Corona virus, fake news and affected Indian news media : एक अलग तर्क
जिस चीज की आशंका थी, वह हो गई; चीन से फैलने वाली महामारी आखिरकार लगभग पूरी दुनिया में फैल गई है। भारत इस वैश्विक संकट के बीच खड़ा है, इस समय पूरा विश्व खतरनाक कोरोना-वायरस के प्रकोप से पूरी ताकत और सीमित संसाधनों से लड़ रहा है। ढांचागत और चिकित्सा चुनौतियों के अलावा, भारत भी दुनिया के किसी भी अन्य देश की तरह, फेक न्यूज़ अथवा नकली समाचार और झूठे प्रचार की अतिरिक्त चुनौती का सामना कर रहा है।
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— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) March 22, 2020
पत्रकारिता का धर्म है कि समय-समय पर वो हिंदुस्तान के ऊपर आने वाले संकट के प्रति भारतीय जनमानस को आगाह करे, ना की गुमराह।
भारतीय मीडिया में एक वर्ग सक्रिय है जो चीन (अथवा जनवादी चीन) के झूठ और गलत प्रोपेगंडा का प्रचार प्रसार करने में लिप्त है। चीनी मीडिया ने एक झूठ फैलाया और यह पहचान नहीं कर पाया है कि चीनी वायरस कहां और कैसे फैल गया, इसके प्रकोप के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया।
भारतीय मीडिया के संभ्रांत पत्रकार चीन की ओर से धमकी दे रहे हैं। विभिन्न प्रकार के तर्क प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक समाचार मीडिया द्वारा दिए गए हैं, जो दिखाते हैं कि कैसे कुछ जाने-माने, बहुप्रचारित पत्रकार वामपंथी प्रचार के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोग चीन को एक महाशक्ति मानते हैं, चीन की खूबियों के कसीदे काढ़ते हैं, और अपने ही देश को गलत ढंग से पेश करते हैं। जरा कुछ बातों पर गौर कीजिये –
एक प्रमुख भारतीय समाचार पत्रिका ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने महामारी कोविड-19 को “चीनी वायरस ग्रसित महामारी” कहने की चेष्टा की, तो भारत भारी नुकसान उठाएगा, जो भारत के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में होगा।
जब सरकार कोरोना-संकट “लॉकडाउन” (#CoronavirusLockdown) के बारे में गंभीर एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करने के बारे में सोच रही थी, एक भारतीय, इलेक्ट्रॉनिक समाचार मीडिया ने चीनी राजदूत का एक विस्तृत बयान दिखाया, जिसने दावा किया कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने न तो नया कोरोना-वायरस बनाया और न ही इसे प्रेषित किया।
यह भी खबर में लाया गया था कि चीन के प्रयासों ने कोविड -19 बीमारी को नियंत्रण में लाया है। मीडिया को इस तरह के समाचार पर स्वयं ही रोक लगनी चाहिए थी, क्योंकि जो भारतीय समाज अभी कोरोना-वायरस जनित महामारी से दो- दो हाथ कर रहा है, उसको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि चीन क्या सोचता है और क्या करता है, खासकर तब जब ये कोरोना-वायरस उनकी धरती पर पल्लवित और विकसित हुआ है।
एक जाने-माने इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ मीडिया चैनल ने एक साक्षात्कार दिखाया, वह भी बिना किसी संयम के, कि आने वाले कुछ दिनों में एक बड़ी संख्या में भारतीय आबादी, कई करोड़ के आस-पास, संक्रमित होने की संभावना है। बाद में पता चला कि यह भी एक फेक न्यूज़ थी।
बहुत सारे पत्रकार सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर चर्चा करने में व्यस्त हैं कि क्या कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहा जाना चाहिए या नहीं। खासकर जब हम जानते हैं कि चीनियों ने एक प्रचार प्रणाली विकसित की है, यह बात समझ से परे है कि भारतीय पत्रकारों ने ऐसे मुद्दे क्यों उठाए जिनसे भारतीय समाज बिल्कुल भी लाभान्वित नहीं होता।
हाल ही में, एक संस्थापक-संपादक और एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार के खिलाफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बारे में फर्जी खबरें फैलाने के लिए एफआईआर दर्ज की गई।
कोरोना वायरस-संकट के बीच, हाल ही में, सरकार की जन-कल्याण के लिए किये जाने वाले प्रयासों के बारे में फर्जी खबर फैलाने के लिए हिमाचल प्रदेश में एक पत्रकार पर पुलिस का शिकंजा कसा गया।
इसलिए ये पूरी तरह से स्पष्ट है कि लुटियंस मीडिया द्वारा नकली समाचार और अनर्गल प्रचार-प्रसार सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
हाल में, देश की एक प्रमुख अदालत ने भारत सरकार से नकली समाचारों पर अंकुश लगाने के लिए कहा है। चीन खुद को हमेशा से अच्छा दिखाना चाहता है और अपने चेहरे को बचाने के लिए वह किसी भी स्तर तक गिर सकता है, इसलिए जिस तरह से कोरोना-वायरस के मुद्दे पर भारतीय मीडिया में फर्जी खबरें (Fake news in Indian media on corona-virus issue) पैदा हो रही हैं वह अत्यंत चिंताजनक है।
Such Fake reporting by the @nytimes, @washingtonpost, @CNN & others. They use a small portion of a sentence out of a full paragraph in order to demean. They really are corrupt and disgusting. No wonder the media is, according to polls, record setting low & untrusted. #MAGA
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) March 28, 2020
Do Indian journalists who make fake news have their vested interests?
क्या फर्जी खबरों को बनाने वाले भारतीय पत्रकारों के अपने निहित स्वार्थ हैं? ये वही लोग हैं जो अक्सर देश में बढ़ती असहिष्णुता के बारे में दिखाई देते हैं और बोलते हैं। ऐसे पत्रकार भारत की छवि से ज्यादा चीन की वैश्विक छवि के बारे में अत्यधिक चिंतित दिखाई देते हैं। आखिर ऐसे पत्रकार इस तरह का फर्जीवाड़ा करके बच कैसे निकलते हैं ? निश्चित रूप से, वे सिद्धहस्त बुद्धिजीवियों, व्यापारिक घरानों, वकीलों और राजनेताओं द्वारा समर्थित हैं। इस परिस्थिति में, केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को इस तरह की “घिनौनी सोच वाले“ पत्रकारों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए।
वामपंथ की भारत में दीर्घकालिक उपस्थिति है और शहरी नक्सलवाद का मुद्दा इन दिनों बहुत ही चिंता का विषय है। भारतीय समाज में बहुत सारे लोग ऐसी सहानुभूति रखने वाले हैं जो चीनी पक्ष का समर्थन करने के लिए तथ्यों को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ देते हैं। बरखा दत्त और राना अयूब जैसे पत्रकार एक-दूसरे के विचारों के समर्थन में दिखाई देते हैं, तब जबकि उन्हीं विषयों पर राना अयूब को आयशा राना से भी समर्थन मिलता है।
वर्तमान में एक मीडिया हाउस ने एक खबर को हटा दिया जब ये पता चली की खबर फर्जी है, हद तो तब हो गयी जब इस मीडिया हाउस ने अपने इस कुकृत्य पर सार्वजनिक रूप से माफ़ी नहीं मांगी।
भारतीय इतिहास बताता है कि भारत में वामपंथ पूरी तरह से विफल रहा है लेकिन चीन के प्रति भारतीय मीडिया में सहानुभूति रखने वाले “वामपंथी एजेंडे” का प्रचार करते हैं ।
चीनी वायरस (Chinese virus) के इस कोरोना-संकट से भारत कैसे बाहर निकलेगा, यह अगले कुछ हफ्तों में ही स्पष्ट हो जाएगा, लेकिन यह तय है कि अगर नकली समाचार और इसके बारे में झूठी चर्चाएं नहीं रोकी गईं तो कोरोना-संकट से उत्पन्न जोखिम और भी ज्यादा बढ़ जाएगा।
कुछ भी हो, कोरोना-वायरस पर चीन अपने झूठे प्रचार पर चारों तरफ मुँह की खाने वाला है, लेकिन भारतीय समाचार मीडिया के विभिन्न वर्गों द्वारा प्रदर्शित “हल्की और बिकाऊ” पत्रकारिता बहुत ही खतरनाक है।
यह समझने में देर नहीं करनी चाहिए कि चीन भारत का विरोधी है और प्रायः पाकिस्तान और नार्थ कोरिया के पक्ष में खड़ा नजर आता है, इसलिए, “गन्दी सोच वाले“ भारतीय पत्रकारों ने जो प्रतिक्रिया दी है, वह कोरोना-वायरस संकट के दौरान पूर्ण रूप से भारत विरोधी है। इस तरह के पत्रकारों को राष्ट्रद्रोह से बचना चाहिए क्यूंकि समय बदल गया है, अब सरकार के साथ-साथ आम जनमानस भी काफी कुछ समझता है, और अगर इन लोगों ने अपनी प्रवृति नहीं बदली तो इनका सर्वनाश निश्चित है।
कुंवर पुष्पेंद्र प्रताप सिंह
पीएचडी, पत्रकारिता एवं जनसंचार
नेपाल अध्ययन केंद्र
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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