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न्यायालय की अवधारणा और पुलिस तंत्र का न्याय | Concept of Court and Justice of Police System
5 अगस्त को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्म भूमि का शिलान्यास (Foundation stone of Ram Janmabhoomi in Ayodhya) किया गया और उत्तर प्रदेश में रामराज्य की स्थापना (Establishment of Ram Rajya in Uttar Pradesh) हुई। इसी रामराज्य में प्रतिदिन महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं, ये घटनाएं तब और वीभत्स हो जाती हैं जब इसमें जातीय घृणा शामिल हो जाती है। रामराज्य में ऐसी घटनाओं से हर भारतीय को शर्मसार होना चाहिए।
भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार बढ़ते गए | Atrocities on women in India increased
2011 में जहां देश भर में 2 लाख 28 हजार 650 केस दर्ज थे, वही, 2018 में यह संख्या बढ़ कर 3 लाख 277 हो गई यानि कि प्रतिदिन 51. 24 केस बढ़े। ncrb के अनुसार 2018 की तुलना में 2019 में महिलाओं के खिलाफ 7.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। रामराज्य उत्तर प्रदेश महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा क्राइम वाले राज्यों की सूची में टॉप पर है जहां 59,853 मामले दर्ज हैं। ये वो मामले हैं जिनकी एफआईआर दर्ज हुई और वो आंकड़े बन गए लेकिन बहुत से मामले ऐसे हैं जिसमें बलात्कारी घर या रिश्तेदार होते हैं और वे लोकलाज के कारण बाहर नहीं आ पाते।
2012 में निर्भया के समय जिस तरह का जनाक्रोश देखा गया, उससे लगा कि अब महिलाओं को लेकर लोगो की मानसिकता बदलेगी, महिलाओं के प्रति लोग संवेदनशील हो गए हैं, उस समय लोगों की जुबान पर एक जैसे शब्द थे दोषियों, दरिन्दों को फाँसी दो, जैसे कि फाँसी देने के बाद फिर कोई बलात्कार की घटना नहीं होगी और समाज में महिलाएं खुल कर जी सकती हैं, कभी भी कहीं भी आ जा सकती हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ अब बलात्कार में देखा जाने लगा कि बलात्कारी कौन है?
अगर बलात्कारी कोई रुतबे वाला होता है तो सारी नैतिकता गायब हो जाती है, महिला संवेदनाएं खत्म होकर पीड़ित महिलाएं ही बदचलन बन जाती हैं जैसे जब कठुआ, उन्नाव, अलीगढ़ में बलात्कार की घटनाएं हुईं तो वहां दोषियों को सजा देने की आवाज उठाने के बजाय उन्हें बचाने के समर्थन में रैलियां निकाली जाने लगीं। यही कारण है कि आज भी 34 नाबालिग लड़कियों के बलात्कार व हत्या के अपराधी ब्रजेश ठाकुर जैसे लोग जेल में हैं और कार्यवाही चल रही है, जहां उन्हें सारी सुविधाएं मिली हुई हैं। यही कारण है कि कुलदीप सेंगर जैसे बलात्कारी जेल में रह कर भी अपनी पावर दिखाते हुए पीड़िता का एक्सीडेंट करवा देते हैं और बच निकलते है।
हाथरस की पीड़िता के मामले ने तो उत्तर प्रदेश प्रशासन व सरकार की हकीकत को सामने लाकर रख दिया। अगर सोशल मीडिया पर ये खबर न फैलती तो शायद अन्य मामलों की तरह ये भी केवल अखबार की सुर्खियां बन कर रह जातीं। हाथरस की घटना में पीड़िता जीते हुए बलात्कारियों के अत्याचार का शिकार हुई और मृत्यु के बाद प्रशासन की ज्यादती का शिकार हुई। आज भी पीड़ित के परिवार को पुलिस ने नजरबन्द कर किया हुआ है, पूरे गांव को छावनी बना दिया गया जहां न मीडिया वाले जा सके और न ही कोई नेता, जैसे कि पीड़ित के परिवार ही अपराधी हों वहीं दूसरी अपराधियों को बचाने के लिए 12 गांव के ऊंची जाति के लोग खुलेआम पंचायत कर रहे हैं जैसे कि ये पंच परमेश्वर ही निर्णायक हों।
रामराज्य बने भारत का इतिहास है जहां हमेशा ऊंची जाति के लोग पावर, पालिटिक्स के दम पर निम्न जाति, के लोगों पर हमेशा अत्याचार करते रहे है।
निर्णायक पुलिस प्रशासन - Decisive police administration
रामराज्य/लोकतान्त्रिक भारत में अब न्यायालय और न्याय का कोई मतलब नहीं रह गया है। सरकार ने हर फैसले को पुलिस तंत्र के हाथों में सौंप दिया है, उन्हें अधिकार दे दिया है कि वो जो भी करें सरकार उनके साथ रहेगी, यही कारण है कि पुलिस कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते हुए खुद ही अपना निर्णय सुना देती है। कभी भी पुलिस के एक्शन पर सवाल नहीं उठाये जाते ।
हैदराबाद में हुए दामिनी रेप केस में पुलिस ने आरोपियों को सजा दी, जनता की वाहवाही लूटी, पुलिस के हाथों बलात्कारियों को सजा मिल गई, लोगों ने पुलिस को फूल माला पहनाई, पुलिस की हौसला आफजाई की लेकिन किसी ने भी एनकाउन्टर पर सवाल नहीं उठाया, जो कि असंवैधानिक और गैरकानूनी था। किसी ने भी पुलिस से ये सवाल नहीं किया कि जब पीड़िता की बहन ने पुलिस के पास फोन करके अपनी बहन के दो घंटे से कोई खबर नहीं होने की बात की तो पुलिस ने बोला कि कहीं घूमने गई होगी। अगर उस दिन भी पुलिस द्वारा तुरन्त एक्शन ले लिया जाता तो दामिनी जिन्दा जलने से बच जाती, पुलिस की नकारापन्थी पर कोई यह सवाल नहीं उठाया जाता कि आखिर अपराधी को अपराध करने का मौका क्यों मिल जाता है? अपराधियों के एनकाउन्टर के बाद क्या न्यायापालिका का कोई औचित्य रह गया था?
हाथरस में एक वाल्मीकिलड़की का गैंगरेप ठाकुर समुदाय के सवर्ण वर्ग द्वारा किया गया यहां पर पावर पालिटिक्स ने पुलिस प्रशासन को यह अधिकार दे दिया कि वे सवर्णों की रक्षा करे, न्याय से पहले जातीय समुदाय को बचाने की जरूरत है यही कारण है कि पीड़िता द्वारा बयान दिये जाने के पंद्रह दिन तक भी पुलिस अपराधियों को नहीं पकड़ पाई और जब पीड़िता ने दम तोड़ दिया तो रामराज्य के सारे हिन्दू दाह-संस्कार को दावं पर रखते हुए पुलिस ने उसके शव को रात में ही केरोसीन स्प्रिट डालकर जला दिया, जैसे कि रीति-रिवाज के साथ दाह-संस्कार करने का अधिकार तो केवल सवर्णों को है, निम्न वर्ग को तो ऐसे ही मर जाना होता है कभी सवर्णों द्वारा उनके घर जलाये जाने के साथ तो कभी पुलिस द्वारा केरोसीन डाल कर जलाये जाने पर।
The credibility of the judiciary in a democratic country | लोकतान्त्रिक देश में न्यायपालिका की साख
लोकतान्त्रिक देश में पहले न्यायपालिका की साख का ख्याल रखते हुए मामलों के केस दर्ज कर लिए जाते थे और आरोपी को पकड़ने व मुकदमे की कार्यवाहियों का दिखावा हो जाता था, लेकिन अब पुलिस और सरकारी संस्थाओं को दिखावे की भी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब रामराज्य आ चुका है जहां पुलिस बेखौफ होकर अपना काम करेगी उसके ऊपर कोई दबाव नहीं है हो सकता है आगे चलकर उसे सम्मानित ही किया जाए।
आज जब सोशल मीडिया पर पीड़िता का वीडियो जारी हो रहा है उसकी मां चीख-चीख कर अपनी बेटी के उस दर्दनाक क्षण को बयां कर रही है जिस अवस्था में उसने देखा था, तब भी पुलिस बेशर्मी के साथ कह रही है कि कोई बलात्कार नहीं हुआ और न ही जीभ काटी गई।
हाथरस के डीएम खुलेआम पीड़िता के परिवार वालों को धमका कर कह रहे हैं कि ’’मीडिया तो दो चार दिन रहनी है उसके बाद तो वे ही रहेंगे और आगे वे भी बदल सकते हैं।“
जाहिर है पीड़िता का गांव तब तक छावनी बना रहेगा जब तक मीडिया का और नेताओं का आना जाना बन्द नहीं होता। पीड़िता का घर तब तक नजरबन्द रहेगा जब कि पीड़िता के परिवारजन अपना बयान बदल नहीं देते। रामराज्य आने पर लोकतान्त्रिक सवैधानिक अधिकारों की कोई मान्यता नहीं रह जाती, रामराज्य में एक ऐसी मानसिकता पैदा हो रही है जिसमें यौन हिंसा एक तरह का यज्ञ है जिसमें मर्दवादी ताकतों को मजबूत करने के लिए स्त्री को आहुति देनी ही पड़ेगी। इन्द्र की हवस का खामियाजा अहिल्या को पत्थर बन कर चुकाना ही पड़ेगा।
डॉ. अशोक कुमारी