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सिर्फ सजावटी पौधा नहीं है ‘सदाबहार’, औषधीय गुणों का भंडार है

क्या है सदाबहार? | Evergreen Tree – an overview सदाबहार एकवर्षीय या बहुवर्षीय शाकीय वनस्पति है जिसे भारत में आमतौर से बाग-बगीचों में सजावटी पौधे के रूप में गमलों अथवा भूमि पर उगाया जाता है। यह पौधा अफ्रिका महाद्वीप के मेडागास्कर देश का मूल निवासी है जहाँ यह उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन में जंगली अवस्था में …

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क्या है सदाबहार? | Evergreen Tree – an overview

सदाबहार एकवर्षीय या बहुवर्षीय शाकीय वनस्पति है जिसे भारत में आमतौर से बाग-बगीचों में सजावटी पौधे के रूप में गमलों अथवा भूमि पर उगाया जाता है। यह पौधा अफ्रिका महाद्वीप के मेडागास्कर देश का मूल निवासी है जहाँ यह उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन में जंगली अवस्था में उगता है। विराट जैवविविधता  वाले देश मेडागास्कर में इस वनस्पति की लगातार गिरती जनसंख्या के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (आ.यू.सी.एन.) ने इसे संकटग्रस्त घोषित कर लाल ऑकड़ा किताब  में सूचीबद्ध किया है। स्थानान्तरी कृषि इसकी गिरती जनसंख्या का प्रमुख कारण है।

सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथरेन्थस रोसीय्स है। यह पुष्पीय पौधों के एपोसाइनेसी कुल का सदस्य है। सदाबहार इसका हिन्दी नाम है जबकि अंग्रेजी में यह पेरिविन्कल  नाम से जाना जाता है। हिन्दी में इसे सदाफली नाम से भी जाना जाता है। सदाबहार की अधिकतम ऊँचाई 1मीटर तक होती है। पौधे की पत्तियाँ हरी एवं चमकदार होती हैं। इसके पुष्प गुलाबी, बैंगनी अथवा सफेद रंग के होते हैं। फल फालिकल  प्रकार का होता है, तथा एक फल में कई बीज होते हैं। आमतौर से सदाबहार को बागवानी हेतु बीज तथा कटिंग द्वारा तैयार किया जाता है।

सदाबहार का पर्यावरणीय महत्व

सदाबहार नाम के अनुसार ही सदाबहार  पौधा है जिसको उगाने से आस-पास में सदैव हरियाली बनी रहती है। कसैले स्वाद के कारण तृष्णभोजी जानवर  इस पौधे का तिरस्कार करते हैं। सदाबहार पौधों के आस-पास कीट, फतिगें, बिच्छू तथा सर्प आदि नहीं फटकते (शायद सर्पगंधा समूह के क्षारों की उपस्थिति के कारण) जिससे पास-पड़ोस में सफाई बनी रहती है। सदाबहार की पत्तियाँ विघटन के दौरान मृदा में उपस्थित हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देती हैं।

आमतौर से विदेशी मूल के पौधे अपने आप को तेजी से विस्तारित कर खर-पतवार का रूप धारण कर लेते हैं जिसके कारण बहुधा इन्हें ‘जैव प्रदूषक’ कहा जाता है लेकिन सदाबहार में इस प्रकार की प्रवृत्ति नहीं पायी गयी है। अत: सदाबहार अन्य विदेशी मूल के पौधों की तरह पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है। सदाबहार अपने पास पड़ोस में देसी अथवा स्थानीय पौधों की प्रजातिओं को पनपने देता है जिससे जैवविविधता पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।

सदाबहार का औषधि उपयोग | सदाबहार के औषधीय गुण एवं उपयोग | Sadabahar or Evergreen Medicinal Properties And benefits

आमतौर से औषधीय गुण सम्पूर्ण पौधे में पाया जाता है लेकिन इसके जड़ों की छाल औषधीय दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण भाग होती है। इस पौधे में विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण क्षार  पाये जाते हैं जिनमें एजमेलीसीन, सरपेन्टीन, रेर्स्पीन, विण्डोलीन, विनक्रिस्टीन तथा विनब्लास्टिन प्रमुख हैं। एजमेलीसीन, सरपेन्टीन तथा रेसर्पीन क्षार सर्पगन्धा समूह से सम्बन्धित हैं।

मधुमेह के उपचार में सदाबहार का उपयोग | Diabetes Health Benefits of Sadabahar Periwinkle in Hindi

सदाबहार की जड़ों में रक्त शर्करा को कम करने की विशेषता होती है। अत: पौधे का उपयोग मधुमेह के उपचार में किया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका में पौधे का उपयोग घरेलू नुस्खा के रूप में मधुमेह के उपचार में होता रहा है। पत्तियों के रस का उपयोग हड्डा डंक के उपचार में होता है। सदाबहार की  जड़ का उपयोग उदर टानिक के रूप में भी होता है। सदाबहार की पत्तियों का सत्व मेनोरेजिया नामक बिमारी के उपचार में दिया जाता है। इस बीमारी में असाधारण रूप से अधिक मासिक धर्म होता है।

एजमेलीसीन, सरपेन्टीन तथा रेसर्पीन नामक क्षारों में शामक तथा स्वापक गुण पाये जाते हैं। इनमें केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को शान्त करने की क्षमता होती है। अत: पौधे की जड़ों की छाल का उपयोग उच्च रक्तचाप तथा मानसिक विकारों जैसे अनिद्रा, अवसाद, पागलपन तथा चिन्तारोग  के उपचार में किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त इनमें मांशपेशियों को खिंचाव को कम करने की क्षमता होती है। अत: जड़ की छाल को दर्दनाशक के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। इन क्षारों में हैजा रोग के जीवाणु वाइब्रो कालेरी के विकास को अवरूद्ध करने की क्षमता होती है।

Utilization of evergreen leaves

क्षारों में जीवाणुनाशक गुण पाये जाते हैं इसलिए सदाबहार की पत्तियों का सत्व का उपयोग स्टेफिलोकोकलतथा स्टैप्टोकौकलसंक्रमण के उपचार (Treatment of ‘staphylococcal’ and ‘streptococcal’ infections) में होता है। आमतौर से ये दोनों प्रकार के संक्रमण मनुष्य में गले एवं फेफड़ों को प्रभावित करते हैं।

सदाबहार की पत्तियों में मौजूद विण्डोलीन नामक क्षार डीप्थिरिया के जीवाणु कारिनेबैक्टिीरियम डिप्थेरी के खिलाफ सक्रिय होता है। अत: पत्तियों के सत्व का उपयोग डिप्थिीरिया रोग के उपचार में किया जा सकता है।

पौधे के जड़ का उपयोग सर्प, बिच्छू तथा कीट विषनाशक के रूप में किया जा सकता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त आज सदाबहार ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है क्योंकि इसमें कैंसररोधी गुण पाये जाते हैं। सदाबहार से प्राप्त विनक्रिस्टीन तथा विनब्लास्टीन नामक क्षारों का उपयोग रक्त कैंसर के उपचार में किया जा रहा है।

सदाबहार विदेशी मूल का पौधा होने के कारण भारत में जंगली अवस्था में नहीं पाया जाता और इसका उपयोग केवल सजावटी पौधे के रूप में विशेषकर देश के शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में न तो यह पौधा उगाया जाता है न ही इस पौधे के औषधीय महत्व के विषय में कोई विशेष जानकारी है। यहाँ तक कि शहरी क्षेत्रों में भी इस पौधे को उगाने वाले लोगों को इसके औषधीय गुणों के ज्ञान का सर्वथा अभाव है।

आज देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इस औषधीय पादप के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है जिससे इस पौधे को कृषि के जरिए विस्तार मिल सके क्योंकि यह पौधा देश में सर्पगन्धा का आदर्श विकल्प बनने की क्षमता रखता है जो संकटग्रस्त प्रजाति होने के कारण दुर्लभ है।

– – डॉ. अरविन्द सिंह

(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)

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