For the first time in 70 years, even the token in the crematorium
70 सालों में पहली बार श्मशान में भी टोकन
आज समूचा देश कोरोना महामारी (Corona epidemic) के वीभत्स स्वरूप से भयाक्रांत है, इस महामारी ने लाखों लोगों को काल का शिकार बना दिया, हॉस्पिटल, मेडिकल स्टोरों और श्मशान घाटों पर लोगों की लंबी लाइनें लगी हैं। इस महामारी का परिणाम यह हुआ कि इस संकट की घड़ी में लोग श्मशान घाटों पर अपने स्वजनों की अंतिम यात्रा के लिए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं, श्मशान घाटों पर बढ़ती भीड़ और जद्दोजहद को देखते हुए दिल्ली सरकार ने श्मशान घाटों पर लोगों के अंतिम संस्कार के लिए पहले से ही सैकड़ों चिताओं की व्यवस्था कर दी है, इसके साथ की दिल्ली में पार्कों को भी श्मशान घाटों में परिवर्तित कर दिया गया है।
कोरोना की दूसरी लहर का कहर
देश में कहीं-कहीं श्मशान घाटों पर लोगों को टोकन लेने की व्यवस्था की गयी है, देश में हर तरफ व्याप्त चीत्कारों ने समाज में एक आपात का माहौल बना दिया। अस्पतालों के सामने रोते बिलखते परिजनों का करुण क्रंदन हमारी लाचारी और विवशता को बयां करने के लिए पर्याप्त है और यह इस बात की ओर संकेत है कि हम विश्वगुरु बनने का दम्भ भले भर रहे हों लेकिन सत्यता इसके बिल्कुल विपरीत है। आज यह प्रश्न मन में बार-बार उठता है कि इस आपत्ति लिए जिम्मेदार कौन है ? क्या इस भयानक महामारी को रोका जा सकता था? क्या हमारे जननायक को हमारी चिंता थी ? क्या महामारी, आपदा में अवसर बनाने का समय ही बनकर रह गयी है ? क्या चुनावी शंखनाद ने विजय की लालसा में हमारे जननायकों को हमें दांव पर लगाने का अवसर दे दिया है ? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो हमारे अपने समाज के साथ-साथ देश में चित्कार और रुदन के लिए जिम्मेदार हैं, इतिहास का अध्ययन पिछली घटनाओं से सबक लेने का समय देता है जिससे हम वही घटनाएं न करें नही तो उनकी पुनरावृत्ति का परिणाम पहले से भयानक होता है।
27 फरवरी को चुनाव आयोग पांच राज्यों में चुनाव कराने की घोषणा कर दी उस दिन हमारे देश में नये कोरोना मरीजों की संख्या 16234 थी, उसके बाद धीरे-धीरे कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा होने लगा, उस समय हमारे देश की सरकार और चलचित्र मीडिया ने अपना सम्पूर्ण ध्यान पांच राज्यों में होने वाले चुनाव पर रखा जहाँ वर्तमान सरकार द्वारा रैलियों और रोड शो का दौर आरम्भ हुआ तो वहीं चलचित्र मीडिया आज-तक द्वारा शंखनाद एपिसोड का प्रारम्भ हुआ जिसका लक्ष्य बंगाल चुनाव को कवर करना था।
चुनाव आयोग के पांचों राज्यों में चुनाव की घोषणा के बाद 2 मार्च को भारतीय जनता पार्टी की ओर से जारी किये गए आयोजन चार्ट के मुताबिक प्रधान मंत्री मोदी जी की पश्चिमी बंगाल में 20 और आसाम में 06 रैलियों का कार्यक्रम सुनिश्चित हुआ जबकि गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की 50-50 रैलियों का कार्यक्रम सुनिश्चित हुआ। इन रैलियों की शुरुआत 07 मार्च को कोलकत्ता के ब्रिगेड मैदान की रैली से प्रारम्भ होना तय किया गया, यहीं से सत्ता की आकांक्षा और जीत की लोलुपता प्रारम्भ हुई जिसमें अपनी विजय पताका को आगे बढ़ाने के लिए आम जनमानस को दांव पर लगाया गया जिसका परिणाम जनमानस पर भारी पड़ा।
अपने देश के मुखिया और गृह मंत्री की रैलियों में उमड़ती भीड़ को देखकर अन्य राज्यों में निवास करने वाले लोगों में यह धारणा बलवती होने लगी कि कोरोना महामारी से जुड़ी खबरें भ्रामक हैं क्योंकि जहाँ चुनाव की रैलियों और रोड शो का आयोजन हो रहा है क्या वहाँ पर कोरोना नही है, इसी धारणा का शिकार आम जनमानस बना और उसकी कोरोना के प्रति सजगता कमजोर पड़ गयी जिसका वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है।
यदि हम अपने प्रधान मंत्री जी की रैलियों का जिक्र करें तो इन पाँच राज्यों में अनेकों रैलियां की और केवल बंगाल में उनकी लगभग 15 रैलियां हुई। 17 अप्रैल को आसनसोल में रैली को सम्बोधित करते समय भीड़ को देखकर प्रधान मंत्री जी ने कहा कि लोक सभा चुनाव के दौरान मै दो बार यहाँ आया था लेकिन तब यहाँ इसके चौथाई लोग भी नहीं थे, आज इस भीड़ में सभी दिशाओं से आये लोग शामिल हैं और उन्होंने कहा इस तरह की भीड़ पहली बार देख रहे हैं।
इसके साथ ही भीड़ को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आपने यहाँ आकर अपनी शक्ति दिखा दी है अब पोलिंग बूथों पर जाकर वोट दें, इस दिन तो देश में कोरोना के दो लाख चौंतीस हजार केस आये थे, इसी प्रकार अन्य राज्यों के मुख्य मंत्रियों की भी रैलियां हुई।
चुनाव पर रोक, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने को लेकर छह उच्च न्यायालयों में अनेक जनहित याचिकायें पड़ीं परन्तु चुनाव आयोग और हमारी न्यायपालिका ने समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया, यदि समय से इन रैलियों और आयोजनों पर पाबन्दी लगाई गयी होती तो स्थिति इतनी भयावह नहीं होती।
पाँच राज्यों के चुनाव के साथ-साथ चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का भी बिगुल बजा दिया। अनेक सांसदों और विपक्षी नेताओं ने उत्तर प्रदेश में कोरोना से बिगड़ते हालत को देखते हुए पंचायत चुनाव टालने की अपील की, पंचायत चुनाव टालने की माँग सरकार के चुनावी इरादे को कमजोर न कर सकी।
उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव कराने में कोरोना संक्रमण के कारण 135 शिक्षकों की मौत हो गयी। चार राज्यों के चुनाव तो 09 अप्रैल को ही समाप्त हो गए लेकिन पश्चिमी बंगाल राज्य में चुनाव को सरकार की सुविधाओं और रैलियों का केंद्र बनाने के लिए बंगाल चुनाव को आठ चरणों में विभाजित किया गया था।
सितम्बर 2020 से फरवरी 2021 के बीच जब मरीजों की संख्या घट रही थी उस दौरान आने वाले संकट से निकलने के लिए हमारी सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नही उठाया गया। इसके इतर सरकार का पूरा ध्यान रैलियों और आयोजनों पर केंद्रित रहा। बिहार से लेकर पाँच राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए प्रधान मंत्री जी ने लगभग 50 रैलियाँ की, अकेले बिहार चुनाव में उन्होंने 12 चुनावी रैली की थी।
उसी प्रकार गृह मंत्री जी ने भी अनेक रैलियाँ की। अक्टूबर 2020 से लेकर फरवरी 2021 तक सरकार द्वारा कोई ठोस कदम या नीति कोरोना के घातक प्रहार को रोकने के लिए नही बनाई गयी और देश में इस भयानक महामारी से निपटने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था करने बजाय ऑक्सीजन का निर्यात किया गया। सन 2020-21 के लिए सरकार द्वारा 9300 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया गया जो साल 2019-20 के 4300 मीट्रिक टन के निर्यात से बहुत अधिक है।
सरकार की चिंताएं और गंभीरता इन्हीं तथ्यों से स्पष्ट है कि वे हमारे लिए कितनी सजग है। आज हमारा देश आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में हलाकान दिखाई पड़ रहा है जिसका उत्तरदायित्व हमारी नीतियों का प्रतिफल है, यह समय आपत्ति के आपात का नहीं वरन हमारी सरकार द्वारा अपनायी गयी नीतियों की आपत्ति का आपात है जिसने हमें इस संकट के समय आत्मनिर्भर होने के लिए छोड़ दिया है।
डॉ रामेश्वर मिश्र

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