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Continued messing by the Central Government and Railways in the name of fighting Corona
रायपुर। 30 मई 2020. रेलवे द्वारा 21 डॉक्टरों की नियुक्ति आदेश जारी करने के बाद भी पूरा मई माह बीत जाने पर भी नियुक्ति न करने पर सवालिया निशान खड़े करते हुए प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी (Shailesh Nitin Trivedi) ने कहा है कि कोरोना से लड़ने के नाम पर केंद्र सरकार और रेलवे द्वारा खिलवाड़ लगातार जारी है। इन 21 डॉक्टरों की नियुक्ति 1 मई से होनी थी, लेकिन पूरा मई माह बीत जाने के बावजूद रेलवे द्वारा इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
कांग्रेस संचार प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि रेलवे ने 2500 डॉक्टरों और 352 नर्सों की तैनाती का झूठा और खोखला दावा किया था। छत्तीसगढ़ में भी डाक्टरों के पदों के लिए विज्ञापन निकाले गए और डॉक्टरों के साक्षात्कार भी लिए गए 20 अप्रैल को 21 डॉक्टरों की नियुक्ति के आदेश (Order for appointment of doctors) जारी भी कर दिए। इन डॉक्टरों को एक मई से ड्यूटी ज्वाइन करना था लेकिन आज तक इन डॉक्टरों की ड्यूटी ज्वाइन नहीं कराया गया है इससे केंद्र सरकार और रेलवे की कोरोना से लड़ने की गंभीरता को लेकर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं।
रेल मंत्री पीयूष गोयल द्वारा ट्रेनों को लेकर भी छत्तीसगढ़ के मामले में असत्य कथन किए जाने का उल्लेख करते हुए कांग्रेस संचार प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि रेल पहले समय पर चलने और यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए जानी जाती थी लेकिन मोदी सरकार में और पीयूष गोयल के रेल मंत्री रहते हुए अब सिर्फ ट्रेनें ही रास्ता नहीं भटक रहे हैं पूरा रेल मंत्रालय अपनी दिशा भटक गया है यह कोरोना के मामले में रेलवे के आचरण से स्पष्ट है।
शैलेश त्रिवेदी ने कहा है कि रेलवे के अन्य दावे भी खोखले निकले। रेलवे ने कहा था कि देश में 5000 डिब्बों को आइसोलेशन वार्ड में बदला जाएगा 35 हॉस्पिटल और ब्लॉक करो ना के लिए चिन्हित किए गए हैं, लेकिन अगर डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं होगी तो यह आइसोलेशन वार्ड और हॉस्पिटल ब्लॉक चिन्हित करने का क्या फायदा ? त्रिवेदी ने कहा है कि कोरोना से निपटने के नाम पर मोदी सरकार और रेलवे का रवैया लगातार निराशाजनक बना हुआ है। भारतीय रेल ने कोरोना महामारी से लड़ाई और लॉकडाउन के समय देश को निराश किया है। इस महामारी के समय लाक डाउन के समय भारतीय रेलवे आम आदमी का सहारा बन सकती थी। कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जंग में भारतीय रेलवे ने भी पूरी ताकत से जुटने और अपनी भागीदारी निभाने के दावे किये थे. भारतीय रेलवे ने कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए 2500 डॉक्टरों और 35,000 नर्सों को तैनाती का भी झूठा खोखला दावा किया था। छत्तीसगढ़ में अभी तक नही हुई 21 है डॉक्टरों की ज्वाइनिंग। अधिकतर डॉक्टर्स और नर्सों की टेंपरेरी आधार पर विभिन्न जोन में नियुक्ति प्रस्तावित है और वह भी नहीं हो पायी। रेलवे ने अपने 17 डेकिकेटेड हॉस्पिटल्स और 33 हॉस्पिटल ब्लॉक कोरोना वायरस मरीजों के इलाज के लिए रेलवे द्वारा चिन्हित किए गए हैं। रेलवे ने बिना डॉक्टर के खड़ी ट्रेनों के 500 डिब्बों को कोरोना पीड़ितों की पहचान और इलाज के लिए आइसोलेशन वार्ड में बदलने का दावा भी किया था। लेकिन चिकित्सक की नियुक्ति भी नही की गयी है। रेलवे ने कहा था कि इन कोचों में कोरोना संक्रमण के संदिग्धों को क्वारनटीन किया जा सकेगा। रेलवे के भोजन से लेकर दवाइयों की भी व्यवस्था के दावे झूठे निकले। भूख प्यास दवाई चिकित्सीय सुविधा के अभाव में श्रमिकों की हो रही रेल यात्रा में मौत तक के मामले उजागर हुए हैं।
रेलवे में सफर करने वालो को भी नहीं मिल रही है इलाज की सुविधा। Even those traveling in the railway are not getting treatment
कोरोना से लड़ाई में भागीदारी निभाने का रेलवे का दावा भी अभी तक जमीनी तौर पर कोई साकार रूप नहीं ले सका है। इसके पूर्व लॉक डाउन में भूख प्यास रोजी रोटी का संकट इलाज की बेबसी रहने की जगह की परेशानी भुगत रहे मजदूरों से किराया और वह भी बढ़ा हुआ किराया मांग कर रेलवे ने अपना जनविरोधी चरित्र पहले ही उजागर कर दिया है।