अलीगढ़ शराब कांड पर भाकपा ने गहरा रोष जताया
The CPI expressed deep indignation over the Aligarh liquor tragedy.
भाकपा की तीन सालों में हुयी मौतों का श्वेतपत्र जारी करने की मांग
अलीगढ़/लखनऊ- 29 मई 2021, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा कि प्रदेश के अन्य जिलों में जहरीली शराब की मौतों की खबर की स्याही सूखी भी नहीं थी कि जनपद- अलीगढ़ में जहरीली शराब के प्रकोप से अब तक दो दर्जन से अधिक गरीब लोग काल के गाल में समा गये। ये सब गरीब थे, मजदूर थे, सभी जानते हैं कि गरीब ही गरीबी के कारण देशी शराब का सेवन करते हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इन गरीबों की इस भयावह मौतों पर, जिससे दर्जनों लोग अनाथ होगये, गहरी वेदना व्यक्त करती है, और पीड़ित परिवारों को 50 लाख मुआबजे की मांग करती है। वो इसलिये भी कि ये मौतें सरकार प्रायोजित मौतें हैं, और सरकार को इनकी स्पष्ट जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
भाकपा ने कहा कि पहले जहरीली शराब दूर दराज गांवों में कच्ची शराब खींचने वाले अड्डों पर मिलती थी, लेकिन मोदीजी, योगीजी के आत्मनिर्भर विकास का परिणाम यह है कि अब यह धड़ल्ले से सरकार द्वारा आबंटित ठेकों पर मिलती है।
इस साल के पांच महीने अभी पूरे नहीं हुये हैं कि उत्तर प्रदेश के दर्जन भर जिलों में जहरीली शराब सेवन की घटनाओं में मरने वालों की संख्या 100 का आंकड़ा पार कर चुकी है। इन जिलों में प्रमुख हैं- बुलंदशहर, हाथरस, सहारनपुर, चित्रकूट, बदायूं, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, आज़मगढ़, मेरठ और अब अलीगढ़।
अलीगढ़ के भाजपा सांसद ने तो सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि अलीगढ़ में 35, 36 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। सही संख्या अभी आना बाकी है।
भाजपा सरकार के गत तीन साल के शासन में यदि जहरीली शराब से मौतों के कुल आंकड़े जुटाये जायें तो ये संख्या कई सौ तक पहुंचेगी। लेकिन योगी सरकार इन मौतों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं। हृदयविदारक हर घटना के बाद मुख्यमंत्री जी का एक ही बयान आता है कि "कड़ी कार्यवाही की जाये, NSA लगाया जाये" आदि। फिर क्या गोदी मीडिया मुख्यमंत्री जी को कड़कनाथ साबित करने में जुट जाता है, और गरीबों के घर बर्बाद होने की खबर कहीं गहरे दफन हो जाती है। यह असहनीय स्थिति है। अमानवीय है, राक्षसी प्रवृत्ति है।
भाकपा ने आरोप लगाया कि जहरीली शराब बिक्री की ये वारदातें इसलिये नहीं थम रहीं कि यूपी में शराब का अधिकाधिक कारोबार भाजपा से जुड़े लोगों के हाथों में पहुंच गया है। जो भाजपाई न थे, उन्होंने भी शासक दल से दिव्य रिश्ते बना लिये हैं।
माफियाओं के एक एक सिंडीकेट ने कई-कई दर्जन बेनामी ठेके हथिया रखे हैं, जिन पर वे भयमुक्त हो जहरीली शराब बेचा करते हैं। स्थानीय प्रशासन को अलग से मैनेज किया जाता है। महाभ्रष्टाचार के इस महागठबंधन की गाज अंततः गरीबों पर गिरती है।
भाकपा ने कहा कि अब भाजपा सरकार की बार-बार आंखों में धूल झौंकने वाले झांसों से काम नहीं चलेगा। षड़यंत्र का पर्दाफाश होना चाहिये।
भाकपा ने मांग की है कि उच्च न्यायालय के जजों के एक पैनल को तीन साल में हुयी मौतों का लेखा जोखा तैयार कर श्वेतपत्र जारी करने का दायित्व दिया जाना चाहिए। वरना लिकर कोरोना का यह तांडव थम पायेगा, कहना मुश्किल है।