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Corona's latest situation in Uttarakhand
पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में कोरोना की दूसरी लहर (Second wave of corona in Uttarakhand) के दौरान बहुत सी जानें गईं और मई के पहले हफ़्ते में सबसे बुरी स्थिति थी।
आंकड़ों पर नज़र डालें तो 7 मई 2021 को उत्तराखंड में एक दिन में सर्वाधिक 9,642 कोरोना संक्रमित सामने आए थे और कोरोना से जान गंवाने वाले मरीज़ों की संख्या के मामले में 17 मई 2021 को सबसे अधिक 223 मरीज़ों ने दम तोड़ा।
इसी बीच प्रदेश में ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर्मिकोसिस भी अपने पैर जमाने लगा है। अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में इसके मरीजों का आंकड़ा सौ के पार हो गया है जबकि नौ मरीजों की ब्लैक फंगस से मौत (Death from black fungus) हो चुकी है।
प्रदेश के इन्हीं हालातों को देखते हुए उत्तराखंड में कोरोना मरीज़ों को दिए जा रहे चिकित्सा हालातों पर चर्चा करने के लिए भारत के वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी ने हेमवतीनंदन बहुगुणा उत्तराखंड मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर हेम चन्द्र से बातचीत की।
प्रोफेसर के अनुसार पूरे देश भर में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। एक दिन में दस हज़ार कोरोना मरीज़ों के सामने आने के बाद अब धीरे-धीरे मामले कम हो रहे हैं।
हाल ही में प्रदेश के रिमोट एरिया जैसे पौड़ी, नैनीताल जिलों में भी बहुत से कोरोना पॉजिटिव सामने आए।
प्रदेश के अंदर कहीं भी आने-जाने में कोई रुकावट नहीं थी और कोरोना वायरस में हो रहे बदलाव की वज़ह से प्रदेश में संक्रमितों की संख्या बढ़ी।
अब लॉकडाउन की वज़ह से केस कम हुए हैं।
प्रोफेसर हेम कहते हैं कि लोग अब मास्क का प्रयोग तो करने लगे हैं पर सोशल डिस्टेंस के प्रति जागरूक नहीं हैं।
राम दत्त त्रिपाठी के प्रदेश में वैक्सीन की स्थिति के प्रश्न पर प्रोफेसर कहते हैं कि वैक्सीन की दूसरी डोज़ बहुतों को लग गई है।
18-44 वर्ष वालों के रजिस्ट्रेशन बहुत हुए हैं, प्रदेश में वैक्सीन की ज्यादा समस्या नहीं है।
ऑक्सीजन पर बात करते हुए प्रोफेसर कहते हैं कि ऑक्सीजन के कोटे की बीच में समस्या थी पर अब आइसीयू बेड की मांग कम हो रही है।
पिछले हफ्ते 540 तक आइसीयू बेड इस्तेमाल हुए थे जो अब 488 हैं।
तीसरी लहर में बच्चों के ज्यादा संक्रमित होने के अनुमान पर प्रोफेसर कहते हैं कि इस लहर युवा मरीज़ों की संख्या अधिक है, आने वाले दिनों में बच्चे अधिक संक्रमित न हों इसकी तैयारी चल रही है।
राम दत्त त्रिपाठी द्वारा कोरोना के इलाज में दवाईयों के इस्तेमाल पर हो रहे भ्रम पर प्रोफेसर कहते हैं कि हम स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के मानकों के अनुसार दवाई दे रहे हैं।
वह कहते हैं कि 85% पॉजिटिव मरीज़ों में कोई लक्षण नहीं हैं और वह सिर्फ कोरोना वायरस के वाहक का काम करते हैं।
कम लक्षण वाले मरीज़ों को घर में आइसोलेट किया जा रहा है या उन्हें कोविड केयर सेंटर में भेजा जा रहा है।
ज्यादा गम्भीर रोगियों का इलाज जिला स्तर के अस्पतालों में किया जा रहा है।
मरीज़ों के घर पर ही दवाइयों का एक पैकेट दिया जा रहा है जिसमें छह गोली आइवरमेक्टिन, एज़िथ्रोमाइसिन, (Ivermectin, azithromycin) डॉक्सी, विटामिन, थर्मामीटर, मास्क, सेनेटाइजर और प्लस ऑक्सोमीटर की रहती हैं।
ज्यादा तबीयत बिगड़ने पर रेमेडिसिवर इंजेक्शन लगाया जा रहा है।
सरकार ने रेमेडिसिवर की कालाबाज़ारी रोकने के लिए इसका नियंत्रण अपने हाथों में लिया है। डॉक्टर की पर्ची पर ही यह दी जा रही है।
सरकार ने आईसीयू के 650-700 बेड बना लिए हैं और ऑक्सीजन बेड इससे भी ज्यादा हैं।
प्रोफेसर कहते हैं कि सरकार ने कोरोना की चैन तोड़ने के लिए आइवरमेकटीन 12 एमजी की गोली पूरी जनता के बीच बांटने का निर्णय लिया है।
15 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को आइवरमेकटीन की एक गोली तीन दिन तक सुबह शाम खानी होगी।
10-15 वर्ष के बच्चों को यही गोली तीन दिन तक रात में खाना खाने के बाद एक बार लेनी होगी।
इससे कम आयु के बच्चों को और गर्भवती महिलाओं को यह गोली अभी नहीं दी जाएगी।
आइवरमेकटीन लगभग सत्तर लाख लोगों के बीच बांटी जानी है।
इससे एक हफ़्ते बाद कोरोना की यह चैन टूट जाएगी, साथ ही वैक्सिनेशन भी जारी रहेगा।
राम दत्त त्रिपाठी के इस सवाल पर की उत्तर प्रदेश में आइवरमेकटीन दिन में तीन बार के लिए दी जा रही है और उत्तराखंड में दो बार क्यों!
इस सवाल पर प्रोफेसर हेम चन्द्र कहते हैं कि जिन जिलों में 40 प्रतिशत पॉजिटिविटी बढ़ी है वहां दवाई बांटने के लिए डोर टू डोर कॉन्टेक्ट चल रहा है। यह दवाई शरीर में किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं करेगी।
राम दत्त त्रिपाठी पूछते हैं कि चाइना ने कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी पारम्परिक दवाइयों का इस्तेमाल किया है, भारत में भी केरल और तमिलनाडु में यह देखा गया। उत्तराखंड में इस प्रकार की कोई योजना है?
इसका जवाब देते हुए प्रोफेसर कहते हैं कि केस ज्यादा आने की वज़ह से हम उन्हें ही संभाल रहे थे और अभी तक उत्तराखंड सरकार ने इन सब पर कोई क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया है।
अब इस पर बात की जा रही है, हर्बल और आयुर्वेद से बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने की कोशिश की जाएगी।
ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों पर प्रोफेसर कहते हैं कि ब्लैक फंगस हमारे बीच पहले से मौजूद है। यह छूने से नहीं फैलता, जब कोई मरीज़ डायबेटिक हो या उसकी इम्युनिटी कम हो तब यह शरीर पर हमला करता है।
कुछ मामलों में गम्भीर कोरोना मरीज़ पर स्टेरॉइड का इस्तेमाल करने से भी ब्लैक फंगस को शरीर पर हमला करने का मौका मिल जाता है।
ब्लैक फंगस से बचाव के लिए स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। जैसे ऑक्सीजन फ्लोमीटर को दुबारा इस्तेमाल करने से पहले नियमानुसार साफ किया जाना चाहिए और मास्क भी समय-समय पर धोना चाहिए।
इनकी सफाई न होने पर स्वस्थ शरीर पर तो ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता पर कोविड मरीज़ के ब्लैक फंगस जैसी बीमारियों से घिरने की आशंका बनी रहती है।
वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी द्वारा यूट्यूब पर लिए गए इस साक्षात्कार को लिखित रूप हिमांशु जोशी द्वारा दिया गया है।