चाँद, ईद का चाँद सामने,
अभी धूँधलका हो रहा था, कुछ गाड़ियों की हेड लाईट जल गयी थीं।
सामने दूर आसमान में एक प्रतीबिंब सा उभरा, मैंने समय को तलाशा,7.36।
गाड़ी चलाते हुये फिर सामने सड़क पर आँखें टिक गयी।
ध्यान आया कि ये जरनैली सड़क है, पश्चिम की ओर बढ़ रहे थे हम।
अब ये हाईवे में तबदील हो चुकी है। फोर लेन।
हल्का सा घुमाव सड़क का एक गांव को अब कुछ दूर कर रहा था।
लेकिन गांव के क्षितिज पे फिर एक हल्की सी रोशनी आँखों के सामने उभार गयी। मानो कह रही हो कि जी भर के निहार लो।
जाने कितनी ही दुनियां की खुशियां, सूकूँ और यकीं समेटे हुये।
थोड़ा धीरे करके देखा तो वाकयई बेहद खूबसूरत।
अन्यास ही एक मुस्कुराहट का अहसास हुआ।
तब से सोच रहा हूँ
एक यकीन कितना गहरा, कितना शदीद।
'अली इमाम ए मनस्तो मनम गुलाम ए अली
हज़ार जान ए गिरामी फिदा ए नाम ए अली'
मन कुंतो मौला
मन कुंतो मौला।
जगदीप सिंधु
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sindhu jagdeep