लखनऊ, 26 जून 2020. उत्तर प्रदेश में आईपीएफ के अध्यक्ष रहे और प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता चितरंजन सिंह का निधन हो गया है।
चितरंजन सिंह के निधन पर अनेक संगठनों ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त की है।
आईपीएफ नेता दिनकर कपूर ने कहा कि उनका निधन मानवाधिकारों के हनन के इस दौर में समाज की अपूरणीय क्षति है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। वह अकेले ही जनता की आवाज बने रहते थे और उनका जाना समाज का बड़ा नुकसान है। हम ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, वर्कर्स फ्रंट, मजदूर किसान मंच और अपने तमाम संगठनों की तरफ से उन्हें शोक श्रद्धांजलि व्यक्त करते हैं।
जन संस्कृति मंच से जुड़े कौशल किशोर ने फेसबुक पर लिखा,
“साथी चितरंजन सिंह को सलाम!
उनका जाना जनयोद्धा का जाना है!
चितरंजन भाई (चितररंजन सिंह) के नहीं रहने की दुखद सूचना मिली। उनका जाना एक जनयोद्धा का जाना है। वे क्रांतिकारी वाम आंदोलन के साथ नागरिक अधिकार आंदोलन के भी साथी थे। पीयूसीएल के नेतृत्वकारी पदों पर रहकर नागरिक आंदोलन को आगे बढ़ाया। वे बलिया के रहने वाले थे। उनमें विद्रोही चेतना बहुत आरम्भ से रही।
मेरी पहली मुलाकात इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हालैंड हॉस्टल में एक बैठक में हुई थी। इस बैठक का आयोजन भाई रामजी राय ने किया था। उत्तर प्रदेश से जन आंदोलनों की एक पत्रिका ‘जनदिशा’ को निकालने को लेकर यह बैठक हुई थी। लखनऊ से अजय सिंह, अनिल सिन्हा के साथ मैं भी उसमें शामिल हुआ था। वहीं पहली बार चितरंजन भाई से मुलाकात हुई। आपात स्थिति के बाद उत्तर प्रदेश में जिन साथियों ने क्रांतिकारी बाम आंदोलन और क्रांतिकारी जनवाद की धारा को संगठित करने का कार्य किया, उनमें चितरंजन भाई अग्रणी साथी थे। 1980-81 के दौर में उत्तर प्रदेश में जन आंदोलन की शक्तियों को संगठित करने के प्रयास में उत्तर प्रदेश संयुक्त जनमोर्चा का निर्माण हुआ। इस मोर्चे से लेकर इंडियन पीपुल्स फ्रन्ट के गठन में उनकी भूमिका थी। वे इसके पदाधिकारी भी रहे। जहां तक मुझे याद आ रहा है वे प्रदेश के कोषाध्यक्ष चुने गए थे। तमाम आंदोलनों, धरना, प्रदर्शन, गिरफ्तारी में वे शामिल रहे। बाद के दिनों में नागरिक अधिकार आंदोलन से जुड़े और पीयूसीएल के प्रदेश के संगठन सचिव और बाद में अध्यक्ष भी बने।
चितरंजन भाई आंदोलनों के लेखक भी थे। वे नियमित रूप से ‘शाने सहारा’ ‘अमृत प्रभात’ आदि अखबारों में लिखते थे। जब स्कूटर इंडिया के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन चला, वे न सिर्फ इस आंदोलन से जुड़े बल्कि इस आंदोलन के बारे में उन्होंने ‘शाने सहारा’ में लिखा भी। इसी तरह डाला, चुर्क, चुनार के निजीकरण के खिलाफ संघर्ष से भी उनका जुड़ाव था।
बाद के दिनों में उनसे संपर्क टूट सा गया था। कभी-कभार फोन आता। वह साथीपन और आत्मीयता से भरा होता। अनिल सिन्हा के पटना में निधन के समय उनका फोन आया। साथियों की चिन्ता उन्हें रहती। जब अदम गोंडवी गंभीर रूप से बीमार हुए और लखनऊ के पीजीआई में भर्ती थे। उनका हालचाल लेने के लिए उन्होंने फोन किया और यह जानना चाहा कि इलाज के लिए क्या किया जा सकता है। उन्होंने अदम गोंडवी के अकाउंट में 10000 का सहयोग कराया। संभवत यह इंसाफ की ओर से यह सहयोग था।
चितरंजन सिंह जन आंदोलन के साथी रहे हैं। उनका जाना जनयोद्धा का जाना है। उनके निधन भावपूर्ण श्रद्धांजलि, सलाम, लाल सलाम!”
प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ी संध्या नवोदिता ने लिखा,
“चितरंजन सिंह का विदा होना…
न जाने कितने लोगों के मन में बसने वाले, गूँजने वाले, एक निडर योद्धा ने आज अंतिम विदाई ले ली।
जिनकी लेखनी कभी थमती नहीं थी, जो अखबारों के मुख्य कॉलम हुआ करते थे, सिविल लिबर्टी की ताकतवर आवाज़, हर मीटिंग का ज़रूरी चेहरा, मानवाधिकार के हर मोर्चे की बुलंद आवाज़, देश भर में प्रतिरोध का मजबूत स्वर….
आज सब विदा हुआ…
उनकी आवाज़ कानों में गूँज रही है। भावुक रुलाई है। उनको जानने मानने वालों की आँखें भीग रही हैं।
प्रतिरोध के बेहद मजबूत योद्धा साथी को अंतिम विदा ??????”
वरिष्ठ पत्रकार Kripashankar Chaubey ने लिखा,
चितरंजन सिंह ने आधी शताब्दी तक जन संघर्षों में जो योगदान किया, वह विरल दृष्टान्त है. उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि.
प्रोफेसर ईश मिश्रा ने लिखा,
. मेहनतकश के हक और मानवाधिकार के योद्धा चितरंजन सिंह नहीं रहे। विनम्र श्रद्धांजलि।
हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें. ट्विटर पर फॉलो करें. वाट्सएप पर संदेश पाएं. हस्तक्षेप की आर्थिक मदद करें