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नारी मुक्ति संघ की संस्थापक शीला दीदी को अविलंब और बिना शर्त रिहा करने की मांग
Demand for immediate and unconditional release of Sheela Didi, the founder of Nari Mukti Sangh
रांची से विशद कुमार. नारी मुक्ति संघ कोल्हान प्रमण्डल (झारखण्ड) की प्रवक्ता फूलो बोदरा ने एक प्रेस बयान जारी कर वृद्ध महिला नेत्री, वरिष्ठ नागरिक और नारी मुक्ति संघ की संस्थापक और पूर्व अध्यक्षा कामरेड शीला दीदी को अविलंब और बिना शर्त रिहा करने की मांग की है।
20 नवंबर 2021 को जारी किए गए प्रेस बयान में कहा गया है कि झारखण्ड के सबसे बड़े महिला संगठन नारी मुक्ति संघ की संस्थापक और पहली अध्यक्ष कामरेड शीला दीदी, उम्र लगभग 61 वर्ष, उनके जीवन साथी और चार अन्य को 12 नवंबर, 2021 को सरायकेला-खरसावां पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वह उच्च रक्त चाप, लेफ्ट वेंट्रीकुलर हाईपोट्रोपी, थाईरायड की बीमारी हाइपो थायराइडीजम, ओस्टीयाप्रोसिस व गठिया से पीड़ित हैं। 2006 में उनकी एक बार गिरफ्तारी के दौरान पुलिस की मार से उनका एक कान भी खराब हालत में था। हमारा संगठन स्वास्थ्य कारणों व महिला मुक्ति व महिला अधिकारों के लिए उनके कार्यों के आधार पर उन्हें बिना शर्त व अविलंब रिहा करने की मांग करता है।
वक्तव्य में कहा गया है कि कामरेड शीला दीदी महिला अधिकारों के लिए संघर्ष महिला नेत्री हैं। एक गरीब संथाल आदिवासी परिवार में पैदा हुई, 1980 के दशक के शुरू में वह क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़ीं और 1991 में नारी मुक्ति संघ का गठन कर गिरिडीह जिला में अपना कार्य आरंभ किया और जमीन्दारों के उत्पीड़न, वन विभाग के अधिकारियों व ठेकेदारों के जुल्म के खिलाफ महिलाओं को संगठित किया। उस समय गांव के जमीन्दार कुछ महिलाओं को रखैल के रूप में रखते थे। आदिवासियों का पूरा परिवार, छोटे बच्चे सहित उनके यहां बंधुआ मजदूरी करते थे।
कामरेड शीला दीदी के नेतृत्व में लड़े गये जुझारू जन-संघर्षों की वजह से ही आदिवासी औरतों का आर्थिक व लैंगिक शोषण खत्म हुआ, ठेकेदारों व वन विभाग के उत्पीड़न का अंत हुआ। उत्तरी छोटानागपुर से शुरू कर उनका आन्दोलन दक्षिणी छोटानागपुर, संथाल परगना व पलामू प्रमण्डल तक फैला।
उनके डायन-बिसाही के विरूद्ध चलाए गये जागरूकता अभियानों व संघर्षों की वजह से ही इन संघर्ष के इलाकों में डायन के नाम पर मार-पीट व हत्याओं में कमी आई है, जबकि झारखण्ड के अन्य इलाकों में यह महिला उत्पीड़न का बड़ा कारण बनी हुई है।
उनके नेतृत्व में जंगल सुरक्षा के लिए, लकड़ी तस्करों व भ्रष्ट वन विभाग के अफसरों के खिलाफ किया गया आन्दोलन, 'चिपको' आन्दोलन जैसे आन्दोलन से कहीं ज्यादा बड़ा आन्दोलन था। 'जंगल सुरक्षा' के लिए आन्दोलन जलवायु परिवर्तन से जुझती मानवता के लिये मुक्तिमार्ग है। दहेज प्रथा- दहेज हत्या, बाल विवाह -रासगदी जैसे कुप्रथाओं के खिलाफ संघर्ष आधुनिक बिहार-झारखण्ड के इतिहास का न मिटा सकने वाला हिस्सा है।
वक्तव्य में कहा गया है कि सैकड़ों 'शिविर - विवाह' बगैर सामंती रीति-रिवाज व दहेज के बिना आयोजित हुए हैं। बहुत सी अंतर जातीय शादियां बिना किसी समस्या व पूरी सामाजिक मान्यता के साथ सम्पन्न हुई हैं। बिहार-झारखण्ड में व्याप्त सामंती संस्कृति जाति प्रथा आदि पर बड़ा प्रहार था। यही कारण है कि का. शीला दीदी झारखण्डी महिलाओं के खास कर संथाल, उरांव, हो, मुण्डा आदि आदिवासी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं। ताउम्र महिला मुक्ति, महिला अधिकार के लिए लड़ने वाली महिला को उम्र के इस पड़ाव में पुरस्कृत करने के बजाए, जेल में डाल कर स्वास्थ्य सुविधाओं व बिना किसी मदद के रखना भारतीय शासक वर्गों का महिला विरोधी, बुजुर्ग विरोधी, आदिवासी विरोधी व जन विरोधी चरित्र को ही दर्शाता है।
उनकी बीमार हालत को देखते हुए वक्तव्य में आशंका जताई गई है कि फादर स्टेन स्वामी जैसे उनकी भी जेल में संस्थागत हत्या की जा सकती है। आज भी भारतीय जेलों में हजारों गरीब आदिवासी, दलित बुजुर्ग बीमार हालत में पड़े हैं। जिन्हें न कोई इलाज मिलता है और न ही कोई मदद। यह बुजुर्ग बंदियों के मानव अधिकारों का घोर हनन है। भारतीय शासन, न्याय व्यवस्था के घोर सामंती चरित्र को दर्शाता है।
नारी मुक्ति संघ ने मांग की है कि उन्हें तुरंत स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जाएं, उन्हें प्रोटिन व कैलसियम वाला पोष्टिक आहार, उनकी दवाईयां उपलब्ध कराई जाएं। उनकी गिरफ्तारी के विरोध में विभिन्न महिला संगठनों, मानव अधिकार संगठन, बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्थाएं, जनवादी संगठन सामने आएं और उनकी रिहाई के लिए देश व्यापी प्रदर्शन, जुलूस- रैली, आम सभाएं, हस्ताक्षर अभियान, गोष्ठियां आदि का आयोजन करके यह साबित करें कि का. शीला दीदी की गिरफ्तारी से महिला मुक्ति और सामंतवाद - साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलन नहीं रूकेगा, बल्कि आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य को जरूर हासिल करेगा।