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Cucumber of Northeast is a storehouse of Vitamin A
नई दिल्ली, 29 जुलाई (उमाशंकर मिश्र): हमारे आसपास पोषक खाद्य पदार्थों की विस्तृत श्रृंखला होने के बावजूद जागरूकता के अभाव में हम उनसे प्रायः अनभिज्ञ ही बने रहते हैं। भारत के विविध क्षेत्रों में पोषक गुणों से भरपूर ऐसे कई खाद्य उत्पाद पाए जाते हैं, जिनकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने के कारण उनके सेवन से मिलने वाले पोषण और स्वास्थ्यवर्द्धक लाभ से हम वंचित रह जाते हैं। पूर्वोत्तर में पाया जाने वाला नांरगी गूदे वाला खीरा (orange-pulled cucumber found in the Northeast) ऐसा ही एक खाद्य उत्पाद है।
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि देश के अन्य हिस्सों में उगायी जाने वाली खीरे की सफेद गूदे की किस्मों के मुकाबले नारंगी-गूदे वाले खीरे की किस्म कैरोटीनॉयड सामग्री (प्रो-विटामिन-ए) के मामले में चार से पाँच गुना अधिक समृद्ध होती है।
पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों में बहुतायत में पायी जाती है नारंगी-गूदे वाले खीरे की यह किस्म
पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों में नारंगी-गूदे वाले खीरे की यह किस्म (Orange-fleshed cucumber) बहुतायत में पायी जाती है। स्थानीय लोग खाद्य पदार्थ के रूप में नारंगी गूदे वाले खीरे का सेवन सब्जी या फिर चटनी के रूप में करते हैं। खीरे की इस प्रजाति को मिजोरम में 'फंगमा' और 'हमाजिल' और मणिपुर में 'थाबी' कहते हैं।
जानिए कैरोटीनॉयड्स क्या है ? What are carotenoids?
कैरोटीनॉयड्स, जिसे टेट्राटरपीनोइड्स भी कहा जाता है, पीले, नारंगी और लाल कार्बनिक रंगद्रव्य को कहते हैं। यह पौधों एवं शैवाल के साथ-साथ कई बैक्टीरिया और कवक द्वारा उत्पादित होते हैं। कैरोटीनॉयड्स को कद्दू, गाजर, मक्का, टमाटर, कैनरी पक्षी, फीनिकोप्टरिडाए कुल के पक्षी फ्लेमिंगो, सालमन मछली, केकड़ा, झींगा और डैफोडील्स को विशिष्ट रंग देने के लिए जाना जाता है।
यह अनुमान लगाते हुए कि पौधों का नारंगी रंग उच्च कैरोटीनॉयड के कारण हो सकता है, शोधकर्ताओं ने खीरे की किस्म की विशेषताओं और उसके पोषक तत्वों का विस्तार से अध्ययन करने का निर्णय लिया।
पूर्वोत्तर का खीरा
नारंगी गूदे वाले खीरे की किस्मों ने शोधकर्ताओं का ध्यान उस वक्त आकर्षित किया, जब वे नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research - आईसीएआर) से संबद्ध नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीपीजीआर) में खीरे के देसी जर्मप्लाज्म भंडार की विशेषताओं का अध्ययन कर रहे थे।
शोधकर्ताओं ने मणिपुर और मिजोरम से नारंगी खीरे के नमूने एकत्र किये हैं।
एनबीपीजीआर के शोधकर्ताओं का कहना है कि “बहुत सारे ऐसे फल उपलब्ध हैं, जो दैनिक रूप से बीटा कैरोटीन/कैरोटीनॉयड के अनुशंसित सेवन को सुनिश्चित कर सकते हैं। हालांकि, वे विकासशील देशों में गरीबों की पहुँच से बाहर हो सकते हैं। जबकि, खीरा पूरे भारत में सस्ती कीमत पर उपलब्ध है। कैरोटेनॉयड से समृद्ध स्थानीय फसल किस्मों की पहचान और उपयोग निश्चित रूप से पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में हमारे प्रयासों में बदलाव ला सकता है।"
इस अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने मिजोरम से प्राप्त खीरे की तीन किस्मों (IC420405, IC420422 एवं AZMC-1) और मणिपुर से प्राप्त एक किस्म (KP-1291) को दिल्ली स्थित एनबीपीजीआर के कैंपस में उगाया है। इसके साथ ही, उत्तर भारत में प्रमुखता से उगायी जाने वाली खीरे की सफेद गूदे वाली किस्म पूसा-उदय को भी उगाया गया है।
खीरे की दोनों किस्मों में कुल शर्करा का स्तर एक समान पाया गया है, और खीरे की सामान्य किस्म के मुकाबले नारंगी गूदे वाली किस्म में एस्कॉर्बिक एसिड (ascorbic acid) की थोड़ी अधिक मात्रा दिखाई देती है।
शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि खीरे के विकसित होने के विभिन्न चरणों में उसमें पाये जाने वाले कैरोटीनॉयड का स्तर भिन्न होता है।
उन्होंने पाया कि नारंगी गूदे वाली खीरे की किस्म जब सलाद के रूप में खाये जाने योग्य हो जाती है, तो इसमें कैरोटीनॉयड की मात्रा सामान्य किस्म की तुलना में 2-4 गुना अधिक होती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिक परिपक्व होने पर नारंगी गूदे से युक्त इस खीरे में सफेद खीरे की तुलना में 10-50 गुना अधिक कैरोटीनॉयड सामग्री हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने इसके स्वाद का आकलन करने के उद्देश्य से 41 व्यक्तियों को नारंगी गूदे वाले खीरे को चखाकर उसके स्वाद को स्कोर देने के लिए कहकर इसके स्वाद की स्वीकार्यता का मूल्यांकन किया है। सभी प्रतिभागियों ने खीरे की अनूठी सुगंध और स्वाद की सराहना की और यह स्वीकार किया कि इसे सलाद या रायते के रूप में खाया जा सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उच्च कैरोटीनॉयड से युक्त खीरे का सीधे सेवन करने के साथ-साथ इसका उपयोग खीरे की किस्मों में सुधार के लिए किया जा सकता है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ. प्रज्ञा रंजन, अंजुला पांडे, राकेश भारद्वाज, के.के. गंगोपाध्याय, पवन कुमार मालव, चित्रा देवी पांडे, के. प्रदीप, अशोक कुमार (आईसीएआर-एनबीपीजीआर, नई दिल्ली); ए.डी. मुंशी और बी.एस. तोमर (आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) शामिल थे। अध्ययन के परिणाम जेनेटिक रिसोर्सेज ऐंड क्रॉप इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।
(इंडिया साइंस वायर)
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