भारतीय शोध प्रयोगशालाओं के जनक डॉ शांति स्वरूप भटनागर

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hastakshep
21 Feb 2021
भारतीय शोध प्रयोगशालाओं के जनक डॉ शांति स्वरूप भटनागर

Father of Indian Research Laboratories, Dr Shanti Swaroop Bhatnagar

Father of Science lab Shanti Swarup Bhatnagar

नई दिल्ली, 21 फरवरी : विज्ञान के विविध क्षेत्रों में भारत आज अपनी छाप छोड़ रहा है। इसका एक ताजा उदाहरण कोरोना वायरस के खिलाफ देश में विकसित की गई वैक्सीन है, जो देशव्यापी कोविड-19 टीकाकरण (COVID-19 Vaccination) में शामिल हो चुकी है। सर्वाधिक शोध प्रकाशनों के मामले में भी भारतीय शोधकर्ताओं ने दुनिया के शीर्ष देशों में अपनी जगह बनायी है।

आज भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, तो इसका श्रेय उन वैज्ञानिकों को भी जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद देश में वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता का स्वप्न देखा, और उसे साकार करने के लिए एक मजबूत आधारशिला रखी।

Shanti Swaroop Bhatnagar (शान्ति स्वरूप भटनागर) ऐसे ही एक स्वप्नद्रष्टा वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में देश को मजबूत स्थिति में खड़ा करने का स्वप्न देखा, और उसे साकार करने में जुट गए। कहना न होगा कि उन्हें भारतीय शोध प्रयोगशालाओं के जनक के रूप में अनायास ही याद नहीं किया जाता।

सीएसआईआर की स्थापना का श्रेय डॉ शांति स्वरूप भटनागर को

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), जिसकी देश भर में आज 38 वैज्ञानिक शोध प्रयोगशालाएं विज्ञान के विविध क्षेत्रों में काम कर रही हैं, की स्थापना का श्रेय डॉ शांति स्वरूप भटनागर को जाता है। वह मशहूर भारतीय वैज्ञानिक और अकादमिक प्रशासक थे। उनका जन्म 21 फरवरी, 1894 को शाहपुर में हुआ, जो अब पाकिस्तान में है। डॉ भटनागर के जन्मदिवस के अवसर पर आज देश उन्हें याद कर रहा है।

वर्ष 1913 में पंजाब यूनिवर्सिटी से इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के पश्चात उन्होंने लाहौर के फॉरमैन क्रिस्चियन कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने वर्ष 1916 में बीएससी और 1919 में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्नातकोत्तर डिग्री पूर्ण करने के उपरांत, शोध फेलोशिप पर, वे इंगलैंड चले गये, जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन से 1921 में, रसायन शास्त्र के प्रोफेसर फेड्रिक जी. डोन्नान की देखरेख में, विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इंग्लैंड प्रवास के दौरान वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान विभाग, लंदन की ओर से उन्हें 250 यूरो सालाना की छात्रवृत्ति मिलती थी।

अगस्त, 1921 में वे भारत वापस आए, और उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर तीन साल तक अध्यापन कार्य किया। इसके बाद, उन्होंने लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय में ‘फिजिकल केमिस्ट्री’ के प्रोफेसर के साथ-साथ विश्वविद्यालय की रासायनिक प्रयोगशालाओं के निदेशक के तौर पर काम किया। यह समय उनके वैज्ञानिक जीवन की सबसे महत्वपूर्ण समय था, जिसमें उन्होंने मौलिक वैज्ञानिक शोध किये।

उन्होंने इमल्सन, कोलायड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र पर कार्य के अतिरिक्त ‘मैग्नेटो-केमिस्ट्री’ के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। वर्ष 1928 में उन्होंने के.एन. माथुर के साथ मिलकर ‘भटनागर-माथुर मैग्नेटिक इन्टरफेरेंस बैलेंस’ का प्रतिपादन किया। यह चुम्बकीय प्रकृति ज्ञात करने के लिए सबसे संवेदनशील यंत्रों में से एक था, जिसका बाद में ब्रिटिश कंपनी ने उत्पादन भी किया।

वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली तब देश में विज्ञान और तकनीक की नींव रखने का कार्य आरंभ हुआ। इसके लिए डॉ शांति स्वरूप भटनागर ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधारभूत ढांचे और नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

उन्होंने कई युवा और प्रतिभाशील वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन किया और उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने शिक्षा मंत्रालय में सचिव के पद पर कार्य किया, और भारत सरकार के शिक्षा सलाहकार भी रहे। उनके नेतृत्व में तेल शोधन केंद्र शुरू हुए, टाइटेनियम जैसी नई धातुओं और जिरकोनियम उत्पादन के कारखाने बने तथा खनिज तेल (पेट्रोलियम) का सर्वेक्षण भी शुरू किया गया।

शांति स्वरूप भटनागर ने व्यावहारिक रसायन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया।

उन्होंने ‘नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन’ (एनआरडीसी) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। एनआरडीसी की भूमिका शोध एवं विकास के बीच अंतर को समाप्त करने से संबंधित रही है। उन्होंने देश में ‘औद्योगिक शोध आंदोलन’ के प्रवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनके नेतृत्व में भारत में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई। जिस सीएसआईआर की स्थापना उन्होंने की थी, आज वह वैश्विक पटल पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में भारत का नेतृत्व कर रहा है। आज सीएसआईआर का संपूर्ण भारत में 38 राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्‍थ केन्‍द्रों, 3 नवोन्‍मेषी कॉम्‍प्‍लेक्‍सों और 05 यूनिटों के साथ एक सक्रिय नेटवर्क है। सीएसआईआर, रेडियो एवं अंतरिक्ष भौतिकी, महासागर विज्ञान, भू-भौतिकी, रसायन, औषध, जीनोमिकी, जैव प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में में कार्य कर रहा है।

वर्ष 1954 में भारत सरकार ने डॉ शांति स्वरूप भटनागर को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में अहम योगदान के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।

1 जनवरी, 1955 को दिल का दौरा पड़ने के कारण डॉ शांति स्वरूप भटनागर की मृत्यु हो गई। उनके मरणोपरांत वर्ष 1957 में सीएसआईआर ने उनके सम्मान में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार की घोषणा की। यह पुरस्कार विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को दिया जाता है।

(इंडिया साइंस वायर)

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