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भारत की राजनीति में संविधान एक टोटका भर रह गया है, अकेले अखिलेश नहीं हरा सकते भाजपा को

भारत की राजनीति में संविधान एक टोटका भर रह गया है, अकेले अखिलेश नहीं हरा सकते भाजपा को

डॉ. प्रेम सिंह, Dr. Prem Singh Dept. of Hindi University of Delhi Delhi - 110007 (INDIA) Former Fellow Indian Institute of Advanced Study, Shimla India Former Visiting Professor Center of Oriental Studies Vilnius University Lithuania Former Visiting Professor Center of Eastern Languages and Cultures Dept. of Indology Sofia University Sofia Bulgaria

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यूपी चुनाव पर डॉ. प्रेम सिंह से बात-चीत (Conversation with Dr. Prem Singh on UP elections)

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राजेश कुमार

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बहुआयामी लेखक और सोशलिस्ट पार्टी (भारत) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह नवंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में निजी काम से लखनऊ में थे। इत्तफाक से मैंने उन्हें फोन कर लिया और आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव के बारे में उनसे कुछ सवाल पूछे। उनसे टेलीफोन पर हुई उस लंबी बात-चीत का विवरण नीचे दिया गया है :

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सवाल: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रचार जोर-शोर से शुरू हो चुका है। आपको किसकी जीत के आसार लगते हैं?

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उत्तर : एक तरफ सत्तारूढ़ भाजपा है दूसरी तरफ तीन प्रमुख विपक्षी पार्टियां हैं – बसपा, सपा और कांग्रेस। जाहिर है, विपक्ष का वोट बँटेगा। सपा ने कुछ छोटी पार्टियों का गठबंधन बनाया है। इसलिए लगता है कि उसकी बढ़त है। लेकिन यह बढ़त विपक्ष के दायरे में है। भाजपा से बढ़त के लिए किसी न किसी रूप में बसपा या कांग्रेस में से एक का साथ जरूरी होगा।

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सवाल : लेकिन ऐसा संभव नहीं लगता। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सपा का बसपा और कांग्रेस से गठबंधन होकर टूट चुका है। 

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उत्तर : जैसा कि कहा जा रहा है, अगर यूपी का चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव का नतीजा तय करेगा, तो यूपी में विपक्ष को बहुत जिम्मेदारी और गंभीरता से काम लेना होगा। विपक्ष की संविधान और उसकी संस्थाओं में आस्था रखने वाले नागरिकों के प्रति जवाबदेही बनती है। विपक्ष के बीच कम से कम इतनी समझदारी तो होनी ही चाहिए कि भाजपा को बहुमत न मिलने की स्थिति में वह विपक्ष के विधायकों को न फोड़ सके, और विपक्ष की मिली-जुली सरकार बने।

सवाल : आप क्या चाहते हैं?

उत्तर : मेरी यहां कुछ सरोकारधर्मी नागरिकों से जो बातचीत हुई है उसके मुताबिक कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों को जमीनी हकीकत पर गौर करना चाहिए। इस समय सपा-रालोद गठबंधन कुछ छोटी पार्टियों के साथ सबसे मजबूत स्थिति में लग रहा है। कांग्रेस की विधानसभा में सात सदस्य हैं। इनके अलावा जिन सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी केवल उन पर चुनाव लड़े। ऐसा वह सपा-रालोद गठबंधन के साथ रह कर भी कर सकती है, उसके बाहर रह कर भी। अन्यथा वह बिहार की तरह विपक्ष की हार को ही आमंत्रित करेगी। बिहार में उसने महागठबंधन के भीतर रह कर पराजित कराया था, यहां बाहर रह कर विपक्ष की पराजय का कारण बन सकती है। कम्युनिस्ट पार्टियों को न्यूनतम सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन के साथ चुनाव में जाना चाहिए। चुनाव न लड़ें तब भी साथ रहें। मेरे विचार में उत्तर प्रदेश में भी भाजपानीत राजग के मुकाबले एक महागठबंधन बने तो बेहतर होगा।      

सवाल : उत्तर प्रदेश का दलित समाज क्या पहले की तरह ही वोट करता रहेगा या उनके वोटिंग पैटर्न में कोई बदलाव देखने को मिलेगा?

उत्तर : इसके बारे में चुनाव विशेषज्ञ बता सकते हैं। इसके बाद आप मुस्लिम मतदाताओं के बारे में भी सवाल पूछेंगे। मैं तो चाहता हूँ, हालांकि यह खामखयाली है, सभी जातियों और धर्मों के लोग भारतीय नागरिक की हैसियत से मतदान करें। यानी यह समझ कर वोट करें कि संविधान विरोधी कारपोरेट-कम्यूनल गठजोड़ की राजनीति को परास्त करना है।   

सवाल : किसान आंदोलन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में परिस्थितियां बदली हैं। यहां केंद्र और बीजेपी के खिलाफ एक आक्रोश उभरा है जो दिख भी रहा है। इसका चुनाव पर कितना असर होगा और जयंत-अखिलेश की जोड़ी इसे कितना कैश कर पाएगी?

उत्तर : भाजपा ने किसान आंदोलन के समय से ही पश्चिम उत्तर प्रदेश में जान झोंकी हुई है। वहां अब ऐसा लगता है कि रालोद फाइट में आ गया है। इस बदलाव में चौधरी अजीत सिंह का निधन और किसान आंदोलन के बाद वाले भाग में राकेश टिकैत की साफ और तगड़ी भूमिका भी कारण हैं। मुझे लगता है भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश के नुकसान की पूर्वी उत्तर प्रदेश में भरपाई करने की कोशिश करेगी।   

सवाल : आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के साथ अखिलेश यादव की तस्वीर मीडिया में छाई हुई है। माना जा रहा है कि सपा और आप के बीच गठबंधन को लेकर सहमति हुई है, इसे आप किस तरह से देखते हैं?

उत्तर : आप को सपा के नहीं भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहिए। निगम भारत और हिंदू-राष्ट्र का जो मिश्रण तैयार किया जा रहा है, उस अभियान में आम आदमी पार्टी आरएसएस/भाजपा की स्वाभाविक सहयोगी है। बल्कि वह अपना आगे का भविष्य बनाने के लिए राजनीति के साम्प्रदायीकरण को और गहरा बना रही है।

सवाल : आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच विचारधारा के स्तर पर जो दूरी है क्या उससे चुनाव में अखिलेश यादव को नुकसान हो सकता है?

उत्तर : अगर विचारधारा से मुराद संविधान की विचारधारा से है तो अखिलेश यादव क्या प्रचलित राजनीति के ज्यादातर नेता उसमें आस्था नहीं रखते। भारत की राजनीति में संविधान एक टोटका भर रह गया है। वरना आर्थिक विषमता की ना नापी जाने वाली खाई, बेरोजगारों की न गिनी जाने वाली संख्या, मेहनतकशों की अनगिनत बदहालियों के होते सेंट्रल विस्ता से लेकर नित नए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे बनाने के खब्त को विकास बताने की एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर शेखियां नहीं मारी जा सकती थीं। खैर, विचारधारा छोड़िए, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी को व्यावहारिक राजनीति का तनिक भी ज्ञान है तो वे आम आदमी पार्टी को उंगली नहीं पकड़ाएंगे।

सवाल : समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाले संगठनों और नागरिक समाज एक्टिविस्टों की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में क्या भूमिका होनी चाहिए?

उत्तर : वे उत्तर प्रदेश ही नहीं, किसी भी चुनाव में कोई भूमिका न निभाएं तो विपक्ष की मदद होगी।

सवाल : सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की भूमिका यूपी चुनाव में क्या रहेगी?

उत्तर : जैसा कि तुम जानते हो, मैं पार्टी में सक्रिय नहीं हूं।  

सवाल : अंत में उत्तर प्रदेश चुनाव में वोटर के लिए आपका संदेश क्या है?

उत्तर : संदेश देने की मेरी हैसियत नहीं है। अलबत्ता सत्ता और विपक्ष दोनों के नेताओं से यह कहना चाहूँगा कि नए-नए हवाई अड्डे, स्मार्ट सिटी, ग्लोबल सिटी, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी, एक्स्प्रेस वे खोलने और खोलने के दावे करने के बजाय जो कुछ पहले बना हुआ है उन्हें सुचारु और प्रभावी रूप से चलाने पर ध्यान लगाएं तो जनता की तकलीफें कुछ जरूर कम होंगी।

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