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गोली मारो सालों को : हिंसा और घृणा का निर्माण ... डॉ. राम पुनियानी का आलेख

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hastakshep
06 Feb 2020
गोली मारो सालों को : हिंसा और घृणा का निर्माण ... डॉ. राम पुनियानी का आलेख

नोम चोमस्की (Noam Chomsky), दुनिया में शांति की स्थापना के लिए काम करने वाले शीर्ष व्यक्तित्वों में से एक हैं. कई साल पहले, वियतनाम पर अमरीका के हमले के समय उन्होंने ‘सहमति के निर्माण’ का अपना अनूठा सिद्धांत प्रतिपादित किया था.

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नोएम चोमस्की का कहना था कि अपनी नीतियों और निर्णयों को वैधता प्रदान करने के लिए राज्य जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए सहमति का निर्माण करता है. अमरीकी सरकार ने वहां के लोगों के मानस को कुछ इस तरह से परिवर्तित किया कि वे फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत वियतनाम पर अमरीका के क्रूर हमले को औचित्यपूर्ण मानने लगे.

'Hatred' is being created against religious minorities and its objective is to weaken Indian democracy and constitution.

आज के भारत में हम देख रहे हैं कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ ‘नफरत का निर्माण’ किया जा रहा है और इसका उद्देश्य है भारतीय प्रजातंत्र और संविधान को कमज़ोर करना और हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की राह प्रशस्त करना. यह काम कई तरीकों और कई स्तरों पर किया जा रहा है. इसका प्रकटीकरण अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा के रूप में होता रहा है. इसका भयावह और कुत्सित स्वरूप हमनें मुंबई (१९९२-९३), गुजरात (२००२), कंधमाल (२००८) और मुजफ्फरनगर (२०१३) में देखा. इसी का एक और प्रकटीकरण था गौवध या गौमांस भक्षण को लेकर हुई लिंचिंग की घटनाएं. इसी के साथ, मृत जानवरों की खाल उतार रहे दलितों के साथ हिंसा और इनकी हत्या भी इसी का नतीजा थे.

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‘सहमति के निर्माण’ की इसी प्रक्रिया के नतीजे में, हिन्दू राष्ट्रवादियों के अनवरत दुष्प्रचार ने शम्भूलाल रैगर के दिमाग में इतना ज़हर भर दिया कि उसने अफराजुल खान नामक एक मुस्लिम युवक को जिंदा जला दिया और इस वीभत्स काण्ड का वीडियो भी बनाया. कई लोगों ने उसकी इस बर्बर हरकत की प्रशंसा भी की. उसे भड़काया था लव जिहाद को लेकर चल रहे दुष्प्रचार ने. अब इसी दुष्प्रचार के और भयावह नतीजे हमारे सामने आ रहे हैं. हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों से जुड़े युवा अब निहत्थे विरोध प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला रहे हैं.

भारत सरकार में मंत्री अनुराग ठाकुर ने दिल्ली में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि “देश के गद्दारों को गोली मार दी जानी चाहिए”.

इसके मात्र दो दिन बाद, 12वीं कक्षा का एक विद्यार्थी पिस्तौल लेकर जामिया पहुंचा और ‘ये लो आज़ादी’ कहते हुए सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन कर रही भीड़ पर एक गोली दाग दी. गोली जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक विद्यार्थी को लगी. संयोगवश, यह घटना ठीक उसी दिन हुई जिस दिन नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी को गोली मारी थी.

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ऐसी ही एक अन्य घटना में, एक युवक ने ‘यहाँ सिर्फ हिन्दुओं का राज चलेगा’ कहते हुए शाहीन बाग के निकट हवा में गोलियां चलाईं. यह घटना उस स्थल के पास हुई जहाँ नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ लम्बे समय से शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा है. यह भी अनुराग ठाकुर के भड़काऊ भाषण का नतीजा था.

यह साफ़ है कि हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा से प्रेरित इन युवकों की ये हरकतें, भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ लम्बे समय से चलाये जा रहे नफरत फैलाने वाले अभियान का नतीजा हैं. इसकी जडें उस मुस्लिम और हिन्दू राष्ट्रवाद में हैं, जिसे अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की अपनी नीति के अंतर्गत बढ़ावा दिया था.

भारत में आज यह सामूहिक सामाजिक सोच का हिस्सा बन गया है कि मुस्लिम शासकों और मुसलमानों ने हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया और तलवार की दम पर देश में इस्लाम का प्रसार किया और यह भी कि इस्लाम एक विदेशी धर्म है.

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राममंदिर आन्दोलन ने इस धारणा को और मज़बूत किया कि मुसलमान मंदिरों के विध्वंसक थे और औरंगजेब, टीपू सुल्तान व अन्य मुस्लिम बादशाहों और नवाबों ने हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया. देश के विभाजन, जिसके पीछे मुख्यतः अंग्रेजों की नीतियाँ और सांप्रदायिक राजनीति थी, के लिए भी मुसलमानों को कटघरे में खड़ा किया गया. कश्मीर में असंतोष और हिंसा, जिसके पीछे क्षेत्रीय और नस्लीय मुद्दे हैं और जो अमरीका की पाक-समर्थक नीतियों का नतीजा है, के लिए तक आम मुसलमानों को दोषी ठहराया गया. यहाँ तक कि अल कायदा जैसे संगठनों के उदय के लिए भी भारत में रह रहे गरीब मुसलमानों को दोषी मान लिया गया.

अनवरत सांप्रदायिक हिंसा के चलते, ये धारणाएं लोगों के मन में घर करने लगीं. हिंसा के कारण मुसलमान अपने मोहल्लों में सिमटने पर मजबूर हो गए और इससे अंतर्धार्मिक रिश्ते और कमज़ोर हुए. अलग-थलग कर दिए मुसलमानों के पास अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं था और पीड़ितों को दोषियों के रूप में प्रस्तुत किया जाना लगा. यह नफरत, जिसे मुंहजबानी प्रचार, मीडिया और स्कूली पाठ्यपुस्तकों के ज़रिये हवा दी गयी, धीरे-धीरे व्यापक समाज की अल्पसंख्यकों के प्रति दृष्टिकोण की निर्धारक बन गई.

पिछले कुछ वर्षों से सांप्रदायिक ताकतों ने सोशल मीडिया के ज़रिये नफरत फैलाने के अपने अभियान को और तेज कर दिया है. स्वाति चतुर्वेदी की पुस्तक ‘आई एम ए ट्रोल’ (

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I Am a Troll: Inside the Secret World of the BJP's Digital Army) बताती है कि नफरत फैलाने के लिए भाजपा सोशल मीडिया का किस तरह इस्तेमाल करती है. व्हाट्सएप विश्वविद्यालय, समाज को समझने का उपकरण बन गया है और ‘दूसरे से नफरत’ करो की भावना दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है. समाज को बांटने के लिए फेक न्यूज़ का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है.

शाहीन बाग का आन्दोलन (Shaheen Bagh movement) देश को एक करने का आन्दोलन है परन्तु उसे राष्ट्रद्रोहियों की करतूत बताया जा रहा है.

एक भाजपा नेता ने जहाँ ‘गद्दारों’ को गोली मारने की बात कही वहीं दूसरे का कहना था कि शाहीन बाग में एकत्रित ‘लाखों लोग’ घरों में घुसकर बलात्कार करेंगे.

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डॉ. राम पुनियानी (Dr. Ram Puniyani) लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं डॉ. राम पुनियानी (Dr. Ram Puniyani)

लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं

देश की हवा में ज़हर घोल दिया गया है. और इसी ज़हर से बुझे शम्भूलाल रैगर जैसे लोग एक निर्दोष मुसलमान को जिंदा जलाना पराक्रम का काम मान रहे हैं तो 12वीं कक्षा का विद्यार्थी विरोध प्रदर्शनकारियों पर गोली चला रहा है. मूल मुद्दा है वह नफरत, गलत धारणाएं और पूर्वाग्रह जो सामूहिक सामाजिक सोच का हिस्सा बन गए हैं.

इनसे विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच प्रेम और सौहार्द का भाव, जो स्वाधीनता आन्दोलन का नतीजा था, समाप्त हो रहा है. इससे बंधुत्व की उस भावना को पलीता लग रहा है जो हमारी राष्ट्रीय विरासत का हिस्सा है. गाँधी, भगतसिंह और आंबेडकर इस बंधुत्व भाव के वाहक थे. उनके मूल्यों की पुनर्स्थापना की जानी आवश्यक है. सांप्रदायिक ताकतें जिस तरह का ज़हर समाज में फैला रहीं हैं, उससे मुकाबला करने की ज़रुरत है.

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हमें, दरअसल, उन गलत धारणाओं पर प्रहार करना होगा जो नफरत को जन्म देतीं हैं. यह काम सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों - दोनों को करना होगा. और उन सभी लोगों को भी जो भारतीय संविधान और स्वाधीनता आन्दोलन के मूल्यों में आस्था रखते हैं. और यह काम बिना किसी देरी के और पूरी निष्ठा और मेहनत से किया जाना होगा.

राम पुनियानी

 (अंग्रेजी से हिन्दी रुपांतरण अमरीश हरदेनिया)

(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)



Note -

Avram Noam Chomsky is an American linguist, philosopher, cognitive scientist, historian, social critic, and political activist. Sometimes called "the father of modern linguistics", Chomsky is also a major figure in analytic philosophy and one of the founders of the field of cognitive science.

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