Advertisment

जमींदार होने के बावजूद प्रजाजनों के पक्ष में खड़े होने वाले रवींद्र को पढ़ना समझना आज सबसे ज्यादा जरूरी है

author-image
hastakshep
07 Aug 2020
रवीन्द्र नाथ टैगोर ने मनुष्यता में कभी अपना विश्वास नहीं खोया

भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका के राष्ट्रगान के रचयिता (Creator of the National Anthem of India, Bangladesh and Sri Lanka) इस महाद्वीप के पहले आधुनिक महाकवि, सामाजिक यथार्थ के चित्रकार, अपने गीत संगीत के जरिये करोड़ों स्त्रियों की जिजीविषा बने साहित्य में एशिया के पहले नोबेल विजेता रवींद्र नाथ टैगोर की आज पुण्यतिथि है।

Advertisment

इस अवसर पर महात्मा गांधी ने जिन्हें गुरुदेव कहा था, जिन्होंने शांतिनिकेतन के माध्यम से विश्वभर में सबसे पहले अनौपचारिक शिक्षा को संस्थागत बनाया था, उन रवींद्र नाथ को प्रेरणा हस्तक्षेप परिवार की ओर से शत शत प्रणाम।

रवींद्र नाथ टैगोर उस अंध राष्ट्रवाद के विरुद्ध थे, जिसके शिकंजे में भारतीय जनमानस आज फंसा हुआ विविधता और बहुलता के उस लोकतन्त्र को खत्म करने पर तुली धर्म जाति वर्ग सत्ता को मजबूत बना रहा है। रवीन्द्र का सारा रचनाकर्म और सम्पूर्ण जीवन जिसे। समर्पित था।

रूस की चिट्ठी में उन्होंने खुलकर किसानों, मजदूरों, मेहनतकशों की समाजवादी सत्ता की वकालत की है।

Advertisment

अपने गीतों में, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों में स्त्री स्वतंत्रता की बात की और स्त्री को जीवन का आधार दिया। पुरोहित तन्त्र के विपरीत धर्मस्थलों की दीवारो में कैद ईश्वर की मुक्ति के लिए गीतांजलि लिखी।

अस्पृश्यता के खिलाफ चण्डलिका में बुद्धम् शरणम् गच्छामि  का उद्घोष किया। जमींदार होने के बावजूद प्रजाजनों के पक्ष में खड़े होकर लालन फकीर के दर्शन को अपनाया।

इस रवींद्र को पढ़ना समझना आज सबसे ज्यादा जरूरी है।

पलाश विश्वास

Advertisment
सदस्यता लें