/hastakshep-prod/media/post_banners/bB7LkB3OamLrvm5se991.jpg)
कोरोना काल में चर्चा ••• Discussion in the Corona era
"क्रान्तिकारी की तरह फाँसी भी चढ़ना चाहते हैं और अपनी भव्य शवयात्रा भी देखना चाहते हैं, ऐसा कैसे संभव है???"
सेलिब्रिटी बनने के लिए लालायित (Longing to be a celebrity) रहने वाले तथाकथित साहित्यकारों और फ़ेसबुकिया एक्टिविस्टों पर प्रोफेसर भूपेश सिंह के जोरदार त़ंज ने आज की बातचीत को विस्तार दिया।
अपने इर्द-गिर्द ऐसे दोमुँहे सांप हैं जो बने तो प्रोग्रेसिव और क्रान्तिकारी रहना चाहते हैं, लेकिन गोता संघियों के बीच लगाते हैं। संघ और भाजपा की आलोचना करते-करते कांग्रेस के प्रवक्ता बनने वाले वामपंथी लेखकों की भी कमी नहीं है। दोहरे चरित्र के साथ जीने वाला ही असल साहित्यकार बना बैठा है। वो लोग जमीन पर खड़े तो हैं, लेकिन लोग के बीच गड़े हुए नहीं हैं। यथार्थ को व्यवहार में उतारना और व्यवहार से अनुभव जुटा कर यथार्थ की व्याख्या करने वाले कम ही हैं।
चर्चा चल ही रही थी कि डॉ. राजेश जी की बिटिया प्राची चाय, नमकीन और गोले के लड्डू ले आयी। अब जमना लाजिमी था। बात गहराने लगी।
"दलित भी पंडिताई के चक्कर में फंस कर खुद को वहाँ स्थापित करने की जुगत में हैं, जिस व्यवस्था से वह हजारों सालों से उत्पीड़ित हुए हैं।"
डॉ. राजेश प्रताप सिंह ने दलित आन्दोलन के भटकाव पर फोकस किया। जातिगत व्यवस्था में सामंतवादी तौर-तरीके नये-नये ढंग से समाज को भ्रमित करते रहेंगे। विभिन्नता भरे देश में एक तरीके से संघर्ष संभव नहीं है।
पलाश विश्वास ने कोलकाता में आए सुपर साइक्लोन तूफान (Super cyclone storm phan) के बाद के हालात पर नजर दौड़ाई। सरकार वैसा कर रही है, जैसा वो लोगों को बनाना चाहती है, संवेदनहीन और चेतना शून्य।
लगभग दो घंटे की बातचीत के बाद डॉ. राजेश जी की जीवन साथी मंगला जी ने हमें खाना खिलाकर खिलाया। दाल, भात, आलू का चोखा, बैंगन और साग की भाजी और सबसे लाजवाब लहसुन का अचार। इतना सब उन्होंने कब कैसे तैयार किया पता ही नहीं चला। वैसे मंगला जी हर बार शानदार जतन करती हैं और बहुत प्यार से हमें खिलाती-पिलाती हैं।
खाने की टेबल पर भी पलाश जी जारी थे। कोलकाता के सामाजिक, राजनीतिक हालात पर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रखते रहे। इस बीच उन्होंने मनाही के बावजूद आलू का चोखा और एक मीठा लड्डू गप्प कर लिया। गाँव और किसान पर केन्द्रित होना ही होगा। भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का मूल आधार गाँव और किसान ही हैं, उन पर फोकस करना ही होगा। प्रेरणा-अंशु के मिशन को सहयोग देने का भरोसा लेकर हमने प्रो. भूपेश और डॉ. राजेश से विदा ली।
प्रेरणा-अंशु व गाँव और किसान पर व्यापक चर्चा हुई। इससे पहले कर्मचारी नेता जनार्दन सिंह, कामरेड गुप्ता व डॉ. मोहतो जी से भी शानदार मुलाकात हुई। श्रम कानूनों में संशोधन और ट्रेड यूनियन की कार्य शैली को समझने की कोशिश रही। पंतनगर में पत्रिका का वितरण किया। आगे से छात्रावास और लाइब्रेरी में प्रेरणा-अंशु नियमित दी जाएगी। नये लेखकों को मजबूत करना ही होगा।
सुबह गूलरभोज में अजय अरोरा और चक्कीमोड़ में योगेश पानू, दीपक गोस्वामी, राजेश कुमार, हरीश जोशी आदि को भी किताब और पत्रिका दी।
पलाश जी, विकास जी और मैं अगले कई दिन दिनेशपुर के आसपास के गाँव में ही प्रचार-प्रसार में लगेंगे और के बीच बातचीत को आप तक पहुँचाने की कोशिश रहेगी।
-रूपेश कुमार सिंह
(Rupesh Kumar Singh Dineshpur रूपेश कुमार सिंह
समाजोत्थान संस्थान
दिनेशपुर, ऊधम सिंह नगर )