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कोरोना महामारी के बाद आर्थिक गैर बराबरी बढ़ी (Economic inequality increased after the corona epidemic)
एक भारतीय कहावत है कि ' महामारी कोई भेदभाव नहीं करती,वह अमीर-गरीब सबको अपना शिकार बनाती है ' लेकिन कोरोनावायरस के मामले में वैश्विक अर्थव्यवस्था के मंच पर यह कहावत पूरी तरह अनावृत्त होकर रह गई है। इस कोरोना वायरस द्वारा फैली बीमारी ने कुछ लोगों को नए अवसर दिए, तो कई सारे लोगों के अवसर लंबे समय तक के लिए छीन लिए। इस मामले में विश्वविख्यात संगठन ऑक्सफैम, जो इंग्लैंड की सुप्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से संचालित होता है या World famous organization Oxfam which is run from the famous Oxford University of England, ने एक विस्तृत अध्ययन के बाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना महामारी के बाद के दो वर्ष में दुनिया में आर्थिक गैर-बराबरी की गति काफी तेजी से बढ़ी है। इस दौर ने जहां एक तरफ 26 करोड़ से अधिक लोगों के लिए भुखमरी के हालात पैदा कर दिए हैं,तो वहीं दुनिया को हर 33 घंटे में एक नया अरबपति भी दिया है।
अफ्रीका के सहारा मरुस्थल के आसपास के देशों जैसे आर्थिक हालात वाले भारत जैसे पिछड़े और गरीब देश के लिए तो कोरोना महामारी ने और भी अद्भुत हालात पैदा किए हैं।
इस दौरान भारत में मात्र हर 11 दिन में ही एक नया व्यक्ति अरबपति बना है।
2020 में अरबपतियों की फोर्ब्स पत्रिका की सूची में भारत के केवल 102 भारतीयों के ही नाम (Names of Indians in Forbes magazine's list of billionaires in 2020) थे, परन्तु कोरोना काल के बाद 2022 में इनकी संख्या बढ़कर 166 हो गई है।
अरबपतियों के मामले में भारत अब अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है, परन्तु दूसरी तरफ गरीबों की संख्या के मामले में भारत अभी भी यह पहले नंबर पर ही है।
दुनिया भर में हुए तमाम शोधों में यह बात उभरकर आई है कि कोरोनाकल में नुकसान का ज्यादातर हिस्सा गरीबों के पाले में ही आया है, जबकि अमीर इससे लगभग बच ही गए हैं, बल्कि अंबानी, अडानी जैसे लोगों को कोरोना की हालात ने उन्हें और अधिक मालामाल कर दिया है।
तमाम शोध रिपोर्ट यह चीख-चीखकर बता रहीं हैं कि कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए हालात ने अलग-अलग वर्ग और समाज को अलग-अलग तरह से प्रभावित किया है। इसने कुछ लोगों को सुनहरे अवसर दिए हैं तो अन्य बहुत सारे लोगों के अवसर लंबे समय तक के लिए छीन लिए हैं।
सच्चाई यह है कि महामारी के बाद के दो साल में दुनिया में आर्थिक गैर-बराबरी की गति काफी तेजी से बढ़ी है।
हांलांकि कोरोनाकाल में भारत ने उस विषम हालात का मुकाबला जिस तरह से किया, उसने एक बहुत बड़ी आबादी को भुखमरी का शिकार होने से बचाया। 80 करोड़ लोगों को लंबे समय तक मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने का दुनिया में कोई अन्य उदाहरण नहीं है।
पिछले दिनों विश्व मुद्रा कोष तक ने भी इस मामले में भारत की भूरी-भूरी प्रशंसा की थी, लेकिन इसके आगे के जो हालात हैं, वे काफी हतप्रभ और शर्मिंदा करने वाले हैं।
दुनिया की लब्धप्रतिष्ठित संस्था ‘वर्ल्ड इनिक्वैलिटी लैब’ या World Inequality Lab की रिपोर्ट बहुत ही क्षुब्ध और चिंतित करने वाली है, उसके अनुसार दुनिया में अगर सबसे ज्यादा विषमता कहीं है, तो वह भारत में ही है।
कितने शर्म की बात है कि गरीबों की संख्या के मामले में भारत अभी भी यह पहले नंबर पर ही बना हुआ है।
कोरोना बीमारी फैलने से पूर्व के समय में भी भारत में गरीबी और मुफलिसी थी, लेकिन कोरोनाकल के बाद भारत के गरीबों के हालात और भी बदतर हुए हैं। महामारी से एक सीधा फर्क यह पड़ा कि समाज की बहुत सारी सच्चाइयां, जिनसे हम मुंह फेर लेते थे, उसे छिपा लेते थे। कोरोना ने उन्हें हमारी आंखों के सामने ला खड़ा किया। उदाहरणार्थ कोरोना नामक इस वैश्विक महामारी ने हमें ठीक से बता दिया कि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं कितनी घटिया, अक्षम व अपर्याप्त हैं और संकट के समय लोगों को सीधी मदद देने में भी ये हमारी स्वास्थ्य सेवाएं बिल्कुल असहाय, असमर्थ और नाकारा हैं।
भारत को आईना दिखाया कोरोनावायरस ने! महामारी ने हमें क्या बताया?
इसी तरह महामारी ने यह भी बताया कि हमारी वे आर्थिक नीतियां कितनी अक्षम व अपर्याप्त हैं, जिनके सहारे हमारी सरकारों के कर्णधार भारत से गरीबी को समाप्त कर देने के सपने को भारतीय जनता को दिखाते हैं।
यह कड़वी सच्चाई है कि जब कोरोना महामारी की वजह से देश पर बड़ा आर्थिक संकट आया, तब उन तथाकथित आमजनहितैषी तमाम नीतियों के बावजूद भी सबसे ज्यादा नुकसान गरीब वर्ग को ही उठाना पड़ा। लेकिन भारत में अभी भी कितनी दु:खद स्थिति बनी हुई है कि यह देश अब भी अपना पुराना रास्ता बदलने को तैयार नहीं दिख रहा है।
वह अब भी अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है, तभी तो यहां किसानों मजदूरों, कर्मचारियों का शोषण चरम पर है, इसी के फलस्वरूप भारत जैसे देश में एक तरफ 20 करोड़ लोग रात को भूखे पेट सो जाने को मजबूर हैं और दूसरी तरफ यही देश मात्र 264घंटे में ही मतलब मात्र 11 दिनों में ही एक नये अरबपति को जन्म दे देता है। इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है।
निर्मल कुमार शर्मा
गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता