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भाजपा की सफलता के लिए जातिगत अस्मितावादी आंबेडकराइट और लोहियावादी जिम्मेदार

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Guest writer
08 May 2022
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हाथरस में दलित की बेटी के साथ न्याय हो, जहां से भाजपा सांसद राजवीर दिलेर खुद बाल्मीकि समाज से आते हैं

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For the success of BJP, the caste identity Ambedkarite and Lohiaist are responsible.

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उत्तर प्रदेश में भाजपा इस समय जिस सियासी सिलेबस पर आगे बढ़ रही है, उसे विपक्ष की तरफ से कोई चुनौती ही नहीं मिल रही है. सब चुप हैं और ऐसा लगता है कि पूरा मैदान ही साफ़ है.

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यही नहीं, इस सियासी सिलेबस को आम जनता की तरफ से भी कोई चुनौती नहीं मिल रही है, क्योंकि जनता अपने नागरिक बोध को खो कर 'रियाया' हो चुकी है.

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दरअसल, इसके संकट के लिए जातिगत अस्मिता वादी आंबेडकराइट और लोहियावादी दोनों ही प्रमुख रूप से  जिम्मेदार हैं.

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उन्होंने अपने 30 साल के शासन काल में उत्तर प्रदेश की जनता के बीच किसी नागरिक बोध को पैदा ही नहीं होने दिया. उन्हें सिर्फ यही सिखाया कि सत्ता के लिए अधिकतम अवसरवादी बनिये और किसी के साथ भी चले जाइए. यही उनकी कुल पॉलिटिकल ट्रेनिंग थी. खुद घपले घोटाले में फंसे होने के कारण बीजेपी के खिलाफ बोलने की नैतिक ताकत यह दोनों ही राजनीतिक धाराएं खो चुकी हैं.

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दरअसल, कोई भी सियासी दल या समाज बीजेपी/ हिंदुत्व को तभी चुनौती दे सकता है जब उसकी लोकतांत्रिक मूल्यों और भारत के बहु सांस्कृतिक समाज में अटूट निष्ठा हो. उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दलों में इस निष्ठा का नितांत अभाव है. फिर इस बारे में इनसे कोई अपेक्षा ही सियासी भाववाद के बचकाने मर्ज का शिकार होना है.

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कुल मिलाकर, अभी बीजेपी को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती. उत्तर प्रदेश का यादव और जाटव इस बात को भांप गया है. इसीलिए वह बीजेपी में शिफ्ट होने के लिए प्रयास कर रहा है.

और इस समय, उत्तर प्रदेश में यदि बीजेपी के खिलाफ कोई बची खुची ताकत है तो वह सिर्फ कांग्रेस है. लेकिन उसके नेतृत्व का संकट यह है कि वह जनता को इस सिलेबस के खिलाफ एक ठोस सियासी रोडमैप देने में सक्षम नहीं दिखता है.

और इसीलिए, वह यूपी की आवाम के बीच राजनीतिक तौर पर कोई स्पष्ट कार्यक्रम पेश करने में वह असफल है. सारा संकट यही आकर खड़ा हो जाता है कि भाजपा को हराने का सपना एनजीओ टाइप के इवेंट आयोजित करके देखा जाता है.

और यही वजह है कि बीजेपी के नेता 2029 तक के लिए यूपी में अपने लिए मजबूत माहौल मान रहे हैं.

और मेरी समझ में उनके इस दावे में बहुत दम है क्योंकि उन्हें कोई चुनौती ही नहीं मिल रही है.

हरे राम मिश्र

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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