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देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today) देश में सांप्रदायिक हिंसा पर संपादकीय | Editorial in Hindi on communal violence in the country
क्या बदल चुकी हैं सरकार और विपक्ष की जिम्मेदारियां ? | Have the responsibilities of the government and the opposition changed?
देश में पिछले आठ सालों में कई परंपराएं, नियम, कानून, मान्यताएं और मीडिया का चरित्र (character of media) समेत कई बातें बदल गई हैं। अब ऐसा लग रहा है कि सरकार और विपक्ष की जिम्मेदारियां भी बदल चुकी हैं। पहले देश में जो भी अच्छा या बुरा होता था, उसकी जिम्मेदार सरकार होती थी। जनता के बीच सरकार को जवाब देना पड़ता था। मीडिया भी सवाल सरकार से ही करता था। मगर अब सरकार मन की बात से चलती है, यानी मन हुआ तो जिम्मेदारी लेगी, नहीं हुआ तो अपना पल्ला झाड़ लेगी। मन होगा तो संसद में किसी सवाल पर जवाब देगी, नहीं हुआ तो सवाल पूछने से ही रोक देगी। मन हुआ तो देशवासियों से किसी व्यापक हित के लिए अपील करेगी, नहीं हुआ तो जनता को जीने-मरने की उसकी किस्मत पर छोड़ देगी।
अब सरकार के मन से ही चलने लगा है मीडिया
मीडिया भी सरकार के मन से ही अब चलने लगा है। इसलिए अगर बेरोजगारी पर जनता हाय-हाय करे तो सवाल राहुल गांधी से होते हैं, कहीं कोई हादसा हुआ तो राहुल गांधी से सवाल किए जाते हैं कि वो हादसे की जगह पर या पीड़ित से मिलने गए या नहीं, देश में सांप्रदायिक माहौल खराब हो, तो उसके लिए भी मीडिया का एक धड़ा कांग्रेस से जवाब मांगने लगता है। बदलाव के इस माहौल में एक नयी बात ये भी देखने मिली कि अब तक देश में माहौल ठीक रखने के लिए, लोगों के बीच सद्भाव और भाईचारा कायम रखने की अपील सत्ता पक्ष की ओर से आती थी। मगर इस बार सांप्रदायिक नफरत का बोलबाला बढ़ता जा रहा है और प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर चुप्पी साध रखी है, अफसोस करना या शांति की अपील करना तो दूर की बात है।
देश को नफरत की आग में झुलस रहा है और सरकार मौन है
सरकार के नुमाइंदे देश को नफरत की आग में झुलसते देख रहे हैं, जबकि विपक्षी दलों ने इस मामले में एकता दिखाते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है। सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को लेकर विपक्ष ने एक बयान जारी किया है जिसमें लिखा है कि 'हम सभी विपक्ष के नेता एक साथ मिलकर देश के नाम एक अपील जारी कर रहे हैं।
सत्तारूढ़ ताकतों द्वारा समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए जिस तरह से जानबूझकर खानपान, पोशाक, आस्था, त्योहारों और भाषा से संबंधित मुद्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उससे हम बेहद आक्रोशित हैं। देश में दिनोंदिन बढ़ती हेट स्पीच के मामलों को लेकर हम बेहद चिंतित हैं क्योंकि ऐसा करने वालों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है।... हम देश के कई राज्यों में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा की कड़ी निंदा करते हैं।... जिस तरह से सोशल मीडिया और ऑडियो-विजुअल प्लेटफॉर्म का सरकारी संरक्षण में नफरत और उन्माद फैलाने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है, उससे हम बेहद दुखी हैं।' हम इस सारे मामलों में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर हैरान हैं, जो कट्टरता फैलाने वाले ऐसे लोगों के बयानों और शब्दों और उनके कृत्यों पर अभी तक कुछ भी नहीं बोले हैं जो हमारे समाज को उकसाते और भड़काते हैं। यह चुप्पी इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि इस तरह की निजी सशस्त्र भीड़ को सरकारी संरक्षण हासिल है।... हम सभी वर्गों से शांति बनाए रखने और सांप्रदायिक धु्रवीकरण को तेज करने की इच्छा रखने वालों के भयावह उद्देश्य को विफल करने की अपील करते हैं।
किस-किस के हस्ताक्षर हैं संयुक्त बयान पर
इस संयुक्त बयान पर कांग्रेस से सोनिया गांधी, एनसीपी से शरद पवार, टीएमसी से ममता बनर्जी, राजद से तेजस्वी यादव, डीएमके से एम के स्टालिन, सीपीएम से सीताराम येचुरी, सीपीआई से डी राजा, जेएमएम से हेमंत सोरेन, नेशनल कांफ्रेंस से डॉ. फारुक अब्दुल्लाह, फॉर्वर्ड ब्लॉक से देबब्रत बिस्वास आरएसपी से मनोज भट्टाचार्य, आईयूएमएल से पी के कुन्हलिकुट्टी और सीपीआई माले से दीपांकर भट्टाचार्य के हस्ताक्षर हैं।
सांप्रदायिकता के मुद्दे पर एकजुट हुए विपक्ष के नेता
भाजपा के खिलाफ पिछले आठ सालों में कोई मजबूत विपक्षी गठबंधन तैयार नहीं हो पाया है। लेकिन ये देखकर संतोष है कि कम से कम सांप्रदायिकता जैसे देश को खोखले कर देने वाले मुद्दे पर विपक्ष के नेता एकजुट हुए हैं। हालांकि बहुत से नेता अभी इससे दूर बने हुए हैं, लेकिन देश की खातिर सबको अपने स्वार्थों को छोड़कर साथ आना ही चाहिए। विपक्ष को सांप्रदायिकता के खिलाफ एक साथ आना पड़ा, जबकि यह सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह सर्वदलीय बैठक बुलाती और हालात संभालने के लिए सभी दलों से मदद का आह्वान करती। शायद भाजपा देश का माहौल इस तरह बनने के इंतजार में ही थी, तभी तो पिछले कई महीनों से कभी धर्म संसद तो कभी चुनाव के बहाने जो माहौल बिगाड़ा जा रहा था, उसे मोदी सरकार नजरंदाज करती रही। विधर्मी महिलाओं के सरेआम अपमान की धमकियां देना, धर्म बचाने के लिए शस्त्र उठाने का आह्वान करना या फिर धार्मिक जुलूसों में भड़काऊ नारे लगाना, ये सब अब न्यू इंडिया का न्यू नार्मल बन चुका है। जिसे वायरस बताते हुए दो दिन पहले सोनिया गांधी ने एक लेख में इससे सावधान रहने की अपील की थी। साथ ही प्रधानमंत्री के चुप रहने पर हैरानी भी जताई थी।
अब मोदीजी तो चुप लगाकर बैठे हैं, मगर शांति की अपील विपक्ष की ओर से आई, यह बात भी भाजपा नेताओं को नागवार गुजर रही है। भाजपा ने कांग्रेस को उसके शासनकाल के दंगे याद दिलाए और ममता बनर्जी पर प.बंगाल में हालात न संभालने का आरोप लगाया।
आश्चर्य की बात है कि भाजपा को नफरत के खिलाफ की गई अपील पसंद नहीं आ रही है, जबकि सरकार में होने के नाते भाजपा को सबसे पहले यह अपील करनी चाहिए थी। वैसे देश में दंगे-फसाद का माहौल बना रहेगा, तो महंगाई थोड़ी और बढ़ाने में सरकार को सुविधा होगी, बेरोजगारी की बात करने वाले युवाओं को भगवा झंडे थामने का काम दे दिया जाएगा और ध्यान भटकाने का यह सिलसिला बढ़ता जाएगा।
आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.