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नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में पूरे दुनिया में भारत तीसरे स्थान पर है।
नई दिल्ली, 16 जन 2022. रिन्यूएबल्स 2022 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट (the Renewables 2022 Global Status Report REN21 in Hindi) की मानें तो वैश्विक स्तर पर क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन नहीं हो रहा है, जिससे यह संभावना भी नहीं बचती है कि दुनिया इस दशक के अंत तक महत्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होगी।
नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के मामले में पूरे दुनिया में भारत केवल चीन (136 गीगावॉट) और संयुक्त राज्य अमेरिका (43 गीगावॉट) के बाद, 2021 में 15.4 गीगावॉट के साथ कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिए विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
एक नज़र में भारत का नवीकरणीय ऊर्जा परिदृश्य :
· 2021 में 15.4 गीगावॉट के साथ कुल रिन्यूएबल ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिए विश्व स्तर पर भारत तीसरे स्थान पर है, केवल चीन (136 गीगावाट) और संयुक्त राज्य अमेरिका (43 गीगावाट) के बाद।
· भारत ने 2021 में 843 मेगावाट की पनबिजली क्षमता जोड़ी, जिससे कुल क्षमता 45.3 गीगावाट हो गई।
· नई सौर पीवी क्षमता के लिए भारत एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार था और विश्व स्तर पर तीसरा (2021 में 13 गीगावाट अतिरिक्त)। यह पहली बार, जर्मनी (59.2 GW) को पछाड़ते हुए, कुल स्थापना (60.4 GW) के लिए चौथे स्थान पर रहा।
· भारत, पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता (40.1 GW) के मामले में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
· भारत ने अपने राष्ट्रीय INR 18,100 करोड़ (24.3 बिलियन अमरीकी डालर) के सौर उत्पादन कार्यक्रम का विस्तार किया, जो बैटरी निर्माण संयंत्रों की स्थापना के लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
· भारत में, रिन्यूएबल्स में कुल नया निवेश 70% बढ़कर 11.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
· रिन्यूएबल ऊर्जा नीतियां और जीवाश्म ईंधन में कटौती (Renewable energy policies and cutting fossil fuels)- भारत अपनी नेट मीटरिंग योजना के तहत सौर पीवी बढ़ाने से देश का रूफटॉप पीवी बाजार 2021 में अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
यह रिपोर्ट एक स्पष्ट चेतावनी देती है कि वैश्विक स्तर पर क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन नहीं हो रहा है, जिससे यह संभावना भी नहीं बचती है कि दुनिया इस दशक के अंत तक महत्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होगी। पिछले साल की दूसरी छमाही में आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े ऊर्जा संकट की शुरुआत (The beginning of the biggest energy crisis in history) देखी गई, जो 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर रूसी संघ के आक्रमण और अभूतपूर्व वैश्विक कमोडिटी झटके से और गंभीर हो गयी।
REN21 की कार्यकारी निदेशक राणा आदिब कहती हैं,
"हालांकि कई सरकारों ने 2021 में नेट ज़ीरो एमिशन के लिए प्रतिबद्धता दिखाई मगर सच्चाई यह है कि ऊर्जा संकट के जवाब में अधिकांश देश जीवाश्म ईंधन पर वापस चले गए हैं।”
यह ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट दुनिया भर में रिन्यूएबल ऊर्जा की सालाना स्थिति का जायज़ा लेती है। इस साल की रिपोर्ट इसका 17-वां संस्करण है और इस बात का प्रमाण देती है जिसके बारे में विशेषज्ञ अक्सर चेतावनी देते रहे हैं। और वो बात ये है कि दुनिया की ऊर्जा खपत में रिन्युएब्ल एनेर्जी का कुल हिस्सा स्थिर हो गया है। जहां 2009 में यह 10.6% था, दस साल बाद 2019 में यह मामूली बढ़त के साथ 11.7% पर अटक गया।
बिजली क्षेत्र में, जहां रिन्यूएबल ऊर्जा क्षमता और उत्पादन 2020 से अधिक रहा, फिर भी वो कुल बिजली मांग, जो कि 6 फीसद बढ़ी, के सापेक्ष कम ही रहा। वहीं हीटिंग और कूलिंग में, कुल ऊर्जा खपत में रिन्यूएबल हिस्सेदारी 2009 में जहां 8.9% थी, वो 2019 में बढ़कर 11.2% हो गई।
परिवहन क्षेत्र में, जहां रिन्यूएबल हिस्सेदारी 2009 में 2.4% थी, वो 2019 में बढ़कर 3.7% हो गई। परिवहन क्षेत्र की धीमी प्रगति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह क्षेत्र वैश्विक ऊर्जा खपत के लगभग एक तिहाई हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है।
नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में, रिकॉर्ड 135 देशों ने 2050 तक नेट ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस एमिशन हासिल करने का संकल्प लिया। लेकिन इनमें से केवल 84 देशों के पास रिन्यूएबल ऊर्जा के लिए अर्थव्यवस्था-व्यापी लक्ष्य थे, और केवल 36 के पास 100% रिन्यूएबल ऊर्जा का लक्ष्य था।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के इतिहास में पहली बार, COP26 घोषणा ने कोयले के उपयोग को कम करने की आवश्यकता का उल्लेख किया, लेकिन यह कोयले या जीवाश्म ईंधन में लक्षित कटौती का आह्वान करने में विफल रहा।
जीएसआर 2022 स्पष्ट करता है कि देशों की नेट ज़ीरो प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयासों की आवश्यकता होगी, और यह कि कोविड-19 से मिला मौका गुज़र गया है।
यह रिपोर्ट बताती है कि जलवायु कार्रवाई के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धताओं के बावजूद सरकारों ने ऊर्जा संकट के प्रभावों को कम करने के लिए अपनी पहली पसंद के रूप में जीवाश्म ईंधन उत्पादन और इस्तेमाल के लिए सब्सिडी प्रदान करने के विकल्प को चुना। 2018 और 2020 के बीच, सरकारों ने 18 ट्रिलियन अमरीकी डालर की भरी रक़म – जो 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 7% था- जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर ख़र्च किया। भारत में तो ऐसा कुछ रिन्यूएबल के समर्थन को कम करते हुए किया गया।
यह प्रवृत्ति महत्वाकांक्षा और कार्रवाई के बीच एक चिंताजनक अंतर का खुलासा करती है।
"रिन्यूएबल ऊर्जा को ठंडे बस्ते में रखने और लोगों के ऊर्जा बिलों को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर निर्भर होने के बजाय, सरकारों को कमज़ोर घर-परिवारों में रिन्यूएबल ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की स्थापना को सीधे वित्तपोषित करना चाहिए,” अदीब ने कहा।
Clean energy transition not happening globally: Renewables 2022 Global Status Report (REN21)