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Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved in human rights activities for the last three decades. He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD
Dr. Ram Puniyani's article in Hindi: Was the Mughal period a period of India's slavery?
डॉ राम पुनियानी का लेख हिंदी में क्या मुग़ल काल भारत की गुलामी का दौर था?
जब जेम्स स्टुअर्ट मिल- John Stuart Mill (1806–73) ने भारतीय इतिहास (Indian history) को हिन्दू काल, मुस्लिम काल और ब्रिटिश काल में विभाजित किया, उसी समय उन्होंने अंग्रेजों को ‘फूट डालो और राज करो’ की उनकी नीति को लागू करने का मजबूत हथियार दे दिया था. परंतु इसके साथ ही उन्होंने भविष्य में साम्प्रदायिक राजनीति (Communal politics) करने वालों को भी लोगों को बांटने की एक रणनीति दे दी थी. आगे चलकर मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्वों ने यह दावा करना प्रारंभ कर दिया कि भारत पर उनका राज था. इसी तरह, साम्प्रदायिक हिन्दुओं ने भी यह कहना प्रारंभ कर दिया कि मुसलमान तो विदेशी हैं और भारत तो अनंतकाल से हिन्दुओं का देश रहा है.
The Mughal Museum to be built in Agra will be renamed Chhatrapati Shivaji Maharaj Museum
भारतीयों के मानस में यह सोच कितने गहरे तक घुस चुकी है इसका सबूत है उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह घोषणा कि आगरा में बनने वाले मुगल संग्रहालय का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय रखा जाएगा.
योगी आदित्यनाथ का तर्क है कि यदि संग्रहालय का नाम मुगल संग्रहालय होगा तो यह हमारी गुलामी का प्रतीक (Symbol of our slavery) होगा. मुगल संग्रहालय की नींव उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रखी थी. यह संग्रहालय आगरा में ताजमहल के पास बन रहा है जिसमें उस समय की संस्कृति और मुगल राजाओं के हथियारों का प्रदर्शन होगा. उत्तरप्रदेश में पर्यटन (Tourism in Uttar Pradesh) को बढ़ावा देना इस संग्रहालय के निर्माण का मुख्य लक्ष्य था.
Hindu communalists are trying to reduce the importance of Taj Mahal
हिन्दू सम्प्रदावादियों द्वारा ताजमहल के महत्व को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. पी. एन. ओक नामक एक सज्जन इसे तेजोमहालय (शिव मंदिर) बताते हैं जिसे बाद में शाहजहां ने मकबरा बना दिया. फ्रांसीसी जौहरी टेवर्नेअर ने अपने यात्रा संस्मरणों में लिखा है कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल बनाया था. इसी तरह, शाहजहां के दरबार की बहियों में ताजमहल पर हुए खर्च का विस्तृत विवरण दिया गया है. यह भी बताया गया है कि जिस जमीन पर ताजमहल बनाया गया है उसका मुआवजा राजा जयसिंह को देकर उसे खरीदा गया था.
Is Islam a foreign religion and Muslims are foreigners
जब योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली, तब उन्होंने ताजमहल को उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण स्थलों की सूची से हटा दिया था. योगी के हालिया कथन कि मुगलों को याद करना हमारी गुलामी की प्रवृत्ति का प्रतीक है, उस साम्प्रदायिक विचारधारा (Communal ideology) के अनुरूप है जो मानती है कि इस्लाम एक विदेशी धर्म है और मुसलमान विदेशी हैं.
दरअसल भारतीय इतिहास को देखने के तीन नजरिये (Three views of Indian history) हैं. पहला, गांधी-नेहरू नजरिया, जिसके अनुसार भारतवर्ष समृद्ध विविधता वाला मुल्क है और जिन मुस्लिम राजाओं ने भारत पर शासन किया वे भारत को अपना मानते थे. बहुसंख्यक मुस्लिम राजाओं ने भारत की बहुवादी धार्मिक परंपरा का सम्मान किया.
महात्मा गांधी ने कहा था कि,
“मुस्लिम राजाओं के शासन में हिन्दू और हिन्दुओं के शासनकाल में मुसलमान फले-फूले. दोनों ने यह महसूस किया कि परस्पर वैमनस्य आत्मघाती है और दोनों को यह पता था कि तलवार की नोंक पर दूसरे को उसका धर्म त्यागने के लिए बाध्य करना संभव नहीं होगा. दोनों ने शांतिपूर्वक रहने का निर्णय किया. अंग्रेजों के आने के बाद झगड़े प्रारंभ हो गए.”
इसी तरह, जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब ‘भारत एक खोज’ में हिन्दुओं और मुसलमानों के परस्पर सामंजस्य को ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ बताया है. जिसका अत्यधिक प्रभावी प्रस्तुतिकरण श्याम बेनेगल के टीवी धारवाहिक ‘भारत एक खोज’ में देखने को मिलता है.
क्या वह युग जिसमें भारतवर्ष के अनेक हिस्सों पर मुस्लिम राजाओं ने शासन किया (जिनमें न सिर्फ मुगल वरन अन्य अनेक राजवंश, जिनमें गुलाम, खिलजी, गजनवी और दक्षिण में बहमनी शामिल थे) उसे गुलामी का काल कहा जाए? इसमें कोई संदेह नहीं कि महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी, चंगेज खान आदि कई राजा भारत को लूटकर वापिस चले गए वहीं ऐसे अन्य कई राजा थे जिन्होंने यहाँ शासन किया और यहीं के हो कर रह गए. निसंदेह उन्होंने भारत का शोषण किया परन्तु यह तो अधिकांश राजा करते हैं.
परंतु इस युग को गुलामी का युग नहीं कहा जा सकता. असली गुलामी का काल तो अंग्रेजों के आने के बाद प्रारंभ हुआ जिन्होंने अपने शासन के दौरान लूटपाट की और किसानों का जम कर खून चूसा. शशि थरूर ने अपनी पुस्तक ‘एन इरा ऑफ डार्कनेस’ में बताया है कि जब अंग्रेज भारत आए थे उस समय भारत की जीडीपी (GDP of India when the British came to India), विश्व की जीडीपी का 23 प्रतिशत थी और जब वे भारत छोड़कर गए तब यह मात्र 3 प्रतिशत रह गई थी. ब्रिटिश राज का एक सकारात्मक पहलू भी है. अंग्रेजों के आने के पूर्व भारत के सामाजिक ढ़ांचे में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था परंतु ब्रिटिश शासन के दौरान लोकतांत्रिक समाज और आधुनिक देश के निर्माण की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण पहलें हुईं जिनमें रेलवे, संचार सुविधाएं, आधुनिक शिक्षा, न्याय प्रणाली एवं लोकतांत्रिक संस्थाओें की स्थापना शामिल था.
साम्प्रदायिक हिन्दू और साम्प्रदायिक मुस्लिम, अंग्रेजों की व्याख्या को आगे बढ़ाते हुए देश के इतिहास को हिन्दुओं के मुसलमानों के बीच टकराव का इतिहास बताते हैं. दोनों अपने को इस धरती का मालिक और दूसरे के अत्याचारों का शिकार बताते हैं. दोनों अंग्रेजों द्वारा की गई लूटपाट को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हैं. दूसरी ओर, अम्बेडकर भारतीय इतिहास को बुद्ध धर्म द्वारा स्थापित सामाजिक बराबरी और ब्राह्मणवाद के बीच संघर्ष का इतिहास बताते हैं.
Not all Hindu kings were great and not all Muslim kings were cruel villains
सभी हिन्दू राजा महान नहीं थे और सभी मुस्लिम राजा क्रूर खलनायक नहीं थे. अकबर और दारा शिकोह बहुवाद के पैरोकार थे जिन्होंने सभी धर्मों की अच्छी बातों को स्वीकार किया और शिवाजी उन राजाओं में थे जिन्होंने गरीबों पर थोपे गए करों को कम किया.
इस तरह आजाद भारत के असली हीरो (Real heroes of independent India) वे हैं जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान दिया. इसकी तीन प्रमुख धाराएं हैं - पहले हैं गांधीजी, जिन्होंने देश को अंग्रेजों के साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष के माध्यम से एक सूत्र में पिरोया. दूसरे हैं अम्बेडकर जिन्होंने सामाजिक समानता और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया. तीसरी धारा के प्रतिनिधि हैं भगत सिंह, जिन्होंने अंग्रेजी राज के विरूद्ध संघर्ष करते हुए गरीबों की दुर्दशा के प्रति जागरूकता फैलाई.
सच पूछा जाए तो इन तीनों मूल्यों से ही आधुनिक भारत को प्रेरणा लेनी चाहिए ना कि राजशाही के मूल्यों से, जो बुनियादी रूप से सामाजिक असमानता और किसानों के शोषण पर आधारित था.
हमें विविधता और समानता के सिद्धांतों को ही भविष्य के भारत के निर्माण का आधार बनाना चाहिए. सच पूछा जाए तो मुगल संग्रहालय हमारे बीते हुए दिनों के सांस्कृतिक स्वरूप को दिखाने का प्रयास है ना कि गुलामी का प्रतीक.
दुर्भाग्य से हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब भारतीय संस्कृति को संपन्न बनाने में मुसलमानों के योगदान के सभी प्रतीकों को उखाड़ फेंकने का प्रयास हो रहा है है. इसी इरादे से इलाहबाद, फैजाबाद और मुगलसराय के नामों को बदला गया है.
राम पुनियानी
(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)