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दिल्ली चुनाव और महिलाएं : विश्लेषण
Delhi Elections and Women: Analysis
इंडियन एक्सप्रेस में छपा लोकनीति सीएसडीएस का डाटा एनालिसिस (Data analysis of Lokniti CSDS) बता रहा है कि आप की जीत में जेंडर गैप (Gender Gap in "AAP" Victory) जितना बड़ा रहा है इससे पहले अब तक देश के किसी चुनाव में नहीं देखा गया.
The women of Delhi deserve credit for the victory
मालूम हो कि 1998 से ही सीएसडीएस राज्य चुनावों तक के सारे विवरणों का डाटा एनालिसिस करता रहा है. इसलिए ये बड़ी बात है जब वो बताते हैं कि ये देश में पहली बार हुआ है कि धर्म और वर्ग से ऊपर उठ कर दिल्ली कि महिलाओं ने आप को चुना है जबकि पुरुष बीजेपी कांग्रेस और आप के बीच बंटे रहे.
हालांकि महिलाओं के साथ साथ युवाओं कि भी पहली पसंद “आप” रही है, इसके बावजूद ये तय है कि इस जीत का सेहरा दिल्ली की महिलाओं के नाम ही बंधा है हालांकि अब अगर बात करें की कितनी महिला विधायक 70 सदस्यों की विधानसभा में अपनी जगह बना पाईं तो वो केवल 8 हैं जोकि सिर्फ और सिर्फ आप से हैं.
मेरे लिए आप की जीत का ये पहलू काफी दिलचस्प है क्योंकि पिछले चुनाव में जब आप जीती थी उसका मत प्रतिशत महिलाओं के बीच 19 फीसदी था जबकि इस बार ये 60 फीसदी से ऊपर है. इसलिए ये तो तय है कि आप ने लगातार महिलाओं को संबोधित करते हुए जो कैंपेन चलाया उसने उन्हें सीधे तौर पर प्रभावित किया. इन आंकड़ों में एक और बात ध्यान देने वाली है कि दलित, ब्राह्मण और ओबीसी महिलाओं और पुरुषों के बीच आप को वोट डालने वालों के प्रतिशत में जबरदस्त अंतर है.
जैसे दलित महिलाओं का प्रतिशत आप के पक्ष में 85 फीसदी से ज्यादा है जबकि यही मत प्रतिशत ब्राह्मण महिलाओं में 19 फीसदी से नीचे है, ज़ाहिर है ऐसे में ये बात सीधे-सीधे समझ आती है कि आप की महिलाओं को बस की टिकट फ्री करने कि नीति ने उन्हें काफी राहत दी है.
इस आधार पर ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर मेट्रो राइड महिलाओं के लिए फ्री करने में आप को सफलता मिलती और केंद्र ने अपना रोड़ा सीधे तौर पर ना अटकाया होता तो ये मत प्रतिशत आप के हक में और अधिक हो सकता था.
हालांकि ब्राह्मण महिलाओं का 19 फीसदी से नीचे वोट इस बात की ओर सीधा इशारा है कि अब भी आप, ब्राह्मण महिलाओं को अपनी नीतियों से जोड़ने में बहुत हद तक सक्षम नहीं हुई है, इसकी वजह भी साफ है कि इकॉनोमी और सोशल स्पेस में अब तक मध्य वर्गीय महिला को सीधा लाभ देने वाली कोई योजना आप की तरफ से नहीं दी गई.
फिर भी ये देखना सुखद आश्चर्य है कि कम से कम दिल्ली के अंदर महिलाओं ने अपने संवैधानिक अधिकार को पति और परिवार की चौहद्दी से बाहर भी आजमाना शुरू कर दिया है.
हम औरतें जो लगातार सोशल मीडिया में सक्रिय होकर सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं, अक्सर इस असमंजस में रहते हैं कि हमें कोई सुन भी रहा है या नहीं, एक जनविरोधी सरकार के केंद्र में होने और लोकतांत्रिक संस्थाओं के लैंगिक मुद्दों पर लगातार असंवेदनशील होते जाने की वजह से कई बार लगता है, कि हम सब किसी निर्वात में या अपनी ही आवाज़ की गूंज में जिंदा रहने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे इको चैंबर्स जैसी थियरीज पूरी तरह से सही भी ठहराती हैं.
पर दिल्ली कि जीत का ये जनादेश बताता है कि कुछ भी निर्वात में नहीं हो रहा, वो सब कुछ जो अभी अदृश्य महसूस हो रहा है, भविष्य में दृश्य बन कर उपस्थित हो सकता है.
सधे हुए राजनीतिक कदम अब भी इस देश को संकट के इस दौर से बाहर निकाल कर बहुत कुछ सकारात्मक दे सकते हैं .
जया निगम
(लेखिका पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)