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किसान आंदोलन : 15 को बिजनौर में गरजेंगी प्रियंका गाँधी

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hastakshep
13 Feb 2021
"हम संघ के विधान को भारत का संविधान नहीं बनने देंगे" : नागरिकता संशोधन बिल पर प्रियंका का साफ ऐलान

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Farmers protest. Priyanka Gandhi on 15th in Bijnor

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राज्य मुख्यालय लखनऊ से तौसीफ कुरैशीकांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव एवं उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गाँधी (Priyanka Gandhi Vadra, National General Secretary of Congress and in-charge of Uttar Pradesh) आगामी 15 फ़रवरी को यूपी के बिजनौर में किसान पंचायत को संबोधित करेंगी। वह इससे पूर्व सहारनपुर में भी कांग्रेस किसान पंचायत (Congress Kisan Panchayat in Saharanpur) कर चुकी हैं।

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सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक़ कांग्रेस तीनों काले कृषि क़ानूनों के विरूद्ध चल रहे किसानों के आंदोलन को पूरी ताक़त के साथ उनकी लड़ाई लड़ना चाहती है, इसीलिए अब पंचायत दर पंचायत कर माहौल को गर्माए रखना उनकी पहली प्राथमिकता लग रही है। अगर इसी तरह कांग्रेस भी पंचायत दर पंचायत करेगी तो मोदी सरकार के साथ ही योगी सरकार के विरुद्ध भी विरोध की चिंगारी भड़केगी और प्रदेश में भी कांग्रेस की खोई सियासी ज़मीन वापिस मिल सकती है।

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ख़ैर किसानों की इस लड़ाई में कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो किसानों के लिए पंचायतें कर उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाती दिखाई दे रही है। वैसे देखा जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर रालोद भी इसके लिए पंचायतों के द्वारा ही अपने जनाधार को पुनः प्राप्त करने के लिए सड़क पर काम कर किसानों के बीच जानें का काम कर रही है। बाक़ी सभी पार्टियाँ सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, फिर चाहे चाहे सपा कंपनी हो या बसपा। यूपी की ये दोनों पार्टियाँ बस दिखावा कर रही हैं।

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जहाँ तक बसपा की बात है, तो उसका सियासत करने का तरीक़ा अलग है। बसपा आंदोलनों पर यक़ीन नहीं रखती, इसलिए वह इस तरह की किसी भी एक्टिविटी से परहेज़ रखती है।

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अगर हम सपा कंपनी की बात करें तो उसके वर्तमान सीईओ भी आंदोलनों पर यक़ीन नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से सपा भी सोशल मीडिया पर ही तीनों काले कृषि क़ानूनों का विरोध कर किसानों की सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश में लगी हुई है। यही हाल सपा कंपनी का CAA , NPR NRC के विरोध में चले आंदोलन में भी था, जबकि उस आंदोलन को उसके साथ पिछले तीस सालों से उसके बँधुवा मज़दूर की तरह साथ चल रहा मुसलमान कर रहा था, लेकिन सपा की सेहत पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा था। उस समय भी कांग्रेस ही थी जो CAA, NPR व NRC के विरोध में चल रहे आंदोलन में मुसलमानों के साथ खड़ी थी और अब किसानों के चल रहे इस आंदोलन में पूरे दमख़म के साथ विरोध कर रही है।

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सपा कंपनी की यह मजबूरी है कि वह मुसलमानों का वोट तो लेना चाहती है, लेकिन उसकी आवाज़ बनना नहीं चाहती है उनका मानना है कि मुसलमान जाएगा कहाँ? उसकी भी मजबूरी है कि सपा कंपनी से ही चिपका रहेगा।

रही बात मुसलमानों की आवाज़ बनने की तो उसके लिए असदउद्दीन ओवैसी और कांग्रेस हैं, जो उसकी आवाज़ बन रहे हैं। जब सपा को बिना कुछ किए वोट मिल रहा है तो आवाज़ बनने की क्या ज़रूरत है।

ख़ैर किसानों का चल रहा आंदोलन अब देशव्यापी अभियान बनता जा रहा है। देखना यह है कि दुनिया की सबसे मज़बूत सरकार का दम भरने वाली मोदी सरकार या योगी सरकार कब हार मानती हैं या किसान ही हार मानते हैं? यह बात अभी तय होनी बाक़ी है।





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