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समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में सोचने वाली सरकार को डॉ अंबेडकर ने पागल कहा था- शाहनवाज़ आलम

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संविधान सभा में अर्टिकल 44 के सूत्रीकरण पर अपने संबोधन डॉ अंबेडकर ने समान नागरिक संहिता को वांछनीय तो बताया था, लेकिन साथ ही इसे ऐच्छिक बताया था।

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hastakshep
01 May 2022 एडिट 02 Jul 2023
राहुल गांधी ही एक मात्र राजनेता जो संघ पर उठाते हैं सवाल, अखिलेश अपने कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न पर भी चुप रहते हैं

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लॉ कमीशन के सामने तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने दायर हलफनामे में कहा था कि राज्य सरकार यू सी सी नहीं बना सकती

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स्पीक अप #44 में बोले अल्पसंख्यक कांग्रेस नेता

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समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में डॉ अंबेडकर (Dr. Ambedkar about implementing Uniform Civil Code)

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लखनऊ 1 मई 2022। बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने 2 दिसंबर 1948 को संविधान सभा में कहा था कि समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में सोचने वाली सरकार एक पागल सरकार ही कही जाएगी। समान नागरिक संहिता को तो राज्य सरकार बना ही नहीं सकती। फिर भी भाजपा सरकार के मंत्री और नेता अफवाह और अनिश्चितता का माहौल बनाने के लिए बयानबाजी कर रहे हैं।

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ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने फेसबुक लाइव के माध्यम से होने वाले स्पीक अप कार्यक्रम के 44 वीं कड़ी में कहीं।

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शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संविधान सभा में अर्टिकल 44 के सूत्रीकरण पर अपने संबोधन डॉ अंबेडकर ने समान नागरिक संहिता को वांछनीय तो बताया था, लेकिन साथ ही इसे ऐच्छिक बताया था।

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क्या राज्य सरकारें समान नागरिक संहिता बना सकती हैं?

उन्होंने कहा कि तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने भी लॉ कमीशन के समक्ष 12 पेज का हलफनामा दिया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारों को समान नागरिक संहिता बनाने का अधिकार नहीं है, यह सिर्फ संसद कर सकती है। वहीं 2018 में लॉ कमीशन ने भी कहा था कि पर्सनल लॉ के साथ छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए। जिसके बाद मोदी सरकार ने 22 वें लॉ कमीशन के अध्यक्ष के पद पर किसी को नियुक्त ही नहीं किया। 2018 से ही यह पद खाली है। जबकि ऐसे गंभीर मसलों पर राय देने के लिए ही उसका गठन हुआ था।

समान नागरिक संहिता का विरोध बहुसंख्यक वर्ग ही ज़्यादा करेगा, इसलिए सरकार इस पर कोई मसौदा नहीं ला रही

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें जानती हैं कि समान नागरिक संहिता का सबसे ज़्यादा विरोध बहुसंख्यक समुदाय से आयेगा क्योंकि वहां विविधता ज़्यादा है। जबकि ईसाई और मुस्लिम जैसे अल्पसंख्यक समुदायों में पूरे देश में शादी, तलाक़, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार के कानून एक समान हैं। इसीलिये केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा संसद या मीडिया के सामने नहीं रख रही है जिससे उस पर बहस हो सके। सरकार की कोशिश बहुसंख्यक समुदाय को अंधेरे में रख कर उनके बीच इसे मुस्लिम विरोधी प्रचारित कर उनको सांप्रदायिक बनाये रखना है।

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