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एक किस्सा नायाब | फिरोजाबाद का साहित्यिक इतिहास | उर्दू साहित्य का इतिहास
उर्दू की पहली पत्रिका फिरोजाबाद से निकली
First Urdu magazine published from Firozabad
फिरोजाबाद को चूड़ियों का शहर कहते हैं लेकिन इस शहर में साहित्य की खनक हमेशा से रही है। बहुत कम लोगों को इस बात का इल्म है कि उर्दू की पहली पत्रिका का प्रकाशन इसी शहर से हुआ। पत्रिका का नाम था -अदीब, साल था १८८९ और सम्पादक थे मीर अकबर अली। यह पत्रिका एक साल ही चली।
फिरोजाबाद में चूड़ी का पहला कारखाना इंडियन ग्लास वर्क्स भी मीर अकबर अली ने खोला
हैरत की बात यह है कि फिरोजाबाद को चूड़ियों का शहर बनाने वाला भी यही उर्दू साहित्यकार था, यानि फिरोजाबाद में चूड़ी का पहला कारखाना भी इसी कलमकार ने खोला था।
मीर अकबर अली की जीवनी | Biography of Mir Akbar Ali in Hindi
मीर अकबर अली के शानदार व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीनारायण चतुर्वेदी ने पुराने जमाने की प्रसिद्ध पत्रिका ''सरस्वती'' में एक लेख लिखा था।
इस लेख के मुताबिक मीर अकबर अली का जन्म १८४६ में आगरा के गुलाम खाने मोहल्ले में हुआ था, शिक्षा आगरा कालेज में हुई। अरबी फ़ारसी की अच्छी जानकारी के कारण मीर साहब बड़े सरकारी ओहदों पर रहे, अजमेर में एसडीएम रहे, निजाम हैदरावाद के डीएम (तालुकेदार ) बने।
मीर अकबर अली को लेखन का शौक था, सो अपने जमाने के अखबारों में छपते रहते थे। मीर साहब की फिरोजाबाद के रिटायर्ड पुलिस अधिकारी की बेटी से शादी हुई तो १८८९ में फिरोजाबाद आ बसे। आपकी लाइब्रेरी में १५००० पुस्तकों का विपुल भण्डार था।
फिरोजाबाद आते ही उन्होंने 'अदीब ' मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, लेकिन एक साल बाद इसे बंद करना पड़ा। देश की स्वाधीनता के लिए काम करने वाले तमाम नामी गिरामी हस्तियों से मीर अकबर का परिचय था। मौलाना अब्दुल कलाम आजाद तो फिरोजाबाद आकर उनके घर में कई दिनों रुके। ऐसे तमाम किस्से उनके जीवन से जुड़े हैं।
मीर साहब के व्यक्तित्व का उल्लेखनीय पहलू यह था कि वे फिरकापरस्ती से कोसों दूर थे। मीर साहब फिरोजाबाद नगरपालिका के जॉइंट चेयरमेन बने। तब उनके द्वारा किया गया एक काम इतिहास में दर्ज हो गया।
फिरोजाबाद में चंद्रवार मोहल्ले में एक जगह को लेकर दो लोगों में विवाद पैदा हुआ। गफूर नाम के व्यक्ति ने चाल चली और उस विवाद वाली भूमि पर एक मस्जिद बनबाने का एलान ठोंक दिया ताकि मुस्लिम साथी उसके पक्ष में खड़े हो जाएँ। ऐसा ही हुआ।
मामला मीर साहब के पास आया। मीर साहब को जमीन के कागजात आदि सबूत सेठ जी के हक में मिले। उन्होंने फैसला दिया कि यदि इस जमीन पर मुसलमान मस्जिद चाहते हैं तो पहले सेठजी जी से उस जमीन को ख़रीदा जाये। मुसलमान तैयार नहीं हुए तो मीर साहब ने एक चाल चली। उन्होंने सेठजी को अपने पास बुलाकर सुझाव दिया कि वे अपनी जमीन नगरपालिका को जनहित में दान दे दें।
अंग्रेजी ज़माना था। सेठजी ने ऐसा ही किया। तब मीर साहब ने उस स्थान पर नगरपालिका की कीमत पर एक सार्वजनिक कुआं बनवा दिया।
छोटी सी बात सांप्रदायिक रंग में रंगने से बच गई लेकिन मीर साहब को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। मुस्लिम लोग मीर साहब से बेहद खफा हो गए, उनका नाम वंशीधर रख दिया और उनसे बोलचाल बंद कर नाराजगी दिखाई।
१९१७ में मीर साहब नगरपालिका का चुनाव लडे तो हार गए। मीर साहब को इस हार का मलाल कभी नहीं रहा। उनके बनबाये कुएं का पानी कई दशकों तक हिन्दू-मुस्लिम सबने पीया।
मीर साहब को फिरोजाबाद की तरक्की में दिलचस्पी थी। आर्थिक रूप से संपन्न थे। उन्होंने फिरोजाबाद में चूड़ी का पहला कारखाना ''इंडियन ग्लास वर्क्स'' खोला १९०८ में। इस कारखाने में उनके पार्टनर मुस्लिम न होकर हिन्दू थे और नाम था --नंदराम मूलचंद सैनी और बौहरे मेघराज। ३ जून १९३२ को मीर अकबर अली का देहांत हुआ।
फिरोजाबाद में प्रसिद्ध शिक्षण संस्था एस आर के कालेज जिस स्थान पर है वह जमीन किसी जमाने में मीर साहब का बाग़ था।
बनारसीदास चतुर्वेदी की प्रतिमा
आज भी इस औद्योगिक नगर में उत्पादन चूड़ियों का है, लेकिन खनक साहित्य की है। इस सच्चाई का आभास आपको उस क्षण हो जायेगा जब आप फिरोजाबाद में प्रवेश करेंगे तो चारों तरफ कांच -ग्लास -चूड़ियों से लदे वाहन दिखाई देंगे लेकिन चौराहे पर एक विशाल मूर्ति दिखाई देगी महान साहित्यकार दादा बनारसीदास चतुर्वेदी की।
अशोक बंसल
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।