दो बड़े हथियार है इनके पास- पाक व चीन। पाकिस्तान तो चुनाव में काम आता है, जैसे अब यूपी चुनाव आ रहे हैं, पाक की एंट्री हो ही जायेगी। केवल कोरोना को रोकने का बढ़िया मैनजमेंट और वैक्सीनेशन का सुचारू रूप से कार्य होता तो विदेशी लोग अंगुली क्यों उठाते? उन्हें मौका ही नहीं मिलता। अब अंगुली उठती है वो भी प्रमाण सहित तो चीन की ढाल का प्रयोग व मोदी को बदनाम करने की साज़िश जैसे जुमलों से कब तक बचा जा सकता है?
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ताली, थाली, घंटी, दिया, तबलीगी जमात जैसी नौटंकी की उम्र थोड़े ही होती है। सच्चाई तो सामने आती है। देश से माफी मांगने की बजाय छवि चमकाने के लिए पूरे तन्त्र को लगा दिया है। स्वयं की और देश की छवि को स्वयं ने ही ख़राब किया है। सवाल तो उठेंगे न।
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सवाल का उचित जवाब काम करके व समस्या के समाधान से बनता है। फिर जवाब देना पड़ता ही नहीं। सवाल अपने आप नष्ट हो जाते हैं। यहां बौखलाहट का पता चलता है। केवल बचाव व समस्या से ध्यान हटाने का जो प्रयोग है वह लोकतंत्र में आत्मघाती होता है। प्रारम्भिक तौर पर मधुर प्रतीत होता है परन्तु इसके दूरगामी परिणाम घातक होते हैं।
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All the resources have been devoted to make the image shine.
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पूरे संसाधनों को लगा दिया है, छवि चमकाने के लिए। गोदी मीडिया तो है ही।
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ख़बरें इस प्रकार की भी आ रही हैं कि इनमें अंदरखाने ही भारी मतभेद पैदा हो चुके हैं जिसको उजागर करने से भारी नुक़सान होता है। अतः विदेश, चीन व विपक्ष को ढाल बनाकर बचाव मुद्रा में दिखावटी हमलों का सहारा लिया जा रहा है। अंदर का विरोध भी सरकार बचाने के लिए है। उसके लिए यदि परिवर्तन करना पड़े तो नागपुरी आदेश के बाद झोला उठाने में समय नहीं लगेगा।
बचावकर्मियों को मेरा यह लेख बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। वे बचाव में प्रतिक्रिया अवश्य देंगे। यह उनका अधिकार भी है। स्वस्थ लोकतंत्र में विचार संप्रेषित होने चाहिए। अस्वस्थ लोकतंत्र या मानसिकता में अप्रिय शब्दों में भी प्रतिक्रिया मिल सकती है।
हो सकता है मेरा यह लेख कड़वा सच हो। मुझे लगता है केवल बचाव का असर उस राजा की भांति होगा जिसको उसके अनुयायियों द्वारा सही सूचना न दिये जाने पर वह सत्ता खो बैठता है। आजकल के परिप्रेक्ष्य में यह कार्य दरबारी मीडिया कर रहा है। अपने स्वार्थ के लिए राजा को हानि पहुंचाकर हाथ झिटककर बैठ जायेगा। निंदक नियरे राखिये की नीति लगता है बेमानी हो गई है।