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अवसरवादी नेताओं की पहचान करने में विफल क्यों हो जाती है कांग्रेस?

अवसरवादी नेताओं की पहचान करने में विफल क्यों हो जाती है कांग्रेस?

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अवसरवादी नेताओं की पहचान करे कांग्रेस (Congress should identify opportunistic leaders)

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देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today)

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हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव अगले कुछ महीनों में हैं। चुनावों में बार-बार हार का सामना करने वाली कांग्रेस इस बार अपना दम-खम दिखाना चाहती है। इसलिए उदयपुर में कांग्रेस चिंतन शिविर (Congress Chintan Shivir in Udaipur) से लेकर पार्टी में अंदरूनी फेरबदल किया जा रहा है। लेकिन अंदरूनी कलह से जूझती कांग्रेस के लिए मुसीबतें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। जिन नेताओं पर कांग्रेस आलाकमान ने भरोसा किया, उन्हीं से अब झटके मिल रहे हैं।

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deshbandhu editorial

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और 50 साल बाद भाजपाई हो गए सुनील जाखड़

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गुरुवार को पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ (Senior Punjab Congress leader Sunil Jakhar) ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। इस तरह कांग्रेस से उनका 50 साल का रिश्ता टूट गया।

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सुनील जाखड़ के पिता बलराम जाख़ड़ कांग्रेस सरकार में केन्द्रीय मंत्री थे, उनके भतीजे संदीप जाखड़ अभी अबोहर से विधायक हैं।

फेसबुक लाइव कर सुनील जाखड़ ने कांग्रेस से दिया इस्तीफा

सुनील जाखड़ ने कांग्रेस से इस्तीफा (Sunil Jakhar resigns from Congress) उदयपुर चिंतन शिविर के दौरान ही दिया था। फेसबुक लाइव पर दिए अपने इस्तीफे में उन्होंने कांग्रेस की जमकर आलोचना की थी और अब भी वे कांग्रेस के दोष गिनाने में लगे हैं। उन्होंने सोनिया गांधी का नाम लिए बिना उनके लिए नाराजगी जताते हुए कहा कि आपने मेरा दिल भी तोड़ा तो सलीके से न तोड़ा, बेवफाई के भी कुछ अदब होते हैं।

पंजाब में मिली हार का ठीकरा कांग्रेस नेतृत्व पर फोड़ा जाखड़ ने

कांग्रेस के शीर्ष नेताओं पर पंजाब में मिली हार का दोष डालते हुए सुनील जाखड़ ने कहा कि पंजाब कांग्रेस का बेड़ा गर्क दिल्ली में बैठे उन लोगों ने किया है, जिन्हें पंजाब, पंजाबियत और सिखी का कुछ भी पता नहीं है।

कांग्रेस से नाराज क्यों थे सुनील जाखड़? (Why was Sunil Jakhar angry with Congress?)

गौरतलब है कि सुनील जाखड़ की कांग्रेस से यह नाराजगी तब से है, जब पंजाब में उन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री पद पर नहीं बिठाया गया। बल्कि चरणजीत सिंह चन्नी को यह मौका दिया गया। कांग्रेस ने दलित मतदाताओं को साधने के लिए एक रणनीति के तहत यह कदम उठाया था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि पंजाब चुनावों में चरणजीत चन्नी के कारण दलित वोट हासिल होंगे और एक बार फिर सत्ता कांग्रेस को मिल जाएगी, इसके साथ ही उप्र के दलित मतदाताओं पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा। लेकिन चुनावों के नतीजे बतलाते हैं कि कांग्रेस की यह रणनीति कारगर साबित नहीं हुई।

पंजाब में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और इसके साथ ही सुनील जाखड़ को अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर प्रकट करने का मौका मिल गया। उन्होंने पंजाब में हार का ठीकरा प्रदेश कांग्रेस से लेकर दिल्ली तक बैठे नेताओं पर फोड़ा।

अगर कांग्रेस चुनाव में जीत जाती, तब शायद सुनील जाखड़ के तेवर इस तरह तल्ख नहीं होते। बल्कि बिना किसी पद पर रहकर भी वे सत्तारुढ़ पार्टी के साथ बने रहते। मगर अभी हालात अलग हैं।

कांग्रेस फिलहाल कमजोर दिख रही है, इसलिए अपना सियासी भविष्य संवारने सुनील जाखड़ भाजपा में चले गए हैं।

जितेन्द्र प्रसाद, माधवराव सिंधिया और बलराम जाखड़ इन तीनों कांग्रेस नेताओं ने लंबे अरसे तक पार्टी में रहकर सत्ता और पद का सुख भोगा, उनके बेटों, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुनील जाखड़ को भी कांग्रेस ने पर्याप्त तवज्जो दी, हालांकि अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के अलावा इन नेताओं के पास कोई जनाधार जुटाने की कोई खास ताकत नहीं थी। लेकिन कांग्रेस से जब उनके स्वार्थ पूरे हो गए, तो उन्हें पार्टी में अचानक कमियां दिखने लगीं और भाजपा में अच्छाइयां नजर आने लगीं।

कांग्रेस के हारने और पिछड़ने के कई कारणों में सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की यह अंदरूनी कलह ही है।

पंजाब में एक ओर सुनील जाखड़ और दूसरी ओर नवजोत सिंह सिद्धू ने चरणजीत सिंह चन्नी को बार-बार नीचा दिखाने का काम किया, जिससे मतदाताओं में अच्छा संदेश नहीं गया। कांग्रेस आलाकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को भी अध्यक्ष पद से हटा दिया है। अब अगले पांच साल पंजाब में कांग्रेस विपक्ष में है और भाजपा भी सत्ता से बाहर है। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के साथ-साथ, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा से भी मुकाबला करना है। नवजोत सिंह सिद्धू को भी एक पुराने मामले में एक साल की सज़ा हुई है और अब उनके बड़बोलेपन से युक्त बयान कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब नहीं बनेंगे, ऐसी उम्मीद है।

इधर सुनील जाखड़ का साथ मिलने से भाजपा पंजाब में खुद को मजबूत करने की कोशिश करेगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ तो भाजपा ने गठबंधन किया ही था। भाजपा इसी तरह राज्य दर राज्य खुद को मजबूत करती जा रही है।

और में गुजरात में कांग्रेस को हार्दिक आ ‘भार’

Hardik Patel

गुजरात में भी दो दिन पहले हार्दिक पटेल ने इसी तरह नाराजगी जाहिर करते हुए कांग्रेस में पद और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। अपने इस्तीफे  (Hardik Patel resigns from Congress) में उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिए बिना अपनी सारी भड़ास निकाली। उनकी कार्यशैली और राजनीति पर उंगलियां उठाईं। कांग्रेस को जातिवादी पार्टी करार दिया।

इस्तीफा देने के बाद भी हार्दिक पटेल कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी जारी रखे हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि पार्टी कभी हिंदुओं के मुद्दों, जैसे कि सीएए या वाराणसी की मस्जिद में मिले शिवलिंग आदि पर कुछ नहीं बोलती।

उन्होंने ये भी कहा है कि कांग्रेस का कोई दृष्टिकोण नहीं है और पार्टी के नेता गुजराती लोगों से पक्षपात करते हैं।

हार्दिक पटेल की इन बातों से समझ आता है कि वे किस राजनीति के तहत इस तरह के बयान दे रहे हैं। उनके इस्तीफे देने की टाइमिंग, चिकन सैंडविच और मोबाइल में व्यस्त रहना, जैसे आरोपों का लगाना, ये दिखला रहा है कि वे कांग्रेस ही नहीं, गांधी परिवार की छवि को खराब करने का नैरेटिव तैयार कर रहे हैं। इस तरह आखिर में फायदा किसको होगा, ये कोई भी समझ सकता है।

वैसे हार्दिक पटेल ने अभी भगवा गमछा ओढ़ा नहीं है, लेकिन चुनाव आते-आते गुजरात में भाजपा की सक्रियता और आक्रामकता किस हद तक बढ़ जाएंगे, इसका अनुमान कांग्रेस को लगा लेना चाहिए।

अवसरवादी नेताओं की शिनाख्त करने में कांग्रेस अक्सर फेल हो जाती है और उसका खामियाजा चुनावों में भुगतना पड़ता है। बेहतर होगा कि कांग्रेस अभी से चुनावी राज्यों में अपने वफादार और एकनिष्ठ कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने का काम करे। किसी की लोकप्रियता के फेर में न पड़े।

आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.

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