/hastakshep-prod/media/post_banners/QL2B4AwM7MbrymoaFZX5.jpg)
हाल के कुछ सालों में विज्ञान और तकनीक में नई एक शाखा शामिल हुई है। इसे जैव-प्रेरित तकनीक (bio-inspired technology) कहा जाता है। इसमें पौधों और जंतुओं के गुणधर्म और व्यवहार, विशेष रूप से उनके रक्षा के तौर-तरीकों से प्रेरित होकर नई तकनीकें विकसित की जाती हैं।
यह लगभग 10 साल पहले की बात थी जब वैज्ञानिक यह समझ पाए थे कि गुरुत्वाकर्षण के बावजूद छिपकली छत पर उल्टी चिपककर कैसे दौड़ पाती है, गिरती नहीं। छिपकली के हाथ-पैर की हथेलियों पर लाखों छोटे-छोटे रोम उपस्थित होते हैं। इससे सतह पर बहुत हल्का आकर्षक बल लगता है जिसे वॉण्डर वॉल्स बल कहते हैं। उंगलियों में स्थित हर रोम और दीवार के बीच लगने वाला बल तो न के बराबर होता है, लेकिन एक साथ हंजारों-लाखों की तादाद में रोम हों, तो कुल बल काफी शक्तिशाली हो जाता है। यदि इन रोमों की हजामत कर दी जाए तो छिपकली चल नहीं पाएगी। इस समझ के आधार पर वैज्ञानिक चिपकने वाली टेप तैयार करने में सक्षम हुए थे।
इसी तरह कोकलेबर (गोखरू) पौधे से प्रेरित होकर स्विस इंजीनियर जॉर्जडी मेस्ट्रल ने वेल्क्रो का अविष्कार किया। भारत में यह पौधा तमिलनांडु के मदुराई क्षेत्र (तमिल में इसे मारूलिमथाई कहा जाता है) में पाया जाता है। इस पौधे में छोटी-छोटी गेंदों जैसे बहुत-से फूल पाए जाते हैं। हर फूल के चारों ओर छोटी पिन के समान संरचना होती है। इन पिननुमा रचनाओं की मदद से ये फूल हमारे कपड़ों और मोंजों पर चिपक जाते हैं। डॉ. मेस्ट्रल ने इस पौधे की संरचना और गुणधर्म का अध्ययन करके वेल्क्रो डिंजाइन किया।
कंटीला सुअर यानी पिर्क स्पिन या मुल्लाम पनरी, येडू पान्डी या साही
इसी क्रम में नई प्रेरणा साही नामक जंतु से मिली। सेही (अंग्रेज़ी:Porcupine in Hindi) अथवा साही के शरीर की पीठ वाली सतह पर 30,000 से ज्यादा कांटे होते हैं। यह नाम शायद फ्रेंच भाषा से आया है। फ्रेंच में इसे पिर्क स्पिन यानी कंटीला सुअर कहते हैं। भारत में तमिल में इसे मुल्लाम पनरी, तेलगू में येडू पान्डी और हिन्दी में साही कहते हैं।
अपने दुश्मन या शिकारी पर हमला करने का सेही का तरीका बहुत घातक है। यह जंतु तेज गति के साथ अपने लक्ष्य पर वार करता है और हमला करते समय यह अपने आपको पीछे की ओर मोड़ लेता है। इसके कारण इसके कांटे शत्रु के शरीर में ज्यादा गहराई तक जाते हैं।
कैसी होती है साही के कांटे की संरचना ?
सेही के कांटे की संरचना (Porcupine thorn structure) बहुत अनोखी होती है, यह त्वचा को आसानी से भेदता है लेकिन वापिस निकलते समय यह बहुत दर्दनाक होता है।
हार्वर्ड के डॉ. जेफ्री कार्प और एमआईटी के राबर्ट लैंगर को साही के कांटों वाले पहलू ने आकर्षित किया था। इससे आकर्षित होकर उन्होंने 26 दिसम्बर 2012 के अंक में एक पर्चा प्रकाशित किया था। सबसे पहले उन्होंने कांटे का सूक्ष्म निरीक्षण किया। इसके लिए एमिशन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (emission electron microscope) का इस्तेमाल किया गया।
उन्होंने पाया कि सेही के कांटों की नोक अत्यंत नुकीली, फचर के आकार की होती है। नोक की सतह पर पीछे की ओर मुंडे हुए बारीक कंटक होते हैं। ये कंटक कुछ हद तक एक-दूसरे पर चढ़े होते हैं। कांटे की नोक से जितने दूर जाएंगे ये कंटक बडे होते जाते हैं। कांटे का नुकीला सिरा आसानी से भेदने का काम करता है। मगर जब कांटे को बाहर निकालने की बात आती है, तो हर कंटक गति का प्रतिरोध करता है क्योंकि उल्टी दिशा में चलाने पर ये कंटक खुल जाते हैं और चमड़ी व अंदर के ऊतक से चिपक जाते हैं। ऐसे में जब इन्हें खींचकर बाहर निकाला जाता है तो ये काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इस संरचना की वजह से अंदर घुसने की क्रिया आसान और बाहर निकलने की क्रिया दर्दनाक हो जाती है।
एक बार इस दर्द का सामना हो जाने के बाद शत्रु किसी साही के पास फटकने की हिम्मत नहीं करेगा।
शोधकर्ताओं ने कांटे का इस्तेमाल करके मांसपेशीय ऊतकों में कांटे के भेदने और निकालने के बल को मापा। भेदने में 0.3 न्यूटन यूनिट बल की आवश्यकता थी, वहीं निकालने में 0.44 न्यूटन बल लगा था। जबकि इसकी तुलना में कंटकहीन अफ्रीकन साही के कांटों के बल को मापा गया तो पाया कि इसके भेदने में 0.71 न्यूटन बल लगता है। इससे यह पता लगता है कि कांटे का नुकीलापन आसानी से भेदने की क्षमता रखता है। लेकिन अफ्रीकन कंटकहीन साही के कांटे को निकालना ज्यादा आसान था। इसमें मात्र 0.11 न्यूटन बल लगा था बजाय 0.44 न्यूटन के। और जब इन दोनों स्थितियों में ऊतकों की क्षति को मापा, तो पता चला कि कंटकहीन कांटे की बजाय कंटकयुक्त कांटे को अंदर घुसने में कम ऊर्जा की आवश्यकता पड़ी। इसलिए यह ज्यादा अंदर तक जाता है मगर घुसते समय इसके कारण ऊतकों को क्षति कम होती है। दूसरी ओर, जब कंटकयुक्त कांटा निकलता है, तो यह ज्यादा दर्दनाक होता है और काफी क्षति पहुंचाता है।
तो मन में विचार आता है कि क्यों न पॉलीमर्स का इस्तेमाल कर संश्लेषित कांटे (Synthetic forks using polymers) बनाए जाएं (जैसे पॉलीयूरेथेन की मदद से) और इसके प्रभावों की वास्तविक कांटों से तुलना की जाए? इस विचार के साथ शोधकर्ताओं ने कंटकयुक्त औरक पॉलीयूरेथेन कांटे बनाए और एक प्रोटोटाइप हाइपोडमक सुई (Prototype Hypodamp Needle) बनाई।
वास्तविक कांटे की तरह ही, कंटकहीन पॉलीयूरेथेन की अपेक्षा कंटकयुक्त पॉलीयूरेथेन सुई ऊतकों से ज्यादा अच्छी तरह चिपकी।
शोधकर्ताओं का निष्कर्ष यह है कि इस तरह की जैव-प्रेरित पॉलीमर पट्टियां (Bio-inspired polymer bandages) ऊतकों को जोड़ने में मददगार हो सकती है।
सेही का समागम कैसे होता है? | How does the meeting of Sehi take place?
अंत में अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि साही इन कांटों के साथ जोड़ा कैसे बनाते हैं और बच्चे कैसे पैदा करते हैं।
एक स्वीकार करने योग्य जवाब यह है कि नर और मादा दोनों अपने पिछले पैरों से एक-दूसरे तक पहुंचते होंगे। फिर ये दोनों पेट आमने-सामने करके खड़े रहते हैं, इसके बाद मादा अपना पिछला हिस्सा नर की तरफ मोड़ देती है और नर अपनी पूंछ उसके पिछले हिस्से पर फैला देता है। यह समागम कुछ मिनट का ही होता है फिर मादा के गर्भ में बच्चा पलता है और जन्म लेता है।
डॉ. बी बालसुब्रमण्यम
मूलतः देशबन्धु में प्रकाशित लेख का किंचित् संपादित रूप साभार
Did you know that the stitches are inspired by porcupine thorns!