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Currently, Brazil has the highest death rate from Corona, there is also racial dictatorship like America.
भारत में मीडिया फ्रांस के जन विद्रोह की खबर क्यों दबा रहा है ? | Why is the media in India suppressing the news of the French uprising?
अपने ताज़ा पोस्ट में न्यूयार्क से डॉक्टर पार्थ बनर्जी (Doctor Partha Banerjee from New York) ने कोरोना की आड़ में मुसलमानों के खिलाफ भारतीय सत्ता वर्ग के घृणा अभियान (Indian ruling class hatred campaign against Muslims under the cover of Corona) को निराधार बताया। उन्होंने साफ साफ लिखा कि यह गलत प्रचार है कि कोरोना मुसलमानों की वजह से फैला।
डॉ बनर्जी का कहना है कि मुसलमानों की वजह से कोरोना फैलता तो मुस्लिम देशों में कोरोना (Corona in Muslim countries) ज्यादा तेजी से फैलता। जबकि सच यह है कि एकमात्र ईरान ही ऐसा मुस्लिम देश है, जहां लोग कोरोना से काफी ज्यादा मरे। बाकी देशों में कोरोना से मरने वालों की संख्या ज्यादा है।
सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका, इंग्लैंड और ब्राजील में हुई हैं। इटली, स्पेन और फ्रांस में हुई हैं। जो मुस्लिम देश नहीं हैं। हां नस्ली असमानता के शिकार रोजगार और चिकित्सा से वंचित अश्वेत ज्यादा मारे गए।
Jair Bolsonaro follows Donald Trump on coronavirus
डॉ बनर्जी के मुताबिक इस वक्त कोरोना से मृत्यु दर सबसे ज्यादा ब्राज़ील में है। वहां भी अमेरिका की तरह नस्ली तानाशाही है। ब्राजील के तानाशाह बोलसोनारो (Brazilian dictator Bolsonaro) ट्रम्प की तरह अश्वेतों और गरीबों के सफाये की नीति पर चल रहे हैं। पृथ्वी की सेहत के लिए जरूरी बारिश लाने वाले जंगल को तबाह कर रहे हैं और कोरोना से निपटने के बहाने नागरिकों के अधिकार, कायदा कानून और मानवाधिकार खत्म करने के लिए सेना को उतारने की बात कर रहे हैं।
गौरतलब है कि इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका में नस्ली भेदभाव के खिलाफ जो आंदोलन दुनिया भर में फैल रहा है, वह इसी नरसंहार संस्कृति के खिलाफ है। फ्रांस में तो फ्रांसीसी क्रांति की तरह मजदूर और मेहनतकश तबका सड़कों पर हैं और दुनिया भर में बुद्धिजीवी उनके समर्थन में सड़कों पर हैं। भारत में मीडिया फ्रांस के जन विद्रोह की खबर (News of french mass rebellion) दबा रहा है। अमेरिका, इंग्लैंड और समूचे यूरोप में औपनिवेशिक नस्ली प्रतीकों को हटाने की मुहिम तेज़ है और मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं।
गौरतलब है कि साहित्य और कला में विशुद्धता और विद्वता की शर्त की वजह से नस्ली भेदभाव की बात पर्दे में हैं। तो जीवन के हर क्षेत्र में वंचित वर्ग का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। समूचा बुद्धिजीवी वर्ग रंग बिरंगी राजनीति के सत्ता वर्ग से नाभि नाल की तरह नत्थी है। राजनीतिक विरोध के अलावा वे बुनियादी बदलाव के लिए कतई तैयार नहीं है और हर मुद्दे को कांग्रेस भाजपा की राजनीति के दायरे में रखते हुए असमानता और अन्याय, नस्ली व्यवस्था को कायम रखकर अपना वर्ग हित जाति हित एक दूसरे को फासिस्ट बताकर साबित कर रहे हैं।
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महानगरों के ऐश-ओ-आराम में सुरक्षित यह कुलीन बुद्धिजीवी वर्ग गरीबों, मजदूरों की बात करते हुए महान साहित्य और महान कला का सृजन तो कर सकते हैं लेकिन उनकी सारी कोशिश यथास्थिति को बनाये रखने की है।
The underprivileged of India do not have an organic intellectual of their own
भारत के वंचितों का अपना कोई ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी वर्ग नहीं है जो उनके हक हक़ूक़ की लड़ाई में उनके साथ सड़क की लड़ाई में अमेरिका और यूरोप की तरह या बांग्लादेश, नेपाल की तरह भी खड़ा हो।
डॉ बनर्जी विश्वविख्यात शिक्षाविद हैं और मशहूर अमेरिकी चिंतक नोआम चॉम्स्की के अंतरंग हैं। वे खुद चाहते हैं कि हिंदी समाज दुनिया की हलचल और फासिस्ट तानाशाही के असली चेहरे को पहचाने।
पलाश विश्वास
बंगला में लिखा डॉ बनर्जी का ताजा अपडेट
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ব্রেজিল এখন করোনাভাইরাসে সর্বাপেক্ষা দ্রুত মৃত্যুর হার দেখছে। এই মুহূর্তে আমেরিকার মৃত্যুসংখ্যার পরেই (১১৬,০৬৩) দ্বিতীয় সর্বোচ্চ মৃত্যুর স্থানে ব্রিটেন (৪১,২৭৯) ও ব্রেজিল (৪১,০৫৮)। সেখানে শাসকরা এবারে মিলিটারি নামানোর কথা ভাবছে জনরোষ সামাল দেওয়ার জন্যে। পুরোনো খেলা।
কেন ব্রেজিলের এই অবস্থা হলো? কারণ সেদেশের ক্ষমতা এখন ট্রাম্পের আর এক অবতারের হাতে। ভুল বললাম, ঈশ্বরের অবতার হয়। ট্রাম্প ঈশ্বর নন। মানুষকে যদি ঈশ্বর সৃষ্টি করে থাকেন, তাহলে আর একজন আছেন, যিনি মৃত্যুর, ভয়ের, বিভীষিকার, রোগের, ঘৃণা, হিংসার, মিথ্যার এজেন্ট। সর্বনাশের প্রতিনিধি। ইনি তাই। তার অবতার বলসেনারো। যিনি আমাজন রেনফরেস্ট ধ্বংস করে দিচ্ছেন। আদিম উপজাতিগুলোকে শেষ করে দেওয়ার খেলায় মেতেছেন।
ভারতেও তাদের অবতাররাই এখন রক্ষক ও ভক্ষক।
ব্রিটেনে কেন এই শোচনীয় অবস্থা ঠিক আমেরিকার মতো? কারণ এই সবগুলো দেশেই বিজ্ঞানবিরোধী, নিষ্ঠুর, কেবলমাত্র মুনাফাকেন্দ্রিক, নিয়ন্ত্রণহীন ইঙ্গ-মার্কিন মডেলের পুঁজিবাদ ক্ষমতায় গেড়ে বসেছে। যে সিস্টেমে সাধারণ মানুষের জীবনের কোনো দাম নেই।
অথচ, যেসব দেশে করোনাভাইরাস তেমনভাবে তার করাল থাবা বসাতে পারেনি, তাদের কথা আমাদের মিডিয়া বলেনা। যেমন, জাপান ও ভিয়েতনামের মতো ঘনবসতিপূর্ণ জনসংখ্যার দেশ। জাপানে মৃত্যু ৯২০, ভিয়েতনামে ০, জনবহুল কম্বোডিয়া ও লাওসে ০, বর্মাতে ৬। যেমন, নেপাল -- মাত্র ১৬। যেমন, কিউবা (৮৪), অথবা ভেনেজুয়েলার (২৩) মতো সোশ্যালিস্ট দেশ। অথবা, ভারতে কেরালার মতো রাজ্য।
অথবা, বিভিন্ন পুঁজিবাদী দেশ -- যেখানে মার্কিন মডেল বর্জন করে এক জনমুখী, কল্যাণকামী রাষ্ট্র গড়ে তোলা হয়েছে। যেমন, ক্যানাডা (মৃত্যুসংখ্যা ৮০০০), নরওয়ে (২৪২), আয়ারল্যান্ড (১৭০০), অস্ট্রেলিয়া (১০২), নিউজিল্যান্ড (২২), জার্মানি (৮৮০০), এবং আফ্রিকার প্রায় সব দেশ।
জনসংখ্যার ধুয়ো চলবেনা, কারণ বিপুল জনসংখ্যার জাপান, ভিয়েতনাম, বর্মা, মরক্কো, মিশর এসব দেশে করোনাভাইরাস মহামারীর চেহারা নেয়নি। আমেরিকায় নিয়েছে। ব্রেজিল, ব্রিটেনে নিয়েছে। কারণ সেখানে রাষ্ট্র মানুষের দায়িত্ব অস্বীকার করেছে। অর্থনীতিকে দেউলিয়া করে অতি ধনিকশ্রেণীর হাতে ও কর্পোরেশনগুলোর হাতে তুলে দিয়েছে।
এই আলোচনাটা মিডিয়া করছেনা। এবং হোয়াটস্যাপ ইউনিভার্সিটি ও আইটি সেলের গোয়েবলসরা মিথ্যা প্রোপাগাণ্ডা ছড়িয়ে যাচ্ছে আর এক ভাইরাসের মতো। মানুষ কোনো কিছু যাচাই না করে তাদের কথাই গিলছে।
আর ও হ্যাঁ, একটা কথা বলা হয়নি। মুসলিম দেশগুলোতে কিন্তু ইরান ছাড়া প্রায় সর্বত্রই মৃত্যুসংখ্যা নগণ্য। ওই লাইনের কুৎসাও তাই ধোপে টিঁকবে না।
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#ParthaBanerjeePost
June 12, 2020
Brooklyn, New York