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Communal rumors, crime mastery
साम्प्रदायिकता फैलाने वाले आईटी सैल की भूमिका सीमित है। वे उस जमीन में केवल बीज बोते हैं जिसे बरसों बरस से कोई तैयार कर चुका होता है/ कर रहा होता है। यही कारण है कि ये झूठी अफवाहें इतनी आसानी से स्वीकार कर ली जाती हैं! जब एक कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष सरकार थी तब भी उसने इन तत्वों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाये, और अब तो सरकार ही उनकी दम पर बनी है, उन्हीं की दम पर चल रही है।
Contagious disease cannot be a matter of personal trust
विश्वव्यापी कोरोना संकट के दौर (Era of worldwide corona crisis) में कट्टर अन्धविश्वासी मरकज वालों ने जिस तरह से सरकारी निर्देशों का उल्लंघन किया, उस हेतु वे दण्ड के पात्र हैं क्योंकि छूत का रोग निजी विश्वास का मामला नहीं हो सकता। किसी मिली जुली संस्कृति वाले देश में संविधान से ऊपर कोई धार्मिक कानून नहीं चल सकता। आपकी स्वतंत्रता उस सीमा तक है जब तक की वह किसी दूसरे की स्वतंत्रता में दखल नहीं देती।
दिल्ली में मरकज वालों की स्वच्छन्दता, जमातियों की गिरफ्तारी, और उनको एकांतवास में रखे जाने के बाद की घटनाओं को जिन-जिन झूठी कहानियों से विकृत किया गया उनकी सच्चाई सामने आ चुकी है। किसी व्यक्ति के किये गये काम को पूरी कौम पर थोप देना या निराट झूठी कहानियां फैला देना, उनकी सचाई को सामने आने से रोकना देश में शांति व्यवस्था के खिलाफ किसी बड़े षड़यंत्र का हिस्सा माना जाना चाहिए। यह बड़ा अपराध है।
ऐसा करने वाले लोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए दूसरे सम्प्रदाय के खिलाफ झूठ को फैला कर अपने सम्प्रदाय के कमसमझ वाले भावुक लोगों को भड़काना चाहते हैं। इस हिंसा में इनके झूठ से भड़के समर्थक भी प्रतिहिंसा का शिकार होते हैं, पुलिस से डंडे खाते हैं और जेल जाते हैं। कभी कभी गोली से मारे भी जाते हैं। ये भड़काने वाले लोग बेनामी या छद्म नाम से अफवाहें फैलाते हैं, ये अफवाहें फैलाने वाले खुद या उनके बच्चे कभी इस हिंसा में भाग नहीं लेते किंतु इससे जनित ध्रुवीकरण से चुनावी लाभ लेने में सबसे आगे रहते हैं, या अपने बच्चों को आगे करते हैं।
देखा जाता है कि जिस पैमाने पर अफवाह फैलायी जाती है, उस पैमाने पर उसके गलत होने के समाचार को सामने नहीं लाने दिया जाता। यदि लाया भी जाता है तो इस तरह से कोने में छोटी सी गोलमोल खबर छपती है कि समाज में अफवाह से बन चुकी गलत मानसिकता निष्प्रभावी नहीं होती। यदि इनका अभियान सफल हो जाता है तो कभी छुटपुट और कभी व्यापक हिंसा भड़क जाती है जिसमें जन धन दोनों के नुकसान के साथ हमेशा के लिए एक विभाजन रेखा खिंच जाती है। मानस पटल पर बनी यही विभाजन रेखा भविष्य की अफवाहों के फलने फूलने के लिए जमीन तैयार करती है।
It is not enough to expose the lies of those who spread lies
इन झूठ फैलाने वालों के झूठ को उजागर करना भर काफी नहीं है अपितु उस अफवाह से सम्भावित हिंसा और सामजिक नुकसान के अनुसार कठोरतम दण्ड देने की व्यवस्था होना चाहिए। किसी धर्म की रक्षा का ठेका किसी अज्ञात कुलशील व्यक्ति पर नहीं हो सकता अपितु वह जानीमानी संस्था ही कोई सम्बन्धित बयान दे सकती है जो अपने कामों का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हो।
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जब कोई दल इस तरह के हथकण्डों से लाभ लेकर सत्ता या पद हथियाता है तो वह कार्यवाही नहीं चाहता। इसलिए जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन अफवाह फैलाने वालों के समस्त स्त्रोत, वित्तीय व्यवस्था की पहचान हो और चुनाव आयोग जैसी संस्था को इसकी जिम्मेवारी दी जाये क्योंकि ज्यादातर साम्प्रदायिक तनाव दूरगामी चुनावी लाभ के लिए ही पैदा किया जाता है।
जनता साम्प्रदायिक तनाव नहीं चाहती इसलिए जो लोग उत्तेजित होकर हिंसक हो जाते हैं, वे सच के सामने आने पर भड़काने वालों से सवाल भी नहीं कर सकते क्योंकि यह काम किसी बेनामी द्वारा किया गया होता है। जरूरी हो कि हर फारवार्डिड मैसेज पर उस को सबसे पहले तैयार करने वाले का नाम और फोन नम्बर हो।
वीरेन्द्र जैन