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मर रही है पृथ्वी, आखिर तक बचे रहेंगे गांव?

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hastakshep
23 Apr 2021
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प्रकृति और हम : आओ! थोड़ा बसंत हो जाएं ...

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मर रही है पृथ्वी, बचे रहेंगे गांव।

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गांव को ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत नहीं है

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इस पृथ्वी को हमने गैस चैंबर बना दिया है।

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प्रकृति पर अत्याचार, प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन, अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन (Uncontrolled carbon emissions), खेती किसानी का सत्यानाश, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों की हत्या, जलस्रोतों और समुंदर से लेकर अंतरिक्ष तक का सैन्यीकरण- सर्वोपरि हरियाली से घृणा, गांवों से घृणा (hatred of villages) और सीमेंट के जंगल में बाजार ही बाजार।

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कुल जमा महामारियों की सुनामी और प्राकृतिक आपदाएं, उन्हें भी अवसर बनाने पर जो आमादा हैं उनके लिए क्या वैक्सीन, क्या रक्षाकवच- मृत्यु का तांण्डव रच रहे लोगों तक नरक की आग पहुंचने लगी है।

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लॉकडाउन से महामारी कितनी नियंत्रित होती है, हमने पिछली दफा देख लिया।

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किस-किसने अरबों डॉलर के मुनाफे कमा लिए, वह भी जग जाहिर है।

उत्तराखंड में दिन के ढाई बजे लॉक डाउन की घोषणा होते न होते हर जरूरी चीज की कालाबाज़ारी शुरू हो गई। चावल आटा, दाल, तेल से लेकर दवाओं तक की कालाबाज़ारी।

सरसों तेल में रातोंतात 25 रुपए की उछाल।

कमा लो और मुनाफा। अकूत दौलत है ही।

बीमारी की चिंता काहे करते हो? काहे डरते हो?

सब कुछ समेटकर साथ स्वर्ग या नरक ले जाना।

पृथ्वी अब मर रही है।

मंगल ग्रह जाने की जुगत लगाओ।

वहाँ सत्यानाश करने में करोड़ों साल बीत जाएंगे।

पृथ्वी को बख्श दो। सारे के सारे करोड़पति अरबपति मंगल को कूच करें और उनकी सरकारें भी तो शायद पृथ्वी को कुछ सांसें बोनस में मिले।

पृथ्वी मरेगी तो सबसे पहले सत्ता के केंद्रों महानगरों में तबाही मचेगी।

आखिर तक बचे रहेंगे गांव।

हर सभ्यता के विनाश के बाद हर बार बचे रहते हैं गांव। महानगरों के खण्डहर भी नहीं मिलते।

महामारी, आपदा और भुखमरी से लड़ना गांव वाले ही जानते हैं, जिन्हें खत्म करने पर तुली है तुम्हारी सभ्यता।

गांव ही तुम्हें बचा सकते हैं।

यहां ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं चाहिए।

खेतों में अभी आक्सीजन भरपूर है।

पलाश विश्वास





पलाश विश्वास जन्म 18 मई 1958 एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक। उपन्यास अमेरिका से सावधान कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती। सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं- फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित। 2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग

पलाश विश्वास

जन्म 18 मई 1958

एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय

दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।

उपन्यास अमेरिका से सावधान

कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती।

सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह

चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं-

फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन

मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी

हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन

अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित।

2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग

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