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सर्वमित्रा सुरजन लेखिका देशबन्धु की संपादक हैं।
चालाक लोमड़ी को जंगल के कानून भी पता हैं और जंगलराज का अर्थ भी
कहानी अब बदल गई है। समय की मांग है। जब देश बदल गया है। लोग बदल गए हैं। धर्म के मायने बदल गए हैं। त्योहार मनाने का तरीका बदल गया है। नोट बदल गए हैं। नेता बदल गए हैं, तो फिर कहानी क्यों न बदले। कब तक लोमड़ी अंगूरों को खट्टा मानकर छोड़ती रहेगी। लोमड़ी चालाक है। उसे जंगल के कानून भी पता हैं और जंगलराज का मतलब भी वो खूब अच्छे से समझती है। इसलिए अब उसने तय कर लिया है कि अंगूर चाहे जितने भी ऊपर क्यों न लटके हों, उन्हें किसी दूसरे के लिए नहीं छोड़ना है। क्या पता कोई ऊंची पहुंच वाला जानवर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उन अंगूरों को तोड़ ले, फिर तो अफसोस करने के अलावा कुछ भी नहीं रह जाएगा और जिंदगी सबको दूसरा मौका भी नहीं देती है। लोमड़ी ने बीजेपी से सीखा है कि चाहे बहुमत मिले या अल्पमत मिले, सत्ता को छोड़ना नहीं है, उचककर, लपक कर, दूसरे की पीठ पर सवाल होकर हथिया ही लेना है। तो उस सीख पर चलते हुए अब लोमड़ी अंगूरों को तोड़ ही लेगी।
जैसे अच्छे दिन आएंगे वैसे ही अब लोमड़ी के लिए अंगूर खट्टे हैं
लोमड़ी जानती है कि जैसे अच्छे दिन आएंगे और झोला उठा के चल देने वाले, मोदीजी के जुमले लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं, वैसे ही अंगूर खट्टे हैं का उसका जुमला भी सदियों से चला आ रहा है। अब तक बच्चों को मनोरंजन या नैतिक शिक्षा के लिए ऐसी कहानियां सुनाई जाती थीं। जिन लोगों ने अपने बचपन में ऐसी कहानियां सुनी थीं, वो सब इन जुमलों को जानते हैं। आज के बच्चों के लिए सरकार नयी कहानियां लिख रही है।
बच्चों को हिंसक बना रही है सरकार !
पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियों से भारत विश्वगुरु नहीं बन सकता था। गुरु बनने के लिए अपना रूतबा जमाना पड़ता है, जो घर में घुसकर मारेंगे, जैसे जुमलों से ही बनता है। तो सरकार आज के बच्चों को ऐसी कहानियां ही सुना और दिखा रही है, जिसमें धमकी, मारपीट, हिंसा, बलात्कार, कुचलना, बदला लेना, सर्जिकल स्ट्राइक, जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है। इन सबसे देश की नयी पौध को जहर की जो खुराक मिलेगी, और जो जहर भावी नागरिकों में भरा होगा, उससे फिर दुनिया कांपेगी और फिर देख लेंगे कि कौन हमें विश्वगुरु नहीं मानेगा। जो नहीं मानेगा, उसे बुलडोजर दिखा कर मनवा लेंगे। वैसे भी विश्वगुरु बनने के लिए अब ज्ञान की नहीं जान की जरूरत पड़ने लगी है, चाहे जान लो या जान दो। ज्ञान की बात तो पिछले 70 सालों से देश कर ही रहा था।
तो बुल्डोजर से भारत बनेगा विश्व गुरू?
बड़े-बड़े विश्वविद्यालय बना लिए, आईआईटी, आईआईएम, एम्स खोल लिए, लेकिन तब भी फोर्ब्स की सूची में शीर्ष खरबपतियों में भारत का नाम नहीं आ पाता था। तीन-चार नोबेल पुरस्कार ले लेने से कोई विश्वगुरु नहीं बन जाता। उसमें भारत की हैसियत कहां दुनिया को नजर आती थी। लेकिन जब से जान लेने या देने की बात आ गई है, देख लो देश में खरबपतियों ने कितनी तरक्की की है।
अमीरों की तरक्की के लिए मोदीजी 18 घंटे काम कर रहे हैं
पहले कोई उद्योगपति पांच-छह निजी विमान नहीं रख पाता था, रखता भी होगा तो उसे बताने में हिचकता था। अब जाकर देश में ये सब संभव हुआ है। दुनिया अमीरी को ही सलाम करती है। गरीबों को सलामी ठोंकनी होती तो लेनिन और मार्क्स सबके चहेते होते। दुनिया के इस उसूल को नेहरू-गांधी जैसे लोग नहीं समझ पाए। समझा है तो केवल मोदीजी ने। इसलिए अमीरों की तरक्की के लिए वो 18 घंटे काम कर रहे हैं।
मोदीजी का मिशन क्या है, जिसे नादान समझ नहीं पाते
फोर्ब्स वाले भारत के दो-चार लोगों का नाम कभी भूल ही नहीं पाएं, ऐसी तैयारी मोदीजी ने कर ली है। मोदीजी के मिशन को जो नादान समझ नहीं पाते हैं, वो जेएनयू जैसी पुरानी यूनिवर्सिटी का रोना ले कर बैठ जाते हैं कि क्या से क्या हो गया। उन्हें ये क्यों नहीं दिखता कि जब देश को जवाहर लाल नेहरू के नाम की ही जरूरत नहीं है, तब उनके नाम पर बनी यूनिवर्सिटी की भी क्या जरूरत है। इतिहास और राजनीति या समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में कुछेक शोधकार्यों से या डिग्रियों से क्या हो जाएगा। ये तो घरेलू नुस्खों की तरह हैं, जो आराम-आराम से अपना असर दिखाते हैं। जबकि इस वक्त दुनिया में तेजी की जरूरत है और इसके लिए जेएनयू नहीं व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी ही असरकारी है। इसके प्रभाव में आकर बच्चे फटाफट सब सीख रहे हैं।
मोदी सरकार सब कुछ बेच रही है
तो आज के बच्चों के लिए कहानी भी नयी लिखी जा रही है। अंगूर खट्टे हैं, ये तो लोमड़ी ने कह दिया, लेकिन अब वो उन अंगूरों को छोड़ेगी नहीं। किसी न किसी तरह तोड़ लेगी और फिर उनसे मुनाफा कमाएगी। ये अर्थशास्त्र भी लोमड़ी ने मोदीजी से सीखा है। कमाऊ संस्थानों को घाटे में बता-बता कर सरकार ने बेच दिया है। कह दिया कि बिजनेस करना, सरकार का बिजनेस नहीं है। सार्वजनिक संस्थान, संस्थानों की जमीनें, उनके शेयर सब कुछ मोदी सरकार बेच रही है और कमाई कर रही है। इस तरह मोदीजी एक तीर से दो नहीं तीन शिकार कर रहे हैं। पहला उद्योग-धंधे संभालने की जगह सरकार का पूरा ध्यान सत्ता संभालने में लगेगा, दूसरा उद्योगपतियों को मुनाफा होगा, और तीसरा जनता को नौकरी देने, नौकरी में वेतन के साथ जुड़े तमाम तरह के भत्ते और पेंशन देने से छुटकारा मिल जाएगा।
बिजनेस करना अगर सरकार का काम नहीं है...
जब बिजनेस करना सरकार का काम नहीं है, तो फिर नौकरी और बाद में पेंशन देने की जिम्मेदारी भी सरकार की क्यों रहेगी। ये सब उद्योगपतियों की सिरदर्दी होगी कि वो कितना मुनाफा काटे, कितनी नौकरियां दें और किन शर्तों पर दें। व्यापार संभाल लेने से जब सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है, तो फिर घाटे या मुनाफे की जिम्मेदारी भी उनकी नहीं रहेगी, न महंगाई के लिए वो जिम्मेदार होंगे। सरकार के सामने केवल एक ही जिम्मेदारी है देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की। और उसमें वो कहीं चूक रहे हों तो बताइए।
देश की अर्थव्यवस्था की नज़र उतारने वांले नींबू के भाव बढ़े हुए हैं
तो लोमड़ी अब अंगूरों को बेचेगी, क्योंकि उसकी बात पर लोगों ने यकीन कर लिया है कि अंगूर खट्टे हैं। वैसे तो खट्टे की बात हो तो नींबू ही पहले याद आता है। मगर अभी नींबू देश की अर्थव्यवस्था की नजर उतारने के काम आ रहा है। उसे एक महती उद्देश्य में लगाया गया है। इसलिए उसके भाव भी बढ़े हुए हैं। ठीक वैसे ही जैसे सरकार बनाने के लिए निर्दलियों और दलबदलुओं के भाव बढ़ जाते हैं।
आ जाएंगे लोमड़ी के अच्छे दिन
महंगा नींबू खरीदने की हैसियत अभी आम आदमी की नहीं है। इसलिए लोमड़ी उनके सामने नींबू की जगह अंगूरों के सौदे का प्रस्ताव रखेगी। जैसे अच्छे दिनों के लालच में लोगों ने अपने ठीक-ठाक दिनों का सौदा कर लिया, वही फार्मूला लोमड़ी को भी फायदा दिला सकता है। बाकी नींबू हो या अंगूर, आम आदमी के दांत तो महंगाई ने खट्टे कर ही दिए हैं। इसलिए उसे कोई फायदा नहीं होने वाला है, मगर कहानी बदलने से लोमड़ी के अच्छे दिन आ जाएंगे।
सर्वमित्रा सुरजन
लेखिका देशबन्धु की संपादिका हैं।
Web title : Fox learned economics from Modiji, now she will make profit from grapes