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ग्वालियर में 57 साल बाद कांग्रेस का महापौर।
'महल' की छाया से निकली तो फिर हरियाने लगी कांग्रेस।
भोपाल, 18 जुलाई 2022. ग्वालियर के महापौर की कुर्सी पर करीब सत्तावन साल बाद कांग्रेस की शोभा सतीश सिकरवार बैठने जा रहीं हैं। सिंधिया राजघराने के जयविलास प्रासाद के सामने जल विहार में नगर निगम मुख्यालय है।
इस इमारत में जिस दिन शोभा आसंदी पर बैठेंगीं, उस दिन इतिहास की नई इबारत लिखी जाएगी।
मप्र में स्थानीय निकाय के चुनावों (local body elections in mp) में सियासी सयानों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी ग्वालियर में थी। यह दलबदल करके भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ (Union Minister Jyotiraditya Scindia's stronghold) है इसलिए यहां की हार जीत के छींटे उनके दामन पर आने ही थे।
दलबदल के बाद भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद लगातार बढ़ रहा है।
अपने लोगों को शिवराज सरकार में मनमाफिक मंत्री बनवाने वाले सिंधिया ख़ुद मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं। हाल ही में उन्हें इस्पात मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मिला है। पार्टी में बढ़ते कद के बीच अपने ही शहर में पार्टी का मेयर न बनवा पाना उनके माथे पर शिकन लाने वाली बात है।
यूं भाजपा प्रत्याशी सुमन शर्मा, नरेंद्र सिंह के खेमे की मानी जाती हैं, लेकिन उनकी जीत के लिए पूरी पार्टी ने एड़ी चोटी का जोर लगाया। तोमर तो जिम्मा लिए ही थे लेकिन उनके अलावा स्वयं सिंधिया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, कई मंत्री,सांसद, विधायक पर्चा भरवाने आए। मतदान के आखिरी दौर में एक ही गाड़ी पर सवार होकर इन सब दिग्गजों ने जंगी रोड शो किया।
उधर कांग्रेस उम्मीदवार शोभा के विधायक पति सतीश सिकरवार अपनी ख़ुद की फ़ौज के दम पर डटे हुए थे। सिंधिया को उनके गढ़ में घेरने की रणनीति पर चुनाव के पहले से ही काम कर रहे कमलनाथ, दिग्विजय सिंह ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शुरुआती खींचतान के बाद ग्वालियर के ही दूसरे विधायक प्रवीण पाठक और जिला इकाई ने भी जोर लगाया।
नतीज़ा सामने है... भाजपा अपने और संघ के परंपरागत गढ़ में मात खा गई।
ग्वालियर में कांग्रेस की यह जीत क्यों महत्वपूर्ण है
कांग्रेस की यह जीत इस मायने में भी बहुत बड़ी है कि यहां माधवराव सिंधिया भी कभी कांग्रेस का महापौर नहीं बनवा सके थे। लगभग चार दशक तक कांग्रेस के एकछत्र नेता रहे माधवराव के दौर में भी जनसंघ, भाजपा के ही महापौर जीतते रहे। साठ के दशक के बाद से कांग्रेस ने महापौर की कुर्सी को 'हाथ' भी नहीं लगाया।
बीस साल पहले पिता की मृत्यु के बाद कांग्रेस से ही राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले ज्योतिरादित्य के दौर में सन 2004, 2009 और 2014 में भी कांग्रेस महापौर के चुनाव में जीत की बाट जोहती ही रह गई।
और अब सिंधिया नाम के साए से बाहर निकली कांग्रेस शहर का 'प्रथम नागरिक' बनवा कर फूली नहीं समा रही।
अपने ही घर में लगातार मात खा रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को धराशाई कर दिया था। दलबदल के बाद भाजपा की शिवराज सरकार बन गई, लेकिन उप चुनाव में सिंधिया को अपने ही घर में मात खाना पड़ी।
तब ग्वालियर जिले की तीन में से दो सीटों पर सिंधिया के प्रत्याशी हार गए थे। इनमें से एक सीट तो ग्वालियर पूर्व है जहां खुद सिंधिया का महल है। इस सीट पर ही शोभा के पति सतीश ने जीत दर्ज़ की थी।
इस उप चुनाव में ग्वालियर चंबल में कुल 9 सीटों पर कांग्रेस जीती थी। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने पर ऐसा दावा किया गया था कि अब कांग्रेस यहां खत्म हो जाएगी जबकि हुआ इसके उलट। महल की छाया से निकल कर कांग्रेस हरियाने लगी है।
लोकसभा चुनाव अपने ही कार्यकर्ता से हारे
ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया के सन 2001 में असामयिक निधन के बाद सक्रिय राजनीति में आए। गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से पहली बार 2002 में सांसद बने। 2004, 2009, 2014 में भी जीते और दो बार केंद्र में मंत्री बने।
सन 2019 के लोकसभा चुनाव में वे अपने ही एक पूर्व सहयोगी डॉ के पी यादव से चुनाव हार गए। यादव पहले कांग्रेस में ही थे। बाद में भाजपा में शामिल हो गए और सिंधिया को हरा कर चौंकाया।
सिंधिया ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने के लिए जोर आजमाइश की, लेकिन तब उनके साथ एक दर्जन विधायक ही थे और ज्यादा विधायक साथ होने पर कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए। सन 2020 में सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया।
फिलवक्त ग्वालियर में महापौर पद पर भाजपा की हार से सिंधिया के लिए असहज स्थिति बन गई है।
पार्टी में उनकी आमद के बाद से अंदर ही अंदर कसमसा रहे कुछ दिग्गज इस मौके को अपने हिसाब से भुनाने की कोशिश कर सकते हैं।
मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा तक सिंधिया की सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है यह भविष्य के गर्त में है।
डॉ राकेश पाठक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Congress mayor after 57 years in Gwalior.