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विशद कुमार : पटना
आज 18 मार्च 2021 को भाकपा-माले, अखिल भारतीय किसान महासभा व खेग्रामस के संयुक्त तत्वावधान में किसान - मजदूर महापंचायत का आयोजन गेट पब्लिक लाइब्रेरी, गर्दनीबाग, पटना में किया गया। इस कार्यक्रम में माले महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य के सहित महागठबंधन के नेताओं ने भी भाग लिया।
कार्यक्रम में दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के नेता गुरनाम सिंह भिखी व युवा किसान नेता नवकिरण नट भी शामिल रहे।
महापंचायत में निम्न 10 राजनीतिक प्रस्ताव पर चर्चा हुई और इसे पारित करने की मांग की गई।
1. मोदी सरकार द्वारा लाए गए किसान व देश विरोधी तीनों कृषि कानून न केवल हमारी खेती को कॉरपोरेटों का गुलाम बना देंगे, बल्कि खाद्य सुरक्षा, जनवितरण प्रणाली, पोषाहार सरीखी योजनाओं को भी खत्म कर देंगे। इनकी भारी मार गरीबों-मजदूरों पर भी पड़ेगी. राज्य के कोने-कोने से आज हजारों की तादाद में पटना पहुंचे किसान-मजदूरों की यह महापंचायत इन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने तथा बिहार विधानसभा से इनके खिलाफ प्रस्ताव पास करने की मांग करती है।
2. मोदी सरकार के क्रूरतम हमलों व किसान आंदोलन को सत्ता के द्वारा लगातार बदनाम करने की साजिशों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए देशव्यापी किसान आंदोलन ने चौथे महीने में प्रवेश कर लिया है। सरकार नहीं चाहती है कि गैर-खेतिहर नागरिक व किसानों के बीच कोई एकता निर्मित हो। किसान आंदोलन को अलगाव में डालने के इरादे से सरकार तमाम संवैधानिक कायदे-कानूनों का उल्लंघन करके किसानों के साथ-साथ उनके आंदोलन के समर्थन में उतर रहे नागरिक आंदोलनों के कार्यकर्ताओं के भी दमन पर तुली है। आज की महापंचायत मोदी सरकार के इस तानाशाही रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए किसान आंदोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों के और अधिक सक्रिय एकता के निर्माण का आह्वान करती है। महापंचायत किसान आंदोलन सहित न्याय व अधिकार के आंदोलन में जेल में बंद तमाम लोगों की रिहाई की मांग करती है।
3. यह महापंचायत संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आगामी 26 मार्च को आयोजित भारत बंद का पुरजोर समर्थन करती है तथा उसे एक ऐतिहासिक बंद में तब्दील कर देने का आह्वान करती है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह के पंजाब से उठ खड़ा किसान आंदोलन स्वामी सहजानंद सरस्वती व रामनरेश राम जैसे किसान नेताओं की सरजमीं बिहार में नया आवेग व विस्तार पा रहा है। आज की महापंचायत बिहार के घर-घर व गांव-गांव तक इस आंदोलन को फैला देने का आह्वान करती है।
4. 2006 में सत्ता में आते ही नीतीश सरकार ने एपीएमसी एक्ट को खत्म कर बिहार के किसानों से सरकारी मंडियां छीनकर उन्हें बाजार के हवाले कर दिया। यदि सरकारी मंडियों को खत्म कर देने से किसानों का भला होता तो आज सबसे अच्छी स्थिति में बिहार के किसान होते, लेकिन हालत ठीक उलटी है। अपने राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान अथवा अन्य फसलों की खरीददारी बेमानी है. यहां के किसान 900-1000 रु. प्रति क्विंटल की दर से धान बिचैलियों व व्यापारियों के हाथों बेचने को मजबूर हैं। किसानी की बुरी हालत के कारण राज्य से गरीबों का पलायन बदस्तूर जारी है। धीरे-धीरे करके व्यापार मंडल, एफसीआई, एसएफसी आदि सभी संस्थाएं निष्क्रिय व कमजोर कर दी गई हैं। आज की महापंचायत न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने, कृषि बाजार समितियों को पुनर्जीवित करने तथा एपीएमसी एक्ट की पुनर्बहाली की मांग करती है।
5. किसान आंदोलन में फूट डालने के इरादे से मोदी सरकार आज भूमिहीन-बटाईदार किसानों के बीच भ्रामक प्रचार फैलाकर उनकी हितैषी होने का स्वांग कर रही है। लेकिन हम सब जानते हैं कि किसानों के इस तबके की सबसे बड़ी विरोधी भाजपा है। भूमिहीन-बटाईदार किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का कोई लाभ नहीं मिलता। बिहार की भाजपा-जदयू सरकार बहुत पहले बटाईदारों को न्यूनतम कानूनी अधिकार देने से भाग खड़ी हुई है। आज की महापंचायत भूमिहीन-बटाईदार किसानों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ देने तथा बटाईदारों के निबंधन की प्रक्रिया आरंभ करने की मांग करती है।
6. रेलवे, हवाई जहाज, बीमा, कृषि के साथ-साथ सरकार अब सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण का खेल खेल रही है। निजीकरण की प्रक्रिया हमारे रोजगार के अवसरों व सामाजिक सुरक्षा पर एक बड़ा हमला है। देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण से किसानों, छात्र-नौजवानों, गरीबों को मिलने वाले सारे कर्जे बंद हो जाएंगे और वे निजी मालिकों के अधीन हो जाएंगे। आज की महापंचायत से हम निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाने तथा सार्वजनिक संस्थाओं के तंत्र को और भी चुस्त-दुरूस्त करने की मांग करते हैं।
7. आज की महापंचायत युवाओं के लिए सम्मानजनक रोजगार तथा आशा-आंगनबाड़ी-रसोइया-शिक्षक अर्थात सभी स्कीम वर्करों के लिए ठेका प्रथा व आउटसोर्सिंग खत्म कर स्थायी रोजगार देने की मांग करते हुए उनके आंदोलन का समर्थन करती है, तथा श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी किए गए संशोधनों को वापस लेने की मांग करते हुए सभी संघर्षशील ताकतों के बीच एक बड़ी एकता के निर्माण का आह्वान करती है।
8. भूख से लगातार होती मौतें बेहद चिंताजनक हैं। सुपौल में आर्थिक तंगी के कारण एक ही परिवार के 5 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की सूची में भारत 103 वें स्थान पर होने के बावजूद मोदी सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों से इथेनाॅल जैसे अखाद्य पदार्थों का निर्माण भूख से जूझती देश की जनता को मार देने की साजिश के अलावा कुछ नहीं है। बिहार सरकार भी खद्य पदार्थों से इथेनाॅल बनाने का फैसला ले चुकी है। महापंचायत बिहार सरकार से ऐसे गरीब विरोधी व भूख के दायरे को बढ़ाने वाले निर्णयों को राज्य में लागू नहीं करने की मांग करती है।
9. बिहार सरकार द्वारा सोशल मीडिया को नियंत्रित करने, आंदोलनों में शामिल समूहों को सरकारी नौकरी व ठेका न देने के फरमान और राजधानी पटना सहित पूरे राज्य में प्रतिवाद के न्यूनतम अधिकारों को कुचलने की साजिशों का पुरजोर विरोध करती है।
10. ड्रैकोनियन शराबबंदी कानून के असली माफिया खुद सरकार में बैठे हैं, लेकिन गरीबों को फांसी की सजा दी जा रही है। अतः आज की महापंचायत में शराब के कारोबार में लिप्त मंत्री रामसूरत राय को बर्खास्त करने और शराबबंदी कानून के नाम पर जेलों में बंद हजारों गरीबों की तत्काल रिहाई की मांग करती है।