दिनकर ने योगी को खत लिखकर पूछा, क्या आपातकाल लागू हो गया है ?

hastakshep
09 May 2020
दिनकर ने योगी को खत लिखकर पूछा, क्या आपातकाल लागू हो गया है ?

Dinkar wrote a letter to Yogi and asked, has the Emergency come into force?

लखनऊ, 09 मई 2020. उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों को स्थगित किए जाने पर वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा है कि कोरोना महामारी के संदर्भ में केन्द्र सरकार ने 17 मई तक लाकडाउन घोषित किया (In the context of the corona epidemic, the central government declared a lockdown until 17 May) और देश में किसी आपातकाल को वैधानिक घोषणा नहीं हुई है (There is no legal declaration of emergency in the country)। तब तीन साल तक श्रम कानूनों को स्थगित करने का औचित्य (Justification for postponing labor laws for three years) समझ से परे है।

पत्र का मनमून निम्न है -

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश, लखनऊ।

विषय:- उद्योग व श्रमिक हितों की रक्षा के लिए ‘उत्तर प्रदेश कतिपय श्रम विधियों से अस्थायी छूट अध्यादेश 2020’ को लागू न करने के संदर्भ में:-

महोदय,

प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक के निर्णयों से अवगत कराते हुए आपके सूचना परिसर से दिनांकित 6 मई 2020 को जारी प्रेस नोट में उल्लेखित ‘उत्तर प्रदेश कतिपय श्रम विधियों से अस्थायी छूट अध्यादेश 2020’ के प्रारूप को अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है। इस सम्बंध में सरकार के प्रेस नोट और उत्तर प्रदेश सरकार की आधिकारिक बेवसाइट पर मौजूद श्रम मंत्री की पत्रकार वार्ता के द्वारा ही इसके बारे में जानकारी प्राप्त है। इस जानकारी के आधार पर हम कुछ बिंदु आपके संज्ञान में लाना चाहते है -

  1. यह कि अभी संदर्भित अध्यादेश प्रदेश में लागू नहीं हुआ है। बावजूद इसके कल उद्योग मंत्री द्वारा व्यापारियों व उद्योगपतियों को सम्बोधित करते हुए इसके लागू होने की घोषणा करना असंवैधानिक है।
  2. यह कि पहले से ही उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों को पूर्ववर्ती सरकारों ने काफी हद तक कमजोर कर दिया था। आमतौर पर यह लागू नहीं होते थे लेकिन संदर्भित अध्यादेश के जरिए श्रम कानूनों को 1000 दिनों यानी लगभग 3 साल तक स्थगित कर दिया गया। कोरोना महामारी के संदर्भ में केन्द्र सरकार ने 17 मई तक लाकडाउन घोषित किया और देश में किसी आपातकाल को वैधानिक घोषणा नहीं हुई है। तब तीन साल तक श्रम कानूनों को स्थगित करने का औचित्य समझ से परे है। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 व नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 43 के द्वारा प्राप्त अधिकारों को स्थगित करना कानून की नजर में विधि विरूद्ध और मनमर्जीपूर्ण है।
  3. यह कि संदर्भित अध्यादेश द्वारा श्रमिकों को प्राप्त अधिकारों का अतिक्रमण उनके अंदर इस व्यवस्था के प्रति अविश्वास को पैदा करेगा। इससे उपजे असंतोष को बल पूर्वक व दंड प्रकिया संहिता द्वारा रोकने से औद्योगिक अशांति सामाजिक अशांति का रूप ले सकती है। परिणामस्वरूप खराब औद्योगिक व सामाजिक अशांति व खराब कानून व्यवस्था का वातावरण प्रदेश में निवेशकों को निवेश करने से रोकेगा साथ ही साथ कोरोना महामारी के इस संकटकालीन समय में बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित करने में बाधा पैदा करेगा। यह सरकार के इस अध्यादेश को लाने के सारे उद्देश्य को ही समाप्त कर देगा।
  4. यह कि संदर्भित अध्यादेश संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित ‘सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय‘ के राज्य के दायित्व का निषेध करता है। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 व इसके सुसंगत नियम श्रमिक को अवैधानिक छटंनी, कार्यस्थल पर उत्पीड़न से संरक्षित करता है और उसे न्यायिक अधिकार दिलाता है। उत्तर प्रदेश दुकान एवं वाणिज्य अधिष्ठान अधिनियम 1962, उत्तर प्रदेश औद्योगिक प्रतिष्ठान (राष्ट्रीय अवकाश) अधिनियम 1961 श्रमिक के सामाजिक व आर्थिक न्याय को संरक्षित करता है। ग्रेच्युटी संदाय अधिनियम 1972 श्रम विभाग को श्रमिक को अनुतोष प्राप्त कराने का न्यायिक अधिकार देता है। इसी प्रकार ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) 1970 व बोनस संदाय अधिनियम 1965 मजदूरों को न्यायिक संरक्षण देता है। व्यवसाय संघ अधिनियम 1926 श्रमिक को संगठित होने और अपनी बात कहने के संवैधानिक मौलिक अधिकार को प्रदान करता है। संदर्भित अध्यादेश के बारे में अपनी पत्रकार वार्ता में श्रम मंत्री ने कहा कि ‘इस अध्यादेश के लागू होंने के बाद श्रमिक की शिकायत पर श्रम विभाग कि औद्योगिक व वाणिज्यिक प्रतिष्ठान को नोटिस भी नहीं देगा और किसी प्रकार का निरीक्षण नहीं किया जायेगा।’ स्पष्ट है कि संदर्भित अध्यादेश संविधान की प्रस्तावना में वर्णित न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध है।
  5. यह कि संदर्भित अध्यादेश के द्वारा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 पर भी रोक लगायी गई है। यह अधिनियम संविधान के मूल अधिकार के अनुच्छेद 21 और नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 43 के तहत एक श्रमिक और उसके परिवार की जीवन रक्षा को संरक्षण प्रदान करता है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने वाई0 ए0 मोमाडें बनाम अथार्रिटी अण्डर द मिनिमम वेजेज एक्ट में कहा कि ‘राष्ट्र के आर्थिक विकास में भागेदारी की गरिमा एवं उनके व्यक्तित्व को बनाये रखने के लिए उन्हें जीवन निर्वाह योग्य मजदूरी दिया जाना तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान किया जाना अपरिहार्य है।‘ इसके बाद आए लगातार निर्णयों में उच्चतम न्यायालय ने यहीं बात दोहराई है। यहां तक कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने पंजाब व हरियाणा के विद्युत उद्योग में कार्यरत संविदा श्रमिकों को समान काम का समान वेतन देने के आदेश में कहा कि न्यूनतम मजदूरी न देना बंधुआ मजदूरी है और मजदूर की परिवारिक मजबूरियों का दुरूपयोग है। इसलिए संदर्भित अध्यादेश उच्चतम न्यायालय के आदेशों व संविधान के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार के विरूद्ध है।
  6. यह कि संदर्भित अध्यादेश उत्तर प्रदेश में लागू बहुत सारे केन्द्रीय सरकार के श्रम विधियों को स्थगित करता है। वैधानिक प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार को यह विधिक शक्तियां प्राप्त नहीं है कि वह केन्द्रीय संसद द्वारा पारित किसी कानून में बिना केन्द्र सरकार की अनुमति प्राप्त किए हस्तक्षेप करे अथवा उसे स्थगित कर दे। अभी सूचना है कि प्रदेश सरकार ने इसे केन्द्र सरकार को महामहिम राष्ट्रपति महोदय की अनुमति के लिए भेजा है। आपको अवगत करा दें कि केन्द्र सरकार भी बिना संसद के अनुमोदन के केन्द्रीय कानूनों में संशोधन नहीं कर सकती है। इसलिए यदि केन्द्र सरकार बिना संसद के अनुमोदन के संदर्भित अध्यादेश को अनुमति देती है तो यह कानून की नजर में विधि विरूद्ध और मनमर्जीपूर्ण होगा।
  7. यह भी कि कल प्रमुख सचिव श्रम द्वारा काम के घंटे के सम्बंध में जारी अधिसूचना में कोरोना महामारी के संदर्भ में उत्पन्न लोक आपात की कोटि की परिस्थिति का हवाला दिया गया है। इसके तहत कारखाना अधिनियम 1948 की घारा 5 में वर्णित शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस अधिनियम की घारा 51, 54, 55, 56 एवं घारा 59 के अधीन वयस्क कर्मकारों के लिए साप्ताहिक घंटों, दैनिक घंटो, अतिकाल तथा विश्राम अतंराल आदि से सम्बंधित उपबंधों को दिनांक 20 अप्रैल से 19 जुलाई 2020 तक के लिए छूट प्रदान की है। अधिसूचना में दैनिक कार्यदिवस को बारह घंटे तथा सप्ताह में बहत्तर घंटे करने, विश्राम अवधि को आधा घण्टे करने व अनुपातिक मजदूरी का प्रावधान किया है। आप स्वयं देख ले दिनांकित 9 मई 2020 को जारी अधिसूचना उसके पूर्व की अवधि दिनांक 20 अप्रैल से लागू की जा रही है जो कि विधि के विरूद्ध है। लोक आपात की स्थिति भी अधिनियम में व्याख्यायित है और लोक आपात के लिए भी संविधान में विधि व्यवस्था निर्धारित है। अभी तक केन्द्र व प्रदेश सरकार ने वैधानिक रूप से लोक आपात देश में लागू नहीं किया है। इसलिए ‘लोक आपत्ति की कोटि‘ का उपयोग कर लागू की गयी यह अधिसूचना मनमर्जीपूर्ण, कानून की नजर में विधि विरूद्ध और संविधान विरूद्ध है। अतः इसे निरस्त किया जाना चाहिए।

महोदय,

आपसे अनुरोध है कि उद्योग व श्रमिक हित में और प्रदेश की बेहतर कानून व्यवस्था के लिए मनमर्जीपूर्ण, कानून की नजर में विधि विरूद्ध और संविधान विरूद्ध ‘उत्तर प्रदेश कतिपय श्रम विधियों से अस्थायी छूट अध्यादेश 2020’ को तत्काल प्रभाव से प्रदेश में लागू करने पर रोक लगाने का कष्ट करे।

साथ ही आप अवगत है कि प्रदेश में लाखों की संख्या में अन्य राज्यों में गए प्रदेश के मजदूर वापस लौट रहे है। आपकी सरकार बार-बार इनकी आजीविका, सामाजिक व जीवन सुरक्षा करने की घोषणा कर रही है। इस सम्बंध में हमारा अनुरोध है कि प्रदेश में असंगठित श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए बने 2008 के कानून जिसकी प्रदेश में नियमावली बन चुकी है, को तत्काल लागू किया जाए। प्रदेश में अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर (रोजगार व सेवाशर्ते विनियमन) अधिनियम 1979 का प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत पूरे वर्ष काम दिया जाए और इसका विस्तार शहरी क्षेत्रों में भी किया जाए।

उम्मीद है कि आप हमारे उपरोक्त सुझावों को संज्ञान में लेकर न्यायहित में निर्णय लेगें।

सादर!

दिनकर कपूर Dinkar Kapoor अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट दिनकर कपूर Dinkar Kapoor
अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट

  दिनकर कपूर

अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश।

मान्यता प्राप्त श्रमिक महासंघ

मोबाइल नम्बर:- 9450153307

दिनांक - 09.05.2020

प्रतिलिपि सूचनार्थ व आवश्यक कार्यवाही हेतु:-

  1. माननीय मंत्री, श्रम व रोजगार मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली।
  2. सचिव श्रम व रोजगार मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली।
  3. माननीय श्रम मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार।
  4. प्रमुख सचिव (श्रम) उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
  5. प्रमुख सचिव (विधि एवं न्याय) उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
  6. श्रमायुक्त, उत्तर प्रदेश, कानपुर।

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