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कृषि कानूनों व किसान आंदोलन पर राजनीतिक पार्टियों का खेल
नई दिल्ली, 20 मार्च 2021. एक नए घटनाक्रम में सभी राजनीतिक दलों ने आंदोलनरत किसानों की आंखों में धूल झोंक दी है। संसदीय समिति ने सरकार से कहा है कि वह 3 में से एक कृषि कानूनों को प्रभावी करे।
इंडियन एक्सप्रेस की 20 मार्च, 2020 की खबर “Cutting across party lines, House panel tells govt to give effect to 1 of 3 farm laws” के अनुसार शुक्रवार को संसद में खाद्य, उपभोक्ता मामले व सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर गठित स्टैंडिंग कमेटी (The Standing Committee on Food, Consumer Affairs and Public Distribution) की रिपोर्ट सदन में पेश कर दी गयी है। स्टैंडिंग कमेटी ने सरकार द्वारा लाये गये 3 कृषि कानूनों (Farm Laws) में से आवश्यक वस्तु ( संशोधन ) कानून 2020 (the Essential Commodities (Amendment) Act, 2020), को यथावत लागू करने की सरकार को संस्तुति की है।
इस स्टैंडिंग कमेटी में 13 राजनीतिक पार्टियों जिनमें कांग्रेस टीएमसी, एनसीपी, शिव सेना, आप, भाजपा, डीएमके, जद (यू ), नेशनल काँफ्रेंस, पीएमके, समाजवादी पार्टी, वाईएसआरसीपी से चुने हुए (लोक सभा के 23 व राज्य सभा के 10) सांसद हैं। इन पार्टियों में से अधिकांश की स्थिति तीनों कानूनों के विरुद्ध है। कांग्रेस चाहती है कि सरकार इन कानूनों को निरस्त करे। कांग्रेस इन कानूनों की वापसी को जोर-शोर से किसानों के समर्थन करते हुए उठा रही है। अन्य दल ने भी किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए अलग-अलग वक्तव्य दिये हैं। कृषि कानूनों पर इन सभी राजनीतिक दलों के घोषित पक्ष हैं।
ख़बर के मुताबिक समिति के सुझावों को कार्यकारी अध्यक्ष अजय मिश्रा टेनी भाजपा सांसद की अध्यक्षता में स्वीकार किया गया ! टीएमसी के सुदीप बंधोप्पाध्याय इस समिति के अध्यक्ष हैं। समिति के अध्यक्ष सुदीप बंधोपाध्याय किन्हीं “अप्रत्याशित कारणों” से 18मार्च को हुयी समिति की अंतिम बैठक में शामिल नहीं हुए।
समिति ने रिपोर्ट को प्रस्तुत करते हुए कहा “आशा और उम्मीद है कि हाल ही लाया गया ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020’ जो कि कृषि उत्पाद के मुद्दे को संबोधित करने के उद्देश्य से लागू किया गया था, कृषि क्षेत्र में विशाल अप्रयुक्त संसाधनों को अनलॉक करने के लिए उत्प्रेरक बन जाएगा। यह कृषि क्षेत्र मे उन्नत निवेश के लिए …, कृषि विपणन में उचित और उत्पादक प्रतिस्पर्धा और किसानों की आय में वृद्धि के लिए एक वातावरंण तैयार करेगा।”
इसलिये समिति ने सरकार को “आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को अक्षर और आत्मा में लागू करने और बिना किसी बाधा के लागू करने की सिफारिश की, ताकि इस देश में किसानों और कृषि क्षेत्र के अन्य हितधारकों को लाभ प्राप्त हो।” आवश्यक वस्तु कानून – मूल्य वृद्धि के कारण व प्रभाव की पर रिपोर्ट में कहा गया है कि ”हालांकि देश ज्यादातर कृषि जिंसों में अधिशेष हो गया है, लेकिन कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रसंस्करण और निर्यात में निवेश की कमी के कारण किसानों को बेहतर कीमत नहीं मिल पाई हैं, जैसा कि उद्यमियों ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में नियामक तंत्र द्वारा हतोत्साहित किया जाना है।“
इस रिपोर्ट में कहा गया है, “जब बम्पर फसलें होती हैं तो किसानों को भारी नुकसान होता है, खासतौर पर खराब होने वाली वस्तुओं पर, जिनमें से अधिकांश को पर्याप्त प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ कम किया जा सकता है”।
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसानों के विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर तीन कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक के बाद आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम को लागू करने के लिए समिति की सिफारिश की गयी है। अन्य दो कानून किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, और मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अधिनियम, 2020 पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) पर कोई निर्णय केन्द्र की सरकार ने नहीं लिया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक अन्य समिति द्वारा सरकार द्वारा लाये गये नये कृषि कानूनों पर अगले कुछ दिनों में अपनी सिफारिशें देने की उम्मीद है। सरकार और आंदोलनकारी किसान यूनियनों के बीच कई दौर की बातचीत कानूनों पर बने गतिरोध को खत्म करने में नाकाम रही है।
समिति ने सरकार से कहा है कि “सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर निरंतर निगरानी रखें।" यह देखते हुए कि आलू, प्याज और दाल जैसे खाद्य पदार्थ एक आम आदमी के दैनिक आहार का हिस्सा हैं, और उन लाखों लोगों को जिन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का लाभ नहीं मिलता है, कानूनों के कार्यान्वयन के बाद प्रतिकूल रूप से पीड़ित हो सकते हैं।
अब सवाल ये है कि क्या ये सभी राजनीतिक दल इस समिति की रिपोर्ट से अनभिज्ञ हैं ? या जानते हुए चुपी साधे हुए हैं। हालांकि एक्सप्रेस की ख़बर इस बात का उल्लेख नहीं करती है कि समिति की बैठक में कौन-कौन सदस्य शामिल थे और यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ या मतदान से।
जगदीप सिंधु
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