काली मिर्च की खेती : काले मोतियों की खेती से धीरे-धीरे बदल रही बस्तर के आदिवासियों की ज़िंदगी

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hastakshep
19 Sep 2022
काली मिर्च की खेती : काले मोतियों की खेती से धीरे-धीरे बदल रही बस्तर के आदिवासियों की ज़िंदगी

बस्तर की आदिवासी महिला किसान राजकुमारी मरकाम ने लिखी सफलता की नई इबारत..

बस्तर की आदिवासी महिला में जागा विश्वास, राजकुमारी अब बड़े पैमाने पर करेंगी काली मिर्च की खेती..

40 किलो काली-मिर्च को ₹500 किलो की दर से बेचकर तत्काल कमाए ₹20 हजार..

काला-मोती यानी कि काली-मिर्च की अब इस अंचल में अब बड़े पैमाने पर होगी खेती..

बस्तर के सात गांवों के किसानों ने जैविक खेती, हर्बल खेती तथा वृक्षारोपण का लिया संकल्प..

बस्तर (छत्तीसगढ़) 19 सितंबर 2022 (शंकर नाग). देश के सबसे पिछड़े तथा दुर्गम क्षेत्रों में अग्रणी माने जाने वाले बस्तर के, कोंडागांव जिला मुख्यालय से लगभग 43 किलोमीटर दूरस्थ विकास खंड माकड़ी के ठेमगांव, ओंडरी गांव, उदेंगा गांव, लुभा गांव, जडकोंगा गांव तथा काटागांव आदि सात गांवों के प्रगतिशील किसान बीते शुक्रवार ग्राम जड़कोंगा में एकत्र हुए। विषय था जैविक पद्धति से ज्यादा मुनाफा देने वाले औषधीय पौधों की खेती के जरिए क्षेत्र के किसानों की आमदनी कैसे बढ़ाई जाएयहां कुछ महत्वपूर्ण बातें देखने में आईं।

नंबर -1 यह कि इन सातों गांवों से आए सभी प्रगतिशील किसान शत-प्रतिशत पढ़े लिखे थे।

नंबर- 2 ये सभी किसान शत-प्रतिशत मूल आदिवासी परिवारों से हैं।

नंबर - 3 खेती में यहां की महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, बराबर की हिस्सेदारी कर रही हैं।

(इसके लिए इस क्षेत्र की जनप्रतिनिधि भूतपूर्व जनपद पंचायत अध्यक्ष जानो बाई मरकाम का विशेष योगदान रेखांकित करना चाहूंगा।)

नंबर -4 इन सातों गांवों के सभी प्रगतिशील किसानों ने बिना किसी हिचक के, एकमत होकर जैविक खेती व हर्बल खेती तथा वृक्षारोपण कार्यक्रम में भाग लेने का संकल्प लिया।

नंबर- 5 इन पांचों गांवों के 5 पद प्रगतिशील किसानों ने इसी वर्ष से जैविक पद्धति से अश्वगंधा की खेती (ashwagandha cultivation) करने का भी संकल्प लिया। इन किसानों को "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" द्वारा अश्वगंधा की खेती की तकनीकी जानकारी (Technical information of Ashwagandha cultivation) तथा अश्वगंधा की उन्नत प्रजाति के बीज निशुल्क प्रदान किए गए।

अश्वगंधा के बीजों का वितरण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के हाथों करवाया गया।

इसी क्षेत्र में "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" के सहयोग तथा मार्गदर्शन में राजकुमारी मरकाम ने कुछ वर्षों पूर्व "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" से निःशुल्क प्राप्त काली मिर्च की MDBP-16 प्रजाति के पौधों (MDBP-16 species of pepper plants) को अपने घर के पिछवाड़े की बाड़ी में स्थित साल के पेड़ों पर MDBP-16 प्रजाति के काली मिर्च के पौधों का रोपण किया था।

उसी साल अर्थात सरगी के 20 पेड़ों पर चढ़ी हुई काली मिर्च की लताओं से उन्होंने इस साल 40 किलो सूखी काली मिर्च प्राप्त किया तथा उसे "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" के साझा मार्केटिंग प्लेटफार्म के जरिए ₹500 किलो की दर से ₹20 हजार रुपए में बेचा तथा तत्काल भुगतान प्राप्त किया।   

काली मिर्च की इस सफल खेती को देखने के लिए अंचल के सात गांवों के प्रगतिशील किसानों ने राजकुमारी मरकाम की काली मिर्च की खेती (Cultivation of black pepper) का मौके पर जाकर निरीक्षण किया तथा वहां काली मिर्च से लदे हुए साल के पेड़ों को भी देखा और काली मिर्च के साथ ही साथ इन्ही साल के पेड़ों के नीचे सफलतापूर्वक की जा रही हल्दी की खेती को भी देखा।

राजकुमारी मरकाम जैसी नवाचारी महिला किसान की सफलता को अपनी आंखों से देख कर, सभी किसानों ने अपनी बाड़ी तथा खेतों में पहले से ही लगे हुए पेड़ों पर तथा ऑस्ट्रेलियन टीक के नए पेड़ लगाकर, उनके ऊपर काली मिर्च चढ़ाने और साथ ही साथ इन पेड़ों के नीचे अन्य उच्च लाभदायक औषधीय पौधों की खेती करने का संकल्प लिया है। 

सफल महिला किसान राजकुमारी मरकाम तथा उनके पति संतूजी ने कहा कि इन पौधों को बिना एक पैसा भी लिए, हमें निशुल्क देने के लिए तथा इसको लगाने से लेकर, पैदा की गई काली मिर्च के मार्केटिंग तक हर कार्य के लिए हमें सहयोग देने के कारण, इस सफलता का पूरा श्रेय हमारे मार्गदर्शक भाई साहब (डॉ राजाराम त्रिपाठी) तथा इनके मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथियों को देते हैं।

इस अवसर पर "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" के संस्थापक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने उपस्थित किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि यहां के किसानों के प्रयासों से इस क्षेत्र में हो रही काली मिर्च की बंपर पैदावार तथा उसकी बेहतरीन गुणवत्ता को देखते हुए, मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस नई प्रजाति की काली-मिर्च अथवा इस बहुमूल्य काले-मोती की खेती से इस क्षेत्र के किसानों की किस्मत चमकेगी तथा उनकी आमदनी में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। यहां पर नारी शक्ति अर्थात महिलाओं का खेती में योगदान बहुत ही उत्साहजनक है और वह दिन दूर नहीं जब इस क्षेत्र को हर्बल बास्केट के नाम से जाना जाएगा।

उल्लेखनीय है कि काली मिर्च की इस प्रजाति के पौधों को ऑस्ट्रेलियन टीक के पौधों पर चढ़ा कर इसकी विधिवत खेती कर बस्तर के कई किसान एक एकड़ से कम से कम ₹5 लाख रुपए सालाना तथा उससे ज्यादा भी कमा रहे हैं।

यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि इस प्रजाति के पौधे को एक बार लगाने पर यह कम से कम 50 साल तक काली मिर्च की भरपूर फसल देती है। और यह उत्पादन भी हर साल बढ़ता जाता है।

इस कार्यक्रम को सफल बनाने मुख्य रूप से जानो बाई मरकाम भूपू अध्यक्ष माकड़ी जनपद, धनीराम नेताम ग्राम-प्रमुख पटेल ,गोपाल भरकाम-उप सरपंच ग्राम पंचायत-जड़कोंगा , लच्छुराम महावीर पूर्व उप सरपंच ग्राम पंचायत.उदेंगा , रती राम पोयाम - मां दन्तेश्वरी के पुजारी, रूपसिंह मण्डावी - पूर्व सरपंच ग्राम पंचायत ठेमगांव तथा प्रगति शील किसान राजकुमारी मरकाम, संतू राम मरकू, बन्धुलाल मरकाम काटागाँव, महेना नेताम ग्राम ओंडरी, आसमन नेताम ग्राम लुभा नयापारा,बुधुराम नेताम, बन्सू सोरी ग्राम उदेंगा, पिलाराम सोरी , कैलाश मरकाम,सोमनाथ मरकाम,हिरामन सोरी,सोमनाथ मरकाम,लच्छीनाथ सोरी सहित बड़ी संख्या में किसान भाईयों की उपस्थिति तथा सक्रिय भागीदारी रही।    

कार्यक्रम के अंतिम दौर में जानो बाई मरकाम ने बस्तर अंचल के किसानों की हर तरह से सतत मदद करने तथा मार्गदर्शन के लिए सदैव तत्पर रहने वाली बस्तरिया किसानों की संस्था "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" की सराहना करते हुए, उसके प्रति क्षेत्र के सभी किसानों तथा आदिवासी परिवारों की ओर से आभार व्यक्त किया, साथ ही अन्य गांवों से आए सभी जन प्रतिनिधियों, प्रगतिशील किसानों को धन्यवाद देते जैविक खेती तथा हर्बल खेती की नई शुरुआत की सफलता हेतु शुभकामनाएं प्रदान किया।

उन्होंने कहा कि अगर हम सब मिलकर डाक्टर साहब के बताए मार्ग पर कदम से कदम मिलाकर चलें तो हम लोग हमारे इस क्षेत्र के लिए, अपने प्रदेश के लिए तथा अपने देश के लिए नई इबारत लिख सकते हैं।

यह जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई।

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