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diego maradona
अपने खेल कौशल का इस्तेमाल सामाजिक और समानता की स्थापना तथा दुनिया को अन्याय-अत्याचार-मुक्त करने में करने वाले दुनिया के एथलीट एक्टिविस्ट की कहानी
इमरान वर्सेस इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी (Imran vs Imran: The Untold Story) सोहो, हिटलर इन लव विद मैडोना (Hitler in love with madonna) जैसी विचारोत्तेजक किताबों के लेखक और नाट्यकार फ्रैंक हुजुर, उन विरल लेखकों में एक हैं,जिनकी सोच और लिविंग स्टाइल हिंदी पट्टी के लेखकों से बहुत अलग है. वह भारतीय उपमहाद्वीप के परम्परागत दकियानूस विचारों से पूरी तरह मुक्त और मॉडर्न विचारों से लैस हैं. ऊम्र में प्रायः युवा फ्रैंक हुजुर की साहित्य, राजनीति, खेलकूद, फिल्म-संगीत इत्यादि पर समझ सुखद आश्चर्य से भर देती है. उनसे मिलकर हर बार नयी ऊर्जा से भरने के साथ नयी जानकारियों से समृद्ध होने का अवसर मिलता है. इसलिए थोड़े-थोड़े अन्तराल के मध्य उनसे मिलने के मौके तलाशता रहता हूँ. उनसे नए साल के शुरुआत में ही मिलने का अवसर मिला था, किन्तु कुछ दिन पूर्व अचानक उनका कॉल आ गया. उन्होंने कहा, ‘अकेले हूँ और आपसे कुछ जरुरी मुद्दों पर जी भर कर बात करना चाहता हूँ, इसलिये यदि समय हो तो आ जाएं’!
मैं खुद भी कुछेक दिनों से उनसे मिलकर उनकी नयी किताब ‘सोशलिस्ट मुलायम सिंह यादव : नेताजी की राजनीतिक जीवन यात्रा’ के लिए बधाई देने का मन बना रहा था. लिहाजा जब कॉल आया, बाकी जरूरी काम छोड़कर हामी भर दिया और शाम गहराते- गहराते उनके आवास पर पहुँच भी गया. मुलाकात होते ही मैंने नेताजी वाली किताब के लिए बधाई देने के साथ ही उसे दिखाने का आग्रह किया और जब उन्होंने यह किताब मुझे थमाई, इसकी प्रोडक्शन क्वालिटी देखकर अभिभूत हुए बिना न रह सका.
पिछले कुछ दिनों से लगातार इस किताब से जुड़ी तरह– तरह की रोचक जानकारियां मेरे व्हाट्सप आ रही थीं, इसलिए इसके प्रति भारी उत्सुकता पैदा हो गयी थी. किताब थमाने के बाद फ्रैंक पीने-खाने का इंतजाम करने और मैं इस पर नजर दौड़ाने में व्यस्त हो गया.
मुझे बड़ी से बड़ी किताब का जायजा लेने के लिए 15 से 20 मिनट काफी होते हैं. इसलिए फ्रैंक की नयी किताब पर पंद्रह से बीस मिनट नजर दौड़ाने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे बिना न रह सका कि 36 अध्यायों में बंटी और कई विशिष्ट राजनीतिक और बौद्धिक शख्सियतों के साक्षात्कार से समृद्ध 464 पृष्ठीय यह किताब नेताजी पर आई तमाम किताबों में बेहद खास होने जा रही है.
इसके बाद मैंने फ्रैंक को गले लगाकर फिर एक बार इस महत्वपूर्ण किताब के लिए बधाई दी.
थोड़ी देर बाद हम हाई वॉल्यूम में पुराने फ़िल्मी गानों का आनंद लेते हुए ड्रिंक और डिनर में मशगूल हो गए. खाने-पीने के बाद नेताजी वाली किताब सहित विभिन्न मुद्दों पर जो चर्चा का सिलसिला चला, उसमें हमें पता ही न चला कब सुबह हो गयी. बहरहाल तरह-तरह की चर्चा के दौरान एक ऐसा समय आया जब वह फुटबॉलर डिएगो माराडोना (Diego Maradona) का जिक्र छेड़ दिए.
डिएगो माराडोना की मेसी और रोनाल्डो से तुलना
चूँकि माराडोना का मैं कभी प्रशंसक नहीं रहा, इसलिए उस पर चर्चा केन्द्रित होने से मैं बोर होने लगा. फिर भी वह रौ में आकर उसकी तारीफ में मशगूल रहे. मैंने विषयांतर के लिए मेसी और रोनाल्डो का जिक्र छेड़ दिया. वर्तमान दौर के दो ग्रेटेस्ट फुटबॉलरों का जिक्र छिड़ते ही उनके चेहरे पर एक अजीब उपेक्षा का भाव आ गया. उन्होंने शिकायत भरे लहजे में कहा, ‘मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है, आपने माराडोना को समझने का शायद गंभीरता से प्रयास नहीं किया है, इसलिए मेसी और रोनाल्डो को तुलना में खड़ा कर दिए. मेरा मानना है माराडोना महज एक फुटबॉलर के तौर पर भी दोनों से बेहतर रहे. लेकिन उनकी पहचान एक ग्रेट फुटबॉलर से बहुत आगे की रही. उन्होंने सामाजिक परिवर्तन, समानता और न्याय के लिए अपनी हैसियत का जैसा इस्तेमाल किया, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है! वह सोशल जस्टिस के चैम्पियन रहे, यह बात कम से कम आप जैसे लेखक को तो जरूर जाननी चाहिए थी.’ उसके बाद उन्होंने माराडोना को सामाजिक न्याय चैम्पियन साबित करने के लिए दृष्टान्तों की झड़ी लगा दी और मैं स्तब्ध होकर सुनता रहा. यह मेरे जीवन की शायद ऐसी पहली घटना थी, जब सामने वाला वाला एक वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी के पक्ष में अपनी युक्ति खड़ा करता रहा और मैं महज श्रोता बनकर सुनता रहा! ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि मैं इटली पाओलो रोसी और रोबर्तो बज्जियो प्रचंड फैन होने के नाते कभी माराडोना के प्रति श्रद्धाशील न हो सका, उनके प्रति पोषण किया तो सिर्फ ईर्ष्या का भाव. अतः खेल से इतर उनकी नकारात्मक गतिविधियों को छोड़कर उनके सकारात्मक पक्ष से अवगत होने का कोई प्रयास नहीं किया, इसीलिए जान नहीं पाया कि वह सामाजिक न्याय के कितने बड़े हिमायती रहे, समाज को बदलने के लिए एक मंच के रूप में अपनी स्थिति और प्रतिष्ठा का किस हद तक उपयोग किया! लेकिन सचाई यही है कि वह एक बड़े एथलीट एक्टिविस्ट रहे, जिन्होंने फुटबॉल में अर्जित अपनी ख्याति का इस्तेमाल सिर्फ अपने देश के दबे-कुचले वंचित लोगों के हित में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण लैटिन अमेरिका के लिए किया. आइये देखते हैं, इस मामले में वह दूसरे चर्चित एथलीट एक्टिविस्ट्स के समक्ष कहाँ ठहरते हैं.
खेलों की दुनिया में जहां ज्यादा एथलीट यश और धन अर्जित करने में जुटे रहते हैं, वहीँ कईयों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल समाज को बदलने और सामाजिक न्याय को स्थापित करने में किया. नस्लभेद के शिकार अफ़्रीकी मूल के कालों की स्थिति कभी नर-पशु जैसी थी. गोरे उनका पशुवत इस्तेमाल करते थे. ऐसे बदतर हालात में जेसी ओवेन्स ने खेलों के विशाल मंच का इस्तेमाल श्वेत श्रेष्ठता को चुनौती देने में किया. 1936 के बर्लिन ओलंपिक में एक काले गुलाम के पोते और आबनूस से भी काले जेसी ओवेन्स ने ट्रैक-एंड-फील्ड में चार-चार गोल्ड मैडल जीतकर श्वेत चर्म की श्रेष्ठता के परखचे उड़ा दिए.
बर्लिन ओलंपिक (berlin olympics) में अडोल्फ़ हिटलर को यकीन था कोई आर्य-रक्त वाला ही फहराएगा अपनी श्रेष्ठता का परचम. किन्तु जेसी ओवेन्स ने उसमें एक नहीं चार-चार गोल्ड जीतकर कर आर्य- रक्त की श्रेष्ठता को म्लान करने का जो करिश्मा किया, मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए हिटलर.
उसके बाद जेसी ओवेन्स से प्रेरित होकर कालों ने गोरो पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए खेलों को माध्यम बनाना शुरू किया.
अगर जेसी ओवेन्स ने श्वेत चरम की श्रेष्ठता को चुनौती दिया तो महिला टेनिस में दुनिया की नंबर एक बिली जीन किंग ने पुरुष श्रेष्ठता को चुनौती देने के लिए अपने टेनिस रैकेट का इस्तेमाल किया. 1973 में लैंगिक समानता के लिए 39 ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने वाली किंग का आजीवन जुनून दुनिया भर में सुर्खियों में आया जब उन्होंने पूर्व नंबर वन रैंक वाले पुरुषों के टेनिस स्टार और मुखर पुरुष अंधराष्ट्रवादी बॉबी रिग्स से $100,000 की चुनौती स्वीकार किया और उन्हें 6-4, 6-3, 6-3 से हरा कर ऐतिहासिक ‘बैटल ऑफ़ द सेक्सेस’ जीता.
लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय की अग्रणी एक्टिविस्ट और टेनिस इतिहास की महानतम खिलाड़ियों में शुमार बिली जीन किंग ‘महिला टेनिस संघ’ और ‘महिला खेल फाउंडेशन’ की संस्थापक बनीं और ढेरों अन्तराष्ट्रीय सम्मान अर्जित कीं.
अगर महिला टेनिस खिलाडी बिली जीन किंग ने टेनिस में पुरुष खिलाडी को शिकस्त देकर विस्मय सृष्टि किया तो 1927 में अमेरिका के दक्षिण कैरोलिना में एक कपास के खेत में जन्मी, टेनिस की दिग्गज एल्थिया गिब्सन (Tennis great Althea Gibson) ने टेनिस में नस्लीय बाधा को तोड़ दिया, जब वह अमेरिकी नागरिकों में प्रतिस्पर्धा करने वाली किसी भी लिंग की पहली अश्वेत खिलाड़ी बनीं. 1956 में फ्रेंच चैंपियनशिप जीतने वाली पहली अश्वेत खिलाड़ी बनने से पहले उन्होंने जल्द ही विंबलडन में भी ऐसा ही किया. 1958 में उसने इसे फिर से किया. टेनिस अब सभी नस्ल की महिलाओं के लिए मुक्त हो गया!
एथलीट पुरुषों का खेल है, इस बनी-बनाई धारणा को जिसने अपने खेल के जोर से छिन्न-भिन्न करके रख दिया वह अमेरिकी महिला एथलीट मिल्ड्रेड 'बेबे' डिड्रिक्सन ज़हरियास रहीं. वह संभवतः सबसे महान एथलीट रहीं, जिन्होंने नारीत्व पर समाज की अपेक्षा के अनुरूप न मानने वाली महिलाओं की पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया. बेबे एक विश्व स्तरीय गेंदबाज, बेसबॉल खिलाड़ी, बास्केटबॉल खिलाड़ी, तैराक, गोताखोर, मुक्केबाज़, टेनिस खिलाड़ी, बिलियर्ड्स खिलाड़ी और साइकिल चलाने वाली महिला के रूप में खेलों की दुनिया में अपना परचम फहरा दिया. क्लीवलैंड ब्राउन के दिग्गज जिम ब्राउन न केवल सबसे महान दौड़ने वालों में अपना नाम दर्ज करवाया, बल्कि आल टाइम ग्रेटेस्ट फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक के रूप में भी अपनी पहचान स्थापित की. उन्होंने हॉलीवुड में एक सफल कैरियर के लिए संक्रमण किया और कम से कम 1960 के दशक के मध्य से, अमेरिका में चैंपियन नागरिक अधिकारों, मानवाधिकारों और अश्वेत समानता के लिए अपनी सेलिब्रिटी का इस्तेमाल किया. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वह व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रगान के दौरान घुटने नहीं टेकेंगे. उनकी यह घोषणा ही परवर्तीकाल में कॉलिन कैपरनिक के उदय का सबब बनी.
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व एनएफएल स्टार कॉलिन कैपरनिक नैतिक स्टैंड लेने के लिए अपने एथलेटिक प्राइम के बलिदान के वर्षों में मुहम्मद अली और उनके अन्य एथलीट एक्टिविस्टों के कतार में शामिल हो गए. जब अमेरिका में पुलिस की बर्बरता और अश्वेत असमानता का विरोध करने के लिए अगस्त 2016 में शुक्रवार को राष्ट्रगान के दौरान पूर्व क्वार्टरबैक ने पहली बार घुटने टेक दिए, तो इस कदम ने आग की लपटों को छू लिया और मानवाधिकारों पर वैश्विक चर्चा छिड़ गई. वास्तव में उन सभी लोगों की तरह जो पहले आए थे, कैपरनिक का व्यापक रूप से उपहास किया गया था, यहां तक कि कई लोगों द्वारा भी जो सैद्धांतिक रूप से उनके साथ सहमत थे लेकिन उनके विरोध की पसंद को अपमानजनक पाया. हालांकि, जॉर्ज फ्लॉयड के विरोध के मद्देनजर, राष्ट्रीय मिजाज बदल गया है, कैपरनिक को कई हलकों में व्यापक रूप से सही ठहराया गया.
टेनिस की महान मार्टिना नवरातिलोवा को टेनिस इतिहास की सबसे दमदार और सफल खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है. उनकी ताकत, उनकी क्रूर शैली और क्रिस एवर्ट के साथ उनकी महाकाव्यिक प्रतिद्वंद्विता ने महिला टेनिस को अमेरिकी खेल संस्कृति में सबसे आगे लाने में मदद की. वही नवरातिलोवा जब 1981 में न्यूयॉर्क डेली न्यूज के साथ एक साक्षात्कार समलैंगिकता का खुले तौर समर्थन कीं, वह पहली सच्ची सुपरस्टार बन गईं. उस साक्षात्कार ने क्षण भर में तमाम बाधाओं को दूर कर कामुकता और स्वीकृति पर एक राष्ट्रीय चर्चा को गति दी और महिला एथलीटों और एलजीबीटीक्यू लोगों की एक पीढ़ी को सशक्त बनाया.
अफ़्रीकी–अमरीकी मूल के जिन कालों ने अपनी उपलब्धियों और ग्लैमर से लोगों के दिलों पर राज किया, उनमें से एक आर्थर ऐश भी रहे.
पहला यूएस ओपन जीतकर दुनिया को चौंका देने के तुरंत बाद, 25 वर्षीय शौकिया आर्थर ऐश तुरंत स्टार बन गए. एक ज़बरदस्त अफ्रीकी-अमेरिकी एथलीट, ऐश डेविस कप टीम के पहले अश्वेत खिलाड़ी और ऑस्ट्रेलियन ओपन, यूएस ओपन और विंबलडन जीतने वाले आर्थर टेनिस की दुनिया में सर्वोच्च अश्वेत खिलाड़ी का दर्जा हासिल कर लिए. ऐश हृदय की दो बार तथा मस्तिष्क की एक बार सर्जरी होने बाद समय से पहले टेनिस कोर्ट से विदाई ले लिए. किन्तु 1968 में अपनी पहली जीत के समय से, ऐश ने नागरिक और मानवाधिकारों की वकालत करने के लिए अगले 25 साल अपनी शख्सियत का जमकर उपयोग करते हुए बिताए. उन्होंने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के जोर से समाज में मानवाधिकार, जन स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े कार्यों में स्मरणीय योगदान किया.
ऐश को 1988 में यह जानकारी मिली कि वह एचआईवी संक्रमण के शिकार हैं. इलाज के दौरान संक्रमित रक्त चढ़ाये जाने से उन्हें यह संक्रमण हुआ था. ऐश ने 1992 में अपनी बीमारी का सार्वजनिक तौर पर खुलासा कर दिया. बाद में 1993 में एड्स से संबंधित निमोनिया से उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने एड्स को हराने के लिए के लिए ‘आर्थर ऐश फाउंडेशन’ की स्थापना (Establishment of 'Arthur Ashe Foundation') कर इस भयानक रोग के खिलाफ एक युद्ध की शुरुआत की, जिससे इस बीमारी से पीड़ित लोगों इससे लड़ने में भारी मदद मिली.
कई एथलीट एक्टिविस्ट्स ने अपने विश्वास के लिए अपनी अच्छी सार्वजनिक प्रतिष्ठा, अपने एथलेटिक प्राइम्स और यहां तक कि अपने पूरे करियर को त्याग दिया है, लेकिन कुछ ने अपनी जान दी है, जिनमें एक रहे पैट टिलमैन. टिलमैन एरिज़ोना कार्डिनल्स के लिए खेल रहे थे जब उन्होंने 9/11 के आतंकवादी हमलों के तुरंत बाद अमेरिकी सेना में शामिल होने के लिए $3.6 मिलियन का एनएफएल अनुबंध ठुकरा दिया. टिलमैन संभ्रांत सेना रेंजरों में शामिल हो गए और इराक के प्रारंभिक आक्रमण में शामिल रहे; एक ऐसा युद्ध जिसे अब एक टिलमैन के रूप में जाना जाता है जिसे तिरस्कृत और अवैध माना जाता है. अंततः उन्हें अफगानिस्तान में फिर से नियुक्त किया गया, जहां वह लड़ाई में मारे गए. लेकिन मरकर भी उन्होंने एक दृष्टान्त कायम कर दिया.
दुनिया में ढेरो एथलीट एक्टिविस्ट हुए जिन्होंने अपने खेल कौशल का इस्तेमाल सामाजिक और समानता की स्थापना तथा दुनिया को अन्याय-अत्याचार-मुक्त करने में किया. किन्तु इस मामले में जिन्होंने खास पहचान बनाई ,वह रहे ‘द ग्रेटेस्ट’ के रूप में मशहूर. जब बॉक्सिंग चैंपियन कैसियस क्ले जो ईसाइयत छोड़ इस्लाम में दीक्षित होकर मुहम्मद अली बन गए. इसके बाद इसाई गोरों में उनके खिलाफ नफरत का सैलाब पैदा हो गया पर अली तमाम बातों से अविचल रह कर बॉक्सिंग का बादशाह बनने के साथ समाज को सुन्दर बनाने के काम में लगे रहे.वह निर्भय होकर अशेवेतों की मुक्ति की लड़ाई लड़ रहे ब्लैक पैंथर के माल्कॉम एक्स जैसों के साथ मंच शेयर करते रहे. हमेशा मुखर, अली का सबसे विवादास्पद सामाजिक बयान वियतनाम युद्ध के खिलाफ उनका रुख रहा. उन्होंने उस युद्ध में शिरकत करने से इंकार करते हुए घोषणा किया, ’मेरी अंतरात्मा मुझे अपने भाई, या कुछ काले लोगों - कीचड़ में कुछ गरीब भूखे लोगों - बड़े शक्तिशाली अमेरिका के लिए गोली मारने नहीं देगी.’ उन्हें इसके लिए गिरफ्तार किया गया; दोषी ठहराया गया; उनका खिताब छीन लिया गया और उनके करियर के प्रमुख के दौरान वर्षों तक लड़ने का लाइसेंस नहीं दिया गया. किन्तु वह 2016 में अपनी मृत्यु तक एक नागरिक अधिकार और युद्ध-विरोधी कार्यकर्ता बने रहे और सबसे बड़े एथलीट एक्टिविस्ट के रूप अमर हुए.
बहरहाल दुनिया को अन्याय- अत्याचार से मुक्त करने तथा सामाजिक न्याय की स्थापना करने में जेसी ओवेन्स, बिली जीन किंग, अल्थिया गिब्सन, जिम ब्राउन, मार्टिना नवरातिलोवा, कॉलिन कैपरनिक, आर्थर ऐश, मोहम्मद अली इत्यादि ने अद्भुत दृष्टान्त स्थापित किया, उस परम्परा में जैकी रॉबिन्स, जैक जॉनसन, मैजिक जॉनसन, जिम अबॉट, कैथरीन स्विट्जर, वीनस विलियम्स, करीम अब्दुल-जब्बार इत्यादि जैसे सर्वकाल के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों का भी नाम आता है. इन्हीं में से एक माराडोना भी रहे, जिसकी जानकारी मुझे फ्रैंक हुजूर से कुछ दिन पूर्व हुई मुलाकात में मिली.
25 नवम्वर, 2020 को दिल का दौरा पड़ने के कारण महज 60 वर्ष की ऊम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले अर्जेंटीना के डिएगो माराडोना ऐसे अद्भुत खिलाडी रहे जिनका नाम सर्वकाल के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर पेले के साथ उच्चारित होता है. कईयों की नज़रों में तो वह पेले से भी कहीं बेहतर फुटबॉलर रहे.
कैसे बनी डिएगो माराडोना की पहचान
फीफा प्लेयर ऑफ़ द सेंचुरी में सबसे अधिक वोट पाने वाले माराडोना की पहचान 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ किए गए गोल के कारण ‘हैण्ड ऑफ़ गॉड’ के रूप में रही. अस्सी से नब्बे के दशक में फुटबॉल जगत एकछत्र राज करने वाले माराडोना ड्रग और सेक्स स्कैंडल के विवादों में इस तरह घिरे रहे कि मुझे जैसे लोगों की नजरों में उनका एथलीट एक्टिविस्ट वाला चेहरा अगोचर रह गया. किन्तु उनकी इन खूबियों के कारण फ्रैंक हुजुर जैसे लोगों को यह कहने झिझक नहीं होती कि मेसी और रोनाल्डो माराडोना के सामने कुछ नहीं हैं.
बहरहाल फ्रैंक हुजुर से मुलाकात के बाद जब मैंने एथलीट एक्टिविस्ट के रूप में माराडोना को गूगल पर सर्च किया तो विस्मित हुए बिना न रह सका.
‘फुटबॉल के देवता’ से ज्यादा सामाजिक व राजनीतिक न्याय के योद्धा के रूप में याद किए जायेंगे डिएगो माराडोना
गूगल बताता है कि माराडोना ने एक साक्षात्कार में कहा था, ’ क्या मरने के बाद मुझे याद किया जाएगा? शायद वह अपनी विवादित छवि के कारण अपनी लोकप्रियता को लेकर कुछ सशंकित थे! किन्तु जब उनके निधन की खबर आई तो पूरे लैटिन अमेरिका में मातम छा गया. ब्यूनस आयर्स से हवाना तक; साओ पाओलो से सेंटियागो तक, सर्वत्र फुटबाल प्रेमी फुटबॉल के पंडित शोक में डूब गए. कुछ अख़बारों ने लिखा, ’बड़े पैमाने पर दुनिया माराडोना को एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में याद कर सकती है. लेकिन लैटिन अमेरिका में उन्हें अलग तरह से याद किया जायेगा. दुनिया के इस हिस्से में वह ‘फुटबॉल के देवता’ से ज्यादा सामाजिक और राजनीतिक न्याय के योद्धा के रूप में याद किए जायेंगे’.
समय के साथ माराडोना फुटबॉल से जरूर दूर हो गए, किन्तु अपने देशवासियों की चिंता से कभी दूर नहीं हुए. अपने गिरते स्वास्थ्य के मध्य, वह अपने देश, विशेष रूप से गरीबों को तबाह करने वाली महामारी को लेकर अधिक चिंतित रहे. मरने के पहले उन्होंने राष्ट्रपति से सीधे बात करते हुए एक साक्षात्कार में कहा था, ’मुझे अपने राष्ट्रपति (अल्बर्टो फर्नान्डीज़) पर भरोसा है. मुझे बहुत अफ़सोस होता है जब ऐसे बच्चों को देखता हूँ, जिनके पास खाने के लिए कुछ नहीं होता. मुझे पता है भूखे रहना क्या होता है, मुझे पता है खाए बिना दिन बिताना कैसा होता है. मेरी इच्छा अर्जेंटीना के लोगों को हर दिन काम और खाने के साथ खुश देखने की है.’
ब्यूनस आयर्स के उपनगरों में एक झुग्गी में जन्मे माराडोना को महज 9 वर्ष की ऊम्र में एक फुटबॉल प्रतिभा के रूप में ढूंढ निकाला गया था..
1977 में उन्होंने 16 वर्ष की ऊम्र में अर्जेंटीना के लिए खेलना शुरू किया: उनके बाद का इतिहास तो सभी जानते हैं. लेकिन लोकप्रयता की सारी हदें तोड़ने के बावजूद वह कभी नहीं भूले कि वहां कहाँ से उठकर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और स्टारडम हासिल किए.
अपने जूते टांगने के बाद माराडोना सामाजिक और राजनीतिक एक्टिविज्म की ओर बढे और ताउम्र इसे बरक़रार रखे. कालांतर में उनकी निकटता क्यूबा के फिदेल कास्त्रों से हुई, जिन्हें उन्होंने अपने दूसरे पिता का दर्जा दिया था.
कास्त्रो के मार्गदर्शन में माराडोना राजनीतिक रूप से और मुखर हो गए और फुटबॉल की दुनिया को बहुत पीछे छोड़ दिये. 1998 में वेनेजुएला से शुरू करते हुए, जैसे-जैसे लैटिन अमेरिका में वामपंथ ने मोड़ लिया, माराडोना एक व्यस्त व्यक्ति बन गए. एक देश से दूसरे देश में घूमना, चुनावों में प्रचार करना और सामाजिक न्याय के बारे बोलना उनके जीवन की प्रमुख गतिविधियों में शामिल हो गया. वह 2005 में अर्जेंटीना के मार डेल प्लाटा में आयोजित शिखर सम्मलेन में वोल्विया के इवो मोरालेस और वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज के साथ अमेरिका के मुक्त व्यापार क्षेत्र (ऍफ़टीए) को चुनौती देने के लिए शिरकत किए.
एफटीए का विरोध सफल रहा और अमेरिकी प्रस्ताव गिर गया. इसके बाद ‘खुद को पूरी तरह वामपंथी’ घोषित करने वाले माराडोना अमेरिका की धमकियों के खिलाफ लैटिन अमेरिका के पुशबैक के प्रतीक बन गए.
2015 में फुटबॉल में प्रणालीगत भ्रष्टाचार सामने आने के पहले बहुत पहले माराडोना ने फीफा को ‘माफिया’ घोषित किया था. पेले और जीको जैसे अन्य महान खिलाड़ियों के विपरीत, जिन्होंने फुटबॉल या राजनीतिक प्रतिष्ठान को कभी चुनौती नहीं दी, माराडोना ने क्लबों के मुनाफे पर खिलाड़ियों के अधिकारों के लिए बोलना जारी रखा.
माराडोना के विषय में उरुग्वेयन लेखक एडुआर्डो गैलियानों की टिप्पणी
उनके विषय में उरुग्वेयन लेखक एडुआर्डो गैलियानों, जो खुद लैटिन अमेरिका में अन्याय के खिलाफ लिखने वाले इतिहासकार के रूप में प्रसिद्ध रहे (Maradona in the words of Eduardo Galeano,) की यह टिप्पणी बहुत सटीक रही, ’यह माराडोना की आवाज थी जिसने दुनिया भर में सत्ता के लिए असुविधाजनक सवालों को प्रतिध्वनित किया.’
एक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता के रूप में माराडोना का इम्पैक्ट इतना गहरा रहा कि उन्हें एथलीट एक्टिविस्ट के रूप हिस्ट्री के महानतम खिलाडी मोहम्मद अली से भी कुछ बढ़कर बताना अतिश्योक्ति नहीं होगा! बहरहाल इस लेख में आये मोहम्मद अली और माराडोना ही नहीं अन्यान्य महिला और पुरुष एथलीटों के सामाजिक परिवर्तन, समानता और सामाजिक न्याय से जुड़े कार्यों का भारतीय एथलीट एक्टिविस्टों से तुलना करने पर भारी करुणा ही पैदा होती है.
भारत में टॉप फाइव एथलीट एक्टिविस्ट
गूगल के अनुसार भारत में एथलीट एक्टिविस्ट के रूप में पांच टॉप (Top five athlete activists in India) -बॉक्सर मैर्री कॉम, विराट कोहली, अनिल कुंबले, गौतम गंभीर और दीपिका पादुकोण की गोल्फर बहन अनीशा पादुकोण (Deepika Padukone's golfer sister Anisha Padukone) हैं. इनकी गतिविधियों पर नजर दौड़ाने पर जो एक कॉमन बात नजर आती है, वह यह कि ये मुख्यतः पशु प्रेमी हैं, दबे-कुचले गरीब समाजों स्त्री- पुरुष इनकी चिंता से बाहर हैं. भारत के जातीय समाज है जिसमें सदियों से दलित-आदिवासी-पिछड़े और महिलाओं की स्थिति नर- पशु (ह्यूमन कैटल) जैसी रही, आज भी इनकी स्थिति में बहुत बदलाव नहीं आया है. इन समुदायों के लोग आज भी कई बुनियादी मानवीय अधिकारों के साथ शक्ति के स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- से प्राय पूरी तरह बहिष्कृत हैं.
आज हिन्दूराज में दलित और अल्पसंख्यकों के जान की कीमत गाय से भी कम है, यही नहीं भावी हिन्दू राष्ट्र की घोषणा के जरिये देश को कई हजार वर्ष पूर्व की स्थिति में ले जाने का प्रयास हो रहा है, पर, भारत के टॉप क्लास के एथलीट सेलेब्रेटी आँखे मूंदे हुए हैं. ऐसा इसलिए कि इनमें जेसी ओवेन्स, बिली जीन किंग, अल्थिया गिब्सन, जिम ब्राउन, मार्टिना नवरातिलोवा, कॉलिन कैपरनिक, आर्थर ऐश, मोहम्मद अली, रॉबिन्स, जैक जॉनसन,मैजिक जॉनसन, जिम अबॉट, कैथरीन स्विट्जर, वीनस विलियम्स, करीम अब्दुल-जब्बार, माराडोना इत्यादि की भांति सामाजिक न्याय और समानता के पक्ष में साहस के साथ खड़ा होने का जिगरा नहीं है !
एच एल दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)
The greatest athlete Maradona was also an activist!