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देश में हर दिन चार दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है
Four Dalit women are raped every day in the country
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath) का मानना है कि अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार करने आपराधिक मामलों पर अंकुश लगाया जा सकता है। वह अपराधियों के पोस्टर विभिन्न चौराहों पर लगाने के पक्ष में हैं। विशेष रूप से बलात्कारियों को सबक सिखाने के लिए इस योजना को अपनाना चाहते हैं।
पिछले दिनों सीएए और एनआरसी के विरोध में हुए आंदोलन में तोडफ़ोड़ का आरोप लगाकर कई युवाओं के पोस्टर विभिन्न चौराहों पर लगाए भी गये थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि हाथरस में एक बेटी के साथ किये गये गैंगरेप, जीभ काटने, रीढ़ तोड़ने और उसकी हत्या करने के आरोपियों के पोस्टर अभी क्यों नहीं लगाए गये हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि योगी सरकार यह नीति बस अपने खिलाफ आवाज उठने वाली आवाज को ही दबाने के लिए अपनाए हुए है।
अब मनीषा दुनिया में नहीं रही। फिर भी देश के मीडिया का ध्यान इस ओर नहीं गया है। मनीषा के साथ किये गये जघन्य अपराध को 16 दिन हो गये पर किसी चैनल ने इसे मुख्य खबर नहीं बनाया। प्राइम टाइम डिबेट ऐसे मे भी सुशांत को न्याय दिलाने में व्यस्त थी।
The Yogi government, which claimed to have posted posters of rape and gang rape accused, kept on pressing the case.
रेप और गैंगरेप के आरोपियों के पोस्टर चौराहों पर लगाने का दावा करने वाली योगी सरकार मामले को दबाने में लगी रही। विपक्ष में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो मामले को उठाने का प्रयास किया। मनीषा को न्याय देने की मांग करते हुए कांग्रेस ने सड़कों पर प्रदर्शन भी किया। उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी सपा तो आंदोलनों के नाम पर बस ज्ञापन सौंपने तक सिमट कर रह जा रही है।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की नाकामियों के खिलाफ प्रभावी आंदोलन न होने से भी प्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे योगी सरकार ने कुछ ही लोगों को टारगेट किया हुआ है।
केंद्र की सत्ता में बैठे लोग भी देश की बेटियों को हवस का शिकार बना रहे दरिंदों को सजा दिलाने के लिए कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की राजधानी से महज 200 किलोमीटर दूर हाथरस के चंदपा क्षेत्र में 19 साल की लडक़ी के साथ गैंगरेप हुआ। उसी के गांव के चार दबंगों ने बलात्कार के बाद उसे लाठियों से इतना मारा कि उसकी गर्दन, हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डियां टूट गईं। नाम उजागर होने के डर से उसकी जीभ भी काट दी गई पर बेटी पढ़ाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वालों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
दरअसल लडक़ी सुबह के समय अपनी मां के साथ बाजरे के खेत में चारा काटने गई थी। ये दबंग पीछे से आए और खेत में घसीट लिया। काफी देर बाद घरवालों ने उसे अधमरी हालत में पाया तो लेकर अस्पताल भागे। अलीगढ़ के जेएन अस्पताल में सोमवार को जब उसकी हालत बिगड़ी तो उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया, लेकिन अगले ही दिन मंगलवार की सुबह साढ़े पांच बजे वो दुनिया से अलविदा हो गई।
बताया जा रहा है कि पुलिस ने छेडख़ानी का केस दर्ज कर मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया। अब जब मामला सोशल मीडिया पर छा गया है, तो पुलिस कह रही है, सख्त धाराएं लगाई हैं। अभियुक्त बचेंगे नहीं। लडक़ी को न्याय मिलेगा।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि एफआईआर दर्ज करने में आठ दिन क्यों लगे ?
मतलब साफ है कि 15 दिन तक इस मामले को दबाने की हर संभव कोशिश की गई। ये भी अपने आप में दिलचस्प है कि इस घटना के वक्त हाथरस के एसपी वही विक्रांत वीर सिंह हैं, जो दिसंबर, 2019 में चर्चित उन्नाव रेप केस के समय वहां तैनात थे।
यदि देश के जिम्मेदार स्तंभ बहू-बेटियों की इज्जत के इतने फिक्रमंद हैं तो ऐसा क्यों नहीं होता कि औरतों की जिंदगी, उनकी सुरक्षा टीवी चैनलों की प्राइम टाइम डिबेट का मुद्दा क्यों नहीं बनती। एनसीआरबी के अनुसार देश में मोदी सरकार बनने के बाद बलात्कार के आंकड़े लगातार बढ़े हैं। 2016-17 में देश की राजधानी में 26.4 फीसदी का इजाफा हुआ है।
यह अपने आप में चिंतनीय है कि देश की जिला और तालुका अदालतों में 3 करोड़ 17 लाख 35 हजार मामले लंबित पड़े हैं, जिनमें से दो करोड़, 27 लाख से ज्यादा मामले अकेले औरतों की साथ हुई हिंसा के हैं। यूपी की फास्ट ट्रैक अदालतों में दुष्कर्म व पॉस्को के सबसे ज्यादा 36,008 मामले लंबित हैं।
एनसीआरबी के डेटा के अनुसार देश में हर दिन चार दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। दरअसल महानगरों में महिलाओं के साथ किये जा रहे अपराध तो किसी न किसी रूम में सामने आ जाते हैं पर गांव-देहात में इस तरह के जघन्य अपराधों को दबा दिया जाता है।
कुछ साल पहले मैं हरियाणा के फतेहाबाद जिले के एक गांव में छठी कक्षा में पढ़ऩे वाली एक लडक़ी साथ गांव के एक ऊंची जाति के आदमी ने रेप किया था। छह दिन बाद जब वह लड़की अपनी छोटी बहन के साथ स्कूल गई तो साथ की लड़कियां उठकर दूसरी बेंच पर बैठ गईं। टीचर आया तो उसने भरी क्लास में लडक़ी से कहा, ‘तो तुम्हीं हो वो लड़की।’ उस लड़की को प्रिंसिपल के सामने पेश किया गया। माहौल खराब होने की बात कर उस लड़की को स्कूल में पढ़ाने से इनकार कर दिया। जब लड़की का पिता पुलिस के पास गया तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया। लड़की को न्याय दिलाने के बजाय स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर उसके चरित्र पर उंगली उठा रहे थे। लड़की का पिता इतना परेशान हो गया कि अपने ही बेटी को मारने दौड़ पड़ा, बाद में पता चला कि मामला रफा-दफा कर दिया गया।
चरण सिंह राजपूत
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