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दूबधान : समय और समाज का हलफनामा

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hastakshep
07 Feb 2021
दूबधान : समय और समाज का हलफनामा

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उषा किरण खान का कथा संग्रह ‘‘दूबधान’’ : पुस्तक समीक्षा

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उषा किरण खान अपनी कहानियों के लिए जानी जाती हैं। गांँव की हसीन भंगिमाएं, इनकी कहानी की पहचान है। ‘‘दूबधान’’की 24 कहानियाँ समय और समाज की सच्चाई का हलफ़नामा हैं, तो दूसरी ओर कहानियाँ, नई जमाने को हैरान भी करती हैं। क्यों कि, कहानी की सभी महिलाएं गाँव की पुरानी जर्जर परम्परागत संरचना से बाहर निकलने के बारे में नहीं सोचती।

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‘‘दूबधान’’ में बिहार की ग्रामीण तहजीब की महक के साथ ही भोजपुरी भाषा की स्थानीय प्रासंगिकता की वजह से, गाँव की भंगिमा और मनमोहक हो जाती है।

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संग्रह की पहली कहानी ‘‘मौसम का दर्द‘‘ में गाँव की जवाँ युवती किसी पराए मरद से तृप्त होने पर, उस पर शादी का दबाव नहीं डालती, बल्कि उसे समझाती है।

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देह का एकांत ज्वार और कोसी नदी में बाढ़, दोनों का स्वभाव एक सा होता है।

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कोसी कछार की हिरणी अड़हुलिया बाढ़ की रात ओवरसियर को आमंत्रण देती है। दोनों का मन फिसल जाता है। ओवरसियर अपनी गलती का पश्वाताप करने, उसे अपनाना चाहता हैं। उसका गवना होने को है। वह कहती है, ‘‘राह चलत पियास लगे बाट-घाट के कुंएँ से पी नहीं ले आदमी पानी, कि घर आकर पानी पीने के सोच में, हलकान होवे। जाइये बाबू, आप मरद होकर तिरिया चरित्तर दिखाते हैं।’’ जाहिर सी बात है कि, मर्द की चाहत से औरत की चाहत अलग नहीं होती। उस एक पल की चाहत का, पछतावा नहीं करना चाहिए।

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‘दूबधान’ की ज्यादातर नारियाँ इश्क़, मुहब्बत और माानवीय जरूरतों के अछूते पहलू के लिए कोई न कोई रास्ता ढूंढ निकालती हैं। ग्रामीण जीवन में भी, दैहिक उपभोक्तावादी संस्कृति को जीने का कोई पछतावा नहीं है।

हर कहानी में नायिका की जिन्दगी में त्रासदी है।

‘खिड़की‘ कम उम्र में शादी के बाद, बेवा होने वाली लड़की के जीवन में खुशियाँ लाने, उसकी शादी, उसके देवर से कराने की एक नई परंपरा आज की जरूरत है। यौवन के ज्वार की लक्ष्मण रेखा पति तोड़ सकता है,तो पत्नी क्यों नहीं। जीवन भंवर में फंसी औरत की कहानी है ‘‘उत्कंठा’’। बड़े घरों में काम करने वाली गरीब महिलाओं के साथ विचलित करने वाली घटना में, बिन ब्याही लड़की माँ बनने पर उसे रास्ते से हटाने की बजाय ‘‘स्नेह’’ करती है।

गाँव की महिलाओं की पति भक्ति को रेखांकित करती है नीली चिड़िया और ‘‘आदि अंत’’। अपने हर पत्र में प्राणनाथ चरणों की दासी लिखना नहीं भूलती सुनैना। वहीं ऐसी कहानियाँ, इस बात को प्रमाणित करती हैं कि, गाँव की महिलाएं आज भी अपने पति के दैहिक रिश्ते को बुरा नहीं मानती।

‘‘सवित्तरी’’ एक फूल दो माली की कथा है। ब्याहता का दिल, अपने पति की बजाय, प्रेमी पर आ जाता है। एक घटना घटती है, और प्रेमी को प्रेमिका सवित्तरी लगने लगती है।

किताब की ‘‘दूबधान’’ कहानी पढ़ते-पढ़ते महिलाओं को अपने नैहर की याद आ जाए, तो हैरानी नहीं। गाँव से शहर आई बेटी अपने ससुराल में बेहद खुश है। लेकिन बरसों बाद उसे लगता है कि, उसका नैहर भी शहर सा हो गया होगा।

केतकी के जरिये लेखिका यह बताती हैं कि, समाज कितना भी विकसित हो जाए, गाँव अपने संस्कार नहीं भूले हैं। अपनी परंपराएं नहीं भूले हैं। बहुत ही मनमोहक अंदाज में गाँवों के रीति रिवाज और रस्मों को कहानी में ढाला गया है। जैसे,बिदाई में हर कोई कहता है, ‘‘रो ले बेटी, रो ले, मन में कुछ न रखना। कहा सुनी छिमा करना,गाँव जवार को असीसती जाना।’’

औरत ऊंची जाति की हो या फिर नीची जाति की, लेकिन प्यार के मामले में उसका मन एक सा होता है। वह प्रेम जितना करती है, उतनी घृणा भी। उसके प्रेम विरोधी रूख को बयान करती है ‘‘पाथर मन’’। ‘‘त्याग पत्र’’ में विवाहिता बरसों बाद प्रेमी से, शादी के लिए कहती है। वह कोई जवाब नहीं देता। दूसरे दिन प्रेमी, उसकी कंपनी से त्याग पत्र देकर चला जाता है। उसकी प्रेमिका हैरान हो जाती है कि, उसने नौकरी से त्याग पत्र दिया है, या फिर मेरे प्रेम का त्याग किया है।

‘‘तुलसी का चौरा’’ पाठकों के बीच विश्वास की नई दुनिया रचती है।

सेमल के फूल, अनुदान, रजत जयंती, चारा, पाखंड पर्व, निर्वासित जैसी दूबधान की अनेक कहानियाँ, अलग-अलग कथ्यों के साथ अपने चमत्कारिक शिल्प से पाठकों को परिचय कराती है।

कुल मिलाकर इन कहानियों को पढ़ते वक्त स्त्री विमर्श और विचार का वेग चुपके से दस्तक दे देता है। आधी दुनिया में विमर्श की खिड़कियां खोलती है। क्यों कि हर कहानी बेचैन करने वाली बात कहती है।

@रमेश तिवारी "रिपु"

दूबधान - उषाकिरण खान

कीमत - 250

प्रकाशक- प्रलेक प्रकाशन,मुंबई





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