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Central government prohibits payment of wages in the fourth phase of lockdown in case of laborers and employees not working - Dinkar
केन्द्र सरकार ने चौथे चरण के लॉकडाउन में मजदूरों व कर्मचारियों के काम न करने की दशा में वेतन भुगतान पर लगाई रोक - दिनकर
मेहनतकशों को करना होगा राजनीतिक प्रतिवाद
लखनऊ, 19 मई 2020. वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा है कि मोदी सरकार का मेहनतकश विरोधी क्रूर और अमानवीय चेहरा आप सबके सामने है। इस पर बताने की जरूरत नहीं है रोज-ब-रोज एक से एक दर्दभरी दास्तानें आप देख और सुन ही रहे हैं। मजदूरों का दुर्घटनाओं में मरना, घायल होना, गर्भवती महिलाओं का सड़क पर बच्चा पैदा करना, रहने और खाने तक की व्यवस्था करने में सरकार की विफलता सबकुछ आम बात है। वास्तव में सरकार ने मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया है और अपनी जिम्मेदारी से भाग खड़ी हुई है।
उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने चौथे चरण के लॉकडाउन में मजदूरों व कर्मचारियों के काम न करने की दशा में वेतन भुगतान पर रोक लगा दी है।
मामले को समझने के लिए उन्होंने बताया कि दरअसल सुप्रीम कोर्ट में फिक्कस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड़ की तरफ से लॉकडाउन अवधि का वेतन न देने के लिए एक याचिका डाली गयी थी, जिस पर 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। इस सुनवाई के बाद तमाम समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों द्वारा यह समाचार प्रकाशित किया गया कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने लॉकडाउन अवधि में मजदूरों के वेतन भुगतान पर रोक लगा दी है। जबकि सच्चाई यह है कि 15 मई को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मात्र नोटिस जारी किया है और वेतन पर रोक लगाने का कोई आदेश नहीं दिया है।
उन्होंने बताया कि 29 मार्च 2020 की भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है, इसमें स्पष्ट कहा गया था कि कारखाना, दुकान अथवा वाणिज्यिक प्रतिष्ठान के प्रबंधक या स्वामी द्वारा लॉकडाउन अवधि में श्रमिकों का वेतन भुगतान नहीं किया जाता तो महामारी अधिनियम की घारा 3 में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करके भारतीय दण्ड़ संहिता की धारा 188 के तहत एफआईआर दर्ज की जाए। इसी आधार पर उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों ने भी आदेश दिए थे। हालांकि यह भी सच है कि इसका अनुपालन बेहद कम ही हुआ और अपने स्वभाव के अनुरूप आरएसएस-भाजपा की सरकारों ने इस आदेश का अनुपालन नहीं करने का संदेश श्रम विभाग को दिया था।
अब 17 मई को भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में इस आदेश को खत्म कर दिया गया है। सरकार अभी कह रही है कि लॉकडाउन के दौरान विशेषकर बैंक, बीमा, केन्द्रीय व राज्य कर्मचारियों की मात्र 33 प्रतिशत ही उपस्थिति कार्यालयों में करायी जाए, उद्योगों में दो तिहाई मजदूरों को ही बुलाया जाए और सोशल दूरी का कड़ाई से अनुपालन हो।
श्री कपूर ने बताया कि आदेश में यह भी कहा गया है कि जो प्रतिष्ठान इसका अनुपालन नहीं करेंगे उनके मालिक व अधिकारी के विरूद्ध आपदा अधिनियम 1897 की धारा 3 (Section 3 of the Disaster Act 1897) के तहत कड़ी कार्यवाही की जायेगी।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार के इन आदेशों के कारण जो कर्मचारी या मजदूर काम पर किसी दिन नियोजित नहीं होगा उसके वेतन का क्या होगा। सरकार के आदेश पर विधिवेताओं का कहना है कि ऐसे कर्मचारियों व मजदूरों को वेतन का भुगतान नहीं होगा। वर्कर्स फ्रंट ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप करने का फैसला किया है। हमने सरकार से यह भी कहा है कि छोटे-मझोले उद्योगों के सामने आए संकट के मद्देनजर सरकार कर्मचारी भविष्य निधि (ईएसआई) से मजदूरों के वेतन का भुगतान कर दें। मजदूरों के वेतन भुगतान का काम दुनिया के कई देशों की सरकारों ने किया भी है।
दूसरा मामला कल उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव वित्त विभाग संजीव मित्तल द्वारा दिया आदेश है। श्री कपूर ने बताया कि कोविड़-19 के कारण प्रदेश में लॉकडाउन घोषित होने के फलरूवरूप उत्पन्न विशेष परिस्थिति में व्यय प्रबंधन एवं मितव्ययिता के लिए दिशा-निर्देश विषयक इस शासनादेश में कहा गया है कि राज्य सरकार के राजस्व में अप्रत्याशित कमी आयी है इसलिए वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए निर्णय लिए गए है। आदेश के पहले बिंदु में कहा गया कि केन्द्र की वित्तीय मदद से चलने वाली योजनाओं में केन्द्र से धन प्राप्त होने पर ही धनराशि आवश्यकतानुसार चरणों में उपलब्ध करायी जायेगी। इसका सबसे बुरा असर मनरेगा पर पडेंगा क्योंकि यह योजना पूर्णतया केन्द्र सरकार द्वारा संचालित है। अभी आपने देखा कि कथित 20 लाख करोड़ के पैकेज में वित्त मंत्री ने मनरेगा में महज 40 हजार करोड़ रूपए का आवंटन किया है। याद दिला दें कि अपने बजट में इन्हीं वित्त मंत्री द्वारा मनरेगा में पिछले वर्ष खर्च कि 72 हजार करोड़ में 11 हजार करोड़ की कटौती करके महज 61 हजार करोड़ रूपए ही आवंटित किया था। खुद सरकार की वेबसाइट के अनुसार इस बजट में मात्र 9 दिन ही औसत काम एक मजदूर को मनरेगा में मिल सका था। अब जब मजदूरी 202 रूपए कर दी गयी है तो स्वभाविक है कि मनरेगा में काम का आवंटन और भी कम हो जायेगा। सोनभद्र, मिर्जापुर व चंदौली जहां हमारा सघन काम है वहां के प्रधानों, जनप्रतिनिधियों व ग्रामीणों द्वारा लगातार बताया जा रहा है कि सरकार के आदेश बाद हमने काम तो शुरू करा दिया है लेकिन एक माह बीत जाने के बावजूद अभी तक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। इसलिए 2 करोड से ज्यादा रोजगार देने की वित्त मंत्री और 22 लाख रोजगार देने की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की घोषणा महज लफ्फाजी है और जनता की आंख में धूल झोकना है।
वित्त विभाग द्वारा जारी इस आदेश के बिंदु संख्या दो और तीन में कहा गया है कि सभी विभागों द्वारा उन्हीं योजनाओं को क्रियान्वित किया जाए जो अपरिहार्य हो। साथ ही बिंदु संख्या तीन में तो किसी नई निर्माण परियोजना के शुरू करने पर रोक लगाते हुए कहा गया है कि जो कार्य प्रारम्भ किए जा चुके है वही कार्य कराए जाए। आदेश का बिंदु संख्या चार कहता है कि कार्य प्रणाली में परिवर्तन, सूचना प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग आदि के कारणों से अनेक पद सरकारी विभागों में अप्रासंगिक हो गए है इसलिए इन पदों को चिन्हित कर इन्हें समाप्त किया जाये और जो कर्मचारी इन पर कार्यरत हो उन्हें अन्य विभागों में रिक्त पदों पर समायोजित किया जाए। बिंदु संख्या पांच में नई नियुक्तियों पर पूर्णतया रोक लगाते हुए कहा गया कि आवश्यक कार्यो को आऊटसोर्सिंग से कराया जाए। यहीं नहीं कल निदेशक बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग द्वारा प्रदेश में कार्यरत तीन लाख से ज्यादा आगंनवाड़ियों व सहायिकाओं की सूची मांगी है जिनकी उम्र 62 साल से ज्यादा है यानी इनकी छटंनी की तैयारी सरकार ने कर ली है।
वर्कर्स फ्रंट नेता ने कहा कि प्रदेश सरकार ने काम के घंटे बारह करके 33 प्रतिशत श्रमिकों व कर्मचारियों की छटंनी का फैसला किया था जिस पर हमारे हाईकोर्ट में हस्तक्षेप के बाद सरकार को बैकफुट पर आकर आदेश वापस लेना पड़ा। अभी भी सरकार 38 में से 35 श्रम कानूनों को तीन साल तक स्थगित करने की कोशिश में लगी है लेकिन आज तक वह इस सम्बंध में अध्यादेश नहीं ला पायी है। बहरहाल इन हालातों में आप खुद ही सोचे कि प्रदेश में आ रहे लाखों-लाख प्रवासी मजदूरों के आजीविका व रोजगार की व्यवस्था करने और प्रदेश में सबको रोजगार देने की योगी जी की लगातार जारी बड़ी-बड़ी घोषणाओं की हकीकत क्या है।
उन्होंने कहा कि कथित महामानव के नाटकीय सम्बोधन और बीस लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा के लिए मैदान में उतरी वित्त मंत्री महोदया ने अपनी पांच दिन चली थकाऊ और उबाऊ की प्रेस वार्ताओं के बाद अंतिम दिन जो कहा वह गौर करने लायक है। उनके ही शब्दों में यह कोरोना महामारी का राहत पैकेज नहीं आर्थिक सुधार का रास्ता है। यही सच है औद्योगिक पूंजीवाद से वित्तीय पूंजीवाद को ओर बढ़ चली दुनिया में मोदी सरकार मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गयी नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों को अंतिम स्वरूप प्रदान कर रही है। जिसका सीधा मलतब है बड़ा जन विनाश, छोटे-मंझोले उद्योगों, खेती किसानी की बर्बादी, सार्वजनिक सम्पत्ति को बेचना, नौकरियों से छटंनी, रोजगार का खात्मा और बड़ी आबादी को बेमौत मरने के लिए छोड़ देना। सीधे शब्दों में कहे तो रूसी क्रांति के बाद घबराए पूंजीवाद ने जिस कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को स्वीकार किया था उसका खात्मा। इन परिस्थितियों में विपक्ष के पास भी कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं है बल्कि सच तो यह है कि इस वित्तीय पूंजी के रास्ते पर सबकी सहमति है। इसलिए एनजीओ मार्का सहायता और कुछ इवेंट के अलावा आज तक देश का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कोरोना महामारी निपटने में पूर्णतया विफल रही इस सरकार से नैतिक रूप से सत्ता छोड़ने की बात तक नहीं कह पा रहा है। हद तो यह है कि बहुजन राजनीति करने वाली मायावती जी तो सीबीआई से खुद व अपने परिवार को बचाने के लिए योगी सरकार को बचाने में ही अपनी पूरी ऊर्जा लगा रही है।
उन्होंने कहा कि ऐसे में मेहनतकश वर्ग का यह ऐतिहासिक दायित्व है कि वह इस विनाशकारी वित्तीय पूंजीवाद के खिलाफ एक बड़ी राजनीतिक भूमिका में आए और राजनीतिक प्रतिवाद दर्ज करे। जनपक्षधर वैकल्पिक नीतियों पर आधारित जनराजनीति को खड़ा करने की अगुवाई करे। वर्कर्स फ्रंट इसी दिशा में महनतकशों के राजनीतिक प्रतिवाद को संगठित करने का राष्ट्रीय मंच है।
श्री कपूर ने यूपी सरकार को एक पत्र भी लिखा है, जिसका मजमून निम्नवत् है -
सेवा में,
प्रमुख सचिव (श्रम)
उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
विषय:- माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के नाम पर भ्रामक खबरें फैलने के कारण श्रमिको को लॉकडाउन अवधि का वेतन अनिवार्यतः देने के संदर्भ में पुनः स्पष्ट आदेश के सम्बंध में:-
महोदय,
अवगत कराना है कि माननीय उच्चतम न्यायालय में योजित सिविल रिट याचिका डायरी संख्या 10983/2020 फिक्कस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड़ बनाम भारत सरकार के सम्बंध में तमाम समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों द्वारा यह समाचार प्रकाशित किया गया कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय व गृह मंत्रालय द्वारा महामारी अधिनियम 1897 में प्रदत्त शक्तियों के तहत लॉकडाउन अवधि में मजदूरों को वेतन भुगतान करने के आदेश पर रोक लगा दी है।
आपके संज्ञान में ला दें कि सिविल रिट याचिका फिक्कस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड़ बनाम भारत सरकार में माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांकित 15.05.2020 को मात्र नोटिस जारी किया है। अभी तक कोई भी वेतन पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया है। (आदेश की कापी संलग्न है)
आप अवगत हैं कि कोरोना महामारी के सम्बंध में भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसरण में उत्तर प्रदेश सरकार के श्रम विभाग द्वारा पृथक से ऐसा आदेश दिनांकित 20.03.2020 को किया था। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी शासनादेश संख्या 09/2020/44/6/36-03-2020-30 (सा0) 2020 में यह कहा गया था कि कारखाना, दुकान अथवा वाणिज्यिक प्रतिष्ठान के प्रबंधक/स्वामी द्वारा लॉकडाउन अवधि में श्रमिकों का वेतन भुगतान नहीं किया जाता तो महामारी अधिनियम की घारा 3 में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करके भारतीय दण्ड़ संहिता की धारा 188 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की जाए।
सरकार के इस आदेश के बाद सोनभद्र की हिण्डालकों, आदित्य बिरला कैमिकल्स प्लांट, ग्रासिम सीमेंट, अनपरा व ओबरा तापीय परियोजना समेत लखनऊ की मिल्क मेड प्राइवेट लिमिटेड़ आदि तमाम उद्योगों में संविदा पर कार्यरत मजदूरों का भुगतान किया गया। परन्तु उपरोक्त पूर्णतया असत्य व भ्रामक सूचना के कारण मजदूरों के वेतन भुगतान पर नियोक्ताओं द्वारा रोक लगाई जा रही ही। इससे मजदूरों में भय व्याप्त हो गया है और यदि मजदूरों को वेतन नहीं प्राप्त होता है तो कोरोना महामारी के इस संकटकालीन समय में उनके परिवारों के सामने जिंदा रहने का संकट पैदा हो जायेगा, जो मूलतः संविधान के अनुच्छेद 21 में उन्हें प्राप्त सम्मानजनक जीवन के अधिकार का उल्लंधन है।
ऐसी स्थिति में आपसे विनम्र निवेदन है कि इस भ्रामक स्थिति को समाप्त करने के लिए श्रम विभाग द्वारा भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुरूप लॉकडाउन अवधि का वेतन अनिवार्यतः देने के लिए पुनः स्पष्ट आदेश दिया जाए ताकि मजदूरों व उनके परिवारों की जीवन की सुरक्षा हो सके और उनके विधिक अधिकार सुनिश्चित हो सके।
सादर!
दिनकर कपूर
अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश।
मान्यता प्राप्त श्रमिक महासंघ
मोबाइल नम्बर:- ..........
दिनांक - 18.05.2020
प्रतिलिपि सूचनार्थ व आवश्यक कार्यवाही हेतु:-
- माननीय मंत्री, श्रम व रोजगार मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली।
- माननीय मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
- सचिव श्रम व रोजगार मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली।
- माननीय श्रम मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार।
- श्रमायुक्त, उत्तर प्रदेश, कानपुर।