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कोल ऐश रिपोर्ट 2020 : एक दशक में भारत में 76 प्रमुख कोयला दुर्घटनाओं के बावजूद रेगुलेटरी मानदंडों में ढील

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hastakshep
27 Jul 2020
कोल ऐश रिपोर्ट 2020 : एक दशक में भारत में 76 प्रमुख कोयला दुर्घटनाओं के बावजूद रेगुलेटरी मानदंडों में ढील

Coal ash report 2020: Relaxation norms relaxed despite 76 major coal accidents in India in a decade

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दिल्ली /चेन्नई 27 जुलाई 2020: बीते दस सालों में हर साल 7-8 भीषण फ्लाई ऐश डाइक (कोयले की विषैली राख के तालाब) की दुर्घटनाएँ (Accidents of fly ash dyke (coal ash pond)) हुई हैं जिनमें जान और माल का नुकसान हुआ। इनके टूटने पर खेतों का बंजर हो जाना, नदियों का विषाक्त होना और लोगों का अपनी जान से हाथ धोना सब आम बातें हैं। इन दुर्घटनाओं की अनदेखी और इन्हें नज़रअंदाज़ किये जाने का सिलसिला इन दस सालों में जस का तस आज भी वैसा ही जारी है।

इसका एक जीता जागता उदाहरण है - 10 अप्रैल 2020 को सिंगरौली में रिलायंस का राखड़ का बांध टूटा और गांव में 'राख की बाढ़' आ गई, इस हादसे में छह लोगों की मौत हो गई है, कई मकान भी राख के दलदल में समाहित हो गए।

फ्लाई ऐश किसे कहते हैं | What is fly ash called

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गौरतलब है कि ऐश डैम (राखड़ बांध) में बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने के बाद निकली राख जिसे फ्लाई ऐश भी कहा जाता है, को जमा किया जाता है। जिसे ऐश डाइक कहते हैं। फ्लाई ऐश एक खतरनाक प्रदूषक है जिसमें अम्लीय, विषाक्त और रेडियोधर्मी पदार्थ तक होते हैं। इस राख में न सिर्फ़ सीसा, आर्सेनिक, पारा, और कैडमियम जैसे तत्व होते हैं, इसमें यूरेनियम तक हो सकता है। यह न सिर्फ़ हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक है, फ्लाई ऐश धरती को भी प्रदूषित कर देती है, जिससे लम्बे समय में बुरे नतीजे निकलते हैं।

हेल्थी एनर्जी इनीशिएटिव इंडिया (Healthy Energy Initiative India,) और कम्युनिटी एनवायरमेंटल मॉनिटरिंग (Community environmental monitoring) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 2010 से जून 2020 के बीच देशभर में कम से कम 76 प्रमुख फ्लाई ऎश डाईक दुर्घटनाएं हुई।

कोल ऐश इन इंडिया- ए कॉम्पेंडियम ऑफ डिजास्टर एनवायरनमेंट एंड हेल्थ रिस्क" (Coal ash in India - a compendium of disaster environment and health risk) शीर्षक वाली यह रिपोर्ट बताती है कि दुर्घटनाओं में जन-धन की हानि के साथ आसपास के जल स्रोत, वायु और मिट्टी भी प्रदूषित हुई। यह आंकड़ा पिछले एक दशक में हर दूसरे महीने लगभग 1 से अधिक कोयले की राख से जुड़ी बड़ी घटनाओं का संकेत देता है।

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रिपोर्ट के अनुसार फ्लाई ऐश के बिखरने की बहुत सारी दैनिक घटनाएं संज्ञान में ही नहीं आती, और यह आंकड़े तो समस्या की एक झलक भर हैं। सबसे अधिक सांद्रता वाले कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट में मध्य प्रदेश,ओडीशा,झारखंड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु,छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्य कोयला राख दुर्घटनाओं की सूची में शीर्ष पर हैं क्योंकि बड़ी संख्या में बिजली संयंत्र नदियों या तट जैसे जल निकायों के करीब स्थित हैं, इसलिए सामान्य राख का निर्वहन तालाबों को दरकिनार करते हुए सीधे उनमें प्रवाहित होता है।

 

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हेल्थी एनर्जी इनीशिएटिव इंडिया की समन्वयक श्वेता नारायण कहती हैं-

“खनन और कोयला राख ने अपनी तरफ ध्यान आकृष्ट किया है पर राख और उसके निस्तारण के तरीके पर गौर करना अभी भी शेष है। जनता का गुस्सा कोयला राख प्रदूषण से संबंधित बड़ी दुर्घटनाओं तक ही सीमित है। राख तालाब के निकट बसे समुदायों में घुलता धीमा जहर आज भी संज्ञान में नहीं लिया जाता।यह रिपोर्ट भारत में कोल ऐश प्रबंधन और उसके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव के बारे में बताती है।"

रिपोर्ट में वर्षों से कोयला राख प्रबंधन के विनियामक ढांचे (Regulatory framework of coal ash management) में आयी ढील को इंगित किया है जिनके चलते बिजली उत्पादकों ने पर्यावरण सुरक्षा उपायों और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का मजाक बनाकर रख दिया है :

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रिपोर्ट के मुताबिक -

  • राख सामग्री को कम करने के लिए कोयले की धुलाई अनिवार्य थी और इस आशय की अधिसूचना 1997,1998 और 1999 में पारित की गई। इसके बाद सरकार ने 2 जनवरी 2014 को एक गजट अधिसूचना जारी की जिसमें कोयला खदान की सभी थर्मल इकाइयों को 500 किलोमीटर से अधिक की आपूर्ति के लिए कोयले की धुलाई अनिवार्य हो गई। मई 2020 को पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( MoEFCC)ने भारत के नीति आयोग द्वारा पेश किए गए आर्थिक औचित्य के आधार पर बिजली एवं कोयले के मंत्रालयों के लिए एक विवादास्पद संशोधन के माध्यम से कोयले की धुलाई को वैकल्पिक बना दिया।हालांकि यह निर्णय फ्लाई ऐश परम्परा में होने वाली वृद्धि और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं है।
  • वर्ष 2000 में फ्लाई ऐश के वर्गीकरण को "खतरनाक औद्योगिक अपशिष्ट "की श्रेणी से "वेस्ट मटीरियल "की श्रेणी में रख दिया।मं त्रालय ने पुनर्वर्गीकरण के पीछे कोई स्वास्थ्य संबंधी वैज्ञानिक औचित्य नहीं दिया।
  • 1999 की फ्लाई ऐश अधिसूचना सीमेंट, कंक्रीट ब्लॉक, ईंटों, पैनलों जैसी सामग्री या सडकों, तटबंधों और बाँधों के निर्माण के लिए या किसी अन्य निर्माण गतिविधियों के लिए थर्मल पावर स्टेशनों (TPPs) से 300 किलोमीटर के दायरे में फ्लाई ऐश का उपयोग करने का आदेश देती है। मूल अधिसूचना और बाद के संशोधनों और 1994 में लांच किए फ्लाई ऐश मिशन का उद्देश्य भी एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर फ्लाई ऐश का 100% उपयोग प्राप्त करना था। इन प्रयासों के बावजूद फ्लाई ऐश का केवल 77% ही 2018-29 में उपयोग किया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि "उपयोग" शब्द कम निचले क्षेत्र और रिक्त खदान की भराई के संबंध में एक मिथ्या नाम भर है। सरकार की मंजूरी के बावजूद बिजली के संयंत्रों के लिए पर्यावरण क्लीयरेंस(EC) की शर्तों के तहत फ्लाई ऐश का रिक्त खदान तथा निचले क्षेत्र की भराई और कृषि में उपयोग निषिद्ध है। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार, "अगस्त 2019 का नवीनतम संशोधन इन शर्तों को पलट देता है।

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विद्युत मंत्रालय के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार भारत में 2018-19 में 217.04 मिलियन मेट्रिक टन राख उत्पन्न हुई। 2032 तक यह 600 मिलियन को पार कर सकती है। कोयला राख में जहरीले रसायन जैसे आर्सेनिक, एल्युमीनियम, सुरमा, बेरियम, कैडमियम,सेलेनियम, निकल, सीसा और मेलिब्डेनम जैसे अन्य कार्सिनोजेंस होते हैं। विषाक्त भारी धातु की वजह से बढ़ते कैंसर के जोखिम के साथ कोयले की राख मानव विकास को प्रभावित कर सकती है। उनमें फेफड़े और हृदय की समस्याएं एवं पेट की बीमारियों का कारण बनने के साथ समय से पहले मृत्यु दर भी बढ़ा सकती है। छत्तीसगढ़ में कोयले की राख के तालाबों के करीब रहने वाले समुदायों पर किए गए स्वास्थ्य अध्ययन से पता चला है कि बालों के झड़ने, जोड़ों का दर्द, शरीर में दर्द, पीठ दर्द, सूखी खुजली, रक्तविहीन सूखी त्वचा, फटी एड़ी, दाद, और सूखी खांसी, किडनी सम्बंधी शिकायतें जैसे रोगों में वृद्धि हुई है। किडनी और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल शिकायतों के मामले भी सामने आए हैं।

कैंब्रिज (यू के) के हेल्थ केयर सलाहकार डॉक्टर मनन गांगुली ने कहा-

"कुल मिलाकर कोल ऐश नुकसानदेह न दिखते हुए भी एक धीमा ज़हर है आमतौर पर कोयले की राख में अन्य कार्सिनोजेन और न्यूरोटॉक्सिंस के साथ शीशा, पारा, सेलेनियम, हेक्सावेलेंट, क्रोमियम होते हैं। अध्ययन में कर्मियों और जनता के लिए जोखिम में फ्लाई ऐश को भी विकिरण जोखिम के साथ जोड़ा गया है। कोयले को ना जलाना ही सुरक्षित रहने का एकमात्र विकल्प है।"

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  • भारतीय विनियमों में कोयले की राख को खतरनाक अपशिष्ट के रूप में मान्यता नहीं दी इसलिए बिजली कंपनियां फ्लाई ऐश के वैज्ञानिक निपटान के लिए इंजीनियर्ड लैंडफिल को बनाए रखने की लागत में कटौती करती हैं। नतीजन कोयला फ्लाई ऐश नियमित रूप से बिजली संयंत्रों के करीब खाली भूमि पर असुरक्षित और खुले गड्ढे में फेंक दिया जाता है। एक समय के बाद वहां राख का ढेर तैयार हो जाता है जिस पर बिजली कंपनियां आगे भी उसी पर राख का ढेर तैयार करती जाती हैं। राख से विषाक्त पदार्थ जमीन में रिसते हैं और भूजल को दूषित करते हैं। राख के ये तालाब राख के अत्यधिक वजन के कारण और मानसून के दौरान तटबंधों के रूप में घरों, गांव में कृषि भूमि और जल निकायों सहित आसपास के क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में राख का निर्वहन करते हैं। शुष्क मौसम के दौरान यह राख तालाब वायु प्रदूषण का स्रोत बन जाते हैं क्योंकि तूफान राख के विशाल बादलों को पर्यावरण में ले जाते हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के याचिकाकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा ने कहा पिछले 2 वर्षों में सिंगरौली क्षेत्र में एस्सार एनटीपीसी और रिलायंस पावर जैसे बिजली उत्पादकों के प्लांट ने ऐश बंधों का उल्लंघन किया है। कंपनियों की लापरवाही के कारण हादसे फिर हुए हैं। ग्रामीणों ने लगातार बताया कि इन राख तालाबों की सीमाएं कमजोर है लेकिन कार्यवाही नहीं हुई।इस क्षेत्र में अनियंत्रित औद्योगिक विकास के कारण वायु, जल और मृदा प्रदूषण का वर्षों का अनुभव है जिसके कारण यहां रहने वाले समुदाय संपत्ति के साथ अपने स्वास्थ्य का भी दीर्घकालिक नुकसान उठाते हैं।"

वर्ष 2018-19 में उत्पन्न कुल 2017 मिलियन टन कोयले की राख में से केवल 168 मिलियन टन(77.5%) का उपयोग किया गया।फ्लाई ऐश का उपयोग सबसे ज्यादा 26.8% सीमेंट निर्माण के लिए,जबकि 13.5% निचले इलाकों के पुनर्वसन, 9.96 % ईटों, ब्लॉक और टाइल निर्माण हेतु, 9.94% राख डाइक बढाने में,4.50% राजमार्गों और फ्लाईओवर में एवं 4.65% खदान भरने में प्रयोग किया जाता है। फ्लाई ऐश के संबंध में सुझाए उपायों में निचले क्षेत्रों को भरने,ईंटें आदि उत्पाद बनाने के लिए फ्लाई ऐश का उपयोग करने से इनमें घुले विषाक्त पदार्थों पर प्रश्नचिन्ह उठते हैं। यह निर्णायक वैज्ञानिक सहमति के अभाव में विवादास्पद विषय रहा है। रिपोर्ट में आंकड़े कहते हैं कि पूरे देश में तालाबों और टीलों में 1 अरब टन से अधिक राख रूपी विरासत अनुपयोगी है।

क्या हैं नीति सिफारिशें :
  • जवाबदेही तय करना और यह सुनिश्चित करना कि कोयले को जलाने और कोयले की राख बनाने वाले बिजली संयंत्र सुरक्षित प्रबंधन और उसके उपयोग, निस्तारण और पुनः उपयोग से निकलने वाले पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रभावों की जिम्मेदारी लेते हैं।
  • बिजली संयंत्रों के पास रहने वाले समुदायों को साथ लेकर एक प्रभावशाली निगरानी प्रणाली का निर्माण करना जो उत्पादित राख के संपूर्ण निस्तारण के लिए उत्तरदायी हो, इसके बावजूद अगर पर्यावरण में राख का निर्वहन होता है तो प्रदूषण भुगतान सिद्धांत के तहत स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षतिपूर्ति की व्यवस्था हो।
  • भारत को राख तालाब की वैज्ञानिक रोकथाम के लिए नियमों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए अभेद्य एच डी पी लाइनर्स के साथ मौजूदा राख के तालाबों को फिर से बनाने और पर्यावरणीय मंजूरी के साथ राख की वैज्ञानिक लैंडफिलिंग की आवश्यकता होगी। यह भूजल के रिसाव और संक्रमण की जांच करने के लिए अप्लाई अप्लाई अप्लाई एस दम के आसपास एक कठोर पर्यावरण निगरानी प्रोटोकॉल भी प्रदान करेगा।
  • सभी राख प्रदूषित स्थलों का निदान राष्ट्रीय कार्यक्रम NPRPS के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत MoEFCC द्वारा विकसित मार्गदर्शन दस्तावेज के अनुसार किया जाना चाहिए।

पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह कोयला राख प्रदूषण फैलाने वालों पर कठोर दंड शुल्क लगाया जाना चाहिए।

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