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इंजी. लल्लन कुमार : बिहार की दलित राजनीति की एक नई संभावना !

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hastakshep
12 Nov 2020
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इंजी. लल्लन कुमार : बिहार की दलित राजनीति की एक नई संभावना !

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Engineer Lalan Kumar: A new possibility for Bihar's Dalit politics!

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जिस बिहार विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की निगाहें टिकी थीं, उसका परिणाम सामने आ चुका है. इस चुनाव के शुरू होने के पहले जो महागठबंधन दूर – दूर तक मुकाबले में नहीं था : चुनाव प्रचार शुरू होने के कुछ दिन बाद तेजस्वी यादव के ऐतिहासिक प्रयास से न सिर्फ मुकाबले में आ गया, बल्कि पहले चरण का वोट पड़ते- पड़ते विजेता के रूप में नजर आने लगा. किन्तु 10 नवम्बर की देर रात जब कांटे के मुकाबले का चुनाव परिणाम सामने आया, लोग हतप्रभ रह गए. खासतौर से सामाजिक न्याय के समर्थकों को बहुत ही आघात लगा, क्योंकि ऐसे लोग उस मोदी को हारते हुए देखना चाहते, जो 10 नवम्बर को कई राज्यों के उपचनावों सहित बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम सामने आने के बाद और बड़े कद्दावर नेता के रूप में उभरे.

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मैं देश के सामाजिक न्याय समर्थक उन चंद लेखकों में से एक हूं, जो प्रधानमंत्री मोदी को हर चुनाव में हारते हुए देखना चाहते हैं. कारण, विगत 6 सालो में उनकी नीतियों के कारण जिस तरह दलित- बहुजन गुलामों की स्थिति में पहुंचे ; जिस तरह मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या, आर्थिक और सामाजिक गैर- बराबरी भारत में नई- ऊंचाई छूते गयी है, उससे ढेरों लोगों की भांति मुझमे भी उन्हें हारते हुए देखने की चाह तीव्रतर हुई. इसलिए जब बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की सभाओं में जुटती बेपनाह भीड़ देख मोदी उनको जंगलराज का युवराज बताने के साथ ही, भारत माता और जय श्रीराम का भावनात्मक नारा उछालने लगे: लगा तेजस्वी का तीर निशाने पर लग गया है और मोदी 2015 के बाद बिहार में और करारी हार झेलने के लिए विवश होंगे! और 7 नवम्बर को अंतिम चरण का चुनाव सम्पन्न होने बाद , विभिन्न चुनावी एजेंसियों के एग्जिट पोल्स की जब रिपोर्ट सामने आई, मोदी को हारते देखने की कामना करने वालों की उम्मीदों के पंख लग गए : उनकी हार में संदेह ही नहीं रह गया था. कारण, विभिन्न एजेंसियों के सर्वे में जहाँ राजग को औसतन 92 सीटें मिलती दिख रही थीं, वहीं महागठबंधन को 141. एग्जिट पोल्स की रिपोट्स से जहां महागठबंधन की विजय से आश्वस्त होकर भारी राहत की सांस लिया, वहीं एक अपने के लिए निजी तौर पर चिंता भी हुई.

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7 नवम्बर आये एग्जिट पोल्स की रिपोर्ट्स से जिस अपने के प्रति चिंतित हुआ, वह इंजी. ललन कुमार रहे.

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Lalan kumar bihar

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ललन कुमार 2015 में पीरपैंती से भाजपा की टिकट पर विधायकी का चुनाव लड़ते हुए लालू – नीतीश की सुनामी में भाजपा की ओर से रिकॉर्ड 77 हजार वोट पाकर भी, पांच हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. इसलिए जब 7 नवम्बर को एग्जिट पोल्स की रिपोर्ट आयी, मुझे लगा इस बार भी शायद उनकी नैय्या किनारे जाकर डूब जाएगी. इस बात से चिंतित होकर अगले दिन उनका हालचाल जानने का मन बनाया.

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चुनाव के दौरान ललन से सिर्फ दो बार बात हुई. पहली बार उन्होंने टिकट पाने के बाद मेरा शुभकामना लेने के लिए संपर्क और दूसरी बार 2015 की भांति 2020 में एक बार फिर अपने क्षेत्र का दौरा करने के लिए अनुरोध किया. किन्तु कोरोना के कारण मैंने असमर्थता जता दिया.

बहरहाल 2015 की भांति उनके क्षेत्र का दौरा न कर पाने के बावजूद प्रायः नियमित रूप से फेसबुक पर उनकी गतिविधियां देख पा रहा था. दरअसल फेसबुक का उन की टीम ने इतना जमकर सदव्यवहार किया था कि उनकी गतिविधियों पर नज़र पड़नी ही पड़नी थी. इसलिए जब अगले दिन उनसे फोन पर सम्पर्क हुआ, सबसे पहले मैंने उनको सोशल मीडिया के सदव्यवहार के लिए बधाई दिया .

उन्होंने कहा,’ सर, सोशल मीडिया का तो ऐसा उपयोग किया हूँ कि यहां के अखबारों के लिए वह चर्चा का विषय बन गया. कई अखबारों ने लिखा कि सोशल मीडिया का ऐसा उपयोग पूरे बिहार में किसी कैंडिडेट ने नहीं किया.

बहरहाल दुआ सलाम की औपचारिकता पूरी होने के बाद मैंने कहा,’ तमाम एग्जिट पोल तो हमलोगों के मन लायक संभावना जता रहे हैं,’ आपका क्या हाल है? परिणाम पिछले साल से बेहतर होगा तो?’

प्रत्युत्तर में ललन बाबू ने जो जवाब दिया, वह चौंकाने वाला रहा. उन्होंने कहा,’ साहेब दो दिन आप लोग जश्न मना लीजिये, उसके बाद मौका नहीं मिलेगा. नीतीश की सरकार फिर बन रही है और हम लोग शानदार तरीके से चुनाव जीतने जा रहे हैं. जहां, तक मेरे क्षेत्र का सवाल है, इस बार आपका बेटा भारी मतों से, कमसे कम 30 हजार वोटों से जीतने जा रहा है. मुझे लाख से ज्यादा वोट मिला है. मैं चुनाव बाद लगातार लोगों से मिल रहा हूं और खासतौर से वहां जा रहा हूँ, जहां प्रचार के दौरान जा नहीं पाया. लोगों से मिलने के बाद ऐसा लग रहा है कि सभी ने ही मुझे वोट किया है.’

मैंने कहा, ऐसा सिर्फ आपके क्षेत्र में नजर आ रहा है या...! मेरी बात पूरी होने के पहले उन्होंने कह दिया,,’ सर, ऐसा प्रायः पूरे बिहार में हुआ है. लोग मोदी और नीतीश जी को जमकर वोट दिए हैं.’ उसके बाद एग्जिट पोल्स इस बार क्यों फेल हो रहा है, एनडीए को लोग क्यों वोट दिए, इस पर अपना उन्होंने अपना लॉजिक रखा, जिसमें काफी दम था. उनकी जीत के प्रति आश्वस्त होकर मैंने उनको जोरदार अग्रिम बधाई दी और उनकी व्यस्तता को देखते हुए फोन काट दिया.

बहरहाल ललन की बातों में जो कॉन्फिडेंस झलका, उससे मुझे खुशी हुई कि कोई खुद को मेरा मानस पुत्र घोषित करने वाला व्यक्ति विधायक बनने जा रहा है. किन्तु उनसे बात करने के बाद खुशी के साथ एक दुश्चिंता भी मेरे मन में घर करने लगी और वह थी महागठबन्धन के हार की. यह दुश्चिंता कम हुई शाम को जब एक चैनल पर सीएसडीएस के संजय कुमार का आकलन सुना.

उन्होंने आजतक पर बहुत दावे के साथ कहा था कि महागठबंधन 139 से 161 सीटें पायेगा. उनके मुंह से यह सुनकर दुश्चिंता तो कुछ कम हुई, पर पूरी तरह नहीं! ऐसा इसलिए कि महागठबन्धन के हार की घोषणा ललन ने की थी और ललन क्या हैं, यह मुझसे बेहतर कौन जानता है !

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बिहार के पीरपैंती विधानसभा अंतर्गत आने वाले बाराहाट कस्बे के ललन 2008 में मुझसे मिलने दिल्ली आए . उनमें ऐसा कुछ दिखा कि रात्रि विश्राम के लिए अपने डेरे पर ही रोक लिया. फिर तो भोजन करने के बाद देर तक उनसे खुलकर बातें हुईं. इस क्रम में जाना वह पेशे से इंजीनियर हैं, पर, कोई जॉब न करके अपना जीवन अम्बेडकर मिशन के प्रति समर्पित करना चाहते हैं. ‘बाबा साहब का मिशन पूरा करने के लिए आप करना क्या चाहते हैं?’ मेरे इस सवाल के जवाब में कहा था,’ ब्राह्मणवाद का खात्मा!’ ब्राह्मणवाद के प्रति उनका आक्रोश देखकर मैं कांप उठा था.

मैं अम्बेडकरी आंदोलन से जुड़ने के बाद से ब्राह्मणवाद जैसे अमूर्त मुद्दे के प्रति लोगों का आक्रोश देखकर बराबर चिंतित रहता था, किन्तु किसी ने डराया तो वह ललन ही थे. वास्तव में ललन में ब्राह्मणवाद के खिलाफ इतना तीव्र आक्रोश था कि मैं डर सा गया था और डर इसलिए लगा था कि एक होनहार इंजीनियर अपने उज्ज्वल भविष्य का मोह विसर्जित कर ब्राह्मणवाद जैसे एक व्यर्थ के मुद्दे में अपना जीवन बर्बाद करने जा रहा है. मैं ललन की उस बात से इतना चिंतित हुआ कि बहुजन समाज के युवाओं को इस व्यर्थ के मुद्दे में जीवन बर्बाद करने से बचाने के लिए एक किताब ही लिखने के मन बना लिया और उनके हुई उस पहली मुलाकात के कुछ माह बाद ही उस पर एक किताब आ भी गयी, जिसका शीर्षक रहा,’भूमंडलीकरण के दौर में ब्राह्मणवाद कितनी बड़ी समस्या!’

बहरहाल रात में सोने के पहले तक ब्राह्मणवाद में ऊर्जा व्यर्थ करने से विरत रहने की हिदायत देने के बाद सुबह जब वह मुझसे विदा लेने लगे,  मैंने डायवर्सिटी पर उन्हें अपनी कुछ किताबें गिफ्ट की.

मेरी किताबें पढ़ने के बाद उनका ध्यान- ज्ञान डाइवर्सिटी हो गया और इसे लागू करवाना ही उन्होंने अपना मिशन बना लिया. उनकी लगन को देखते हुए उन्हें ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन,’ के बिहार शाखा का प्रभार दे दिया गया, जिसका उन्होंने बखूबी निर्वहन किया. धीरे- धीरे उनसे निकटता बढ़ती गयी और वे हमारे परिवार के सदस्य जैसे हो गए. निकटता इतनी बढ़ी कि हम एक दूसरे घर आयोजित होने वाले समारोहों में शिरकत करने लगे. उन्हीं की देखरेख में गांव पर मेरे नए भवन का निर्माण भी हुआ. बहरहाल डाइवर्सिटी मिशन से ललन के जुड़ने के बाद 2009 में एक बड़ी घटना हुई और वह हमेशा के लिए भाजपा से जुड़ गए.

2009 में लोकसभा चुनाव होना था, जिसे देखते हुए बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की ओर से पार्टियों के घोषणापत्रों में डाइवर्सिटी के एजेंडे को शामिल करवाने के लिए वर्ष के शुरुआत से ही प्रयास शुरू हो गया , जिसका सुफल भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र के रूप में सामने आया. भाजपा की ओर से जो घोषणापत्र जारी हुआ, उसके पृष्ठ 29 पर लिखा गया था,’ भाजपा पहचान की राजनीति के बजाय वंचितों के सशक्तिकरण में विश्वास करती है. सत्ता में आने पर भाजपा दलित पिछड़े वंचित वंचित वर्गों के सशक्तिकरण के लिए उद्यमशीलता को इस तरह बढ़ावा देगी, ताकि भारत की सामाजिक विविधता, आर्थिक विविधता में प्रतिबिम्बित हो सके.’ 2002 के 27 अगस्त को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा समाज कल्याण विभाग द्वारा छात्रवासों के लिए की जाने वाली खरीदारी में एससी- एसटी के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा के बाद 2009 में भाजपा के घोषजनपत्र में डाइवर्सिटी का एजेंडा शामिल होना नई सदी की एक बड़ी घटना थी . उस घोषणा के कुछ माह बाद जून 2009 में उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने एससी- एसटी के लिए ठेकों में 23 प्रतिशत। आरक्षण देकर डाइवर्सिटी मुव्हमेंट को बड़ा बढ़ावा दिया था.

बहरहाल भाजपा के घोषणापत्र आयी डाइवर्सिटी की बात ने औरों की तरह न सिर्फ ललन को भी उद्वेलित किया, बल्कि इतना उद्वेलित किया कि वह भाजपा ज्वाइन करने का मन बना लिए. और जब उन्होंने अपने मन की बात मेरे सामने रखी, मैंने भी सहमति दे दी. इसके पहले वह बिहार में सत्ता की दावेदार किसी अन्य पार्टी में जिले स्तर के पदाधिकारी रहे. 2009 में उनके भाजपा से जुड़ने के बाद 2010 के बिहार और 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के घोषणापत्रों में डाइवर्सिटी को जगह मिली. इससे उत्साहित होकर ललन भाजपा से और जी जान से जुड़ते गए, जिसका पुरस्कार उन्हें 2015 में विधायकी के टिकट के रूप में मिला. यह बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उनको वह टिकट 2010 में जीते विधायक की जगह मिला था.

2015 के विधानसभा चुनाव का प्रचार जब तुंग की ओर अग्रसर था, ललन ने मुझे अपने क्षेत्र का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया. मकसद चुनाव प्रचार में मुझे शामिल करना नहीं, बल्कि अपनी तैयारियों का प्रत्यक्षदर्शी बनाना था और मैं उनके यहां पहुंचा और शायद चार दिन रहा था. उन चार दिनों में ललन की राजनीतिक समझ, पूर्वानुमान, भाषण कला के साथ जन सम्पर्क का जो अंदाज़ देखा, वह मेरी स्मृति में हमेशा के लिए जगह बना लिया. उन चारों दिनों में उनके साथ लगभग दो दर्जन बैठकों का प्रत्यक्षदर्शी बनने का अवसर पाया. उस दरम्यान ललन का जो गुण मुझे विस्मित किया, वह था उनका स्वाभिमान!

चुनावी राजनीति को करीब से देखने का अवसर मुझे हिंदी पट्टी के साथ बंगाल जैसे राजनीति सचेतन राज्य में भी मिला था : नेता वोट पाने के लिए किस हद तक मतदाताओं के समक्ष झुकते हैं, यह फिल्मों में देखा और उपन्यासों में भी पढ़ा था. किन्तु जिस स्वाभिमान और कॉन्फिडेंस से ललन ने अपने क्षेत्र में वोट मांगा था, वह विस्मयकर रहा.

हो सकता है गुंडे - माफिया टाइप के प्रार्थी मतदाताओं के बीच शान और स्वाभिमान से जाते होंगे, पर ललन जैसे सामान्य पृष्ठभूमि से निकला कोई प्रार्थी वोट के लिए अपना स्वाभिमान न गिराए, इसका पहला और आखिरी अनुभव 2015 हुआ. ललन जहां भी वोट मांगने के लिए जाते, अनावश्यक विनम्रता के प्रदर्शन से दूर रहते: ऐसा लगता जैसे वह अतीत के अपने कामों और जनता के लगाव का प्रतिदान मांगने का संकेत करने के लिए वोटरों के बीच जा रहे हैं.

ललन का वह अंदाज़ मुझे चिंतित किया था, और कई बार मैंने उन्हें अतिरिक्त विनम्रता दिखाने का संकेत भी किया, लेकिन ललन हर बार यही कहते,,’सर, स्वाभिमान गिराकर वोट नहीं मांग सकता हूं. अगर लोगों का लगा कि मैं उपयुक्त विधायक साबित हो हो सकता हूँ, उनकी औरों से बेहतर सेवा कर सकता हूँ, तो ही वोट चाहूंगा’. बहरहाल ललन के साथ गुजारे गए वे दिन , बतौर एक राजनीति विश्लेषक मेरे लिए रोमांचक अनुभव रहा. जब उनसे विदा लेने लगा उनकी पूरे परिवार ने मुझे वोट काउंटिंग के दिन भागलपुर आने का जनुरोध किया और मैं पहुंचा भी.

उस दिन मैं ललन को खुद ही मतगणना सेंटर के मेन गेट तक छोड़ कर आया था. अंदर जाते समय ललन के चेहरे पर उनका चिरपरिचित कॉन्फिडेंस छाया रहा. किन्तु शाम को जब चुनाव परिणाम सामने आया, वह पांच हजार वोटों से हार चुके थे. मतगणना केंद्र के बाहर बैठे हम सब शॉक्ड थे. ललन पर क्या गुजरी होगी, यह सोच कर हम परेशान थे. बहरहाल परिणाम घोषित होने के आधे घंटे बाद, वह हमलोगों के बीच आये. वह गंभीर जरूर थे, लेकिन रुआंसे नहीं. हमलोगों के चेहरे पर रुआंसा भाव देखकर जबरदस्ती ठहाके लगाए. मुझे बाहों में भर कर कहे,’घबराए नहीं अगली बार आपका बेटा जरूर विधायक बनेगा’. यह देखकर अच्छा लगा वह शॉक्ड नहीं हैं. मुझे काउंटिंग के दिन ही दिल्ली लौटना था. किन्तु उनके हार जाने के कारण तीन दिन उनके साथ रह. इन तीन दिनों में देखा लोग उनकी हार से कितने दुखी थे: कइयों को तो फूट- फूट कर रोते पाया.

राजनीति ही ललन के लिए खाना- पीना , ओढ़ना बिछौना सब कुछ है, लिहाजा व 2015 में हारने के अगले दिन से 2020की तैयारियों में जुट. विगत साल भर से उनकी गतिविधियां उस जगह पहुंच गयी , जहां दूसरों की वोट पड़ने के दो माह पहले पहुंचती हैं. इन विगत 10 12 महीनों में वह क्षेत्र में तो सक्रिय रहे ही, इससे भी बढ़कर वह फेसबुक पर भाजपा को डिफेंड करने में भी सबसे आगे निकल गए. भाजपा के पक्ष में खुलकर बात रखते देखकर कई बार मेरी उनसे नोकझोक हो गयी. वह अक्सर कहते आप लोग जोगेंद्र मंडल बनने से बचिए. उनके योगेंद्र मंडल वाली बात से में इतना क्षुब्ध हुआ कि कह दिया, जो काम सवर्णों को करना चाहिए, वह आप कर रहे है. मन तो कर रहा है कि एक किताब ही लिखकर बताऊं कि जोगेंद्र मंडल क्या थे’

बहरहाल मैंने फेसबुक पर कई बार आपा खो दिया, पर ललन बिना अपना आपा खोये भाजपा के पक्ष में सोशल मीडिया पर लेखन करते रहे. चुनाव का दिन आते- आते वह फेसबुक पर छा गए.

उसी ललन ने जब 8 नवम्बर को कहा कि नीतीश सरकार वापसी कर रही है तो चिंता से घिर गया. और इससे उबरने के भारी प्रयास करने के बावजूद जब सफल न हो सका, 9 नवम्बर को फेसबुक पर यह पोस्ट डाला.

‘कल बिहार के एक भाजपा प्रार्थी, जो मेरे बहुत बड़े गुणानुरागी और पुत्र तुल्य हैं,से बात हुई. उन्होंने अपने विषय में यहां तक कह दिया कि अब मेरे लोग ऐसे लोगों का पता लगा रहे हैं, जिसने मुझे वोट नहीं दिया. इसके पीछे उनका आशय यह था कि सबने ही उन्हें वोट दिया है.उन्होंने दावा किया कि उनकी बड़ी मार्जिन से जीत हो रही और नीतीश की सरकार बन रही है. आप लोग दो दिन जश्न मना लीजिये. फिर.

सर्वे पर उनका कहना था कि इस बार स्थापित लोग खुद सर्वे न कर स्थानीय लोगों से सूचनाएं बटोरे, जिसे आप लोग सही मानकर खुश हो रहे . वैसे मै महागठबंधन की जीत के प्रति आश्वस्त हूँ. 2004 के लोकसभा चुनाव से लेकर अबतक ,कमसे कम हिंदी पट्टी के किसी भी चुनाव में मेरा अनुमान कभी गलत नहीं हुए. बावजूद इसके उनकी बात सुनकर मेरे उल्लास पर कुछ विराम सा लग गया है!’

उनके उपरोक्त कथन को अधिकांश लोगों ने बड़बोलापन कहकर खारिज कर दिया. किन्तु जब 10 नवम्बर की दोपहर जब चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में झुकता नजर आया, मैंने गूगल पर जाकर पीरपैंती का परिणाम सर्च किया तो पाया कि ललन वहां से लीड कर रहे हैं. फिर तो मुझे ललन की 8 नवम्बर वाली बात पूरी तरह सत्य प्रतीत होने लगी औऱ मैंने साढ़े ग्यारह बजे ही फेसबुक पर ललन की तस्वीर डाल कर जीत की अग्रिम बधाई दे दी.

शाम को मेरे लड़के ने फोन कर बताया कि वह जीत गए हैं. मैंने ललन को बधाई देने के लिए फोन लगाया तो उधर से उनके एक सहयोगी मनोज जी की आवाज आई. उन्होंने बताया कि वह काउंटिंग से नहीं निकले हैं, निकलने पर बात कराता हूँ औऱ 7 बजे के करीब ललन का फोन आया. छूटते ही उन्होंने कहा याद है न आपका बेटा कहा था अगली बार विधायक बनूंगा और आपके आशीर्वाद से बन गया.

मैंने अपनी ओर से जीत के साथ उनको इस बात के लिए भी बधाई दी कि इस चुनाव में एकमात्र उनका ही पूर्वानुमान सही हुआ. इस कॉन्फिडेंस के साथ किसी ने प्रीडिक्सन नहीं की’.

ललन बिहार की राजनीति में अंततः दलितों में बड़ी संभावना व लम्बी रेस का घोड़ा हैं, इसमें अंततः मुझे कोई संदेह नहीं. उन्होंने चुनाव जीतने के बाद जिस तरह पीरपैंती पहुंच कर सबसे पहले वहां की मिट्टी को माथे लगाया, लोगों के जेहन में 2014 का वह दृश्य कौंध गया, जब पीएम के रूप में संसद भवन पहुंच कर मोदी ने वहां की सीढ़ियों पर माथा टेका था. मोदी की भांति ही ललन द्वारा पीरपैंती की माटी को माथे से लगाना सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और हर कोई उनमें भविष्य के एक बड़े नेता की छवि देख रहा है.

एच एल दुसाध

दिनांक- 12 नवम्बर, 2020

एच.एल. दुसाध (लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)  

लेखक एच एल दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इन्होंने आर्थिक और सामाजिक विषमताओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं को संबोधित ‘ज्वलंत समस्याएं श्रृंखला’ की पुस्तकों का संपादन, लेखन और प्रकाशन किया है। सेज, आरक्षण पर संघर्ष, मुद्दाविहीन चुनाव, महिला सशक्तिकरण, मुस्लिम समुदाय की बदहाली, जाति जनगणना, नक्सलवाद, ब्राह्मणवाद, जाति उन्मूलन, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों पर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित हुई हैं।

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