जब जोर चले नामर्दों का,
तब बाग जलाये जाते हैं,
गुलशन में अमन की ख़ातिर भी नामर्द बुलाये जाते हैं,
जब बुजदिल माली बन जाये,
सैय्याद का हमला होता है,
वो फूल जहर के बोता है,
तब बाग तबाह ही होता है,
गुलशन की हिफाजत क्या होगी,
नामर्द जो ठहरा घर में हो,
उस बाग की हालत क्या होगी,
नामर्द का पहरा जिसमें हो,,,
गुलशन को गर जो महकना है,
हर फूल को खुद ही खिलना होगा,
रंगत की हिफाजत खुद कर लो,
खुशबू की क़िफालत खुद देखो,
इस बाग के पहरेदार बनो,
हर फूल के तुम गुलजार बनो,
तुम खुद ही चौकीदार बनो
तुम खुद ही चौकीदार बनो,,
मौहम्मद रफीअता
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