहास को पुनर्स्थापित करने की जरूरत है।
आभार व्यक्त करते हुए प्रदेश इकाई के सचिव केसरी सिंह चिडार ने नरेंद्र दाभोलकर द्वारा स्थापित अंधविश्वास निर्मूलन समिति की पुणे कार्यशाला में शामिल होने की जानकारी देते हुए कहा कि पाखंड का विरोध करना जरूरी है। विचारों को किसी गोली से मारा नहीं जा सकता विचारों का यह आंदोलन निरंतर जारी रहे ऐसे प्रयास होते रहना चाहिए।
इस अवसर पर आनंद पटवर्धन द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म “विवेक” के दो हिस्सों का प्रदर्शन भी किया गया जिसमें दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश को कायराना तरह से जान से मारने के पीछे की वजहों को उजागर किया गया था।
इसी फिल्म का प्रदर्शन रात 10 बजे इंदौर की बड़वाली चौकी पर भी किया गया जहाँ शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर हजारों लोग एनआरसी, एनपीआर और सीएए के विरोध में शांतिपूर्ण धरने पर बैठे हैं। यहाँ हुई सभा को वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. जया मेहता ने संबोधित करते हुए कहा कि आज जिस संघर्ष में आप लोग शामिल हुए हो, उसकी अलख पानसरे जैसे लोगों ने अपनी शहादत देकर जलाए रखी है, इसलिए हमें अपने संघर्ष की विरासत और तासीर जाननी ही चाहिए। आप कन्हैया की तरह जैसे भुखमरी और ग़रीबी और जातीय,बधार्मिक और लैंगिक भेदभाव से आज़ादी के नारे लगाते हैं, वो आज़ादी समाजवाद से ही आएगी।
सभा को प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी और महिला फेडरेशन की राज्य सचिव सारिका श्रीवास्तव ने भी संबोधित किया। इस मौके पर इप्टा के विजय दलाल और अशोक दुबे व अन्य सभी ने मिलकर “अमन के हम रखवाले, सब एक हैं एक हैं” तथा “नफरतों के जहान में हमको प्यार की बस्तियाँ बसानी हैं” गीत गाये।
– हरनाम सिंह
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पटना टू सिंगरौली, इंडिया से भारत का सफर, Patna to Singrauli..India’s journey to Bharat
सिंगरौली (Singrauli) लौट आया हूँ। कभी पहाड़ों के ऊपर तो कभी उनके बीच से बलखाती निकलती पटना-सिंगरौली लिंक ट्रेन (Patna-Singrauli Link Train)। बीच-बीच में डैम का रूप ले चुकी नदियों और उनके ऊपर बने पुल तो कभी पहाड़ों के पेड़ से भी ऊँची रेल पटरी से गुजरती ट्रेन। जंगल में उदास खड़ी चट्टान और थोड़ी दूर-दूर पर खड़े अपने-अपने अकेलेपन के साथ पेड़।
ट्रेन की खिड़की से झाँकती मेरी आँखें और बीच-बीच में कैमरे का क्लिक। दूसरी तरफ मेरे हाथों में नाजियों द्वारा तबाह-बर्बाद कर दिये गये कस्बे लिदीत्से पर निर्मल वर्मा का यात्रा संस्मरण (Travel memoirs of Nirmal Verma on the town of Lidice, ruined by the Nazis) – मानो लिदीत्से पर किये गये उस नाजी अत्याचार को फोटो खींच रहे हों वर्मा। तय करना मुश्किल इन पहाड़, जंगल, नदी को देखता रहूँ, जो शायद कुछ सालों बाद मानव सभ्यता के विकास के नाम पर बर्बाद कर दिये जायेंगे या फिर नाजियों के द्वारा जलाये गये बच्चों की स्कूल जाती तस्वीर और मार दी गयी औरत के नीले स्कार्फ के संस्मरण पढ़ता रहूँ। आखिर क्या अन्तर है उस जर्मनी के नाजी अत्याचार और इस दुनिया के महान लोकतन्त्र वाले देश में जहाँ जल-जंगल-जमीन-जन की रोज विकास के नाम पर हत्या की जा रही है?
लोगों से सुनता हूँ कि कुछ साल पहले तक सिंगरौली जैसे इलाकों में जब ट्रेन किसी रेल फाटक से गुजरती थी तो पहले ट्रेन का ड्राइवर उतर कर फाटक बन्द करता था फिर फाटक गुजर जाने पर कोई सवारी या गार्ड उतर फाटक बंद कर देता और ट्रेन आगे बढ़ती। छोटे-छोटे स्टेशनों पर लोग उधर से गुजरने वाली इक्का-दुक्का एक्सप्रेस ट्रेनों को हाथ देकर रोकते, अपने सम्बंधियों के आने तक ट्रेन रोकने का अनुरोध करते, या फिर पूरा सामान उतारने तक ट्रेन को रोके रखने को कहते लोग।
ट्रेन के ड्राइवर भी जानते कि आने-जाने के लिये यही ट्रेन सहारा है इसलिये आराम से चलते। कोई हड़बड़ी नहीं।
वैसे भी यहाँ के लोगों में भागमभाग कम ही देखता हूँ। जब से यहाँ आया हूँ भूल जाता हूँ कि कौन सा दिन है, क्या तारीख है, क्या महीना, क्या समय। समय मानो खुद दो-तीन दिन पीछे चल रहा हो।
हमारी सरकारें इन सुस्त पड़ गयी ज़िन्दगी की रफ्तार को विकास के सहारे भगाना चाहती हैं। ऐसा भागमभाग, ऐसी दौड़ जो अँधेरी गली में जाकर खत्म होती है।
रास्ते में ऐसे-ऐसे स्टेशन गुजरते हैं जहाँ आपको रिसीव करने के लिये ऑटो, कार, बाइक सब प्लेटफॉर्म पर ही खड़े मिल जायेंगे। ट्रेन के दरवाजे से नीचे उतर सीधा ऑटो में चले जाईये। एक स्टेशऩ पर टीशन मास्टर साब गंजी बनियान में ट्रेन को हरी झंडी हिलाते दिखते हैं तो दूसरे स्टेशन पर ऊँघता हुआ फाटक मैन ट्रेन गुजर जाने के बाद हड़बड़ाता हुआ पीछे से हरी झंडी दिखा रहा है।
जंगल-पहाड़-नदी एक खूबसूरत लैंडस्केप बना रहे हैं। बीच-बीच में दूर कहीं बस्ती के नाम पर दो-तीन घरों का आभास भी हो रहा है, जो पहाड़ों की ओट में दिखते-छुपते चल रहे हैं। मानो ये सब हकीकत नहीं एक कैनवास हो जिसके भीतर मैं पहुँच गया हूँ।
ट्रेन की खिड़की से देखते-देखते मैं दरवाजे पर खड़ा हो जाता हूँ। मन करता है उतर जाऊँ इन्हीं पहाड़ियों-जंगलों में। अपना अतीत, भविष्य सब कुछ भूलकर यहीं का हो रहूँ लेकिन रेनुकूट आते-आते सब कुछ वैसा ही नहीं रह जाता। प्लांट्स, उनके साये में बनी झुग्गियों में ज़िन्दगी और चिमनी से उठता धुँआ मानो पूरे कैनवास पर धुँधलका सा छा जाता है। मन अजीब होने लगता है।
आसमान में बादल और चिमनियों के धुँए का फर्क करना मुश्किल है।
अब रास्ते में प्लांट्स के साथ-साथ बिजली के बड़े-बड़े तार, ग्रेनामाइट से उड़ाये गये या क्षत-विक्षत कर दिये गये पहाड़ों के चट्टान सब मिलकर एक विद्रुप रेखाचित्र लगने लगते हैं। बीच-बीच में आदिवासी महिलाएं माथे पर लकड़ियों का गट्ठर उठाए एक पगडंडी बना चलती दिखती हैं। इस इलाके के आदिवासियों-मूलवासियों की स्थिति ये बताने के लिये काफी होती है कि विकास ने कितना और कितनी बार इन्हें छला है।
हाँ, एक बात और।
अविनाश कुमार चंचल लेखक मूलतः पत्रकार हैं। वह सामाजिक व पर्यावरण कार्यकर्ता हैं
एक घुमावदार रास्ते पर मैं खिड़की से झाँक कर देखता हूँ तो खुद को ट्रेन के सबसे पिछले बोगी में पाता हूँ। मैं दौड़ कर दरवाजे तक जाता हूँ। लगभग पटना से बारह बोगियों को लेकर चली ट्रेन रेनुकुट आते-आते तीन बोगियों की बन जाती है- बाद में एक साथ वाले यात्री ने बताया। हमारी ट्रेन की रफ्तार धीमी हो गयी है और कोयले लदी मालगाड़ियाँ तेजी से पास करायी जाने लगी हैं।
युवा आदिवासी कवि अनुज लुगुन की एक कविता की पंक्तियाँ याद आती है, जिसमें वो बताते हैं कि कैसे उनका पहाड़ ट्रकों पर लद शहर की ओर जा रहे हैं। यहाँ भी कुछ वैसा ही है। यहाँ के लोगों की ज़िन्दगी को तबाह कर उनके पहाड़ खोद कोयले को रेल डब्बों में भर कहीं दूर भेजा जा रहा है।
धीरे-धीरे हमारी ट्रेन सिंगरौली पहुँचने को होती है। सिंगरौली वो फिल्म जिसमें कोयला खनन करने वाली पावर प्लांट्स विलेन बने हुये हैं और वो खैरवार, वैगा जैसे समुदाय के आदिवासी हीरो नजर आते हैं जो लगातार अपनी जमीन-जंगल को खोकर भी जी रहे हैं औऱ बचे हुये जंगल-जमीन को बचाने के लिये अनवरत संघर्षरत हैं। आज से नहीं आजादी के बाद से ही।
इस भागते-दौड़ते अर्थव्यवस्था वाले कॉरपोरेटी लोकतन्त्र से लड़कर जीतना महत्वपूर्ण तो है ही लेकिन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है लड़ने की ललक, अपने अधिकार-रोटी-रोजी को बचाने की आकुलता। जो हारने के बाद भी इन्हें इस फिल्म का हीरो बनाते हैं।
अविनाश कुमार चंचल
लेखक मूलतः पत्रकार हैं। वह सामाजिक व पर्यावरण कार्यकर्ता हैं
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अविनाश कुमार चंचल का यह यात्रा वृतांत (travelogue) हस्तक्षेप पर 24 जून 2013 को प्रकाशित हुआ था। पाठकों के लिए पुनर्प्रकाशन
नोट – In World War II, in Nazi-occupied Czechoslovakia, the Lidice massacre was the complete destruction of the village of Lidice, in the Protectorate of Bohemia and Moravia, now the Czech Republic, in June 1942 on orders from Adolf Hitler and Reichsführer-SS Heinrich Himmler.