कोविड पर लोग आँकड़े बन चुके हैं। सरकारें सो रही हैं। ना लॉकडाउन में मरते मज़दूरों, भूखे, पैदल बोझ ढोते बेरोज़गारों पर कुछ मज़बूत कदम उठाए गए और ना ही टेस्टिंग बड़ी तादात में हुईं और ना क्वारंटीन सेंटरों के हाल सुधारे गए। लॉक डाउन के बाद देश और बुरे हाल में है। हम संक्रमण में दसियों लाख पार कर चुके और दुनिया में तीसरे नम्बर पर अपने कोविड -19 के मामले हैं। मगर नेता सरकार बनाने, गिराने में व्यस्त हैं।
मीडिया नेताओं और सरकार की चापलूसी में, और पी एम केयर फंड का ख़ज़ाना कहाँ छुपा कोई नहीं जानता। खर्च शायद विश्व गुरू बनने के बाद नालंदा जैसी युनिवर्सिटी बनाने में तब किया जाएगा।
आप जनता अभी भी हिंदू मुस्लिम खेलो, जमात को गालियाँ दो और नेताओं और सरकार की भक्तf करो। या फिर न्यूट्रल रहो जैसे कभी इंडिगो जैसी कम्पनियों के एम्प्लॉई रहते थे।
आप मानो या ना मानो आप कम्पनियों, मीडिया और सरकार के लिए महज़ आँकड़े हो। आपकी जान आप के खुद के हाथ में है। बाकी सब राम भरोसे।
इन्हीं उलझनों पर कुछ पंक्तियाँ बन गई हैं। आपके सामने रख रहा हूँ।
कोविड के आँकड़े

विधायकों की दौड़ में, तुम्हें कौन देखेगा?
मीडिया के शोर में, तुम्हें कौन सुनेगा?
बच गए तो हज़ारों में, मर गए तो हज़ारों में,
फंसे रहे तो लाखों में, तुम महज़ आँकड़े हो।
वो आँकड़े जो बनाते हो नेता-अभिनेता,
वो आँकड़े जो सियासत की पसंद हो।
जिनसे तुमने उम्मीदें बाँध रखी हैं,
वो किस जगह, जात, मज़हब के हैं?
तुम्हारे या किसी और के, क्या फ़र्क?
सच सुन सको तो सुन कर लिख लो
उन्होंने तुम्हें महज़ आँकड़ों सा समझ
मरने, फंसने या बचने को छोड़ दिया है।
मुहम्मद ज़फ़र
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