For special people, disaster is an opportunity. Raising voice of common people in this system not free from danger
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कोहरा क्यों जरूरी है?
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कुहासा का मौसम शुरू हो गया। यह चुनाव का मौसम भी है। गेंहू और लाही की फसल के लिए कोहरा जरूरी है। ज्यादा सर्दी भी। धान की फसल चौपट होने के बाद किसान इसी फसल के भरोसे है।
विकास का अधिकार भी मानवाधिकार है और पर्यावरण का भी मानवाधिकार है। जलवायु न्याय मानवाधिकार है।
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लेकिन न विकास हो रहा है और न आपदा प्रबंधन की किसी को परवाह है। विकास, पर्यावरण, जलवायु न्याय और आपदा प्रबंधन उत्तराखण्ड में चुनाव के मुद्दे नहीं हैं। क्यों नहीं हैं?
हमने सबसे अनुरोध किया था। लिखने के लिए।
अभी तक किसी ने नहीं लिखा।
कुहासे का मौसम है और उत्तराखण्ड में गहन कुहासा है। चेहरे पहचानना मुश्किल है। कुहासे में चलते रहना है। दृष्टि है ही नहीं। क्या होगा उत्तराखण्ड का?
हम आम लोग हैं। न प्रतिष्ठित और न प्रतिष्ठानिक। अकादमिक विमर्श की भाषा नहीं जानते। शुद्धतावाद हमारे खून में नहीं है। न वर्तनी और व्याकरण।
मिथकों में जीने को अभ्यस्त हैं और मिथकों से हमारी भावनाएं जुड़ी हैं। लोग इन्हीं मिथकों की आड़ में हमारी भावनाओं से खेल रहे हैं।
यह सिलसिला कब तक रहेगा?
बहुत जरूरी नहीं हो तो हम विशेषज्ञों से बचते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि ज्यादा से ज्यादा आम लोग अपनी बात खुद कहें।
खास लोगों के लिए आपदा ही अवसर है। वे किसीके साथ भी खड़े हो सकते हैं। आम लोगों की आवाज उठाना इस निजाम में खतरे से खाली नहीं है।
खास लोगों को न आम लोगों की परवाह है और न आम लोगों के लिए वे बोलने और लिखने का जोखिम उठाएंगे। यथास्थिति बनी रहे इसी में उनका, उनकी जाति का और उनके वर्ग का हित है।
जितनी जल्दी हम समझ जाएं कि हमारा कोई मसीहा नहीं है जो हमें मुक्ति देगा, उतना बेहतर है।
कुहासा छंटने के लिए तेज़ धूप की जरूरत है। उत्तराखंड के लिए सूरज की रोशनी काफी नहीं है।
हमें खुद को सूरज बनना पड़ेगा। सूरज की तरह चमकना पड़ेगा। तभी सूरत बदलेगी।
वरना 21 साल हो गए और 21 सौ साल इसी कुहासे में चलते जाना है।