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मोदी सरकार के आठ साल : जम्मू-कश्मीर में नहीं रुक रहा निर्दोष लोगों की हत्या का सिलसिला

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जनता को सताकर मालामाल होती मोदी सरकार

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मोदी सरकार के आठ साल और कश्मीर में आतंकवाद (terrorism in Kashmir)

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जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं पर संपादकीय टिप्पणी | देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today)

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संदर्भ : कुलगाम में बैंक के अंदर घुसकर मैनेजर को मारी गोली, एक महीने में 8वीं हत्या

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जम्मू-कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या का सिलसिला रुक ही नहीं रहा है। इस बार आतंकवादियों ने कुलगाम के एक बैंक में घुसकर मैनेजर की गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया है, जिसमें दिख रहा है एक शख्स हाथ में एक झोला लेकर बैंक के अंदर घुसता है और फिर बंदूक निकालकर केबिन की तरफ गोली चला देता है। जितनी आसानी से वो इस काम को अंजाम देता है, उससे यही समझ आता है कि इस केंद्र शासित प्रदेश में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी कितने असुरक्षित हैं। कोई भी शख्स हथियारों के साथ दफ्तर में घुसेगा और हमला कर देगा।

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सरकारी स्कूल की शिक्षिका रजनी बाला की भी हुई हत्या

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इस घटना से पहले मंगलवार को आतंकियों ने कुलगाम में ही एक सरकारी स्कूल की टीचर रजनी बाला की गोली मारकर हत्या (Rajni Bala, a government school teacher was killed by terrorists in Jammu and Kashmir's Kulgam district) कर दी गई थी। और उससे पहले बडगाम में एक कर्मचारी राहुल भट की तहसील परिसर में घुसकर की हत्या (Kashmiri Pandit Rahul Bhat Killing) कर दी गई थी। इन तमाम घटनाओं के बाद आम लोग सरकार के सुस्त और संवेदनहीन रवैये के प्रति नाराजगी जता रहे हैं।

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लोगों का कहना था कि यदि सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है तो वह यहां से पलायन कर जाएंगे।

इस वर्ष कश्मीर घाटी में हो चुकी हैं 16 हत्याएं

बैंक मैनेजर की हत्या से पहले कश्मीर घाटी में इस वर्ष जनवरी से अब तक पुलिस अधिकारियों, शिक्षकों और सरपंचों सहित कम से कम 16 हत्याएं इस तरह हो चुकी हैं, जिसमें चुनकर लोगों को मारा गया है।

इस पूरे मामले पर जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह (J&K Police DGP Dilbag Singh) ने एक अखबार से बात करते हुए बताया कि अल्पसंख्यकों, नागरिकों और सरकार में लोगों को निशाना बनाने वाले 'केवल डर फैलाना चाह रहे हैं, क्योंकि स्थानीय निवासियों ने उनके फरमान का जवाब देना बंद कर दिया है'।

डीजीपी की बात सही पर आतंकवाद की परिभाषा जानने में लोगों की दिलचस्पी नहीं

यह सही बात है कि इस तरह की हत्याओं का मकसद डर फैलाना होता है, तभी इसे आतंकवाद कहा जाता है। लेकिन इस वक्त जम्मू-कश्मीर के लोगों को आतंकवाद की परिभाषा (definition of terrorism) जानने में दिलचस्पी नहीं है, उनकी चिंता ये है कि उनकी सुरक्षा के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है।

अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाने के वक्त जो दावे किए गए थे कि अब इस प्रदेश में आतंकवाद पर रोक लगेगी, जनजीवन सामान्य होगा, विकास की धारा बहेगी, ऐसा तो कुछ होता नजर नहीं आ रहा। बल्कि खून तो कश्मीरियों का ही सड़कों पर बह रहा है, जो चिंताजनक है।

अनुच्छेद 370 हटाते वक्त केंद्र सरकार ने क्या दावा किया था?

केंद्र सरकार ने दावा किया था कि आतंकवाद और अलगाववाद का खात्मा अनुच्छेद 370 को हटाने से हो जाएगा। लेकिन 2019 से लेकर 2022 आधा बीत गया और कश्मीर के हालात (Kashmir situation) में कोई तब्दीली नजर नहीं आ रही। बल्कि तस्वीर पहले से बदतर हो गई है।

जम्मू-कश्मीर में तकलीफें थीं, लेकिन कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का सिलसिला (The series of killings of Kashmiri Pandits) थमा हुआ था। तब कश्मीरियों को कम से कम यह तसल्ली थी कि उनके साथ राजनैतिक स्तर पर धोखा नहीं हुआ है। मगर अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से यह भावना मजबूत हो रही है कि आजादी के बाद भारत में विलय के फैसले के बदले जम्मू-कश्मीर के लोगों से जो वादा अनुच्छेद 370 के रूप में किया गया था, वो बड़ी चालाकी से भारत सरकार ने एकतरफा तोड़ दिया और इसकी भनक भी पहले नहीं लगने दी गई। इस फैसले के बाद सरकार ने लोगों के आक्रोश को काबू में करने के लिए लंबे अरसे तक कर्फ्यू और इंटरनेट पर पाबंदी जैसी रणनीतियां अपनाईं।

प्रेस की स्वतंत्रता पर भी अघोषित सेंसरशिप लागू रही। विपक्ष के नेताओं और कश्मीर के दूसरे दलों के नेताओं पर पहरेदारी रही, लिहाजा आक्रोश किसी भी तरह व्यक्त नहीं हो पाया। सरकार की यह कोशिश कामयाब रही, मगर अब अलगाववादी और आतंकवादी इस बात को अपने लिए भुनाते हुए हिंसा पर उतारू हो गए हैं। अगस्त 2019 से पहले उनकी लड़ाई भारत सरकार और उसके आदेश पर काम करने वाले सशस्त्रबलों से थी। लेकिन अब वे उन लोगों को निशाने पर ले रहे हैं, जो सरकार के लिए काम करते हैं।

इन हत्यारों को मदद और प्रशिक्षण सीमा पार से मिल जाता है, जिसको वे अब मासूम लोगों पर आजमा रहे हैं।

कश्मीरी पंडित, कश्मीरी मुसलमान और भारत के दूसरे राज्यों से काम करने आए लोग, सभी आतंकवादियों के निशाने पर हैं। हर हत्या के बाद पुलिस प्रशासन का दावा होता है कि हम दोषियों को सजा देंगे, आतंकवादियों को चुन-चुनकर मारेंगे, और बहुत से आतंकवादियों को मारा भी गया है। मगर फिर भी हत्या का सिलसिला थम नहीं रहा, तो इसका यही मतलब है कि या तो असली कातिल मारे नहीं जा रहे, या फिर एक आतंकवादी की हत्या के बाद दो नए आतंकवादी पैदा हो रहे हैं। दोनों ही स्थितियां आम लोगों के लिए घातक हैं।

अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर अपनी पीठ ठोंकने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह क्या कभी अपने फैसले पर गौर करेंगे?

आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.

Web title : Editorial commeant on the killings of Kashmiri Pandits in J&K

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