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Embarrassing competition for anti-Muslim aggression in BJP-ruled states
मोदी राज को बहुसंख्यकवादी चेहरा चमकाने का ही सहारा
भाजपा-शासित राज्यों में एक शर्मनाक होड़ लगी हुई है। यह होड़ है मुस्लिम विरोधी आक्रामकता (Anti muslim aggression) के प्रदर्शन के जरिए, अपने बहुसंख्यकवादी समर्थन आधार को मजबूत करने की।
मुस्लिम विरोधी आक्रामता के प्रदर्शन के लिए नित नये-नये बहाने
बेशक, संघ तथा उसके राजनीतिक बाजू यानी पहले जनसंघ तथा अब भाजपा की हमेशा से ही, यही रीति-नीति रही है। यहां तक कि खुद आरएसएस का इतिहास (History of RSS) गवाह है कि उसकी स्थापना ही मुस्लिम विरोधी गोलबंदी के लिए की गयी थी। फिर भी संघ परिवार की इस जांची-परखी कार्यनीति में, नरेंद्र मोदी के शासन में एक नया तत्व जरूर जुड़ा है। यह नया तत्व है, इस मुस्लिम विरोधी आक्रामता के प्रदर्शन या कहना चाहिए कि अभ्यास के लिए, नित नये-नये बहाने खोजना। ये बहाने या मुद्दे चूंकि न सिर्फ सतही बल्कि पूरी तरह से फर्जी होते हैं, लोगों के बीच असर करने के लिहाज से उनकी धार बहुत जल्द कुंद हो जाती है और जल्दी-जल्दी ये बहाने खोजने होते हैं।
संघ परिवार के दुर्भाग्य से, मोदी राज न सिर्फ आम जनता को कोई वास्तविक राहत देने में विफल रहा है बल्कि आम जनता की तकलीफें ही तरह-तरह से बढ़ाने में लगा है और इसके चलते, न सिर्फ इन बहानों पर उसकी निर्भरता बढ़ गयी है बल्कि इन बहानों की धार के घिसने की रफ्तार भी लगातार बढ़ती जा रही है। इसलिए, हर नये बहाने का उपयोगिता-जीवन पहले वाले से कम हो जाता है और हर बार पहले से भी जल्दी नया बहाना खोजना होता है।
बहरहाल, मोदी राज ने भी इन बहानों की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आने दी है। कथित ‘गोहत्या’ से शुरू कर के मोदी राज ने कथित ‘घर-वापसी’ तथा ‘लव जिहाद’ तक, तरह-तरह के पुराने बहानों को नयी धार देकर तो पेश किया ही है, धारा-370 तथा ‘बंगलादेशी घुसपैठिए’ जैसे हथियारों को एनआरसी/सीएए तथा जम्मू-कश्मीर को बांटने तथा उसका दर्जा घटाने जैसे नये तथा कहीं घातक रूप देकर भी पेश किया है और राममंदिर से लेकर, बढ़ती मुस्लिम आबादी जैसे सदाबहार बहाने तो खैर हैं ही।
Chanda campaign for Ram temple
इसी क्रम में ताजातरीन बहाने के तौर पर, राममंदिर के लिए चंदा अभियान के रूप में विवादास्पद मंदिर के मुद्दे का पुनराविष्कार ही नहीं किया गया है, इस चंदा अभियान के लिए यात्राओं के नाम पर हिंदुत्ववादी हुल्लड़बाजों के उकसावेपूर्ण हिंसक जुलूसों के रूप में, इसको बाकायदा हमले के हथियार में बदला भी गया है।
शिवराज शासित मध्य प्रदेश में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर तथा कुछ अन्य स्थानों पर, इन कथित यात्राओं के जरिए न सिर्फ बाकायदा सांप्रदायिक हिंसा भडक़ायी गयी बल्कि पुलिस-प्रशासन की सरासर सांप्रदायिक रूप से पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों के जरिए, बाकायदा यह संदेश भी दिया गया कि शासन खुले तौर पर, इन हुल्लड़बाजों के साथ है।
लेकिन, बात इकतरफा गिरफ्तारियों आदि पर ही खत्म नहीं हो गयी। संभवत: निकट के ही योगी आदित्यनाथ राज से प्रेरणा लेकर, कम से कम दो स्थानों पर पुलिस व प्रशासन ने मुसलमानों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयां कीं, जो न सिर्फ पूरी तरह से गैरकानूनी थीं बल्कि ब्रिटिश राज के जमाने बाद से जो सुनने में ही नहीं आयी थीं।
एक मामले में, हुल्लड़बाजों की हिंसक भीड़ पर पत्थर फेंकने के शक में, मुसलमानों के घर गिरा दिए, तो एक और जगह पर घटना के दो दिन बाद ‘सड़क चौड़ी’ करने के लिए, एक लाइन से मुसलमानों के घरों का एक हिस्सा तोड़ दिया गया। प्रशासन का कहना था कि बेशक, पहले सड़क बनाने का ही विचार था, लेकिन बाद में सड़क चौड़ी करने का भी निर्णय कर लिया गया!
खैर! बात इतने पर भी खत्म नहीं हुई। राज्य प्रशासन के शीर्ष पर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस मामले में कूद पड़े और उन्होंने पूरे संदर्भ से काटकर ‘‘पथराव’’ को मुद्दा बनाकर उछाल दिया। उन्होंने पथराव को हाथ के हाथ कश्मीर में पथराव की घटनाओं से जोडक़र अतिरिक्त रूप से गंभीर अपराध का रूप देते हुए, एलान किया कि पथराव करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा और उनके खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान करने वाला कानून बनाया जाएगा।
Ordinance on love jihad in Madhya Pradesh
याद रहे कि इससे करीब एक पखवाड़ा पहले ही, शिवराज चौहान की सरकार ने मध्य प्रदेश में लव जिहाद संबंधी अध्यादेश जारी किया था। कांग्रेस के विधायक तोडक़र, दोबारा मध्य प्रदेश में सत्ता में आने के बाद से, शिवराज चौहान हमलावर हिंदुत्व का आइकॉन माने जाने वाले, नजदीकी उत्तर प्रदेश के अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री, आदित्यनाथ से जो होड़ सी करते नजर आ रहे हैं, उसे अनेक टिप्पणीकारों ने दर्ज किया है। लव जिहाद कानून के मामले में यह होड़ साफ-साफ दिखाई दे रही थी, जिसके अंतर्गत अंतर्धार्मिक विवाहों को ज्यादा से ज्यादा गंभीर रूप से दंडनीय अपराध बनाने की कोशिश की जा रही थी।
इसके चंद हफ्ते में ही, कथित राम मंदिर चंदा अभियान के प्रसंग में शिवराज चौहान को अगर फिर से अपने हिंदुत्ववादी चेहरे को चमकाने की जरूरत पड़ गयी है, तो यह जोड़-तोड़ से बनी इस सरकार के पांव तले की रेत खिसकती महसूस करने का ही इशारा है।
बहरहाल, योगी राज में उत्तर प्रदेश भी राम मंदिर के लिए चंदा अभियान के नाम पर मुस्लिम विरोधी हुल्लड़बाजी की मुहिम में कैसे पीछे रह सकता था।
मध्य प्रदेश में घटनाओं का सिलसिला थमा भी नहीं था, कि उत्तर प्रदेश में यही खेल शुरू हो गया। लेकिन, उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर जिले में शिकारपुर में ऐसे दुपहिया सवार जुलूस में शामिल लोगों ने जब बेबात मुसलमानों को गालियां देने और पाकिस्तान जाने को कहने के अपने वीडियो सोशल मीडिया में डाले, वाइरल हो गए। सोशल मीडिया पर ज्यादा शोर मचने के बाद, योगी राज की पुलिस को कम से कम दिखावे के लिए कुछ कार्रवाई करनी पड़ी और कथित रूप से मंदिर के लिए चंदा करने निकले जूलूस में से दो लोगों को गिरफ्तार करना पड़ा।
ऐसा लगता है कि यह दिखावटी कार्रवाई किए जाने के पीछे मकसद राष्ट्रपति से लेकर, मुख्यमंत्रियों तक, सत्ता में बैठे उन संघ-परिवारियों को शर्मिंदगी से बचाना भी था, जिन तक राम मंदिर के लिए देशव्यापी चंदा अभियान के तहत आने वाले कुछ दिनों में, विहिप आदि के शीर्ष नेता पहुंचने जा रहे हैं।
मंदिर के लिए चंदे के नाम पर, पांच लाख गांवों में पहुंचने समेत, देशव्यापी अभियान की जो योजना बनायी गयी है, जाहिर है कि वह भी सबसे बढ़कर मोदी राज के बहुसंख्यकवादी समर्थन आधार को मजबूती देने की ही योजना है।
इस मुकाम पर मोदी राज को अगर अपने बहुसंख्यकवादी समर्थन की इतने प्रकट रूप से जरूरत पड़ रही है, तो यह कोई इस या उस राज्य के भाजपायी मुख्यमंत्रियों के, अपनी स्थिति कमजोर होती महसूस करने का ही मामला नहीं है। यह तो मोदी के नेतृत्व में समूची हिंदुत्ववादी कतारबंदी के ही अपनी स्थिति कमजोर होती महसूस करने का मामला है।
बेशक, इसमें बढ़ते आर्थिक संकट का भी हाथ है, जिसे कोविड महामारी तथा उससे निपटने के नाम पर अंधाधुंध लॉकडाउन लगाए जाने समेत इस सरकार की विफलताओं ने और उग्र बनाया है। इसका राजनीतिक असर, पिछले ही महीनों हुए बिहार के विधानसभाई चुनावों में देखने को मिला था, जिसमें मोदी राज को अपने चुनाव प्रचार के लिए बेहतर भविष्य के किन्हीं भी आश्वासनों का कोई सहारा ही नहीं था और वह इसी तर्क के सहारे चुनाव लड़ रहा था कि पंद्रह साल पहले तक रहे लालू-राबड़ी राज में हालात अब से भी खराब थे! इसके बावजूद, भाजपा का गठजोड़ चुनाव हारते-हारते बचा।
इसके ऊपर से, किसान आंदोलन के रूप में मोदी राज के सामने ऐसी चुनौती आ खड़ी हुई है, जैसी चुनौती उसे इससे पहले कभी नहीं मिली थी। महामारी को अवसर बनाकर, श्रम कानूनों की ही तरह, तीन कार्पोरेटपरस्त कृषि कानूनों को धक्के से चलाने के लालच में, मोदी राज फंस गया है। अब उससे न ये कृषि कानून उगलते बन रहे हैं और न निगलते। स्वतंत्र भारत के इस अभूतपूर्व किसान आंदोलन को सिर्फ एक-दो राज्यों के किसानों का आंदोलन, धनी किसानों का आंदोलन, खालिस्तान समर्थकों का आंदोलन, चीन-पाकिस्तान समर्थित आंदोलन आदि, आदि कहकर बदनाम करने की अपनी सारी कोशिशों के विफल हो जाने के बाद और हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा राजस्थान में ही नहीं, अन्य अनेक राज्यों में भी किसानों के बढ़ते पैमाने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे मुद्दों पर हरकत में आने को देखते हुए, मोदी राज को बखूबी समझ में आ रहा है इस आंदोलन के बढ़ते राजनीतिक असर की काट, वह प्रचार के संसाधनों पर अपने सारे नियंत्रण से भी नहीं कर सकता है। इसी एहसास का एक जीता-जागता प्रमाण, हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर के किसानों को कृषि कानूनों के लाभ समझाने के कार्यक्रम के विरोध प्रदर्शन की भेंट चढ़ जाने के बाद, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दी गयी यह सलाह है कि अभी किसानों के कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं करें।
ठीक इसी संदर्भ में, चाहे लव जिहाद कानून हो या राम मंदिर के लिए चंदे के नाम पर अभियान, अपना बहुसंख्यकवादी चेहरा चमकाने के सहारे, मोदी राज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं।
राजेंद्र शर्मा
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